मरना तो सभी को है। लेकिन कोई देश के लिए कुर्बान हो यह बड़ी और गर्व की बात है। सेवानिवृत्त बैंकर बी. उपेंद्र कुमार (62) तिरंगे में लिपटे बेटे कर्नल बी. संतोष बाबू के पाॢथव शरीर के सामने यह कब कहें, तो इसे हिम्मत और धैर्य की मिसाल कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि एक-न-एक दिन ऐसी खबर का अंदेशा बना रहता था। उनका वीर बेटा कुपवाड़ा (कश्मीर) में लम्बे समय तक तैनात रहा; अब लद्दाख में था। वर्दी पहन ली, तो वह देश का सपूत हो गया; हमारा बाद में। उसके न रहने का गम है; लेकिन उसने देश रक्षा के लिए कुर्बानी दी है। पूरा देश हमारे साथ खड़़ा है, पर वह नहीं। वह हमेशा यादों में बसा रहेगा।
15 जून देर रात को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ खूनी संघर्ष में देश के 20 वीर सपूत शहीद हो गये। सीमा विवाद को लेकर कुछ दिनों से तनाव की स्थिति ज़रूर थी, लेकिन इसे पहले की तरह बातचीत और अन्य माध्यम से सुलझ जाने की उम्मीद थी। 15 जून की शाम के बाद दोनों पक्षों में तनातनी के बाद देर रात जो हुआ, वह अप्रत्याशित था। घटना के बाद से चीन के प्रति देश भर में आक्रोश है, वहीं शहीद परिवारों में मातम का माहौल है।
तेलंगाना के गाँव केसराम सूर्यपेट में बिहार रेजीमेंट के कमांडिंग अफसर बी.संतोष बाबू को अंतिम विदाई दी गयी। परिवार में पिता बी. उपेंद्र कुमार और मंजुला हैं। पत्नी संतोषी के अलावा चार साल का एक बेटा अनिरुद्ध और नौ साल की बेटी अभिग्ना है। पति की शहादत पर पत्नी संतोषी धैर्य और हिम्मत से काम लिया, जो काफी मुश्किल काम था। बैंक में मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त पिता याद करते हैं कि वह खुद भी सेना में जाना चाहते थे; लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उनकी यह हसरत बेटे ने पूरी कर दी। वह बचपन से ही बहादुर था। इसे देखते हुए उसे सैनिक स्कूल में भर्ती कराया। जिस सेना की वर्दी को वह पहनकर देश सेवा करना चाहते थे, वह बेटे ने पूरी कर दी। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शहादत से उनके परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट गया है। उसकी तैनाती काफी समय तक जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में रही। वह खतरनाक स्थिति के लिए हमेशा तैयार रहता था। फरवरी में बेटा लेफ्टिनेंट कर्नल से कर्नल बना था। वह हैदराबाद तैनाती का इच्छुक था और इसके लिए प्रक्रिया चल रही थी। लॉकडाउन की वजह से उन्हें अगले आदेशों तक लद्दाख में ही तैनात रहने को कहा गया था। क्या पता था कि तैनाती की जगह तिरंगे में उसका पाॢथव शरीर हमारे सामने होगा।
हिमाचल के भोरंज क्षेत्र (ज़िला हमीरपुर) के अंकुश ठाकुर तो अभी 21 के ही हुए थे। उनकी तो ठीक से मूँछे भी नहीं आयी थीं कि देश के लिए आहुति दे दी। वह परिवार में तीसरी पीढ़ी के सपूत थे। पिता और दादा भी फौजी रहे हैं। पिता अनिल कुमार हवलदार से सेवानिवृत्त हुए हैं; वहीं दादा सीताराम आर्नेरी कैप्टन रह चुके हैं। दिसंबर, 2018 में सेना में शामिल हुए अंकुश पहले सियाचिन भी रहे। कुछ समय से उनकी तैनाती लद्दाख में थी। करोहटा गाँव के अंकुश कोई सात माह पहले गाँव आये थे। परिवार के लोग छुट्टी पर आने का इंतज़ार कर रहे थे; लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद बढ़ गया। तैनाती लद्दाख क्षेत्र में ही थी; लिहाज़ा वे स्थिति के सामान्य होने का ही इंतज़ार कर रहे थे। बदले घटनाचक्र और अंकुश के शहीद होने की खबर से परिजनों पर गमों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने परिजनों के साथ संदेवना जताते हुए कहा है कि सरकार उनके परिवार के हर दु:ख-दर्द में खड़ी रहेगी। उन्होंने सरकार की ओर से 20 लाख रुपये की आॢथक मदद देने की घोषणा की। शहीद अंकुश का अंतिम संस्कार पूरे सैनिक सम्मान के साथ हुआ।
वैशाली (बिहार) के आर.के. सिंह अपने पुत्र जयकिशोर सिंह के शहीद होने की खबर के बाद अपने को सँभाल लेते हैं। प्रतिक्रिया में कहते हैं कि उनका एक और बेटा नंदकिशोर भी सेना में है। अन्य दो बच्चे भी सेना में जाने को तैयार हैं। उनमें भी देश की सेवा करने का वही ज•बा है। हमारा परिवार सेना के प्रति समर्पित है। इससे बड़ी देश सेवा और कोई नहीं हो सकती। सेना में भर्ती होना गर्व की और देश की रक्षा करते हुए कुर्बानी देना बड़े फख्र की बात है। दु:ख और संताप हर परिवार की तरह हमें भी हैं; लेकिन इसे उस तौर पर प्रकट नहीं किया जा सकता। शहीदों के परिजन अगर जाने वाले के गम में विलाप करते नज़र आएँगे, तो इससे गलत संदेश जाएगा। इससे शहीद की वीरता कम होगी, जिसे सहन नहीं किया जा सकता। सेना में जाने का मतलब ही देश के लिए समर्पित हो जाना है। सेना में रहते बहादुरी के लिए सम्मान मिलना, तो पूरे परिवार के लिए गर्व की बात होती है; लेकिन रक्षा के लिए कुर्बानी तो किसी-न-किसी को देनी ही पड़ती है। जयकिशोर की तरह अन्य परिवारों को भी दु:ख की घड़ी देखनी पड़ी है। गलवान घाटी के शहीदों में चार सपूत पंजाब के भी हैं। इनमें नायब सूबेदार मनदीप सिंह (39) पटियाला ज़िले के सील गाँव के और नायब सूबेदार सतनाम सिंह (41) गुरदासपुर ज़िले के भोजराज गाँव के हैं। इसके अलावा सिपाही गुरतेज सिंह (22) गाँव बीरवाला डोगरा (मानसा) और सिपाही गुरविंदर सिंह (22) संगरूर ज़िले की सुनाम तहसील के गाँव तोलावाल के हैं। दोनों अविवाहित हैं और शादी के लिए कमोबेश बातचीत चल रही थी। नायब सूबेदार मनदीप सिंह के परिवार में माँ शकुंतला, तीन बहनें, पत्नी गुरदीप कौर, बेटी महकप्रीत कौर और 10 साल का बेटा जोबनप्रीत सिंह है। उनका पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। बेटे जोबनप्रीत ने मुखाग्नि दी, तो वहाँ मौज़ूद लोगों की आँखें नम हो गयीं।
परिजन बताते हैं कि घटना के 10 दिन पहले फोन पर बात हुई थी। छोटी-सी बातचीत में बताया कि जिस जगह वह तैनात हैं, वहाँ स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उसके बाद परिजनों का कोई सम्पर्क नहीं हो सका। बाद में सेना की ओर से उनके शहीद होने की ही खबर आयी।
शहीद नायब सूबेदार सतनाम सिंह के भाई सूबेदार सुखचैन सिंह हैदराबाद में तैनात हैं। बताते हैं कि तीन दिन पहले उनकी भाई से बातचीत हुई थी। उन्होंने देश रक्षा क लिए अपना बलिदान दिया है और पूरे परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है। परिवार में पिता जगीर सिंह और माँ जसबीर कौर के अलाव पत्नी जसविंदर कौर, बेटा प्रभजोत सिंह और बेटी संदीप कौर है। सिपाही गुरतेज सिंह करीब डेढ़ साल पहले दिसंबर, 2018 के दौरान सेना में भर्ती हुए थे। पिता विरसा सिंह और माँ प्रकाश कौर के अलावा दो भाई हैं। पिता कहते हैं कि गुरतेज का सपना सेना में शामिल होने का रहा था। वह बहादुर था और उसने इसकी मिसाल कायम करके दिखा दी। परिवार से बेटे के जाने का दर्द हम सभी को है; लेकिन देश की रक्षा के लिए उसकी कुर्बानी को पूरा देश याद रखेगा। सिपाही गुरविंदर सिंह का 02 जून को जन्मदिन था। मार्च, 2018 में भर्ती हुए थे। उनकी शादी की बात पक्की हो चुकी थी। परिजन जल्द-से-जल्द उनकी शादी करना चाहते थे। इसके लिए उसके छुट्टी पर आने का इंतज़ार हो रहा था। परिवार में माँ चरणजीत कौर (60) और पिता लाभ सिंह (65) के अलावा भाई गुरप्रीत सिंह और बहन सुखजीत कौर हैं। माता-पिता की तबीयत ज़्यादा अच्छी नहीं रहती है; इसलिए गुरविंदर को इनकी भी चिन्ता लगी रहती थी। परिवार के लोग बताते हैं कि नेटवर्क की समस्या की वजह से उनसे सम्पर्क नहीं हो पाता था।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चारों शहीदों के परिजनों से संवेदना जताते हुए सम्बद्धित ज़िला प्रशासन को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के प्रबन्ध पुख्ता करने के विशेष निर्देश दिये। उन्होंने सरकार की ओर से विवाहित शहीदों को 12-12 लाख और अविवाहित शहीदों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये की आॢथक मदद की घोषणा की है। इसके अलावा चारों परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी का भी ऐलान किया है।
गलवान घाटी के शहीदों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शहीद होने वालों में बिहार के भी सपूत रहे। इनमें पटना के हवलदार सुनील कुमार, भोजपुर के सिपाही चंदन कुमार, सहरसा के कुंदन कुमार, समस्तीपुर के अमन कुमार और वैशाली के जयकिशोर सिंह हैं। ओडिशा के शहीद होने वालों में मयूरभंज के नायब सूबेदार नुदू राम सोरेन और कंधनमाल के सिपाही चंद्रकांत प्रधान हैं। झारखंड के शहीदों में पूर्व सिंहभूम के सिपाही गणेश हांदस और साहिबगंज के सिपाही कुंदन कुमार ओझा हैं। छत्तीसगढ़ के गणेश राम कांकेर, उत्तर प्रदेश की मेरठ सिटी के हवलदार विपुल राय, रीवा (मध्य प्रदेश) के नायक दीपक कुमार और बीरभूम पश्चिम बंगाल के सिपाही राजेश ओरंग हैं। सेना की जानकारी के मुताबिक, कमांङ्क्षडग अफसर कर्नल बी. संतोष बाबू के साथ मदुरई (तमिलनाडु) के हवलदार गनर पलानी और सिपाही कुंदन कुमार मौके पर ही शहीद हो गये थे; जबकि बाकी 17 ने बाद में दम तोड़ा था।
कुल मिलाकर हमारे 20 सैनिकों का शहीद होना दु:खद है। तहलका परिवार सभी वीर सपूतों को भावभीनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता है।
- कर्नल बी. संतोष बाबू
- नायब सूबेदार सतनाम सिंह
- नायब सूबेदार मनदीप सिंह
- नायब सूबेदार नन्दूराम सोरेन
- नायक दीपक कुमार
- हवलदार सुनील कुमार
- हवलदार विपुल रॉय
- हवलदार के. पालानी
- सिपाही कुन्दन कुमार
- सिपाही अमन कुमार
- सिपाही चन्दन कुमार
- सिपाही गणेश हास्दा
- सिपाही गणेश राम
- सिपाही के.के. ओझा
- सिपाही राजेश उरांव
- सिपाही सी.के. प्रधान
- सिपाही जयकिशोर सिंह
- सिपाही गुरतेज सिंह
- सिपाही अंकुश
- सिपाही गुरङ्क्षवदर सिंह
तेलंगाना सरकार ने शहीदों का किया बड़ा सम्मान
तेलंगाना सरकार ने सबसे बढक़र शहीदों का सम्मान किया है। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव शहीद बी. संतोष बाबू के घर पहुँचे और परिजनों से संवेदना जतायी। उन्होंने शहीद के परिजनों को पाँच करोड़ रुपये की मदद के अलावा शहीद की पत्नी को एसडीएम पद पर नियुक्त किया है। साथ ही आवासीय प्लॉट देने की घोषणा की है। इनके अलावा अन्य राज्यों के 19 शहीदों के परिजनों के लिए 10-10 लाख रुपये की मदद का ऐलान किया। शहीदों का सम्मान हर राज्य सरकार ने अपने तौर पर किया है; लेकिन गैर राज्य के शहीदों के लिए आॢथकमदद की घोषणा तेलंगाना सरकार की इस मुद्दे पर संवेदनशीलता को दर्शाता है।
हीरो हैं मेरे पापा
शहीद कर्नल बी. संतोष बाबू की बेटी अभिग्ना अपने पिता को असली हीरो मानती है। शहादत की खबर के बाद उन्होंने प्रतिक्रिया में जिस हिम्मत का परिचय दिया, वह अपने आप में मिसाल ही है। अभिग्ना ने बताया कि एक-दो दिन के अंतराल में उसकी पिता से फोन पर बातचीत हो जाती थी। मेरे असली हीरो, मेरे पिता ही हैं। वह बहुत बहादुर थे और अक्सर बातचीत में यही संदेश दिया करते थे। पिता के बिना सब कुछ सूना-सूना लगता है। उनकी कमी पूरी नहीं की जा सकती। अभिग्ना कहती हैं कि साइंटिस्ट बनना चाहती हैं और उन्हें उम्मीद है उनका यह सपना ज़रूर पूरा होगा। भाई अनिरुद्ध तो चार साल का है। वह मासूम है। माँ की गोद से उसने पिता को सेल्यूट किया, तो वह अपने आँसू नहीं रोक सकीं। अभिग्ना कहती हैं कि मेरे पिता देश रक्षा के लिए शहीद हुए हैं। उनकी शहादत पर पूरे देश को गर्व है और मुझे भी; क्योंकि मेरे पिता असली हीरो हैं।