तरक्की के नाम पर इंसानों द्वारा प्रकृति से किये जा रहे खिलवाड़ की कीमत इंसानों को तो चुकानी पड़ ही रही है, बेज़ुबान जानवरों को भी चुकानी पड़ रही है। लेकिन जब प्रकृति कुपित होती है, तो इंसान को उसका कोप झेलना आसान नहीं होता। आजकल कोरोना वायरस जैसी महामारी और उसके बीच में एक के बाद कई आपदाओं ने इस बात का फिर से अहसास करा दिया है। लेकिन फिर भी इंसान सुधरने का नाम नहीं लेता।
विकास के नाम पर जंगलों को काटकर जंगली पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवासों को मानव ने इस तरह से मिटाया है कि वो अक्सर इंसानी बस्तियों में नज़र आते हैं। असल में जंगली पशु-पक्षी इंसानी बस्तियों में नहीं आते, बल्कि इंसान उनकी बस्तियों में घुस चुके हैं। कभी विकास के लालची इंसानों ने पैसे के लाचल में, तो कभी शिकार के शौक में जंगली पशुओं को हमेशा निशाना बनाया गया। इंसान के इस लालच और शौक का खामियाजा महज़ कुछ चुनिंदा जानवरों ने ही नहीं, बल्कि विशालकाय हाथी से लेकर समुद्री जीवों तक ने भुगता है। लेकिन अगर यही जानवर इंसानों की बस्तियों में घुस आएँ, तो हाहाकार मच जाता है और अमूमन उन्हें मार दिया जाता है। लेकिन ऐसे मामलों को और इंसानों पर इंसानों के अत्याचार को राजनीतिक लोग और कुछ तथाकथिक समाजङ्क्षचतक दो नज़रों से देखते हैं। यानी इन पीडि़त लोगों या पीडि़त जानवरों से सरोकार नहीं होता या जिसमें इनका स्वार्थ निहित होता है, उनके मामले में खामोशी साध लेते हैं और जहाँ इन्हें राजनीतिक या आॢथक नुकसान हो रहा हो या किसी विशेष मुद्दे से ध्यान भटकाने का खेल करना हो, वहाँ यह इस कदर रुदाली रोना रोते हैं कि मानों आसमान फट गया हो। खैर, हमारा मानना यह है कि पीडि़त कोई भी हो, उसके साथ सभी इंसानों की संवेदनाएँ होनी ही चाहिए। मई के आखरी हफ्ते में देश के सबसे शिक्षित और विकसित प्रदेशों में शुमार केरल के पलक्कड़ में गर्भवती हथिनी के अनानास में पटाखे खिलाकर मारे जाने की घटना ने खूब सुॢखयाँ बटोरीं। इस पर सियासी बयानबाज़ी भी हुई। लेकिन इस दरमियान किसी भी सरकार की ओर संवेदनशीलता नहीं दिखी; न ही किसी ने ऐसे कदम उठाये, जिससे आगे इस तरह की घटनाएँ न हों। हाँ, शोर खूब मचाया।
विश्व पर्यावरण दिवस पर भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रकृति से जुड़ी रिपोर्ट की बजाय राजनीतिक बयानबाज़ी करते ज़्यादा नज़र आये। उन्होंने एक रिपोर्ट के हवाले से कहा कि पिछले 10 साल में 750 से अधिक बाघों की मौत हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारियों की रिपोर्ट के मुताबिक, जंगली हथिनी भोजन की तलाश में गाँव तक पहुँच गयी। इससे लोगों में खौफ होना स्वाभाविक है। वहाँ पर जंगली सूअरों के लिए पहले से ही बम रखने जैसी घटनाएँ आम हैं। पर गर्भवती हथिनी, जो भूखी थी; गलती से सम्भवत: लोगों पर भरोसा करके उसने पटाखों से भरा अनानास खा लिया, जो उसके मुँह में ही फट गया। इससे वह दर्द से कराह उठी। बावजूद इसके उसने किसी इंसान या उनके घर को नुकसान नहीं पहुँचाया। वह सीधे नदी में चली गयी। इसके बाद तीन दिन तक वह बिना खाये-पीये वहीं पानी में ही रही और अपने पेट में पल रहे जूनियर जम्बो समेत पानी में ही दम तोड़ दिया।
इस दर्दनाक मौत के बाद भी क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि इसके बाद किसी भी जंगली जानवर के साथ हैवानियत नहीं होगी? शायद नहीं। इंसानी फितरत ऐसी हो चुकी है कि वह जंगली जानवरों से बड़ा जानवर बन चुका है। वह एक तरह से ऐसे पशुओं के खून का प्यासा बन गया है। लेकिन पशुओं के प्रति संवेदनशील होने की ज़रूरत है। पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं, जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं। अगर हम भी समय रहते नहीं चेते, तो आने वाले समय में हाथी, तेंदुए और बाघ जैसे पशु भी इतिहास के पन्नों में ही दर्ज हो जाएँगे।
हथिनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि हथिनी की मौत की असल वजह पानी में डूबना है। रिपोर्ट में कहा गया है, जबड़ों में लगी चोटों के बाद घाव सड़ते गए। यह चोट संभावित रूप से पटाखों की वजह से लगी थीं। इससे जंगली पशु को असहाय दर्द और पीड़ा हुई और वह लगभग दो हफ्तों तक कुछ भी खाने-पीने में असमर्थ हो गयी।
अत्यधिक दुर्बलता और कमजोरी के कारण पानी में डूबकर उसकी मौत हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि शव के अंदर से किसी तरह की गोली या धातु नहीं मिली है। पोस्टमार्टम थिरुविझामकुन्नु वन में किया गया। मन्नारकाड़ वन प्रभाग ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से पुष्टि करते हुए कहा कि हथिनी दो महीने की गर्भवती थी। उसके दोनों तरफ के जबड़ों को भी नुकसान पहुँचा था।
एक गिरफ्तार
गर्भवती हथिनी की मौत के मामले में केरल में वन विभाग के अधिकारियों ने विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किये जाने के बाद तीन आरोपियों में से एक को गिरफ्तार किया है। बाकी दो की तलाश की जा रही है। साइलेंट वेली फॉरेस्ट की दो माह की गर्भवती हथिनी ने वेल्लियार नदी में 27 मई को जान गँवा दी थी।
क्या कहा था मेनका ने?
गर्भवती हथिनी की मौत को लेकर भाजपा सांसद मेनका गाँधी ने कहा था कि यह हत्या है। मल्लापुरम ऐसी घटनाओं के लिए कुख्यात है। यह देश का सबसे हिंसक राज्य है। यहाँ लोग सडक़ों पर ज़हर फेंक देते हैं, जिससे एक साथ 300 से 400 पक्षी और कुत्ते मर जाएँ। केरल में हर तीसरे दिन एक हाथी को मारा जाता है। केरल सरकार ने मल्लपुरम मामले में अब तक कार्रवाई नहीं की है। ऐसा लगता है, वह डरी हुई है।
एक सवाल के जवाब में मेनका गाँधी ने कहा था कि केरल में लगभग 600 हाथी क्रूरता का शिकार होकर दम तोड़ चुके हैं। केरल में सरकार और वन्यजीव विभाग के साथ कुछ भी नहीं किया जा सकता है। वे कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। वहाँ के मंदिरों में हाथियों की टाँगें तोड़ दी जाती हैं। उन्हें मारा-पीटा जाता है और भूखे रखा जाता है। इस क्रूरता की वजह से अब तक 600 हाथी दम तोड़ चुके हैं।
मेनका से माफी माँगने को कहा
केरल के नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्निथला ने भाजपा सांसद मेनका गाँधी को एक गर्भवती हथिनी की मौत के मुद्दे पर मलप्पुरम ज़िले के खिलाफ उनकी आपत्तिजनक टिप्पणी पर विरोध जताया।
कांग्रेस नेता ने पत्र में कहा कि आपके गैर-ज़िम्मेदाराना बयान ने मल्लपुरम ज़िले और उसके लोगों को अपमानित करने वाले अभद्र भाषणों को हवा देने के लिए जगह दी है। इस ज़िले को अपराध के केंद्र के रूप में चित्रित करने के लिए बयान को वापस लें और माफी माँगें। साथ ही उन्होंने भाजपा पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का भी आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि कृपया ध्यान दें कि हथिनी की मौत पलक्कड़ ज़िले में हुई है, मल्लपुरम में नहीं; जहाँ पर समुदाय विशेष को लोगों को बदनाम करने की कोशिश की गयी। आपकी पार्टी के कुछ साथियों ने तो यहाँ तक आरोप लगाने की कोशिश की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना वायनाड में हुई है।
क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व राहुल गाँधी करते हैं। इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का राजनीतिकरण करने का प्रयास दु:खद है। लेकिन केरल के प्रबुद्ध समाज से इस तरह की ओछी राजनीति को कोई समर्थन नहीं मिलेगा।
केरल की छवि खराब करने का प्रयास : विजयन
भाजपा की सियासत से खिन्न केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने मामले में कुछ केंद्रीय मंत्रियों और नेताओं पर केरल की छवि खराब करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि संवेदनशील मामले में राज्य और ज़िले विशेष को निशाना बनाकर जिस तरह की बयानबाज़ी की गयी, वह किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं हो सकती है। सोशल मीडिया में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हथिनी की गर्भवती होने की जानकारी मिलने के बाद लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था। इसके बाद केरल सरकार ने जाँच के लिए वन विभाग की विशेष जाँच टीम गठित की। वन विभाग ने हथिनी की मौत के मामले में वन्यजीव संरक्षण कानून की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। तीन संदिग्धों से पूछताछ की गयी है और एक को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामले में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी संज्ञान लिया और घटना को बेहद दु:खद बताते हुए आरोपियों पर सख्त कार्रवाई करने को कहा।
सीबीआई जाँच के लिए याचिका
केरल में गर्भवती हथिनी की मौत का मामला अब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। शीर्ष अदालत में एक याचिका के ज़रिये कोर्ट की निगरानी में हथिनी की मौत मामले की जाँच सीबीआई से या विशेष जाँच दल (एसआईटी) से कराने की माँग की गयी है। यह याचिका अधिवक्ता अवध बिहारी कौशिक ने दायर की है। याचिका में कहा गया कि जिस तरह गर्भवती हथिनी की पटाखे से भरे अनानास को खाने से मौत हुई है; वह भयानक, दु:खद, क्रूर होने के साथ-साथ अमानवीय कृत्य है। इसलिए मामले में सुप्रीम कोर्ट को तत्काल दखल देना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया कि यह घटना अपनी तरह की पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी इसी तरह की घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। केरल के कोल्लम ज़िले में अप्रैल, 2020 में एक और हथिनी की मौत हो गयी थी।
मेनका गाँधी के खिलाफ मामला दर्ज
हथिनी की मौत के मामले में भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। उनके खिलाफ यह मामला हथिनी की मौत के मामले में उनके दिये गये बयान को लेकर दर्ज किया गया है। मेनका के खिलाफ केरल पुलिस को सात शिकायतें मिली थीं, जिनके आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा-153 (विभिन्न समूहों के खिलाफ शत्रुता बढ़ाना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस धारा के तहत दंगा भडक़ाने के इरादे से भडक़ाऊ बयान देने का मामला बनता है। इसी मुद्दे पर विरोध जताने के लिए कुछ हैकरों ने मेनका गाँधी के एनजीओ की वेबसाइट भी हैक कर ली थी।
हर साल 100 हाथियों की मौत
एलीफैंट टास्क फोर्स के चेयरमैन प्रोफेसर महेश रंगराजन के अनुसार, पशुओं और मानव संघर्ष के अलावा कई अन्य कारणों से हर साल लगभग 100 हाथियों को मार दिया जाता है। उन्होंने बताया हाथियों के दाँत की तस्करी भी इसका बड़ा कारण है।
माफिया हाथियों को मारकर उनके लाखों की कीमत वाले दाँतों की तस्करी करते हैं। भारत में हाथी को लुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। वन विभाग से जुड़े अधिकारियों और विभिन्न रिपोट्र्स के अनुसार, भारत में अब महज़ 25 से 30 हज़ार हाथी ही बचे हैं।
ऑस्ट्रेलिया में मार दिये हज़ारों ऊँट
दुनिया के सबसे बड़े जंगल अमेजन में लगी भयावह आग से न जाने कितने जंगली पशु, पक्षी मौत के मुँह में समा गये। यह खबर ज़्यादा पुरानी नहीं है। यह घटना तब हुई, जब अमेजन के जंगल महीनों तक जलते रहे।
इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में सरकार के आदेश पर हज़ारों ऊँट महज़ इसलिए मार दिये गये क्योंकि वो ज़्यादा पानी पीते हैं और इंसानों के लिए पानी का संकट पैदा कर रहे हैं। ऐसे कितने ही जानवर इंसानों के स्वार्थ की भेंट हर रोज़ चढ़ते हैं।
अवनि बाघिन को क्यों मारा था?
2018 में महाराष्ट्र के यवतमाल में एक जंगली बाघिन अवनि को गोली मार दी गयी और वह सिर्फ इसलिए कि वह उस क्षेत्र में रह रही थी, जिसके आसपास अनिल अंबानी की रिलायंस को ज़मीन बेच दी गयी थी। जनवरी, 2018 में मोदी सरकार ने अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप को सीमेंट फैक्ट्री लगाने के लिए यवतमाल के जंगल का 467 हेक्टयर क्षेत्र दे दिया था। इलाके में बाघिन अवनि के खौफ के खात्मे के लिए न सिर्फ उसे मार डाला, बल्कि उसके दो शावकों की भी मार दिया गया; ताकि उद्योगपति की ज़मीन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
मुनाफे की भेंट चढ़ते जंगली जानवर
भारत के सबसे ज़्यादा घने और अनछुए जंगलों में छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य का नाम लिया जाता है। हाथी, भालू जैसे न जाने के कितने जानवरों का डेरा यहाँ है। पर इस जंगल की ज़मीन के नीचे कोयला दबा हुआ है; जिस पर उद्योगपति गौतम अडानी की नज़र है। यह जंगल मुम्बई से भी बड़ा है और इसका क्षेत्रफल एक लाख 70 हज़ार हेक्टेयर में फैला है। इसके पारसा ब्लॉक में खनन की अनुमति दे दी गयी है। 842 हेक्टेयर वन क्षेत्र के करीब एक लाख पेड़ काटे जा रहे हैं, पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता बताते हैं कि जहाँ परसा कोल ब्लॉक है, वह हाथियों का विचरण क्षेत्र है।