भारतीय राजनीति में अक्सर रक्षा सौदों ने कभी न कभी सत्ता सुख पानेवाली पार्टियों को चित्त किया है और उन्हें सत्ता से दूर भी करवाया है। मामला हम 1962 के चीन के आक्रमण से शुरू करते हैं, तब तत्कालीन सरकार और उसके रक्षामंत्री वी.के.कृष्णामेनन पर आरोप लगा कि चीन से हम इसलिए सही ढ़ंग से निपट नहीं पाये क्योंकि हमारे पास रक्षा औजारों से लेकर वाहन भी पूरे नहीं थे। इस आरोप के कारण उन्हें रक्षामंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
कैसी विडंबना है कि देश की सीमाओं की रक्षा का भार जिस मंत्रालय पर है, उसी मंत्रालय में घोटाले पर घोटाले होते आ रहे हैं।
आरोप है कि पार्टियों को चुनाव जीतने के लिए धन की ज़रूरत को भी रक्षा मंत्रालय ही पूरी कर रहा है। ये घोटाले प्रत्यक्ष व परोक्ष जैसे भी हों उसके पीछे सबसे बड़ा कारण पार्टी के लिए फंड जुटाना भी एक मुद्दा है।
1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सहानुभूति की लहर ने संसद में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत दिया था। तीन चौथाई से अधिक का बहुमत राजीव गांधी की सरकार को था। पर दो साल के भीतर ही बोफर्स तोप सौदे ने सरकार की नींद हराम कर दी थी। विपक्ष ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को एक खलनायक के तौर पर खड़ा कर दिया। बोफर्स तोप सौदे ने इतना जोर मारा कि दूसरे चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। बाद में उन्हीं तोपों ने करगिल की लड़ाई को फतेह करने में मुख्य भूमिका निभाई। यानी बोफर्स तोपों का सौदा देश की सुरक्षा के लिए सही साबित हुआ और राजीव गांधी पर लगाये गये आक्षेप सत्य साबित नहीं हो सके।
आम चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। दलाली किसने खाई अभी तक उसका खुलासा नहीं हो सका। कितनी ही सरकारें केंद्र में बनी, पर वे साबित नहीं कर सके कि राजीव सरकार ने दलाली खाई। यहां तक कि मौजूदा मोदी सरकार हर वक्त कांग्रेस के 70 सार्लोंं का लेखा जोखा पूछती है, वह भी इन साढ़े चार सालों में बोफर्स सौदे पर उंगली नहीं उठा पाई।
ऐसे ही एक ताजा घोटाले का जि़क्र प्रधानमंत्री मोदी बड़े जोरशोर से कर रहे हैं, वह भी ऐन वक्त लोक सभा चुनाव के सामने आने पर। वेस्ट लैंड चौपर्स घोटाले से सीधे ही कांग्रेस के मुखिया यानी गांधी परिवार पर दलाली का सीधा आक्षेप लग रहा है। सौदे के बिचैलिए को विदेश से पकड़ कर पूछताछ के लिए देश में लाया है। वह भी उस वक्त जब पांच विधान सभा के चुनाव हो रहे थे और जनता बूथों पर मतदान करने जा रही थी। इसमें सच्चाई कितनी है, वह तो समय ही बतायेगा, पर इस घटना से कांग्रेस की छवि को विगाडऩे का एक प्रयास भर भारत की जनता समझ रही है। इसका पासा भाजपा पर उल्टा भी पड़ सकता है। सीबीआई पकड़ कर तो ले आई, पर तथ्य उससे कितने मिलते हैं, वह संदेह के घेरे में है, अभी तक पूछताछ में जो साक्ष्य सामने आये, वह ठोस नहीं लग रहे हैं। आगे देखते हैं पूछ ताछ से कितने साक्ष्य जुट पायेंगे।
इसी वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकाप्टर सौदे में बिचैलिए मिशेल को भारत ने यूएई से प्रत्यावर्तन संधि कर गिरफ्त में लिया है।
इसे दिल्ली के कोर्ट में पेश करने के बाद दस दिनों की पुलिस कस्टडी में भेजा था। मिशेल मूल रूप से ब्रिटेन का नागरिक है।
वेस्ट लैंड हेलिकाप्टर का मुद्दा 2012 के बाद से चर्चा में बना हुआ है और अब भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव आने के कारण इसे गरमा दिया गया है। इस मुद्दे का इस्तेमाल चुनावों के दौरान खूब किया जाएगा। मामले में गांधी परिवार का नाम जुड़े होने से खूब उछाला जाएगा। इसका असर पार्टी वोट बैंक पर डालने की मनसा से ही इसकी अहमियत मानी जा रही है।
वैसेे यह मामला 1999 से शुरू हुआ। उस वक्त देश में एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। तब एमआई-8 हेलिकाप्टर पुराने हो जाने के कारण भारत की वायु सेना ने वीवीआईपी लोगों के लिए नये हेलिकाप्टर की जरूरत महसूस की। हेलिकाप्टर को खरीदने से पहले कुछ शर्तें रखी गईं कि हेलिकाप्टर कैसा होना चाहिए और उसमें क्या खासियतें होनी चाहिए। उस वक्त कहा गया कि हेलिकाप्टर ऐसा होना चाहिए जो छह हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सके। लेकिन उस वक्त
तत्कालीन चीफ एयर मार्शल ने यह डील आगे नहीं बढऩे दी थी क्योंकि डील के लिए एक ही कंपनी मौजूद थी।
इस प्रस्ताव के बाद एक और प्रस्ताव रखा गया। उसमें प्रधानमंत्री को सुरक्षा देने वाली ऐजेंसी ने कहा कि हेलिकाप्टर की सीलिंग इतनी ऊंची होनी चाहिए कि उसके अंदर व्यक्ति खड़ा हो सके। इन शर्तों के साथ तीन कंपनियां सामने आईं, इनमें से एक अगस्ता वेस्टलैंड भी थीर्। 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी। इस सरकार के दौरान हेलिकाप्टर के प्रस्तावों में बदलाव किया गया और यह सौदा एंग्लो-इतावली कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ पक्का किया गया। ये हेलिकाप्टर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा अन्य वीवीआईपी लोगों के लिए थे। सरकार ने कंपनी के साथ 556 मिलियन यूरो यानी करीब 3546 करोड़ रुपये का सौदा किया।
भारत के पास 2012 में तीन हेलिकाप्टर आ गये। अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी का हेडक्वार्टर ब्रिटेन में है, जबकि इसकी पेरेंट कंपनी फिनमैकेनिका इटली की है। उसी दौरान इटली में जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि इस सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है। कुछ महीनों बाद इटली की जांच एजेंसी ने बिचैलिए गुइदो हाश्के को गिरफ्तार किया। उस पर आरोप लगाया गया कि उसने भारत से सौदा कराने के लिए 5.1 करोड़ यूरो यानी करीब 357 करोड़ रुपये लिए थे।
इटली की पुलिस ने 2013 में फिनमैकेनिका के पूर्व चेयरमैन ग्यूसेप ओरसी, अगस्ता वेस्टलैंड के सीईओ ब्रूनो स्पैग्नोलिन को गिरफ्तार किया। इसके अलावा हाश्के सहित कुछ अन्य बिचैलियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। इन लोगों की गिरफ्तारी के बाद भारत में भी इस मामले ने तूल पकड़ लिया। तब भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए, साथ ही सौदा रद्द करने का आदेश भी दिया। जनवरी 2018 में इटली के कोर्ट ने दोनों को आरोपों से बरी कर दिया।
भारत में सीबीआई जांच के आदेश के करीब दो सप्ताह के बाद 11 लोगों की जांच शुरू हुई। इन लोगों में पूर्व चीफ एयर मार्शल एस.पी. त्यागी का नाम भी सामने आया।
मार्शल त्यागी ने हेलिकाप्टर में नई शर्तें जोड़ीं और पहले वाली शर्तों में भी बदलाव किया ताकि यह सौदा अगस्ता वेस्टलैंड के साथ हो सके। नई शर्तों में था कि हेलिकाप्टर में कम से कम दो इंजन होने चाहिए। यह उस समय की बात थी जब त्यागी चीफ एयर मार्शल बनने वाले थे।
2004 में वाजपेयी सरकार के जाने के बाद सत्ता यूपीए के पास आ गई थी। उस वक्त एस पी त्यागी चीफ एयर मार्शल थे। मार्च 2005 में हेलिकाप्टर के ऊंचा उडऩे की शर्त में भी बदलाव किया गया। पहले यह शर्त छह हजार मीटर थी, जिसे बाद में 4500 मीटर कर दी गई।
इस सौदे को कई कंपनियां करना चाहती थी लेकिन आखिर में दो कंपनियों को ही चुना गया। एक अगस्ता वेस्ट लैंड ही थी, जबकि दूसरी अमेरिकी कंपनी साइकोरस्की थी। इन हेलिकाप्टरों का ट्रायल अमेरिका और ब्रिटेन में किया गया। यह नियमों के खिलाफ था। इनका परीक्षण भारत में ही होना चाहिए था। वहीं हेलिकाप्टर की संख्या को आठ से 12 करने के पीछे भी त्यागी की ही सिफारिश थी। 12 हेलिकाप्टरों की जरूरत पर उनका जोर था। बताया जाता है कि इन सभी शर्तों पर अमेरिकी कंपनी साइकोरस्की खरी उतरी थी लेकिन इसके बावजूद 2007 में त्यागी के रिटायर होने तक सौदा अगस्ता के साथ पक्का हो गया। इसके तीन साल बाद यानी 2010 में अगस्ता से सौदा किया गया। मीडिया की जानकारी के अनुसार अगस्ता ऐसे हेलिकाप्टर बनाती है जो 4500 मीटर से ऊंचे नहीं उड़ सकते। इसी वजह से पहले की ऊंचाई वाली शर्त को बदल कर कम किया गया।
सीबीआई के अनुसार त्यागी ने दलाल के ज़रिए कंपनी से घूस ले कर सौदे में बदलाव किए थे।
2014 में प्रवर्तन निदेशालय ने चंडीगढ़ में फर्जी कंपनी चला रहे वकील गौतम खेतान को गिरफ्तार किया। उस पर घूस के पैसे कंपनी के खातों में डालने के आरोप लगे। बाद में पता चला कि खेतान के तार त्यागी से भी जुड़े थे। त्यागी पर आरोप लगा कि उन्हें दलाल हाश्के ने कई लोगों के जरिए घूस दी। जिनमें खेतान भी शामिल है। सितंबर में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की। दिसंबर में त्यागी को गिरफ्तार किया गया, बाद में उन्हें जमानत मिल गई। इस मामले को गांधी परिवार से भी जोड़ा गया।
इसकी वजह है बिचैलिए मिशेल का लिखा एक खत। बताया जाता है उस खत में मार्च 2008 में अगस्ता के भारतीय प्रमुख को लिखा था कि सोनिया गांधी सौदे की ड्राइबिंग फोर्स है। और आगे से वह एन 18 में उड़ान नहीं भरेंगी। वहीं मिलान की एक अदालत ने अपने फैसले में बिचैलियों की जिस बात का जि़क्र्र किया था, उसमें एपी और फेमिली जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। आरोप में कहा जा रहा है कि एपी का मतलब अहमद पटेल और फेमिली का मतलब गांधी परिवार है। हालांकि मिशेल लगातार इस बात को कह रहा है कि सीबीआई ने उस पर पूछताछ के दौरान सोनिया का नाम लेने का दबाव बनाया था। पूर्व चीफ एयर मार्शल त्यागी भी इसी बात को दोहरा रहे हैं कि उस पर भी निर्दोषों के नाम लेने का दबाव डाला गया।
सौदे में शामिल पहला बिचैलिया गुइदो राल्फ हाश्के है। वह इटली का नागरिक है, इसकी पैदाइश अमेरिका की है। वह स्विट्जरलैंड में रह रहा है। कंपनी ने सौदे में हाश्के की मदद ली थी। 2012 में इटली पुलिस ने उसे स्विट्जरलैंड से गिरफ्तार किया। भारत में हाश्के उस वक्त चर्चा में आया जब उसने मिशेल को पत्र लिखा था कि इसमें कई भारतीय राजनेताओं के नाम शामिल हैं।
दूसरा विचैलिया कार्ले गेरोसा है। अक्टूबर 2017 में भारत के इंटरपोल नोटिस के बाद उसे इटली की पुलिस ने गिरफ्तार किया। लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया और भारत को सौंपने से भी इनकार कर दिया गया। इस पर सौदे की शर्तों में हेराफेरी का आरोप है।
तीसरा बिचैलिया क्रिश्चियन मिशेल है।उस पर आरोप है कि उसने कंपनी के कहने पर भारत सरकार और वायु सेना अधिकारियों को सौदे के लिए मनाया है। इसके बदले उसने 240 और 225 करोड़ की घूस बांटने के लिए दो करार किये हैं। वह सौदे के दौरान 25 बार भारत आया था। वह दुबई स्थित अपनी कंपनी की मदद से भारत पैसा भेजता था। फरवरी 2017 में इंटरपोल नोटिस भेजने के बाद उसे यूएई में हिरासत में लिया गया और सितंबर 2018 में दुबई की अदालत ने उसे भारत में प्रत्यर्पित करने की इजाजत दे दी, और भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में चले आपरेशन के बाद मिशेल को यूएई से भारत लाया गया । इस अभियान का नाम सीबीआई ने आपरेशन यूनिकार्न रखा। यह जानकारी सीबीआई प्रवक्ता ने मीडिया को दी।
यूपीए सरकार ने सीबीआई को जांच के आदेश देने के बाद ये सौदा रद्द कर दिया था। जो हेलिकाप्टर मिले थे उन्हें जब्त कर लिया गया। अगस्ता को बैंक गारंटी के तौर पर 2062 करोड़ रुपये दिये गये थे, वह वापस ले लिए गये। ये पैसे 1620 करोड़ रुपये के भुगतान के बदले बैंक गारंटी के तौर पर दिये गये थे। इसके अलावा यूपीए सरकार के कार्यकाल में शर्तों का उल्लंघन करने के लिए तीन हजार करोड़ रुपये का दावा भी किया गया। मिशेल के भारत लाने के बाद सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार की बहुत सारी पर्तें खुलेंगी। कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव को जीतना मुश्किल करने के लिए यह एक राजनैतिक पैंतरा भी है।
जहां कांग्रेस भाजपा को राफेल सौदे पर घेर रही है, वहीं अब भाजपा सरकार कांग्रेस को अगस्ता वेस्टलैंड सौदे पर घेरने की कोशिश कर रही है। यह आरोप और प्रत्यारोप का सिलसिला 2019 के होने वाले लोक सभा चुनावों तक चलता रहेगा।
राफेल सौदा भी एक गंभीर प्रश्न छोड़ता है, जिसमें यह सोचने को बाध्य होना पड़ रहा है कि आखिर नौसिखिये अंबानी को यह लड़ाकू विमानों का सौदा किस मेरिट पर दिया गया, जबकि आधा सदी से भी पुरानी कंपनी एचएएल को नजरअंदाज कर दिया गया। एचएएल को मिग और मिराज़ विमानों को बनाने का अनुभव है। इन लड़ाकू विमानों को भारत पाक लड़ाई में अच्छी तरह से परखा हुआ है।