स्वच्छ निर्मल गंगा की सफाई के लिए दिसंबर 2018 तक रुपए 243.27 करोड़ ‘क्लीन गंगा फंड’ में आए थे। लेकिन अब तक सिर्फ रुपए 45.26 करोड़ मात्र ही खर्च हो पाए। यह खर्च भी दफ्तर, स्टॉफ और विज्ञापनों पर ही हुआ। इसकी मुख्य वजह यह थी कि इस फंड के बोर्ड के ट्रस्टियों की बैठक 2015 के बाद से अब तक सिर्फ दो बार हुई।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार गंगा की सफाई के लिए ‘क्लीन गंगा फंड’ (सीजीएफ) का गठन नरेंद्र मोदी सरकार ने किया ज़रूर लेकिन कुल कोष का सिर्फ 18 फीसद ही खर्च हो सका। सितंबर 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गंगा सफाई पर सीजीएफ के निर्माण पर सहमति दी। इसके तहत आम जनता से भी चंदा लेने की बात तय थी। जिनसे इस मिशन में दान लिया जाना था उनमें निजी और सार्वजनिक उपक्रम, गैर भारतीय और भारतीय मूल के लोग थे।
दिसंबर 2018 से कुल राशि रुपए 243.27 करोड़ तो हो गई, लेकिन गंगा की सफाई के नाम पर महज रुपए 45.26 करोड़ मात्र खर्च हो सके। यानी कुल रकम का महज 18 फीसद। ‘द क्राम्पट्रोलर एंड आडिटर जनरल’ (सीएजी) की रपट नेशनल फार क्लीन गंगा (एलएमसीजी) में चेतावनी दी गई है कि सीजीएफ के तहत मिले कोष से बहुत कम राशि ही खर्च हो सकी है। इसी रपट में सलाह दी गई है कि गंगा सफाई का काम तेज करने के लिए उस कोष का उपयोग किया जाना चाहिए।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली के नेतृत्व में ट्रस्ट बना जिससे सीजीएफ की राशि का उपयोग हो। ट्रस्टियों में वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव भी थे, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा शुद्धिकरण मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, वन और मौसम परिवर्तन और एमएमसीजी के सीईओ हैं। इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी थी कि यह सीजीएफ के तहत गंगा की सफाई के काम को मंजूरी दे। लेकिन जो भी दस्तावेज आरटीआई के जरिए उपलब्ध हुए हैं उनसे पता चलता है कि बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ की कोई बैठक ही नहीं हुई। इसके चलते विभिन्न परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिली और फंड खर्च नहीं हो सका। ट्रस्ट की अब तक दो बैठकें ही हुई। जिसमें ट्रस्टियों की भागीदारी रही। एक बैठक 29 मई 2015 को जबकि दूसरी चार मई 2018 को। लेकिन इन बैठकों के मिनट्स से पता लगता है कि बोर्ड के सदस्यों की उपलब्धता न होने से बैठकें नहीं हुई। जबकि नियम यह है कि हर तीन महीने में एक बैठक तो होगी ही।
चार मई 2018 की बैठक के मिनट्स से जानकारी मिलती है कि ’29 मई 2015’ की बैठक के बाद यह कोशिश की गई कि 13 फरवरी और 28 फरवरी को भी बैठकें वित्तमंत्री अरूण जेटली की अध्यक्षता में हो जाएं और परियोजनाओं पर उनकी मंजूरी सीजीएफ के लिए जो जाए लेकिन प्रशासनिक वजहों के चलते यह संभव नहीं हुआ। आगे बताया गया कि वित्तमंत्री की घनघोर व्यस्तता के चलते और बोर्ड के ट्रस्टियों के समय न निकाल पाने के कारण बैठकों का आयोजन नहीं हो सका। कोरम पूरा करने के लिए भी न्यूनतम संख्या भी कभी पूरी नहीं हो पाती थी।
साभार: बायर