गंगा नदी आज एक राष्ट्रीय नदी है। लेकिन इसकी स्वच्छता अविरलता और प्रवाह को ठीक करने के वादे के साथ उत्तरांखंड राज्य और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में आई सरकार ने कुछ भी खास नहीं किया। गंगा को प्रदूषण मुक्त, अविरल प्रवाह की मांग लिए 111 दिन से अनशन पर बैठे स्वामी सानंद उफ जीडी अग्रवाल को भी अपना बलिदान करना पड़ा। उनके पहले मातृसदन के स्वामी निगमानंद ने इसी मांग को करते हुए बलिदान करना पड़ा। उनकी मांग यह भी थी गंगा नदी व नहरों पर खनन बंद हो।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और केंद्र के प्रधानमंत्री तो अनशन पर बैठे मशहूर पर्यावरण विद और कानपुर आईआईटी और रूड़की की आईअी में प्रोफेसर रहे जीडी अग्रवाल से कभी मिलने तक का समय नहीं निकाल पाए। उनके पत्रों का जवाब देना तो दूर की बात है। हरिद्वार के कमरवल मातृ सदन में स्वामी ज्ञान स्वरू प सानंद से जिलाधीश ने भी कभी मिलने की ज़रूरत नहीं समझी। स्वामी सानंद 23 जून से अनशन पर थे। उन्होंने नौ अक्तूबर को पानी भी न पीने का संकल्प लिया। इस पर जिला प्रशासन ने मातृसदन के आसपास धारा 144 लगा दी और उन्हें ऋषिकेश के एम्स अस्पाताल में दाखिल करने का आदेश जारी कर दिया। कमरवल थानाध्यक्ष ने उन्हें आदेश पत्र दिया जिस पर स्वामी ने लिखित प्रतिवाद किया। इसके बाद भी स्वामी को जबरन एंबुलेंस से ऋषिकेश ले जाया गया जहां उनकी हृदयगति रु कने पर उनकी मृत्यु हो गई।
स्वामी सानंद एक लंबे अर्से से गंगा को प्रदूषणमुक्त, अविरल प्रवाह युक्त और स्वच्छ बनाने की मांग करते रहे। उन्हें यकीन था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा को स्वच्छ बनाने का अपना वादा ज़रूर पूरा करेंगे। डा. अग्रवाल ने 23 जून को आमरण अनशन पर बैठने का निश्चय जताया। उन्होंने इस पत्र में लिखा कि इसके पहले वे 24 फरवरी 2018 और 13 जून 2018 को भी पत्र लिख चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस कारण मैं आमरण अनशन पर बैठ रहा हूं। उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखा।
गंगा स्वच्छ, अखिल और प्रदूषण मुक्त रहे यह उनकी इच्छा युवावस्था से ही थी जब वे वाराणसी के बीएचयू से स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। वे भारत सरकार में पर्यावरण बोर्ड के पहले सदस्य सचिव भी थे। वे 2008, 2009, 2010, 2012 और 2013 में भी अनशन पर बैठे थे। उनकी मांग थी कि गंगा पर तमाम
पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण पर तत्काल रोक लगाई जाए। उन्होंने यह भी मांग नदी के अंदर खनन तत्काल रोका जाए। उन्होंने मांग की थी कि गंगा नदी पर जो भी पन बिजली घर हैं और जो बनाए जा रहे हैं उन्हें भी बंद किया जाए। पूरी तौर पर वालू खनन पर रोक लगाई जाए।
एम्स ऋषिकेश के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि डा. अग्रवाल हाई ब्लड प्रेशर और कोरोनरी आर्टरी डिजीज के मरीज थे। उनके हृदय का मुख्य वाल्व ठीक से काम नहीं करता था जिसके कारण उनकी हृदयगति थमी। डा. अग्रवाल ने अपनी मृत्य देह एम्स ऋषिकेश को दान में देने की बात कही थी। लेकिन एम्स ऋषिकेश में ही उनकी मौत हुई इसलिए मातृसदन के दूसरे साधु संतों ने फैसला लिया कि उनकी मृत देह को वाराणसी बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल को सौंप दी जाए।