स्वर्ग की नदी कही जाने वाली पवित्र नदी गंगा पिछले कई दशकों से बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते मानवीय गतिविधियों के कारण भयंकर प्रदूषण का शिकार हुई। इस पर बॉलीवुड में प्रतीकात्मक तौर पर हिन्दी फिल्में भी बनी। ‘राम तेरी गंगा मैली’ हो गई पापियों के पाप धोते-धोते’ गाना गंगा की वर्तमान स्थिति पर करारा प्रहार है। बल्कि पिछली 22 फरवरी को हरिद्वार में कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन करने आए केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी को भी कहना पड़़ा- हरिद्वार, देहरादून में होटल, रेस्टोरेंट हैं और मुझे काफी शिकायतें आईं हैं कि ये सीधे अपने यहां का गंदा पानी गंगा में छोड़ देते हैं। मैं मुख्यमंत्री से अनुरोध करूंगा कि उनको पहले नोटिस दीजिए, समझाइए कि होटल में रिसाइकलिंग प्लांट लगवाएं। अगर ऐसा नहीं करते तो उन पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। थोड़ा सा भी गंदा पानी गंगा में नहीं जाना चाहिए।’
हालांकि वर्तमान सरकार की इच्छा शक्ति और प्रयासों के चलते पिछले कुछ समय से गंगा और इसके घाटों की स्थिति सुधरने लगी है मगर जनता की भागीदारी की इसमें सबसे अहम भूमिका है। गंगा को प्रदूषित करने के लिए बढ़ती जनसंख्या की मांगे, अंध विश्वास, धार्मिक कर्मकांड, औद्योगिक कचरा आदि अधिक जिम्मेदार हैं। ‘नमामि गंगे प्रोग्राम: एट ए ग्लांस’ के अनुसार गंगा में प्रदूषण की स्थिति इस प्रकार है- 97 शहरों से 2953 लाख लीटर मल रोज़ाना पैदा हो रहा है, जबकि 155 गंदे नाले गंगा में गिर रहे हैं। चमड़ा, कागज, चीनी, कपड़ा, डाई जैसे उघोगों से 6690 एमएलडी लीटर कचरा रोज़ाना गंगा में जा रहा है। राम गंगा और काली नदी की स्थिति अति खराब है। इसके अलावा कृषि संबंधित कचरा, अधजले शव, खुले में शौच जाने वाले एवं अन्य कई भौतिक कारणों से गंगा में अधिक प्रदूषण हुआ है।
गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ. राकेश भुटियानी पिछले 15 सालों से गंगा पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि गंगा में प्रदूषण के दूसरे पैरामीटर बढ़ रहे हैं जैसे कि ऑक्सीजन की कमी, सीवेज डिस्चार्ज, गंदे नाले, मैटल आदि का गिरना जो कि जीव-जन्तुओं के लिए खतरनाक है। इनके कारण बायो-डायवर्सिटी पर बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉ. भुटियानी ने अपने अनुसंधान के लिए कर्णप्रयाग से रूड़की तक गंगा का स्ट्रेच प्रयोग के तौर पर लिया है। उन्होंने बताया कि अध्ययन के दौरान पाया गया कि हरिद्वार प्रवेश पर गंगा में इतना प्रदूषण नहीं है लेकिन जरवाड़ा पुल से प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है। कॉलीफार्म वैक्टीरिया रिपोर्ट होना शुरू हो चुका है। हरकी पौड़ी पर आठ से दस (8-10) तक ई-कोलाई मिलने लगे हैं, जो कि चेताने वाली स्थिति है। डॉ. भुटियानी का कहना है कि सकारात्मक पहले यह है कि हरकी पौड़ी पर नहर में जल का बहाव अधिक है, उससे प्रदूषक तत्व रुक नहीं पाता लेकिन वो हमारी स्टडी में नहीं आ पाता। इसके अलावा गंगा में (टीओ) घुलनशील ऑक्सीजन नीचे आई है। पहले दस तक होती थी जो अब सात से आठ (7-8) तक आ गई है। ये पैरामीटर दिन व दिन नीचे आ रहे हैं। जो कि वनस्पति और जीव-जन्तुओं को संकट में डाल देंगे। डॉ. भुटानी के मुताबिक उन्होंने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार को इसकी जानकारी दे दी है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के चांसलर डॉ. प्रणव पण्डया ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण के स्त्रोतों की जानकारी पुस्तिका निर्मल गंगा जन अभियान में इस प्रकार दी है।
शहरों एवं नगरों का अनुपचारित सीवेज 5528 एमएलडी (2011) या कहें कि एक टैंकर सीवेज प्रत्येक 23 मीटर प्रतिदिन गंगा में डाला जाता है।
औघोगिक खाद 3400 एमएलडी
रासायनिक खाद 4.8 लाख टन प्रतिवर्ष
कीटनाशक 1300 टन प्रतिवर्ष
खतरनाक कचरा 1000 टन
फ्लाय ऐश 4025 लाख टन प्रतिवर्ष
कचरा 80,000 टन
अस्पातालों का रेडियोधर्मी कचरा-
अन्य परंपराएं जैस पर्व स्नान, निर्माला (बासी फूल), वाटर स्पोर्ट, शवों को प्रवाहित करना, कपड़ो की धुलाई, पशुओं-वाहनों की धुलाई, मूर्ति विसर्जन, उत्खनन आदि। z