जयराम रमेश,
उम्र-59,
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री
जयराम रमेश अपनी पार्टी और सरकार के खेवनहार हैं. जब लोकलुभावन और जनहितकारी योजनाओं से जुड़े मंत्रालयों की बात आती है तब सरकार पहले उन्हें याद करती है. यूपीए-दो इसी रणनीति के तहत उन्हें उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले ग्रामीण विकास मंत्रालय में ले आया था, ताकि भूमि अधिग्रहण का नया कानून जल्द से जल्द लागू किया जाए. इससे पहले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में अपने प्रवास के दौरान रमेश सर्वव्यापी हो गए थे. कानकुन, लवासा, उड़ीसा, ब्रह्मपुत्र की घाटी से लेकर हिमालय के ग्लेशियर तक जयराममय हो गए थे. स्वतंत्र प्रभार और दो साल की अल्पावधि में ही उन्होंने पर्यावरण भवन की धमक चहुंओर स्थापित कर दी थी. उनके कार्यकाल के दौरान अचानक से ही पर्यावरण उदारीकृत भारत में सबसे अहम मसला बन गया था. गोवा में उन्होंने अवैध खनन परियोजनाओं पर नकेल कसी जबकि वहां उनकी अपनी पार्टी की सरकार थी.
रमेश ने उत्तराखंड में गंगा पर बन रहे विनाशकारी बांधों के निर्माण पर रोक लगाई और वेदांता जैसी विशाल कंपनी को कारण बताओ नोटिस भेज दिया. उनकी अतिसक्रियता ने उन्हें विपक्ष से लेकर खुद की पार्टी और औद्योगिक घरानों की आंख की किरकिरी बना दिया. लेकिन मुंबई आईआईटी का यह इंजीनियर डिगा नहीं. नतीजे में उन्हें तमाम परियोजनाओं से हुए विस्थापितों का जबरदस्त प्यार भी मिला. अपने छोटे-से कार्यकाल में उन्होंने पर्यावरण और वन मंत्रालय में पारदर्शिता लाने की पहल की.
पश्चिमी घाट में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने का मसला रहा या फिर बीटी बैंगन से जुड़ा विवाद इन सबके समाधान के लिए उन्होंने सामुदायिक राय-मशवरे की परंपरा की नींव डाली. कानकुन में हुए पर्यावरण सम्मेलन में उन्होंने आगे बढ़कर जिस तरह से विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने की सकारात्मक कोशिशें कीं उसकी तारीफ पूरी दुनिया में हुई. एक छोटा-सा आंकड़ा उनकी सक्रियता की बानगी पेश करता है. पर्यावरण और वन मंत्रालय में उनके पूर्ववर्तियों ने अब तक जितने नोटिस औद्योगिक घरानों को नहीं भेजे थे उससे कहीं ज्यादा नोटिस रमेश ने अकेले साल 2010 में औद्योगिक घरानों को भेज दिए थे.
उनकी खरी वाक्पटुता अक्सर विवादों को जन्म देती रही है. ग्रामीण विकास मंत्रालय में आने के बाद उनका सबसे चर्चित बयान था, ‘इस देश को मंदिरों से ज्यादा शौचालयों की जरूरत है.’ उनकी सक्रियता का ही परिणाम है कि योजना आयोग ने स्वच्छता के मद में इस साल 36,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. इतनी बड़ी राशि पहली बार आवंटित हुई है. उनकी खेवनहार वाली प्रतिभा का ही कमाल था कि 2011 में जब मंत्रिमंडल का फेरबदल हुआ तब उन्हें ग्रामीण विकास के साथ पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया. ऐसा इसलिए हुआ कि गुरुदास कामत को यह मंत्रालय अपने ‘कद’ के अनुरूप नहीं लगा था. हालांकि ग्रामीण विकास मंत्रालय में उनका सबसे महत्वपूर्ण काम यानी भूमि अधिग्रहण अधिनियम पारित होना अभी बाकी है.
-अतुल चौरसिया