1991 के बाद से देश में आॢथक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ। सच यह भी है कि इस दौरान लोगों के लिए काम करने के अवसर उपलब्ध हुए और शहरों की ओर पलायन भी बढ़ा। इस बीच पिछले कुछेक वर्षों से सरकारें आँकड़ों के सहारे देश की अर्थ-व्यवस्था की बेहतर तस्वीर पेश करके अपना उल्लू सीधा करती रही हैं। आॢथक विकास के बड़े-बड़े दावे पेश किये जाने के आँकड़े अब धराशायी होते नज़र आने लगे हैं। तमाम सर्वे बताने लगते हैं कि भारत में तेज़ी से आॢथक विकास हो रहा है और देश में अरबपतियों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है; इस सबके बीच भारत लोग खुशहाल नहीं हैं, यह भी सच्चाई भी सामने आती है। पिछले दिनों जारी आँकड़े इसकी हकीकत को बयाँ कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की ‘वल्र्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2020’ में भारत को 144वाँ स्थान मिला है। पिछले वर्ष ही भारत 140वें पायदान पर था। उससे पहले यानी 2018 में 133वें और 2017 में 122वें पायदान पर था। सर्वे में कुल 156 देश शामिल हैं। यानी साल-दर-साल खुशहाल लोगों की तादाद में कमी हो रही है और खुशहाली का ग्राफ गिर रहा है। यह आँकड़े सोचने को मजबूर करते हैं कि हम कौन-सा आॢथक विकास कर रहे हैं? दु:खद यह है कि खुशहाली के मामले में हम तमाम विकसित और विकासशील देशों से ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान समेत तमाम छोटे-छोटे पड़ोसी देशों और युद्धग्रस्त फिलिस्तीन से भी पिछड़ चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र का ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ सालाना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे करके ‘वल्र्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ जारी करता है। इसमें अर्थशास्त्रियों की एक टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, दीर्घ जीवन की प्रत्याशा, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, उदारता आदि पैमानों पर दुनिया के 156 देशों के नागरिकों को परखती है कि वे कितने खुश हैं। इस साल की रिपोर्ट में भारत उन चन्द देशों में से है, जो नीचे की तरफ खिसके हैं। कई बड़े देशों की तरह हमारे देश के नीति-नियामक भी आज तक इस हकीकत को गले नहीं उतार पाये हैं कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या विकास दर बढ़ा लेने भर से हम एक खुशहाल समाज नहीं बन जाएँगे। यह तथ्य भी कम दिलचस्प नहीं है कि 66वें स्थान पर पाकिस्तान, 87वें स्थान पर मालदीव, 92वें स्थान पर नेपाल, 94वें स्थान पर चीन और 107वें स्थान पर रहे बांग्लादेश जैसे मुल्क कैसे हमसे ऊपर हैं? जिन पर खस्ताहाल और बदहाल होने का ठप्पा लगा रहता है।
श्रीलंका, म्यांमार और भूटान भी हमसे ज़्यादा खुशहाल हैं। सार्क देशों में सिर्फ अफगानिस्तान ही खुशमिज़ाजी के मामले में भारत से पीछे है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आठ साल पहले यानी 2013 की रिपोर्ट में भारत 111वें नम्बर पर था। महज़ आॢथक समृद्धि ही किसी समाज में खुशहाली नहीं ला सकती। इसीलिए आॢथक समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात भी दुनिया के सबसे खुशहाल 10 देशों में अपनी जगह नहीं बना सके हैं।
फिनलैंड सबसे खुशहाल देश
फिनलैंड को दुनिया का सबसे खुशहाल देश बताया गया है। वह लगातार तीन साल से शीर्ष पर बना हुआ है। उससे पहले वह पाँचवें स्थान पर था। लेकिन एक साल में ही वह पाँचवें से पहले स्थान पर आ गया। यहाँ पर भ्रष्टाचार न के बराबर है और सामाजिक तौर पर प्रगतिशील है। उसकी पुलिस दुनिया में सबसे ज़्यादा साफ-सुथरी और भरोसेमंद है। यहाँ पर सभी के लिए मुफ्त इलाज खुशहाली की बड़ी वजहों में से एक है। फिनलैंड के बाद डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड, नार्वे, नीदरलैंड, स्वीडन, न्यूजीलैंड, आस्ट्रिया और लग्ज़मबर्ग हैं। इन देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी ज़्यादा है। यानी भौतिक समृद्धि, आॢथक सुरक्षा और व्यक्ति की खुशी का सीधा रिश्ता है।