सरकार के पास नहीं किट के ज़रिये ख़ुद से जाँच करने वाले कोरोना संक्रमितों की सही जानकारी
कोरोना वायरस के मामले आये दिन बढ़ते जा रहे हैं। देश में हर रोज़ हज़ारों कोरोना संक्रमण के मरीज़ सामने आ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने का कोई समुचित उपाय न होने के साथ-साथ इलाज की उचित व्यवस्था न होना भी है। हालाँकि राहत की बात यह है कि ओमिक्रॉन नामक कोरोना वायरस की इस तीसरी लहर में दूसरी लहर के मुक़ाबले मौतें कम हो रही हैं। लेकिन फिर भी अगर देखें, तो मौज़ूदा समय में स्वास्थ्य व्यवस्था का लगभग वही हाल है, जो पहले था। जबकि कोरोना की इस तीसरी लहर के बढऩे की आशंका लगातार बढ़ रही है। चाहिए तो यह था कि केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारें पिछली ग़लतियों से सीख लेकर अस्पतालों में व्यवस्था दुरुस्त करतीं; लेकिन अस्पतालों की स्थिति ढाक के वही तीन पात जैसी ही है।
मौज़ूदा समय में जब सभी सरकारें बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा कर रही हैं, उसमें तमाम ख़ामियाँ सामने आ रही हैं। मौज़ूदा समय में सरकार ने कोरोना से लडऩे और बचाव के लिए घर बैठे जाँच के लिए जो किट दवाख़ानों (मेडिकल स्टोर्स) में उपलब्ध करायी है। इसके बावजूद भी कोरोना के सही आँकड़े सामने नहीं आ रहे हैं। क्योंकि घर बैठे जाँच करने पर जिनको कोरोना होने की पुष्टि होती है, उनमें से अधिकतर लोग डर या इस सोच के चलते कि घर में ही ठीक हो जाएँगे, छूत की इस महामारी को छिपाकर अपने तरीक़े से घर बैठे इलाज कर रहे हैं। ऐसी सोच वाले अधिकतर लोग मेडिकल स्टोर से दवा लेकर अपना स्वास्थ्य ठीक करने में लगे हैं। इससे कोरोना के मामले सही तरीक़े से सामने नहीं आ पा रहे हैं। कोरोना की किट जो मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध है।
बड़ी बात यह है कि किट के नाम पर मेडिकल स्टोर वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं। किट दामों में अलग-अलग मेडिकल स्टोर्स पर बड़ा अन्तर देखने को मिल रहा है। जितने मेडिकल स्टोर पर किट ख़रीदने जाओ, उतने ही अलग-अलग दाम किट के बताये जाते हैं। किसी मेडिकल स्टोर पर 200 रुपये में यह किट उपलब्ध है, तो कहीं 250 रुपये में, तो कहीं 300 रुपये में मेडिकल वाले इसे बेच रहे हैं। इससे ख़रीदारों को काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को लेकर लोगों में सावधानी, सतर्कता तो बढ़ी है। लेकिन डर नहीं रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना जबसे सियासी लोगों के लिए लाभ-हानि का कारण बना है, तबसे देश में कोरोना को लेकर लोगों के बीच में एक बात सामने आयी है कि कोरोना वायरस से ज़्यादा सियासी वायरस फैल रहा है। यह सियासी वायरस लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहा है, मानसिक तौर पर भी बीमार कर रहा है।
आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव व कोरोना विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना वायरस के कई ऐसे मामले हर रोज़ ऐसे लोगों के भी आ रहे हैं, जिनको कोरोना वायरस की पहली लहर में संक्रमण हुआ था। कुछ को तो पहली के बाद दूसरी लहर में भी कोरोना हुआ था और अब तीसरी लहर में भी कोरोना हुआ है। और तो और उन्होंने कोरोना की दोनों ख़ुराक भी ली (दोनों टीके भी लगवाये) हैं। ऐसे में इन कोरोना मरीज़ों का इलाज भी चल रहा है।
मतलब साफ़ है कि कोरोना अब ज़्यादा घातक नहीं है। बस ज़रूरत है, तो सही समय पर सही तरीक़े से इलाज करवाने की। ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोका जा सके और किसी प्रकार की स्वास्थ्य हानि या जान की हानि न हो सके।
डॉक्टर अनिल बंसल ने कहा कि विदेशों में कई-कई स्वास्थ्य एजेंसियाँ बीमारियों पर काम करती हैं। कोरोना पर भी कर रही हैं। ये एजेंसियाँ बीमारियों को लेकर अपनी राय रखती हैं और इलाज व बचाव के लिए सुझाव देती हैं। लेकिन भारत देश में स्वास्थ्य एजेंसियों से ज़्यादा सरकार के कुछ शक्तिशाली लोग ही एजेसियों का काम कर रहे हैं। वे जो कह रहे हैं, वही हो रहा है। इससे कोरोना पर क़ाबू पाना और भी मुश्किल हो रहा है। क्योंकि कोरोना पर डॉक्टरों और विशेषज्ञों के ज़्यादा राजनीतिक लोग ये मानते हैं कि अगर कोरोना के बड़े हुए मामले सामने आये या दिखाये गये, तो सरकार की बदनामी होगी। इसलिए न कोरोना की ज़्यादा जाँच करवाओ, और न कोरोना के मामले बड़ी संख्या में सामने लाओ। यह एक घातक सोच है, जिसका देर-सवेर देशवासियों को सामना ज़रूर करना पड़ेगा।
कोरोना वायरस को लेकर समय-समय पर जागरूक करने वाले डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी ने बताया कि जब तक देश के गाँव-गाँव में स्वास्थ्य का बुनियादी ढाँचा सही नहीं होगा, तब तक देश से कोरोना को हरा पाना मुश्किल होगा। क्योंकि जो सरकार ने किट के ज़रिये फिट रहने का फार्मूला (सूत्र) दिया है, उससे कोरोना के रोगियों की संख्या तो दिख रही है; लेकिन यह संख्या सरकारी आँकड़ों में दर्ज नहीं हो पा रही है। गाँव-गाँव में जानकारी के अभाव में लोग कोरोना का भी खाँसी-जुकाम समझकर इलाज कर रहे हैं। उनको डर लगता है कि कोरोना होने की अगर पुष्टि हो गयी, तो निश्चित तौर पर वे अलग-थलग पड़ जाएँगे और अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है। उनमें यह भी मान्यता घर कर रही है कि अगर अस्पताल पहुँच गये, तो सही होने की सम्भावना कम ही होती है। इसलिए वे कोरोना का इलाज न के बराबर कराकर समाज में परिवार में संक्रमण को फैला रहे हैं। इसलिए सरकार को जल्दी-से-जल्दी कोई ठोस कारगर क़दम उठाने होंगे।
साकेत मैक्स के फेफड़े प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉक्टर राहुल चंदौला ने बताया कि कोरोना हो या अन्य बीमारी हो, समय पर इलाज होना चाहिए। रहा कोरोना पर क़ाबू पाने का सवाल, तो इसके लिए हमें कोरोना से बचाव के लिए जारी दिशा-निर्देश का पालन करना होगा। मास्क लगाकर चलें और दो गज़ दूरी का पालन करें। जब भी किसी से बात करें, तो मुँह को मास्क से ढँककर ज़रूर रखें, ताकि किसी प्रकार का वायरस किसी को कोई नुक़सान न पहुँचा सके।
कैथ लैब के निदेशक डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना, हृदय और अस्थमा के मामले लगभग एक जैसे होते हैं। इनमें स्वास्थ्य की जाँच बहुत ज़रूरी होती है। लोगों को चाहिए कि वे घबराएँ नहीं। अगर बुख़ार के साथ गले में खिंचाव हो और बैचेनी हो, तो तुरन्त डॉक्टर से परामर्श लें; ताकि बीमारी को समय रहते पहचाना जा सके और इलाज हो सके। डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि अगर कोरोना के बढ़े हुए मामले सामने आ रहे हैं, तो इसकी वजह है कि कम ही लोगों ने टीके लगवाये हैं। जिनको कोरोना हो रहा है, उसकी वजह उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना है।
स्वास्थ्य मिशन से जुड़े आलोक कुमार का कहना है कि कोरोना को लेकर लोगों में एक आदत-सी बन गयी है कि कोरोना लम्बे समय तक रहने वाला है। ऐसे में डरने की बजाय बचने की ज़रूरत पर लोग ख़ुद बल दे रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना में ओमिक्रॉन नाम का जो नया स्वरूप सामने आया है, उसकी जाँच तो महानगरों में हो रही है। अगर ज़िला स्तरीय और तहसील स्तर पर भी जाँच होने लगे, तो सही-सही पता चल सकेगा कि ओमिक्रॉन नामक बीमारी है कि नहीं।
इससे काफ़ी हद तक कोरोना पर क़ाबू पाया जा सकता है। सरकार को इस मामले में गम्भीरता से कोई कारगर क़दम उठाने की ज़रूरत है। अन्यथा कोरोना लोगों के स्वास्थ्य को तो बर्बाद कर ही रहा है, बल्कि देश की अर्थ-व्यवस्था को भी चौपट कर देगा, जिससे ज़्यादा तबाही के हालात बनेंगे।