सोनीपत (हरियाणा) में तेरहवीं के बाद भी एक घर में मातम पसरा है। यह घर है कुश्ती में जूनियर नेशनल चैंपियन रहे सागर धनखड़ (23) का, जिनकी 5 मई को दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में पीट-पीट कर निर्ममता हत्या कर दी गयी। सागर के पिता अशोक कुमार और माँ सविता के लिए बेटे की मौत की ख़बर दु:खों के पहाड़ जैसी है। जिस बेटे से ओलंपिक में पदक लाने, राज्य और देश का नाम ऊँचा करने की उम्मीद थी। उन्हें वह शव के रूप में मिलेगा, यह किसी ने भी कल्पना नहीं की थी।
हत्या का आरोप लगा पदमश्री और दो बार कुश्ती में ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार पर। वे सुशील, जिनके सानिध्य में सागर ओलंपिक की तैयारी कर रहा था, जिसके भरोसे उन्हें बेटे के उपलब्धियाँ हासिल करने का भरोसा था। सागर को किराये के फ्लैट से अगवा और फिर छत्रसाल स्टेडियम में उसकी दर्ज़नों साथियों के साथ बुरी तरह पिटाई के दौरान सुशील की मौज़ूदगी वीडियो के तौर पर सामने आयी है। वह मुख्य आरोपी हैं और सारी साज़िश उनकी ही रची हुई है। हमले में सागर के साथी सोनू, भगत और अमित भी घायल हुए। क़रीब छ: फुट लम्बे और 90 किलो से ज़्यादा वज़नी सागर को दर्ज़न भर से ज़्यादा लोगों ने लोहे की छड़ों, बेसवाल और अन्य मारक हथियारों से हमला कर दिया, जिससे उनकी 30 से ज़्यादा हड्डियाँ टूटीं। बाद में उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस उसके बयान भी दर्ज नहीं कर सकी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर फटना और अत्याधिक ख़ून का बहना रहा है। परिजनों के मुताबिक, सागर के शरीर पर 50 से ज़्यादा गम्भीर चोटों के निशान थे।
सागर के साथियों के बयान के आधार पर ही पुलिस ने मुख्य आरोपी के तौर पर सुशील और अन्य के ख़िलाफ़ मॉडल टाउन थाने में प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई शुरू हुई। जब तक पुलिस स्टेडियम पहुँचती तब तक सुशील अपने साथियों के साथ वहाँ से भाग चुका था। कोई 18 दिन की लुका-छिपी के बाद पुलिस ने सुशील और अजय को गिरफ़्तार कर लिया। अब उसके फ़रार चल रहे चार और साथी पुलिस के हथे चढ़ चुके हैं। वहीं सुशील को पुलिस रिमांड पर भेज दिया है।
कभी तिरंगे को हाथ में लेकर देश का नाम ऊँचा करने वाले सुशील गिरफ़्तारी के बाद तोलिए से मुँह ढाँपते दिखे। यह एक खिलाड़ी के अर्श से फ़र्श पर आने की वह दास्तान है, जिसे उभरते हुए पहलवान और खिलाड़ी सबक़ के तौर पर ले सकते हैं। सवाल यह कि आख़िर गुरु सुशील ने अपने ही शिष्य सागर को मौत की नींद क्यों सुला दिया? क्यों अपने दर्ज़नों साथियों के साथ सुनियोजित तरीक़े से उसे अगवा किया? और फिर बेरहमी से पिटाई की। क्या उनका मक़सद सागर की हत्या करना ही था? क्या महज़ तू-तू, मैं-मैं होने भर से कोई प्रतिष्ठत व्यक्ति किसी की हत्या कर सकता है? क्या सुशील की मानसिकता इतनी संक्रीर्ण थी? उन्हें याद नहीं रहा कि वह देश का गौरव हैं। युवा उन्हें आदर्श मानते हैं। उनके ऐसे कृत्य से सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। देश का सम्मान और युवा पहलवानों के आदर्श पुरुष रहे सुशील किसी पेशेवर अपराधी की तरह पुलिस से बचते रहे। मुंडका (दिल्ली) से पुलिस ने उन्हें क़ाबू कर लिया। वह समर्पण करने के प्रयास में थे, लकिन इसमें सफल नहीं हो सके। यह भारतीय खेल जगत की पहली घटना है, जिसमें ओलंपिक पदक विजेता को हत्या के मामले में एक लाख का इश्तिहारी मुजरिम घोषित किया गया हो। सुशील के साथ चार मई की रात को फ़रार हुआ अजय भी पुलिस के शिकंजे में आ गया है, उस पर भी 50,000 रुपये का इनाम था।
रोहिणी की अदालत में अग्रिम जमानत रद्द होने के बाद सुशील के पास पुलिस या कोर्ट में समर्पण के अलावा अन्य विकल्प नहीं थे। घटना में एक दर्ज़न से ज़्यादा लोग शामिल थे, पूछताछ के बाद न केवल कई और गिरफ़्तारियाँ होंगी, वरन् ऐसे ख़ुलासे होंगे; जिसके बदनुमा छींटे कुश्ती पर भी लगेंगे। कुश्ती के दाँव-पेचों के अलावा ख़ुलासे होंगे कि पहलवान पेशेवर अपराधियों के साथ मिलकर खेल के अलावा बहुत कुछ कर रहे हैं। नीरज बवाना और काला जठेड़ी गैंग के कुछ साथियों की ऐसे कुछ पहलवानों से निकटता बताती है कि कुछ भी ठीक नहीं है।
हत्या के इतने दिन दिन बाद भी माँ सविता सदमे जैसी हालत में है। वह उसकी स्मृति में जैसे अब भी शून्य में निहार रही है, कहीं से सागर लौट आए। बेटे के जीते अंतर्राष्ट्रीय पदक को उँगली से बार-बार छूना बताता है कि उनकी स्मृति में अब भी वही कुछ दौड़ रहा है। पिता अशोक कुमार ने दु:ख को किसी तरह जज़्ब कर लिया, लेकिन मन में बेटे की मौत टीस शायद कभी नहीं जाएगी। उनके मुताबिक, हर खेल में प्रशिक्षक (कोच) का क़द बहुत बड़ा होता है। कुश्ती में इसका महत्त्व बहुत ज़्यादा है। सुशील बेटे को अपना शिष्य मानता था और वह (सागर) भी सुशील को गुरु के तौर पर बहुत महत्त्व देता था। उसी गुरु ने अगवा करके उसे मौत की नींद सुला दिया, सुनकर ही दिल बैठ जाता है। सागर ने कोई ग़लती की थी, तो सुशील हमें बता देता हम समझा देते। लेकिन उसने ऐसा न कर उसे ही मार डाला।
वह कहते हैं- ‘14 साल की उम्र में सागर को छत्रसाल स्टेडियम में महाबली के नाम के विख्यात गुरु सतपाल के पास भेजा था।’ स्टेडियम से कई अंतर्राष्ट्रीय पहलवान निकले हैं। जब सागर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रौशन किया, तो उन्हें भी सुशील की तरह बेटे के बड़ी उपलब्धि हासिल करने का भरोसा था। दोनों में गुरु-शिष्य का नाता था पर इस गुरु ने क्या किया? उसने यह क्यों किया। सुशील ने ही सागर को स्टेडियम के पास अपना फ्लैट किराये पर दिया था। फिर ख़ाली भी करा लिया, हमें कारण नहीं पता पर यह सामान्य बात है। एक या दो माह का किराया अदा न करने को लेकर दोनों में कुछ कहासुनी की बातें सामने आ रही है लेकिन इतनी बड़ी घटना हो जाए, इस पर भरोसा नहीं होता।
सागर के चाचा मनिंदर धनखड़ के अनुसार, छत्रसाल स्टेडियम अब सुशील की दंबगई का केंद्र्र बन चुका है। इसी वजह से कई पहलवान अन्य अखाड़ों में जाने को मजबूर हुए। कुछ समय पहले कोच वीरेंद्र सिंह यहाँ से अलग हुए, तो बहुत से पहलवान उनके अखाड़े में चले गये। यह भी सुशील को अच्छा नहीं लगा। दबंगई, गुटबाज़ी और राजनीति के अलावा स्टेडियम में बहुत कुछ होता है, जो पुलिस जाँच में सामने आएगा। हम लोग इंसाफ़ चाहते हैं और इसके लिए पूरा संघर्ष करेंगे। सुशील प्रभावशाली है, बचने के लिए हर हथकंडा अपनाएगा। लेकिन हमें पुलिस और न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है कि हमें न्याय मिलेगा।
तिरंगे से तौलिए का सफ़र
दिल्ली के गाँव बपरोला से निकले सुशील ने कुश्ती में जबरदस्त उपलब्धियाँ हासिल कीं। वह महाबली सतपाल के शिष्य हैं, जिन्होंने अपने दौर में ख़ूब नाम कमाया। सन् 1952 में सी. जाधव ने ओलंपिक में पदक जीता था। पाँच दशक से ज़्यादा के लम्बे सूखे के बाद सुशील ने सन् 2008 के बिजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीता। सन् 2012 के लंदन ओलंपिक में उन्होंने श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए रजत जीता था। कुश्ती में दो ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले पहलवान हैं। सन् 2010 और 2014 के राष्ट्र मण्डल खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीते। पद्मश्री से सम्मानित सुशील अर्जुन अवॉर्ड के अलावा देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार राजीव गाँधी खेल रत्न से भी सम्मानित हो चुके हैं। अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बेशुमार सम्मान उनके नाम हैं। 4 मई से पहले तक कुश्ती में आदर्श रहे सुशील की अब उस छवि नहीं रख सकेंगे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल करने के बाद देश का तिरंगा लेकर शान से स्टेडियम के चक्कर काटने वाले सुशील तौलिए से मुँह छिपाने को मजबूर हो गये हैं।
आपराधिक तालमेल
घटना में दिल्ली के कुख्यात बदमाशों नीरज बवाना और काला जठेड़ी गिरोह के नाम भी सामने आ रहे हैं। सुशील और उसके साथियों ने 4 मई की रात को सागर के साथ सोनू, भगत और अमित को भी बुरी तरह से पीटा था। इनमें सागर के सिर में ज़्यादा चोटों लगने से उसकी मौत हो गयी, जबकि बाक़ी तीन भी घायल हुए हैं। घटना में गोलियाँ भी चलीं। घायल सोनू काला जठेड़ी का क़रीबी है, जिसने पिटाई पर प्रतिक्रिया भी दी है। अंजाम कुछ भी हो सकता है। अवैध सम्पत्तियों पर क़ब्ज़ेकरना, विवादित सम्पत्तियों के समझौते की एवज़ में मोटी रक़म वसूलना, अपहरण, फ़िरौती लूट और हत्या जैसी संगीन वारदात में शामिल रहे अंडर वल्र्ड के कई लोग घटना में शामिल हो सकते हैं। सवाल यह है कि तो क्या सुशील के आपराधिक लोगों से तालमेल थे?