तालियों की गूँज और वाह-वाह के साथ आज भी जी रहे मशहूर शायर
याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम
अब हमें देख भी न पाओगे
इतने नज़दीक आ रहे हैं हम
सब कुछ भुला चुके बशीर बद्र आज भी तालियों की गूँज और वाह-वाह की आवाज़ के साथ ही जी रहे।
बशीर बद्र ने 70 के दशक में एक ग़ज़ल लिखी, जिसका मतला और एक शे’र कुछ यूँ थे- ‘याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम
कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम
अब हमें देख भी न पाओगे
इतने नज़दीक आ रहे हैं हम’
यह मतला और शे’र कभी महफ़िलों की शान रहे मशहूर शायर पद्मश्री बशीर बद्र के जीवन की सच्चाई बन चुका है। अब डिमेंशिया (मतिभ्रम) बीमारी के चलते न वह वर्षों से शायरी कर रहे हैं और न मंचों पर दिखते हैं। हालाँकि उनके शे’र लोगों के ज़ेहन में आज भी ताज़ा हैं। बशीर बद्र इन दिनों भले ही ख़ुद को भी न पहचान रहे हों; लेकिन वह ख़ुद को ही याद करने का प्रयास कर रहे हों।
बशीर बद्र का इलाज कर रहे रांची के न्यूरो के डॉक्टर उज्ज्वल कहते हैं कि पद्मश्री बशीर बद्र डिमेंशिया रोग से ग्रसित हैं। वह सब कुछ भूल चुके हैं; लेकिन आज भी उन्हें तालियों की गूँज और वाह-वाह का इंतज़ार है। अगर कभी चेहरे पर मुस्कान आती है और मुँह से कुछ शब्द निकलते हैं, तो वह शायराना अंदाज़ में ‘वाह-वाह’ ही होती हैं।
हज़ारों लोग डिमेंशिया से ग्रसित
चिकित्सा विज्ञान के पास डिमेंशिया या अल्जाइमर के कारणों का अभी तक निश्चित उत्तर नहीं है। इसे आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन माना जाता है, जो ज़्यादातर बुजुर्गों को प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार, दुनिया भर में डिमेंशिया रोग के शिकार मरीज़ों की संख्या 5.5 करोड़ से ज़्यादा है। इसमें अल्जाइमर आम है। वर्ष 2030 तक यह संख्या 7.8 करोड़ होने की संभावना है। वहीं, वर्ष 2050 तक दुनिया भर में इस बीमारी के शिकार मरीज़ों की संख्या 13.9 करोड़ से भी ज़्यादा हो सकती है। इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि डिमेंशिया या अल्जाइमर की बीमारी किस हद तक बढ़ रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत की अगर बात की जाए, तो डिमेंशिया या अल्जाइमर के मरीज़ 60 लाख से अधिक हैं। वर्ष 2050 तक यह संख्या 1.40 करोड़ होने की संभावना है।
बीमारी के दुष्प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि डिमेंशिया और अल्जाइमर से ब्रेन की महत्त्वपूर्ण कोशिकाएँ मर जाती हैं। जिस कारण इंसान की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है। इस बीमारी के लक्षण 50-60 साल की उम्र में दिखने लगते हैं। 80-85 साल की उम्र में चीज़ों को भूलना आम बात है। दुनिया में बुजुर्गों की आबादी बढऩे के साथ डिमेंशिया भी अपने पाँव पसार रही है। डॉक्टर उज्ज्वल कहते हैं कि डिमेंशिया बीमारी इंसान के सोचने और समझने की शक्ति को $खत्म कर देती है और उसके व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। बशीर बद्र भी लोगों को पहचानने से लेकर अन्य बातों को भूल चुके हैं और लगभग बिस्तर पर हैं।
ग़ज़ल गायक हैं बशीर के डॉक्टर
झारखण्ड की राजधानी रांची में रहने वाले डॉक्टर उज्ज्वल राय ख़ुद ग़ज़ल गायक हैं। उन्होंने बताया कि ग़ज़ल का शौक़ ही उन्हें बशीर बद्र के नज़दीक ले आया। उन्होंने कहा कि ग़ज़ल के कारण मैं दिल्ली और मुंबई के म्यूजिक डायरेक्टर्स, कवियों, शायरों और जगजीत सिंह, शैलेंद्र सिंह जैसे गायकों के सम्पर्क में आया। इसी शौक़ ने मुझे बशीर बद्र तक पहुँचा दिया। दो साल पहले उनसे बात करने की कोशिश की, तो पता चला वह डिमेंशिया से ग्रसित हैं। मैंने उनका ऑनलाइन ही इलाज शुरू किया। फिर देखा की कुछ फ़ायदा हो रहा, तो भोपाल भी जाने लगा।
88 साल के हुए बशीर बद्र
15 फरवरी डॉ. बशीर बद्र का 87वाँ जन्मदिन था। वह 15 फरवरी, 1936 को कानपुर में हुआ था। भोपाल में रहने वाले बशीर बद्र का पैदाइशी नाम सैय्यद मोहम्मद बशीर है। साहित्य और नाटक अकादमी में किये गये योगदान के लिए उन्हें सन् 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह दुनिया के दो दर्ज़न से ज़्यादा देशों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं।
वह आम आदमी के शायर हैं और ज़िन्दगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीक़े से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र की ख़ासियत रही है। उन्होंने ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनायी है। बशीर बद्र के जन्मदिन के मौक़े पर डॉक्टर उज्ज्वल भी भोपाल गये थे। उन्होंने बशीर बद्र की ग़ज़लों को संगीत के साथ अपनी मखमली आवाज़ में पिरोकर एल्बम के रूप में इस मशहूर शायर को जन्मदिन का ख़ूबसूरत तोहफ़ा दिया।
लोगों के साथ की ज़रूरत
डॉक्टर उज्ज्वल ने कहा कि जब मैंने बशीर बद्र का इलाज शुरू किया, तो वह लगभग बिस्तर पर (बेड रीडेन) थे। न कुछ बोलना, न कुछ याद आना। न किसी को पहचानना और न ही कुछ करना। शे’र-ओ-शायरी तो दूर की बात थी। डिमेंशिया में यही सब होता है। धीरे-धीरे लोग खाना-पीना, मल-मूत्र त्याग करना आदि भी भूल जाते हैं। बशीर बद्र उस स्थिति में नहीं पहुँचे थे। इसलिए मुझे कुछ उम्मीद दिखी। बशीर बद्र एक मशहूर शायर हैं। वह हमेशा लोगों से घिरे रहते होंगे। शेरो-शायरी करते रहते होंगे। शायरी उनकी रगों में दौड़ती है। कभी कुछ बोलने का प्रयास करते, तो कहते- ‘हमें और कितनी दूर जाना है, अब हमारा सफ़र कितना बाक़ी है।’
दवा के साथ-साथ मैंने इसी शायरी को उनके इलाज का ज़रिया बनाया। अभी इलाज करते हुए बहुत वक़्त नहीं हुआ है। लेकिन उनमें धीमी गति से ही सही, बेहतरी दिख रही है। इस बार बशीर साहेब के जन्मदिन के मौक़े पर जैसे ही मैं भोपाल उनके पास पहुँचा, तो मुझे देखते ही शायराना अंदाज़ में कहा- वाह! वाह!! आइए-आइए, …विराजिये।
उनकी 88 की उम्र है। एक लम्बे समय से डिमेंशिया से ग्रसित हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह पूरी तरह ठीक हो जाएँगे और पहले की तरह शायरी कर लगेंगे। लेकिन उम्मीद है कि काफ़ी हद तक ठीक हो जाएँगे। उन्हें गुमनामी नहीं, लोगों की साथ की ज़रूरत है। वह लोगों से घिरे रहना चाहते हैं, जो उनकी सेहत में सुधार का मुख्य ज़रिया बनेगा।
कैसे होगा डिमेंशिया का निदान?
डिमेंशिया के निदान पर ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर आप फोन उठाने, खाना खाने से लेकर छोटी-छोटी चीज़ें तक भूल रहे हैं, तो इसे हल्के में न लें और फ़ौरन डॉक्टर से सम्पर्क करें। विशेषज्ञ कहते हैं कि डिमेंशिया वाले 90 फ़ीसदी लोगों का उपचार या निदान कभी नहीं किया जाता है। देश में डिमेंशिया स्क्रीनिंग के लिए पर्याप्त क्लीनिक नहीं हैं। इसलिए इस बीमारी का निदान नहीं हो रहा है। एक तो लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हैं। दूसरी शुरुआती इलाज में देरी हो रही है। भारत को एक राष्ट्रीय डिमेंशिया रणनीति की आवश्यकता है, जो हमें इस स्वास्थ्य समस्या से बेहतर तरीक़े से लडऩे के लिए तैयार करे।