पिछले एक पखवाड़े से जब भारतीय मीडिया महाराष्ट्र की राजनीतिक उथल-पुथल में उलझा है, ‘तहलका’ में हमने जलवायु परिवर्तन के उन विनाशकारी प्रभावों से जनता को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है, जिसके गम्भीर दुष्परिणाम हमारी नयी पीढ़ी को झेलने होंगे। इसलिए हमारी कवर स्टोरी इस बार जलवायु परिवर्तन को लेकर है कि कैसे हमारे नौनिहाल तक इसकी चपेट में हैं और अभिभावक होने के नाते हमारी क्या िम्मेदारियाँ हैं? यह स्थिति एक बेहद गम्भीर खतरे की तरफ इशारा करती है। आप इसमें पढ़ेंगे कि कैसे गैसीय उत्सर्जन को कम करने के हमारे प्रयास वास्तविक लक्ष्यों से कम हैं। अब यह सुनिश्चित करने का वक्त है कि जलवायु परिवर्तन हमारे बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रहा। यदि हम अब भी नहीं जागते, तो विनाशकारी जलवायु परिवर्तन का असर हमारे बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। लैंसेट, जिसे दुनिया के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल जरनल के रूप में जाना जाता है; ने इस महीने एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट दुनिया, विशेषकर भारत के लिए एक गम्भीर चेतावनी का संकेत देती है। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, खराब स्वास्थ्य सेवा और कुपोषण से जूझते हुए भारत के लिए जलवायु परिवर्तन का खतरा अधिक चुनौतीपूर्ण है। यह रिपोर्ट हर महाद्वीप से 35 प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के निष्कर्षों पर आधारित है। पेड़ कट रहे हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। पिछले एक दशक में आठ साल सबसे ज़्यादा गर्म दजऱ् किये गये हैं। आज जन्म लेने वाला बच्चा एक ऐसी दुनिया का अनुभव करेगा, जो पूर्व-औद्योगिक औसत की तुलना में चार डिग्री से अधिक गर्म है और जिसमें जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य और किशोरावस्था से वयस्कता और बुढ़ापे तक प्रभावित होता है। दुनिया-भर में बच्चे जलवायु परिवर्तन से खासतौर पर प्रभावित हैं।
शोधकर्ता मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन कई संक्रामक रोगों को जन्म दे रहा है। 2019 लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट डेंगू वायरस, मलेरिया और विब्रियो के संचरण के लिए पर्यावरणीय उपयुक्तता का एक अद्यतन विश्लेषण प्रदान करती है। ऊर्जा प्रणाली की कार्बन तीव्रता को 2050 तक कम करके शून्य तक लाना होगा। पिछले 15 वर्षों में कार्बन की तीव्रता काफी हद तक कम हो गयी है, क्योंकि जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने के लिए कम कार्बन ऊर्जा की वृद्धि अपर्याप्त है। न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए, बल्कि वायु प्रदूषण से होने वाली समस्याओं और मृत्यु-दर को कम करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में कोयले का उपयोग खत्म करना ज़रूरी है। दिसंबर, 2018 तक 30 देशों की सरकारों ने कई सरकारों और व्यवसायों के साथ पॉवङ्क्षरग पास्ट कोल एलायंस के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए कोयले को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की प्रतिबद्धता जतायी है। वैश्विक रूप से प्रति वर्ष 38 लाख मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होती हैं, जो मोटे तौर पर कोयला, लकड़ी और बायोमास जैसे ठोस ईंधन के उपयोग से उत्पन्न होता है। ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन और अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करने के अलावा हीटिंग तकनीक प्रदान करने के प्रयासों से स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभ हो सकते हैं। हमें कोयले का उपयोग घटाना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में सम्पन्न संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) लक्ष्य को बढ़ाकर 450 गीगा वाट करने के लिए एक मज़बूत जलवायु कार्य योजना के बारे में बताया है, जिससे नयी उम्मीद बँधती है।