‘तहलका’ के इस अंक की आवरण कथा साइबर स्पेस में संकट में पड़ी निजता को लेकर है। इाराइली समूह के स्पाइवेयर पेगासस के ज़रिये भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की जासूसी एक गम्भीर मामला है। संयोग कहिए या कुछ और, लगभग इसी दौरान तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयन्त्र पर संक्रमित उपकरण के माध्यम से मॉलवेयर के ारिये हमले का भी खुलासा हुआ। इससे यह साबित होता है कि निजी डाटा चुराने के लिए पेशेवर हैकर्स कोई बड़ा नुकसान करने की िफराक में हैं।
पेगासस एक इाराइली स्पाइवेयर है, जो आपके मोबाइल पर एक मिस्ड कॉल से इंस्टॉल होकर फोन के ऑपरेॄटग सिस्टम में पहुुँच जाता है और सारी गोपनीय जानकारी व सुरक्षा खतरे में डाल देता है। व्हाट्सएप जो पहले से ही फेक न्यूज फैलाने को लेकर बदनाम है, इस मामले में भी दोषी है। तथ्य यह है कि पेगासस ने देश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अन्य लोगों की जासूसी किसी के कहने पर ही करायी।
सरकार और उनकी एजेंसियों पर आरोप लगता रहा है कि वह पेगासस का जासूसी के लिए इस्तेमाल करती हैं, इसलिए अब यह मामला और गम्भीर बन जाता है। फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्सएप के इस जासूसी के खुलासे के बाद सरकार का कहना है कि वह कम्पनी पर मुकदमा कर रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। जनता के मन में उठ रहे कई सवालों और संदेह को दूर करने की िजम्मेदारी भी सरकार की है। इसलिए सरकार को सार्वजनिक रूप से यह बताना चाहिए कि भारतीय नागरिकों की जासूसी किसके निर्देश पर की गयी?
सरकार ने सिर्फ व्हाट्एस पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है; लेकिन यह समझने की ज़रूरत है कि पेगासस के लिए महज व्हाट्सएप ही औज़ार नहीं है। एनएसओ उपयोगकर्ताओं के पास कई तकनीक हैं, जिनके ारिये वे गूगल प्ले स्टोर के कई एप के माध्यम से यूजर की निजी जानकारी हासिल करने के साथ-साथ उस पर निगरानी रख सकते हैं। एनएसओ जैसी कम्पनियाँ आसानी से यूजर के नेटवर्क के माध्यम से भी निजी जानकारियाँ हासिल कर सकती हैं। पेगासस एक अत्याधुनिक स्पाइवेयर है और अपनी सेवाओं व उत्पादों के लिए बड़ी राशि शुल्क के रूप में लेता है।
सरकार को इसकी गहन जाँच कराने की ारूरत है कि भारत में एनएसओ को कौन काम का िजम्मा दे सकता है? जिसकी दिलचस्पी चुनिंदा कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों की जासूसी कराने में हो। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि एनएसओ खुद दावा कर चुका है कि वह सॉफ्टवेयर केवल सरकारी एजेंसियों को बेचता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि लोगों के मन में गम्भीर सवाल उठेंगे ही।
सरकार को यह भी बताना चाहिए कि निजता के अधिकार की रक्षा के लिए क्या कदम उठाने जा रही है। विडम्बना है कि इाराइली कम्पनी एनएसओ वेबसाइट पर कहती है- ‘एनएसओ उत्पादों का उपयोग केवल सरकारी खुफिया एजेंसियों और कानूनी एजेंसियों के लिए ही किया जाता है।’ इससे इस जासूसी मामले में सरकार की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। देश में निजता के खतरे को देखते हुए हमें डाटा संरक्षण से जुड़े सख्त कानून की ज़रूरत है।