अभी साल भर ही हुआ। विमुद्रीकरण का नफा-नुकसान अब नज़र आने लगा है। इसकी खासियत जानने के लिए एक साल की मियाद काफी होती है। विमुद्रीकरण का एक असर जो दिखा है वह है डिजिटल पेमेंट में क्रेडिट कार्ड का बेइंतहा इस्तेमाल। खास तौर पर विमुद्रीकरण के बाद। इस साल सितंबर के अंत तक क्रेडिट कार्ड रखने वालों ने बैंकों को साठ हजार करोड़ से भी ज़्यादा की देनदारी में डाल दिया है। यह मामला इसलिए बेहद खास है क्यांकि एक ही साल में यह 39 फीसद की उछाल है । निश्चय ही क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल अभी हाल इतनी तेजी से इसलिए हुआ क्योंकि ई-कामर्स में ऑनलाइन शॉपिंग का धूम-धड़ाका मचा रहा।
ऐसा लगता है कि बैंकों ने भी नकदी पर लगी पाबंदी का लाभ उठाया जिससे कार्ड का इस्तेमाल और बढ़े। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वालों में ज़्यादातर को यह अनुमान नहीं था कि वे खुद को क्रेडिट कार्ड के कर्ज के ऐसे जाल में फंसा रहे हैं जिसमें कर्जदार के भुगतान से नागा करने पर चालीस फीसद का ब्याज भी मूलधन पर लग सकता है। यह ब्याज दर क्रेडिट कार्ड पर औसतन दैनिक बैलेंस के आधार पर लगता है।
बैंक अब महसूस कर रहे हैं कि किसान कार्ड, क्रेडिट कार्ड भी कहीं नॉन परफार्मिंग एसेट (एनपीए) तो नहीं हो रहे। बैंक यों भी एनपीए के चलते चकरघिन्नी खा ही रहे हैं।
पिछले ही महीने केंद्र सरकार ने अगले दो साल के लिए पब्लिक सैक्टर बैंक (पीएसबी) को 2.11 लाख करोड़ की पूंजी मुहैया कराई जो ऊंचे नॉन परफार्मिंग एसेट (एनपीए) से परेशान थे। धीमी हो रही अर्थव्यवस्था में यह पहल खासी महत्वपूर्ण है। क्योंकि ‘ट्विन-बैलेंसशीट प्राब्लेमÓ के चलते निजी पूंजी निवेश नहीं होता और कारपोरेट भारत और पब्लिक सेक्टर बैंकों में बैंक क्रेडिट की विकास दर कम होती है।
कई अर्थशास्त्रियों को यह मानना है कि बैंकों में फिर पूंजी बढ़ाना आलोचना का विषय हो सकता है देश के विकास के लिहाज से जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार दिख रहा हो।
बैंकों को पूंजी देने के लिए बजट में 18.139 करोड़ की व्यवस्था की जाएगी। इसके लिए 1.35 लाख करोड़ के रीकैपिटैलाइजेशन बांड की बिक्री की जाएगी। जो कमी रह जाएगी उसे बैंक खुद ही सरकार के इक्विटी शेयर को डाइल्यूट करके पूरा करेंगे। इस मुद्दे की गंभीरता को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि वित्तमंत्री अरूण जेटली ने बैंकों को सहूलियत देते हुए माना कि बैंकों ने पहले जो कर्ज बेहिसाब बांटें उससे एनपीए का स्तर ऊंचा हुआ और इस एनपीए को दरों के नीचे छिपा दिया गया। आज ये सामने इसलिए आए क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ‘एसेट क्वालिटी रिव्यूÓ के जरिए छानबीन की।
विमुद्रीकरण के बाद सरकार ने घोषणा की कि इसका विशेष ध्यान डिजिटल पेमेंट पर होगा और क्रेडिट कार्ड आधुनिक तौर पर पेमेंट का एक तरीका है। यह बुरी चीज नहीं है बशर्ते इसका उपयोग सही तरीके से किया जाए। आपात स्थितियों मसलन अस्पताल में भरती होने या अचानक यात्रा की स्थिति में। इसका हर कहीं इस्तेमाल करने से एक व्यक्ति का अपना बजट बिगड़ जाता है और बैंक का एनपीए बढ़ जाता है। जबकि समझदार व्यक्ति इससे तमाम लाभ भी उठाता है जिसमें डिस्काउंट, कांप्लीमेंटरी इंश्योरेंस, रिवार्ड प्वांइट और स्पेशल प्रिविलेज हैं जो हर कार्ड से जुड़े होती है। बहरहाल, ज़्यादातर के लिए ‘आज खरीद लो और बाद में भुगतान करोÓ के चलते कम खर्च और ज़्यादा क्रेडिट कार्ड रखने और भुगतान करने की स्थिति न होने पर भी खरीदने की चाहत के चलते परेशानी बढ़ती है।
बैंक पहले से ही एनपीए की समस्याओं से जूझ रहे हैं। अब वे एक अलग तरह के टाइम बम के निशाने पर हैं। दूसरा मुद्दा यह है कि कार्ड व्यापार ठीक तरह से न तो नियंत्रित है और न ही बैंक उसके लिए कोई जागरूकता कार्यक्रम चलाते हैं जिससे क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले इसके इस्तेमाल और नुकसान को समझ सकें।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की यह जिम्मेदारी है कि वह बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड पर वसूली जा रहे ब्याज की दर पर नज़र रखें और जागरूकता कार्यक्रम भी चलाएं। यह ज़रूर सुना है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों को सलाह दी है कि वे उस तारीख का ज़रूर ध्यान रखें जब ग्राहक से उम्मीद की जाती है कि वह क्रेडिट कार्ड पर अपनी न्यूनतम राशि ज़रूर जमा कर दें। उसके बाद नब्बे दिन की अवधि का हिसाब किताब लगाएं। क्योंकि इसके बाद ग्राहक यदि भुगतान नहीं करता तो उसे एनपीए श्रेणी में मान लिया जाए। क्रेडिट डिसिप्लिन के लिए ज़रूरी है कि क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए थोड़ी उदारता भी बरती जाए। यह ज़रूर तय हो गया है कि इस सर्कुलर की तारीख के बाद क्रेडिट कार्ड के खाते का नंबर एसेट क्लासिफिकेशन के लिए रख दिया जाए जिसमें अमुक तारीख तक के भुगतान का ब्यौरा मासिक क्रेडिट कार्ड के बयान में हो। सेंट्रल बैंक ने अपने एक नोटिफिकेशन में यह बात कही है । पहले बैंकों का नियम था कि वे दूसरे बिलिंग स्टेटमेंट की तारीख को ध्यान में रख कर वे नब्बे दिन की अवधि का हिसाब-किताब लगाते थे। यानी एक महीने में दो क्रेडिट कार्ड के ब्याज। फिर आरोपों के तहत जुर्माने। बैंक अपनी उस नीति पर चलते रह सकते हैं यदि ग्राहक तय तारीख के तीन दिन पहले तक भुगतान करने में नाकाम रहता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का कहना है कि इस बदलाव से ग्राहकों में क्रेडिट कार्ड डिसिप्लिन आ सकता है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार बैंकों ने कुल 1,78000 क्रेडिट कार्ड अप्रैल में जारी किए। आउट स्टैंडिंग क्रेडिट कार्ड जो जारी हुए वे 2.12 करोड़ हो गए। मई के अंत में क्रेडिट कार्ड की आउट स्टैडिंग रुपए 32400 करोड़ पहुंच गई। यानी यह साल दर साल 23 फीसद की बढ़ोतरी है। रिजर्व बैंक का कहना है कि क्रेडिट कार्ड के खाते को नान परफार्मिंग एसेट (एनपीए) बतौर ही गिना जाए यदि न्यूनतम राशि जो मिल जानी चाहिए थी वह पूरी तौर पर नब्बे दिनों में नहीं मिलती कार्ड के ब्याज में दी गई तारीख तक। यह फैसला सेंट्रल बैंक की पहले की नीति से थोड़ी अलग है जिसमें क्रेडिट कार्ड खाते के एनपीए की श्रेणी में डालने की बात है यदि न्यूनतम राशि बीती हुई तारीख के 120 दिन के अंदर नहीं दे दी जाती।
चालू नोटिफिकेशन में बैंकिंग रेगुलेटर ने यह भी कहा है कि कोई भी क्रेडिट कार्ड खाता ‘पास्ट डयू स्टेटसÓ में आ जाएगा यदि बैंक के खाते में क्रेडिट कार्ड के बयान के दर्ज हैं। इन कदमों का इरादा है कि ‘क्रेडिट डिसिप्लिनÓ को क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वालों में बढ़ावा दिया जाए। साथ ही कार्ड का इस्तेमाल करने वाले के लिए ‘ऑपरेशनल उदारताÓ भी दिखे। यह बात साफ है कि देश की आर्थिक प्रगति और इसके बैंकिंग सेक्टर का विकास एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। बैंकों का एक सामाजिक दायित्व होता है जिसके तहत वे कर्ज देते हैं। बैंक की शाखाओं का फैलाव करते हैं और नौकरियां देते हैं। एसेट की गुणवत्ता को बनाए रखने और लाभ की खातिर बैंक के चलते रहने और विकास के लिए ज़रूरी है। इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए बैंकों की राह में एनपीए एक बड़ी अड़चन है। क्रेडिट कार्ड रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की नई पहलकदमी से सही दिशा में एक शुरूआत हुई है। इससे न केवल बैंक एनपीए बढ़ाने में रोक लगा सकेंगे और क्रेडिट कार्ड के उपभोक्ताओं को कर्ज के जाल से बचा भी सकेंगे।