चुनावों के 2019 में होने तक पूरे देश में व्यापक ध्रुवीकरण की तैयारी हो चुकी है। कांग्रेस में अभी हाल शामिल हुए अल्पेश ठाकुर को भाजपा जिम्मेदार बता रही है। हालांकि विधानसभा चुनावों के पहले तक उनका अपना एक क्षेत्रीय संगठन था। लेकिन यूपी-बिहार के लोगों का गुजरात छोडऩा भाजपा को भी थोड़ा झटका दे सकता है। बता रहे हैं जिनी केपी सहजन।
उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि गुजरात में बस गए हिंदी भाषी लोगों पर बार-बार हिंसा और तोड़ फोड़ आगजनी की कार्रवाई अब भी जारी है। एक सप्ताह तो यह सब इतना व्यापक रहा कि इसकी चपेट मेें आठ जिले आ गए थे। इनमें कई महत्वपूर्ण शहर मसलन आमदाबाद, सूरत, राजकोट और मोरवी हैं। इस मारपीट हिंसा, तोडफ़ोड़ से 2019 के आम चुनाव के पहले तक आतंक, ध्रुवीकरण, अलगाववाद की कोशिश हो रही है। इस हिंसा और घृणा के शिकार हैं अल्पसंख्यक दलित और दूसरे प्रदेशों से यहां आकर मेहनत मजूरी करने वाले लोग।
गुजरात देश की आज़ादी के बाद से ही औद्योगिक राज्य के तौर पर हमेशा विकसित किया गया। तब यहां उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश, बिहार और दूसरे प्रदेशों से प्रवासी मजदूरों को ठेके पर आमंत्रित किया गया। औद्योगिक इकाइयां चाहे वे वस्त्र उत्पादन करती हो, रासायनिक उद्योग की हों या फिर छोटे पुर्जों को बनाने वाली फैक्टरियां हों उत्तर गुजरात में।
इंडियन इंस्टीच्यूट आफ मैनेजमेंट ऑफ अमदाबाद के चिन्मय टुंबे का कहना है कि सूरत के श्रमिकों में 70 फीसद प्रवासी मजदूर हैं और अमदाबाद में वे 50 फीसद हैं। देश के इन दोनों बड़े औद्योगिक शहरों के श्रमिकों की स्थिति यही है। गुजरात के दूसरे शहरों में प्रवासी मजदूर कम हैं लेकिन वे बहुत कम नहीं हैं। टुंबे ने इसी विषय पर प्रवासी मजदूरों पर एक किताब ‘इंडिया मूविंग: द हिस्ट्री ऑफ माइगे्रशनÓ इसी साल लिखी जो छपी हुई है।
उनका कहना है कि ऐतिहासिक तौर पर यदि देखें तो गुजरात में प्रवासी मजदूरों के खिलाफ दंगे, और पंजाब में भी हिंसा का दौर दौरा रहा क्योंकि पंजाब और गुजरात के ही लोग पूरे देश के विभिन्न राज्यों में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में बड़ी तादाद में जाते हैें।
सवाल आज यह है कि गुजरात में प्रवासीर मजदूरों को खदेडऩे की आग किसने लगाई। घटना की शुरूआत तो बताई जाती है कि उत्तर गुजरात के साबरकंठा जिले के हिम्मतनगर के पास किसी गांव में चौहद महीने के शिशु के साथ बलात्कार 28 सिंतबर को किया गया। इस मामले में बिहार के एक प्रवासी मजदूर को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। पहले ठाकोर समुदाय की ओर से क्योंकि लड़की उसी समुदाय की थी। इसी समुदाय के हैं विधायक अल्पेश ठाकुर। राज्य में सत्ता तो भाजपा के हाथ में है तो भाजपा कैसे पीछे रहती। उसने विपक्ष पर आरोप लगाया कि यह स्थानीय लोगों को उकसा रही है।
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के दूसरे दिन अल्पेश ठाकुर फेसबुक पर लाइव दिखे। उन्होंने कहा कि इस दुखद अमानवीय घटना के लिए एक प्रवासी मजदूर जिम्मेदार है। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी को ठाकोर सेना ने पकड़ लिया है। न्याय अब वहीं किया जाएगा। भाजपा का कहना है कि उत्तर गुजरात के जिलों साबरकंठा, पाटन, वनसिकंठा, मेहसाणा में हिंसा भड़क गई है जिसकी लपटें अमदाबाद, वडोडरा, सूरत, मोरवी और राजकोट तक पहुंच रही है।
ठाकोर समुदाय से करीब पांच सौ लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया गया। इन पर प्रवासी मजदूरों के खिलाफ दंगा करने का आरोप लगा। पूरे राज्य में पचास से ज्य़ादा मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 150 लोग अब भी जेल में हैं। इन पर अफवाह फैलाने और प्रवासी मजदूरों पर हमले के आरोप है।
राजनीति शुरू कैसे हुई
अल्पेश के बयान के बाद कोई बड़ी हिंसा या प्रवासी मजदूर पर हमले की खबर नहीं है। लेकिन दो अक्तूबर के बाद मामला भड़का और उत्तर गुजरात के कई शहरों और दूसरे शहरों में फैल गया। आतंक के चलते इन मजदूरों ने अपना माल असबास उठा लिया और वे दूसरे राज्यों में अपने घरों को जाने लगे। उनके मन में मारे जाने का आतंक था।
गुजरात की भाजपा सरकार अल्पेश पर सोशल मीडिया द्वारा लोगों को भड़काने और अफवाह फैलाने का आरोप लगाती हैं। जबकि विपक्षी कांगे्रस मांग कर रही है कि मुख्यमंत्री विजय रूपाणी इस्तीफा दें क्योंकि वे प्रवासी मजदूरों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा कि गरीबी से ज्य़ादा कुछ भी डरावना नहीं होता। गुजरात में आज फैक्टरियों बंद पड़ी हैं और बेरोज़गारी बढ़ी है। पूरा सिस्टम फेल है और आर्थिक तनाव बढ़ा है। ऐसे में मजूरी कमाने आए प्रवासी मजदूर को जिम्मेदार बताना गलत है। मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूं।
गुजरात के मुख्यमंत्री रूपाणी ने अपने ढेरों ट्वीट में एक में कांग्रेस को हिंसा के लिए जिम्मेदार बताया है। उनका कहना है कांग्रेस पहले भड़काती है प्रवासी मज़दूरों के खिलाफ। कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्रवीट करके हिंसा का विरोध किया। कांग्रेस अध्यक्ष को क्या शर्म नहीं आती? यदि कांग्रेस अध्यक्ष गुजरात में हिंसा के खिलाफ हैं तो वे अपने ही सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते जिन्होंने गुजरात में प्रवासी मजदूरों के खिलाफ हिंसा और आत्मविश्वास पैदा कर पा रहे हैं। हम कहना चाहते हैं सभी नागरिकों से कि वे सुरक्षित हैं गुजरात में।
हिंसा के लिए भड़काने का जो आरोप अल्पेश पर लगाया जा रहा था वह तब फीका पड़ गया जब उन्होंने हिंसा की निंदा की और भाजपा पर आधारहीन आरोप लगाने की भत्र्सना की। अल्पेश की निंदा उनकी अपनी पार्टी के सदस्यों ने की। वे उन्हें अकेला छोड़ गए कि अब वह अपने पुराने बयान को उचित बताए और खुद को बचाएं। अल्पेश का टोकन अनशन 11 अक्तूबर को हुआ। इसमेें भीड़ कम थी लेकिन इसमें मांग की गई कि 50 फीसद स्थानीय लोगों को रोज़गार दिया जाए।
बाद में रूपानी ने प्रवासी मजदूरों को सुरक्षा का वादा किया कहा कि जिन लोगों ने हमले में भाग लिया है उन पर कार्रवाई की जाएगी। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर उनसे बातचीत की। रूपानी ने कहा कि गुजरात ने हमेशा दूसरे प्रदेशों के लोगों को अपनों की बजाए प्राथमिकता दी है। यह सदियों पुरानी प्रथा है। मैं गुजरात के लोगों से अपील करता हूं कि वे राज्य में शांति और अमन चैन की स्थिति पैदा करें। जिन लोगों पर हिंसा और हमलों के आरोप हैं उन्हेें गिरफ्तार करके कड़ी कार्रवाई की जाए।
उद्योगों पर असर
राज्य सरकार का गलत फैसला उजागर हो चुका था। उसने अपनी पूरी मशीनरी को हालात पर काबू पाने में लगा दिया था। एसपी और जिले के दूसरे अधिकारियों को कहा गया कि वे प्लेट फार्म पर ट्रेनों का इंतजार कर रहे प्रवासी मजदूरों से बातचीत करें। गली-मुहल्ले में भैया जी की दुकानों पर पानी पूरी खाएं। इस कार्रवाई का कुछ तो लाभ हुआ लेकिन मजदूरों के अभाव में उद्योग ज़रूर ठप हो गए।
अनुमान है कि हिंदी भाषी प्रदेशों से 12 हजार प्रवासी मज़दूर गुजरात में आकर यहां के उद्योगों का पहिया चलाते हैं। ज्य़ादातर मज़दूर जो उत्पादन के क्षेत्र में काम कर रहे थे उनमें ज्य़ादातर तो अपने-अपने प्रदेशों को लौट गए हैं। मोरवी, जामनगर, सूरत, कच्छ अब खाली हो गए हैं। गुजरात में एक करोड़ औद्योगिक मजदूर हैं। इनमें 70 फीसद गैर गुजराती हैं। अब हिंदी भाषी मज़दूरों की अनुपरिस्थिति से असर पूरी औद्यौगिक परिदृश्य पर पड़ा है और उत्पाद ठप है।
सानंद इंडस्ट्रिज़ एसोसिएशन के आजित शाह ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों के लौट जाने का असर उनकी के कंपनियों पर पड़ा है। सानंद से जुड़े लोगों का कहना है कि तीन चार दिनों में करीब चार हजार लोग अपने घरों को लौट गए हैं। इससे उत्पादन पर 50 फीसद का असर पड़ा है। ऐसी ही स्थिति मेहसाणा, काडी, कलोल, और हिम्मतनगर में हुई। इन तमाम शहरों मेें सेरामिक्स, प्लास्टिक्स, टेक्स्टाइल और औद्यौगिक इकाइयां अब लगभग बंद सी है। करीब तीन हजार कर्मचारी मेहसाणा औद्यौगिक एस्टेट में होते थे। इनमें चार सौ तो हिंदी प्रदेशों के थे। इनमें डेढ सौ लोग चले गए हैं क्योंकि उन्हें हिंसा में मारे जाने का अंदेशा था। मेहसाणा इंडस्ट्रिज़ एसोसिएशन के सचिव चिराग पटेल ने बताया कि उत्पादन में 15 से 20 फीसद कमी हुई है। दीवाली के मौके पर यह तो भारी घाटा होगा।
पिछले सप्ताह गुजरात राज्य या नवधिकार आयोग ने राज्य सरकार और पुलिस महानिदेशक से हिंदी भाषी प्रवासी मजदूरों पर हिंसा और उनके लौट जाने का पूरा ब्यौरा मांगा। ये रिपोर्ट अभी जस्टिस (सेवानिवृत्त) अभिलाषा कुमारी को दी जानी है।
गुजरात हाईकोर्ट ने भी राज्य में हुई हिंसा पर चिंता जताई है और राज्य सरकार से रपट मांगी है।