अमेरिका का रूस और चीन से बढ़ता जा रहा तनाव
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रूस की यात्रा के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध ख़ेत्म करने के लिए दिया 12 सूत्रीय शान्ति प्रस्ताव (बीजिंग पीस प्लान) सार्थक नतीजे नहीं ला पाया, तो क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के दरवाज़े पा आ खड़ी होगी? इस ख़ेतरे से मना नहीं किया जा सकता, चाहे इस बहाने शी जिनपिंग की मंशा वैश्विक शक्ति के रूप में ख़ुद को और मज़बूती से स्थापित करने की ही हो।
भले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 12 सूत्री शान्ति प्रस्ताव रखा है; लेकिन उनके बीजिंग लौटने के 90 घंटे के भीतर ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने पड़ोसी देश बेलारूस में टेक्टिकल न्यूक्लियर हथियारों को तैनात करने की घोषणा कर दी। चीन के विशेषज्ञों ने इस पर चिन्ता जतायी कि यह सब जिनपिंग के प्रयासों को और भी जटिल बना सकता है। ज़ाहिर है वर्तमान की घटनाओं ने दुनिया में फिर परमाणु युद्ध का जोखिम बढ़ा दिया है।
वैसे भी हाल के दशकों में पिछले महीने अमेरिका और रूस के बीच पहली बार तब सीधा तनाव देखने को मिला, जब काला सागर के ऊपर रूसी जेट विमान और अमेरिकी ड्रोन में टक्कर हुई। हालाँकि रूस की घोषणा के बाद व्हाइट हाउस ने कहा कि ऐसा कोई संकेत नज़र नहीं आ रहा, जिससे लगे कि रूस परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की प्लानिंग कर रहा है। पुतिन के हवाले से रूसी न्यूज एजेंसी तास ने 27 मार्च को कहा कि 10 एयरक्राफ्ट बेलारूस में तैनात किये गये हैं, जो टेक्टिकल न्यूक्लियर हथियार ले जाने में सक्षम होंगे। रूसी राष्ट्रपति का दावा है कि बेलारूस में परमाणु हथियार रखने से न्यूक्लियर नॉन प्रॉलिफरेशन एग्रीमेंट का उल्लंघन नहीं होता है। रूस किसी भी तरह की टेक्नोलॉजी या कंट्रोल बेलारूस को नहीं दे रहा है। रूस ने जैसे ही यह ऐलान किया, यूक्रेन आनन-फ़ानन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की शरण में पहुँच गया और क्रेमलिन की परमाणु ब्लैकमेलिंग का मुक़ाबला करने के लिए एक आपात बैठक बुलाने की गुहार लगायी।
हालाँकि रूस का यह क़दम चीन की कोशिशों को भी झटका देता है। दोनों ने मास्को में साझा बयान में कहा था कि सभी परमाणु सम्पन्न देशों को अपने हथियार अपनी सीमा से बाहर तैनात करने से बचना चाहिए। इसके अलावा जिन देशों ने हथियारों को दूसरे देशों में तैनात किया है, उन्हें वापस लेना चाहिए। ज़ाहिर है अब पुतिन की घोषणा से चीनी विशेषज्ञ हैरान हैं। जिनपिंग ने रूस-यूक्रेन के बीच शान्ति कराने की जो कोशिश दिखायी थी, पश्चिमी देश उसे नहीं मान रहे। एक बात तय है कि रूस के इस क़दम के बाद प्रान्त में तनाव बढ़ गया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया में काफ़ी बदलाव दिखाये हैं और चीन इनमें महत्त्वपूर्व भूमिका में दिखता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण जिनपिंग का ईरान और सऊदी अरब को नज़दीक ले आना है। हाल के दशकों में यह बड़ी वैश्विक कूटनीतिक घटना है। फ़िलहाल तो बड़ा ख़ेतरा अमेरिका-रूस और अमेरिका-चीन के बीच बढ़ रहा तनाव है। भारत के साथ चीन के रिश्ते वैसे ही ख़ेराब चल रहे हैं। इसकी पुष्टि विदेश मंत्री एस. जयशंकर के स्वीकृति वाले बयान से होती है कि चीन के साथ तनाव है।
इसके अलावा 13 मार्च को विदेश मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है कि भारत के साथ चीन के रिश्ते जटिल हैं और अप्रैल-मई, 2020 के दौरान एलएसी पर यथास्थिति बदलने के लिए चीन की तरफ़ से जो कोशिशें की गयीं, उससे सीमा क्षेत्र की शान्ति को नुक़सान पहुँचा है। विदेश मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अप्रैल-मई 2020 में पूर्वी लद्दाख़े में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एकतरफ़ा ढंग से यथास्थिति बदलने के चीनी कोशिशों के चलते सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन शान्ति को गम्भीर रूप से क्षति पहुँची।
जिनपिंग की रूस यात्रा
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऐसे समय में रूस की यात्रा की है, जब वहाँ हालत बेहद तनावपूर्ण हैं। इसमें कोई कोई दो-राय नहीं कि जिनपिंग पूरी तरह पुतिन के साथ खड़े हैं। यह इस तथ्य से भी ज़ाहिर हो जाता है कि जहाँ अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ युद्ध अपराधों के आरोपों पर गिरफ़्तारी वारंट जारी होने का समर्थन कर रहे हैं, वहीं चीन इसके लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) को आड़े हाथ ले रहा है। जिनपिंग की यात्रा के दौरान पुतिन के बीच मास्को में द्विपक्षीय रिश्तों और यूक्रेन संघर्ष पर चर्चा हुई थी। राष्ट्रपति शी जिनपिंग अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की ओर से पुतिन के ख़िलाफ़ युद्ध अपराधों के मामलों में गिरफ़्तारी का वारंट जारी होने के कुछ दिन बाद ही मास्को पहुँचे। हालाँकि चीन के एकदम उलट रूस के राष्ट्रपति की गिरफ़्तारी से जुड़े मामले पर पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने युद्ध अपराध किया है, और उनकी गिरफ़्तारी वारंट जारी करने का फ़ैसला सही है।
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण चीन का रूस और यूक्रेन के बीच साल से जारी युद्ध को ख़ेत्म कराने के लिए 12 सूत्री कार्यक्रम था, जिसे बीजिंग शान्ति योजना (पीस प्लान) का नाम दिया गया है। इस शान्ति योजना में वैसे तो कोई स्पष्ट प्रस्ताव नहीं है; लेकिन इसमें राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करने की बात कही गयी है। हालाँकि इसमें रूसी सैन्य बलों को यूक्रेन से निकल जाने की बात नहीं कही गयी है। यही कारण है कि यूक्रेन रूस के साथ किसी भी बातचीत से पहले उसके सैन्य बलों के अपने देश से हटने की शर्त रख रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी कह चुके हैं कि रूस के यूक्रेन से हटे बग़ैर संघर्ष विराम की बात करना, तो यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का समर्थन करने जैसा होगा। यहाँ सवाल उठता है कि रूस की सेना के यूक्रेन से हटे बिना शान्ति की उम्मीद कैसे की जा सकती है? जिनपिंग के साथ बैठक के बाद पुतिन ने जो साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में की उसमें उन्होंने कहा- ‘यूक्रेन में संघर्ष ख़ेत्म करने के लिए चीनी पीस प्लान के कई प्रावधानों को अमल में लाया जा सकता है, जब भी पश्चिमी देश और यूक्रेन इसके लिए तैयार हों। रूस को अब तक दूसरे पक्ष की ओर से इस मुद्दे पर ऐसी तत्परता नहीं दिखी है।’ इस मौक़ै पर जिनपिंग ने कहा- ‘हमारी सरकार शान्ति और संवाद के पक्ष में रही है और इतिहास गवाह है कि चीन सकारात्मकता के साथ इस पर खड़ा था।’ चीनी विदेश मंत्रालय भी कह चुका है कि यूक्रेन संघर्ष का समाधान सि$र्फ संवाद और बातचीत से ही सम्भव है। पुतिन कह रहे हैं कि चीन का 12 सूत्री बीजिंग प्लान यूक्रेन के साथ एक साल से जारी युद्ध ख़ेत्म को कर सकता है। यहाँ यह ज़िक्र करना अच्छा होगा कि चीन इस सारी क़वायद में ख़ुद को शान्ति दूत के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। जिनपिंग का दावा है कि यूक्रेन संघर्ष पर उनके देश का रुख़े निष्पक्ष है।
यह दिलचस्प ही है कि जब शी जिनपिंग जब मास्को दौरे पर थे, ठीक उसी व$क्त जापानी प्रधान मंत्री फूमियो किशिदा अचानक यूक्रेन पहुँच गये। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से किसी संघर्षरत देश का दौरा करने वाले वह पहले जापानी प्रधानमंत्री हैं। राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की ने कहा कि वह प्रधानमंत्री किशिदा के निमंत्रण पर इस साल मई में होने जा रही जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में वीडियो लिंक के माध्यम से हिस्सा लेंगे। जेलेंस्की ने कहा कि उन्होंने चीन से बातचीत में शामिल होने के लिए कहा है; लेकिन उन्हें जवाब का इंतज़ार है। उनके मुताबिक, उन्होंने चीन से कहा था कि वह पीस फॉर्मूले के अमल में साझेदार बने। हम आपको संवाद के लिए आमंत्रित करते हैं।
परमाणु युद्ध नहीं
जिनपिंग और पुतिन के बीच बैठक और समझौते के बाद बताया गया कि दोनों नेता इस बात पर राज़ी हुए हैं कि परमाणु युद्ध कभी भी शुरू नहीं किया जाना चाहिए। हालाँकि अमेरिका-रूस में जैसी तनातनी अचानक बनी उसके बाद कुछ भी कहना कठिन है कि भविष्य में हालात क्या मोड़ लेंगे? दोनों नेताओं ने नये ऑकस पैक्ट को लेकर अपनी चिन्ताएँ ज़ाहिर की हैं। याद रहे ऑक्स पैक्ट ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच रक्षा समझौता है। इसके अलावा उन्होंने एशिया में नाटो की बढ़ती मौज़ूदगी पर सैन्य और सुरक्षा के जुड़े मुद्दों को लेकर चिन्ता ज़ाहिर की है। साफ़ है तनाव के कई कारण अभी मौज़ूद हैं।
इसके अलावा चीन की तरफ़ से रूस को हथियार सप्लाई की ख़ेबरें तेज़ी से आयी हैं। पश्चिम मीडिया इसे लेकर लगातार आशंका जता रहा है, भले ही कोई पुख्ता सुबूत सामने न आये हों। नाटो प्रमुख जेन्स स्टॉल्टेनबर्ग ने हाल में कहा कि उनके गठबंधन को अब तक ऐसे सुबूत नहीं मिले हैं, जो ये साबित करते हों कि चीन रूस को हथियार दे रहा है। हालाँकि उन्होंने ये ज़रूर कहा कि इस बात के संकेत मिले हैं कि चीन रूस की ओर से हथियार माँगने के दरख्वास्त पर विचार कर रहा था।
कहने को चीन-रूस ने पुतिन-जिनपिंग बैठक में हुए समझौतों को सैन्य-राजनीतिक गठबंधन मानने से इनकार किया है; लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि रूस-चीन की यह जुगलबंदी पश्चिम से दोनों के तनाव का आधार है, जिसे किसी भी कठिन हालत में सैन्य गठबंधन में बदलने में देर नहीं लगेगी। इस बैठक में चीन-रूस के बीच साइबेरिया में एक पाइपलाइन बनाने पर बनी सहमति भी है, जिससे रूसी गैस मंगोलिया से होते हुए चीन पहुँच सकेगी। जहाँ इस यात्रा में जिनपिंग ने चीन और रूस को महान् पड़ोसी शक्तियाँ और व्यापक रणनीतिक साझेदार बताया, वहीं पुतिन ने चीन को रूस का सबसे प्रमुख व्यापारिक साझेदार कहा।
पुतिन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पश्चिमी देशों पर यूक्रेन को न्यूक्लियर कंपोनेंट वाले हथियार देने का आरोप दोहराया। साथ ही पुतिन ने कहा है कि अगर ब्रिटेन ने डिप्लीटेड यूरेनियम (कम रेडियोधर्मी) से बने हुए गोले यूक्रेन भेजे, तो रूस जवाब देने के लिए विवश हो जाएगा। उधर ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि डिप्लीटेड यूरेनियम एक मानक कंपोनेंट है, जिसका परमाणु हथियारों से कोई सम्बन्ध नहीं है। ब्रिटेन ने चैलेंजर दो टैंकों के साथ-साथ कवच में छेद करने वाले गोले भी यूक्रेन भेजने का फ़ैसला किया है। दरअसल डिप्लीटेड यूरेनियम हथियार या रिएक्टर फ्यूल के लिए इस्तेमाल किये गये प्राकृतिक यूरेनियम का बचा हुआ पदार्थ होता है। ठोस स्वरूप में इस पदार्थ की रेडियोधर्मिता अपेक्षाकृत रूप से कम होती है। हालाँकि यह काफ़ी भारी पदार्थ है और शीशे (लेड) की तुलना में ये 1.7 गुना घना पदार्थ है।
तनाव में ड्रोन की भूमिका
दोनों देशों के बीच तब तनाव अचानक बढ़ गया, जब मार्च के दूसरे हफ़्ते काला सागर के ऊपर रूसी जेट विमान और अमेरिकी ड्रोन में टक्कर की घटना हुई। याद कीजिए वह भी एक दुर्घटना ही थी, जिसने पहले विश्व युद्ध की शुरुआत की थी। ऐसे में यदि कोई गम्भीर तनाव उभरता है, तो अंजाम ख़ेतरनाक हो सकते हैं। घटना के बाद रूस ने इसे उकसावे वाली कार्रवाई बताया। उधर अमेरिका का कहना था कि उनका ड्रोन अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में उड़ रहा था। घटना के बाद अमेरिका ने रूस के राजदूत को तलब कर अपना विरोध दर्ज कराया।
यह घटना निश्चित रूप से सामान्य नहीं थी। इससे अगले ही दिन अमेरिका ने काला सागर क्षेत्र में सर्विलांस ड्रोन की उड़ानें फिर से शुरू कर दीं। रूसी लड़ाकू जेट ने अमेरिकी निगरानी ड्रोन को जब मार गिराया था, तो उसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। ज़ाहिर है काला सागर के पास ड्रोन उड़ाने से तनाव और बढ़ सकता है। अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि उनके एक आरक्यू-4 ग्लोबल हॉक ने इस क्षेत्र में एक मिशन के लिए उड़ान भरी जो उस घटना के बाद पहली ड्रोन उड़ान थी। पेंटागन के अधिकारियों ने ज़ोर देकर कहा कि एक घटना वॉशिंगटन को इस तरह के मिशनों को उड़ाने से नहीं रोक नहीं सकती।
अमेरिकी के एमक्यू-9 ड्रोन को रूसी जेट के मार गिराने के बाद रूस ने इसे महज़ एक हादसा बताया था। हालाँकि इसके बाद पेंटागन ने 42 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया, जिसमें एक रूसी एसयू-27 लड़ाकू जेट उस ड्रोन के बहुत क़रीब आता दिख रहा था और ड्रोन के पास वह जेट ईंधन भी डंप कर रहा था। वीडियो के आख़िर में ड्रोन के क्षतिग्रस्त होकर काला सागर में गिरने की तस्वीरें हैं। अंतरराष्ट्रीय जल सीमा पर हुई इस घटना से संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच सीधे टकराहट बढ़ गयी। वैसे दोनों एक साल से तनाव है और रूस कई बार अमेरिका को हमले की धमकी दे चुका है। रूसी अधिकारियों का कहना है कि वे काला सागर से अमेरिकी ड्रोन का मलबा बरामद करने की कोशिश करेंगे।
अमेरिकी सेना ने कहा कि रूसी लड़ाकू विमान ने मानव रहित विमान पर ईंधन डाला, जो इसके ऑप्टिकल (नज़र रखने सम्बन्धी) उपकरणों को देखने से रोकने और इसे क्षेत्र से बाहर निकालने और इसके प्रोपेलर को बाधित करने का स्पष्ट प्रयास था। घटना के बाद रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने रूसी लड़ाकू जेट विमानों के साथ मुठभेड़ के बाद अमेरिकी ड्रोन के नष्ट होने के बारे में अपने रूसी समकक्षों से बात की।
रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू और रूसी जनरल स्टाफ के प्रमुख जनरल वालेरी गेरासिमोव के साथ अक्टूबर के बाद पहली बार कॉल की गयी। विमानों के ख़ेतरनाक तरीक़ै से एक-दूसरे के सामने आने के प्रयास असामान्य नहीं हैं। यूक्रेन में युद्ध के बीच हुई इस घटना ने चिन्ता बढ़ायी है कि ऐसे मामले अमेरिका और रूस को सीधे संघर्ष के क़रीब ला सकते हैं। इस घटना के बाद दोनों देशों के रक्षा और सैन्य नेतृत्व के बीच हुई यह बातचीत इस मामले की गम्भीरता को दिखाती है।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने ऑस्टिन के साथ फोन पर हुई बातचीत को लेकर अपनी रिपोर्ट में कहा कि शोइगू ने अमेरिका पर यूक्रेन में उसके (रूस के) सैन्य अभियानों के कारण क्रेमलिन की ओर से लगाये गये उड़ान प्रतिबंधों की अनदेखी करके घटना को भडक़ाने का आरोप लगाया। रूस ने ‘रूसी संघ के हितों के ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया गतिविधियों में तेज़ी’ का भी आरोप लगाया। ज़ाहिर है इस घटना को ऐसी ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता है।
चीन के ड्रोन यूक्रेन को
रूस पर यूक्रेन से युद्ध करने के लिए अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। यह माना जाता है कि चीन इसका फ़ायदा कमाने में जुटा है। रिपोट्र्स पर भरोसा किया जाए, तो चीन ने रूस ही नहीं यूक्रेन को भी अपने ड्रोन बेचे हैं। रूस से दोस्ती के साथ-साथ चीन का यूक्रेन से भी रक्षा समझौता है। यह भेद तब खुला जब यूक्रेन ने चीनी कम्पनी पर उसे दिये जाने वाले ड्रोन रूस को भी बेचने का आरोप लगाया।
रिपोट्र्स के मुताबिक, चीनी कम्पनी डीजेआई के बनाये ड्रोन का इस्तेमाल यूक्रेन ने रूस के ख़िलाफ़ युद्ध में किया है। यूक्रेन के उप-प्रधानमंत्री मायखाइलो फेडेरोव के मुताबिक, यूक्रेन ने डीजेआई से 2372 क्वाडकॉप्टर और 11 मिलिट्री अनमैंड एरियल व्हीकल ड्रोन क़रीब 513 अरब रुपये में ख़ेरीदे थे। हालाँकि डीजेआई अपने ड्रोन यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल इनकार करती है और उसका कहना है कि वह सेना के इस्तेमाल वाले ड्रोन नहीं बनाती। यूक्रेन चीन से तुरन्त ही रूस के इन ड्रोन के इस्तेमाल पर बैन लगाने की माँग कर चुका है।
चीन और रूस की दोस्ती का भारत पर असर
यूक्रेन युद्ध के बाद भारत के रूस के नज़दीक आने को लेकर पश्चिम और भारत में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आयी हैं, जिनमें एक यह भी थी कि चीन के रूस के नज़दीक जाने से भारत के हितों को नुक़सान होगा। भारत का चीन के साथ तनाव जारी है। ऊपर से जिनपिंग की यात्रा के तुरन्त बाद ही यह ख़ेबर आयी कि रूस की तरफ़ से भारत को मिलने वाले एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम सहित अन्य सैन्य उपकरणों की सप्लाई में और देरी हो सकती है, भले इसका कारण यूक्रेन युद्ध को बताया गया है।
हालाँकि रूस ने जिनपिंग के रूस दौरे का सम्बन्ध भारत से जोडऩे पर तीखी प्रतिक्रिया दी। रूस ने कहा- ‘हमें उन एक्सपट्र्स पर तरस आता है, जो भारत रूस रक्षा सम्बन्धों के बारे में ऐसा सोच रहे हैं। रूस-चीन सम्बन्धों को भारत-रूस सम्बन्धों से जोडक़र नहीं देखा जाना चाहिए।’ दोनों देशों के साथ रूस के रिश्ते अलग-अलग हैं। पश्चिमी देशों का दावा है कि जिनपिंग की यात्रा शान्ति के लिए कम, बल्कि रूस का समर्थन करने के लिए ज़्यादा थी। उधर भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने कहा- ‘जिनपिंग की रूस यात्रा के परिणामों को लेकर इन दिनों विश्लेषणों की बाढ़ आयी हुई है। ऐसा लगता है कि भारत के कई प्रतिष्ठित विशेषज्ञ रूस-चीन के सम्बन्धों को रूस-भारत स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप को नुक़सान पहुँचाने वाला मान रहे हैं। यह उनकी निजी सोच का मामला है; लेकिन हमें उन पर तरस आता है।’
दरअसल भारत में भी बहुत-से लोग मानते हैं कि यदि चीन भारत पर युद्ध थोपता है, तो ऐसी स्थिति में रूस निष्पक्ष रहेगा और भारत के साथ खड़ा नहीं होगा। सन् 1962 के युद्ध में ऐसा ही हुआ था, जबकि रूस के साथ भारत के बहुत बेहतर रिश्ते थे।
रूस के साथ कौन?
यह दिलचस्प बात है कि साथ यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के जो देश साथ खड़े हैं, उनमें से ज़्यादातर उसके पुराने साथी हैं; लेकिन यह सभी नेता लम्बे समय से अपने देशों में सत्ता में हैं और उन्हें तानाशाह का दर्जा दिया जाता है। चीन के शी जिनपिंग के अलावा उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, ईरान के अली खामेनेई, सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह, सीरिया के बशर अल असद, बेलारूस के अलेक्जेंडर लुकाशेंको, एरिट्रिया के इसाईस अफवेर्की, वेनेजुएला के निकोलस मादुरो भी शामिल हैं। रूस-यूक्रेन का असर है कि अपनी दुश्मनी भुलाकर सऊदी अरब और ईरान बातचीत के लिए तैयार दिख रहे हैं। माली, सूडान, क्यूबा और निकारागुआ जैसे देश भी रूस के समर्थन में दिख रहे हैं और यह सभी राष्ट्र तानाशाहों के अधीन हैं। उपरोक्त देशों के कुछ ऐसे शासक हैं, जिन पर अपने देश में जनता के असन्तोष और विरोधियों की आवाज़ दबाने के लिए पुतिन की निजी पैरामिलिट्री कम्पनी वैगनर की सेवा लेने के आरोप हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध की क़ीमत
रूस-यूक्रेन युद्ध के मानवीय नुक़सान के दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं। लेकिन आर्थिक नुक़सान के जो आँकड़े सामने आये हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि इसके पुनर्निर्माण अर्थात् सडक़ों, बिजली-पानी की लाइनों की बहाली इमारतों को फिर खड़ा करने और स्थिति को किसी हद तक पुरानी हालत में लाने पर 411 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का ख़ेर्चा आएगा। यह विश्व बैंक का अनुमान है और फरवरी के आख़िर तक हुए नुक़सान का है। विश्व बैंक में यूरोप और सेंट्रल एशिया की उपाध्यक्ष एना जेर्डे के मुताबिक, इतने सारे पैसे एक ही दिन में मिल जाएँ, तो भी पुरानी स्थिति बहाल करने में कुछ महीने नहीं बल्कि चार-पाँच साल लग जाएँगे।
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में ही कीव (यूक्रेन) को क़रीब 14 बिलियन डॉलर की ज़रूरत पड़ेगी, ताकि वह शुरुआती मरम्मत के काम कर सके। यूक्रेन की सरकार ने ख़ुद नुक़सान का ब्योरा विश्व बैंक को दिया था, जिसे आधार पर नुक़सान और मरम्मत के यह अनुमानित आँकड़े बनाये गये हैं।
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, रूस-यूक्रेन संघर्ष के एक साल के भीतर अमेरिका ने यूक्रेन को जो सैन्य सहायता दी उस पर 1965-75 के युद्ध के दौरान वियतनाम में किये ख़ेर्च की वार्षिक औसत के मुक़ाबले आधे से कुछ अधिक ही ख़ेर्च किया था। जर्मनी स्थित कील इंस्टीट्यूट फॉर द वल्र्ड इकोनॉमी (आईएफडब्ल्यू) की एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम में एक साल में औसतन क़रीब 92 बिलियन डॉलर ख़ेर्च करने वाले अमेरिका ने यूक्रेन में इतने समय में क़रीब 47 बिलियन डॉलर का ख़ेर्च किया है।
रूस की मददगार हैं अमेरिकी कम्पनियाँ
अमेरिका से जबरदस्त तनाव के बाद भी रूस ने कैसे उसकी कम्पनियों में अपनी पैठ बनायी हुई है, यह इस बात को ज़ाहिर हो जाता है कि अमेरिका की कम्पनियों ने हाल के महीनों में रूस को सीक्रेट टेक्नोलॉजी बेची है। कुछ तो ऐसी कम्पनियों को भी चिप दी गयी हैं, जो सीधे तौर पर रूसी सेना के साथ जुड़ी हुई हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह टेक्नालॉजी दूसरे देशों में बैठे बिचौलियों ने ख़ेरीदी, जिससे वह पकड़ में नहीं आयीं।
यूक्रेन के आरोप पर भरोसा करें, तो इंटेल, क्वालकॉम, ब्रॉडकॉम कम्पनियाँ कथित रूप से इसमें शामिल हैं। यह बात सामने आने के बाद कि ये कम्पनियाँ रूस को सीक्रेट चिप दे रही हैं। यूक्रेन ने उनसे ऐसी चिप न बनाने की गुहार लगायी, जो रूस के जीजीएसएनएस (ग्लोनास सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम) को सपोर्ट करती हों। हालाँकि यूक्रेन के आरोप से यह कम्पनियाँ इनकार कर रही हैं। चूँकि यह कम्पनियों अमेरिका में नियमों के मुताबिक, काम कर रही हैं। लिहाज़ा उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।