जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के आरोपों से राजनीति गर्म
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को आत्मघाती आतंकी हमले में देश के 40 जवान शहीद हो गये थे। अब चार साल बाद उस समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्य पाल मलिक ने इसे लेकर कुछ गम्भीर आरोप लगाये हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि सीआरपीएफ की तरफ़ से जवानों को हवाई जहाज़ से श्रीनगर ले जाने का केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा गया आग्रह नहीं माना गया।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, इस घटना से पहले एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में किसी बड़ी आतंकी वारदात के 11 इनपुट्स केंद्र को दिये थे; लेकिन इसके बावजूद यह घटना हुई। विरोधी दल इसे लेकर मोदी सरकार को घेर रहे हैं; क्योंकि मलिक के अपने बयान में जो बातें कहीं हैं, उनसे सुरक्षा चूक के साथ-साथ कई गम्भीर राजनीतिक सवाल भी उठ खड़े हुए हैं। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा भाजपा के गले की फाँस बन सकता है। मलिक एक ज़िम्मेदार पद पर रहे हैं और उनके आरोपों को यूँ ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता। दूसरे जम्मू-कश्मीर में बतौर राज्यपाल उनकी नियुक्ति केंद्र में मोदी सरकार ने ही की थी, जिससे ज़ाहिर होता है कि केंद्र को मलिक की क़ाबिलियत पर पूरा भरोसा था। मलिक के घटना के दिन के टीवी चैनलों से बातचीत के अंश सुनने से भी ज़ाहिर हो जाता है कि उन्होंने 14 फरवरी को ही इसे एक सरकारी सुरक्षा चूक बताया था और इसकी ज़िम्मेदारी लेने की बात कही थी।
सत्यपाल मलिक का यह आरोप भी बहुत गम्भीर है कि उनकी घटना के बाद जब प्रधानमंत्री मोदी से बात हुई थी और उन्हें यह बताया था कि यह हमारी चूक से हुआ है, तो उन्हें प्रधानमंत्री की तरफ़ से कथित तौर पर ‘चुप रहने’ को कहा गया था। क्यों कहा गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। प्रधानमंत्री उस समय सफारी में शूटिंग कर रहे थे। मलिक के पुलवामा को लेकर आरोप न सिर्फ़ एक गम्भीर सुरक्षा चूक की तरफ़ संकेत देते हैं, बल्कि उन्होंने ढके-छिपे शब्दों में कुछ राजनीतिक बातें भी कहीं हैं, जिन्हें शायद आने वाले समय में कोई डी-कोड करे। यदि ऐसा होता है, तो यह एक बड़ा राजनीतिक तूफ़ान भी ला सकता है।
पूर्व राज्यपाल मलिक के आरोप कितने गम्भीर हैं, यह इस बात से साबित हो जाता है कि पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल शंकर रॉय चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और एनएसए अजित डोवल को पुलवामा हमले की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा- ‘पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ जवानों की मौत की पहली ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार की है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल सलाह देते हैं।’ राजनीतिक नेताओं की तरफ़ से भी आरोपों की बौछार हुई है। एनसीपी प्रमुख और नरसिम्हा राव सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके शरद पवार ने भी केंद्र सरकार पर तीखा राजनीतिक हमला किया। उन्होंने कहा- ‘जो सरकार अपने सैनिकों की सुरक्षा नहीं करती, उसे सत्ता में रहने का हक़ नहीं है।’ पवार का यह बयान महाराष्ट्र के पुणे ज़िले की पुरंदर तहसील में एक किसान सभा को संबोधित करने के वक़्त आया।
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे लेकर कहा- ‘केंद्र को सत्यपाल मलिक की पुलवामा हमले पर कही बातों को गम्भीरता से लेना चाहिए। वह बहुत वरिष्ठ नेता हैं और मैंने उन्हें कभी झूठ बोलते नहीं सुना। पुलवामा एक दर्दनाक घटना थी और यदि हमारी ओर से हुई कुछ चूक के कारण यह हादसा हुआ, तो इस मामले में कार्रवाई की जानी चाहिए।’
सत्यपाल मलिक यह आरोप लगाने के बाद चुप नहीं बैठे हैं। वह लगातार सक्रिय हैं और ख़ास से लेकर किसान जत्थेबंदियाँ उनके साथ खड़ी दिखती हैं। मलिक राजनीति में रहे हैं। लिहाज़ा आरोपों के बाद उनके सक्रिय रहने में कुछ भी अनोखा नहीं है। हाँ, एक चीज़ ज़रूर है कि सत्यपाल मलिक अपने आरोपों से फिरे नहीं हैं और लगातार केंद्र सरकार पर हमले कर रहे हैं। वे संगठनों के साथ कार्यक्रम कर रहे हैं और किसानों की आवाज़ उठा रहे हैं। दिल्ली में जब घर के सामने पार्क में मलिक ने कार्यक्रम करने की कोशिश की तो पुलिस ने यह कहकर इसकी इजाज़त देने से इनकार कर दिया कि उन्होंने इसकी मंज़ूरी नहीं ली है। बाद में मलिक ने कहा- ‘मुझे पुलिस कर्मियों ने बताया था कि मेरा कार्यक्रम रुकवाने के लिए ऊपर से दबाव है।’
ज़ाहिर है मलिक मैदान से हटने वाले नहीं लग रहे। यह सिलसिला भाजपा की बेचैनी बढ़ा रहा है, क्योंकि मलिक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हैं और 2009 में उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष रहने के अलावा भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के कुछ साल के बाद मलिक को बिहार जैसे अहम राज्य का राज्यपाल बनाया गया था। इसके बाद सन् 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का ज़िम्मा दिया गया। मलिक भाजपा में ही नहीं रहे हैं, बल्कि समाजवादी पार्टी में भी रहे हैं। किसानी मुद्दों को मलिक हमेशा से उठाते रहे हैं। ऐसे में उनका केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आना महत्त्वपूर्ण तो है ही; लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या मलिक किसी ख़ास राजनीतिक दल में आने की तैयारी में हैं ?
फिर चर्चा में पुलवामा
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को जब आतंकी हमला हुआ था और उसके बाद भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में कार्रवाई की थी, तब देश में लोकसभा चुनाव का माहौल बनना शुरू हो चुका था। लेकिन पुलवामा और उसके बाद जो कुछ हुआ, उसने चुनाव की पूरी दिशा बदल दी और भाजपा ने बेहिचक इस मुद्दे को चुनाव का मुद्दा बना दिया। मलिक के पुलवामा हमले को लेकर जो सवाल हैं, उनमें उन्होंने ढके-छिपे रूप से राजनीतिक बातें भी कही हैं। इसमें कोई दो-राय नहीं कि पुलवामा हमले को लेकर जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान ने देश की राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है। मलिक ने और भी बहुत-सी बातें कहीं हैं जो राजनीतिक रूप से 2024 से पहले भाजपा के लिए दिक़्क़त पैदा कर सकती हैं, क्योंकि विपक्ष ने पहली बार इस तरह के मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री और एनडीए सरकार पर इस तरह का हमला बोला है। पुलवामा को लेकर पहले भी कई आरोप लगते रहे हैं, जिनमें मुख्य यह है कि सीआरपीएफ के जवानों को सडक़ के रास्ते क्यों भेजा गया, जबकि उनकी तरफ़ से हवाई जहाज़ के लिए लिखित आग्रह आया था। मलिक ने भी यह स्वीकार किया है कि ऐसा लिखित आग्रह सीआरपीएफ की तरफ़ से पुलवामा की घटना से पहले ही भेजा गया था।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय एजेंसियों ने इस घटना से पहले के दो महीनों में एक के बाद एक 11 अलर्ट जारी करके आतंकियों की तरफ़ से किसी बड़ी वारदात की तैयारी को लेकर जारी किये थे। एजेंसियों के यह अलर्ट आतंकियों की पाकिस्तान में बैठे आतंकी सरगनाओं से बातचीत के इंटेरसेप्टस में सामने आये थे। पुलवामा की को घटना हुई थी उस समय जम्मू से 78 वाहनों में 2500 के क़रीब सीआरपीएफ के जवान बसों में श्रीनगर जा रहे थे। इससे पहले भी सीआरपीएफ ने एंटी-टेररिस्ट ट्रेनिंग में ख़ामियों को लेकर गृह मंत्रालय को कई बार लिखा था। पुलवामा आतंकी हमले को लेकर मलिक ने कहा कि कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों के क़ाफ़िले पर हुआ आतंकी हमला, जिसमें 40 जवान शहीद हुए थे; सरकारी ग़लती के चलते हुआ था। मलिक के मुताबिक, ‘जब उन्होंने इसके बारे में प्रधानमंत्री और एनएसए अजित डोवल को बताया, तब उन लोगों ने उन्हें (मलिक) चुप रहने को कहा।’
मलिक ने दावा किया कि सीआरपीएफ ने उनके लोगों को लाने-ले जाने के लिए एयरक्राफ्ट माँगा था, क्योंकि इतना बड़ा क़ाफ़िला कभी रोड से नहीं जाता। उनके मुताबिक, सीआरपीएफ ने गृह मंत्रालय से पूछा था; लेकिन उन्होंने एयरक्राफ्ट देने से मना कर दिया था। मलिक के मुताबिक, ‘अगर वे (सीआरपीएफ) मुझसे पूछते, तो मैं उनको (सीआरपीएफ) एयरक्राफ्ट देता; कैसे भी देता। सिर्फ़ पाँच एयरक्राफ्ट की ज़रूरत थी। उनको एयरक्राफ्ट नहीं दिया गया।’ निश्चित ही मलिक का यह आरोप बेहद गम्भीर है। यदि यह सच है तो साफ़ है कि सैनिकों की जान दाँव पर लगायी गयी। मलिक का इसके बाद का ख़ुलासा और ज़्यादा चौंकाने वाला है। मलिक ने दावा किया कि ‘प्रधानमंत्री मोदी ने इस हमले के बाद जिम कार्बेट पार्क से जब मुझे कॉल की, तो मैंने प्रधानमंत्री से कहा कि ये हमारी ग़लती से हुआ है। इस पर उन्होंने मुझसे कहा कि तुम चुप रहो और किसी से कुछ न कहो।’ यदि मलिक का दावा सच है, तो सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों कहा? यही नहीं, मलिक ने अपने बयान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल का भी ज़िक्र किया। देखा जाए, मलिक के इस सारे बयान (इंटरव्यू) में जो बात सबसे महत्त्वपूर्ण है वह यह है जब उन्होंने कहा- ‘मुझे समझ आ गया था कि सरकार पूरा ठीकरा पाकिस्तान पर फोडऩे वाली है, ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव में फ़ायदा मिल सके। अजित डोवल ने भी मुझसे चुप रहने को कहा। मैं समझ गया था कि मामला पाकिस्तान की ओर जाना है।’ हालाँकि भाजपा नेता अमित मालवीय ने कहा- ‘कोई उनको (सत्यपाल मलिक) सीरियसली नहीं लेता। यहाँ तक कि तब भी, जब वो अपने आरोप वापस ले लेते हैं। यह उनकी विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल है।’
भ्रष्टाचार के भी लगाये आरोप
मलिक ने सिर्फ़ पुलवामा की ही बात नहीं की है। उन्होंने भ्रष्टाचार की बात भी कही है। उनके सनसनीख़ेज़ आरोपों के बाद कई घटनाएँ हुईं। सीबीआई ने मलिक को समन भेजा। 28 अप्रैल को सीबीआई मलिक के घर पूछताछ के लिए पहुँची। हालाँकि बाद में मलिक ने साफ़ किया कि सीबीआई उनके यहाँ आएगी, न कि वह सीबीआई के यहाँ जाएँगे। दरअसल सीबीआई मलिक से बीमा घोटाले में भ्रष्टाचार को लेकर कुछ स्पष्टीकरण चाहती है और दूसरी बार मलिक से पूछताछ कर रही है। हालाँकि इसे मलिक पर दबाव डालने की रणनीति के रूप में देखा गया।
सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर में दो परियोजनाओं में गड़बडिय़ों को लेकर मामला दर्ज किया था। इस मामले को लेकर पूर्व राज्यपाल मलिक ने दावा किया था कि दो फाइलें साइन करने के लिए 150-150 करोड़ रुपये रिश्वत की पेशकश की गयी थी। सीबीआई ने पिछले साल अक्टूबर में भी उनसे पूछताछ की थी। अब सीबीआई के उन्हें बुलाने को लेकर मलिक ने कहा- ‘मैंने सच बोलकर कुछ लोगों के पाप उजागर किये हैं। शायद, इसलिए बुलावा आया है। मैं किसान का बेटा हूँ। घबराऊँगा नहीं। सच्चाई के साथ खड़ा हूँ।’
मलिक ने आरोप लगाया है कि उनके राज्यपाल रहते 23 अगस्त, 2018 से 30 अक्टूबर, 2019 के बीच उनके पास मंज़ूरी के लिए दो फाइलें आयी थीं। इनमें से एक फाइल अंबानी की और दूसरी आरएसएस से जुड़े व्यक्ति की थी, जो पिछली महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री थे और प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) का बहुत क़रीब होने का दावा करते थे। पूर्व राज्यपाल ने अपने दावे में कहा- ‘मुझे दोनों विभागों के सचिवों ने सूचित किया था कि ये एक घोटाला है और मैंने उसके अनुरूप ही दोनों डील्स को रद्द कर दिया था। सचिवों ने मुझसे कहा था कि आपको हर फाइल को पास करने के लिए 150 करोड़ रुपये मिलेंगे।’
हालाँकि मलिक के आरोपों के बाद माधव ने इसे निराधार बताया और मलिक के ख़िलाफ़ मानहानि का नोटिस भी भेजा है। यह सारा घटनाक्रम के बीच सत्यपाल मलिक को जब सीबीआई ने रिलायंस इंश्योरेंस केस में तलब किया, तो कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा- ‘आख़िरकार प्रधानमंत्री मोदी से रहा न गया। सत्यपाल मलिक ने देश के सामने उनकी कलई खोल दी। अब सीबीआई ने मलिक जी को बुलाया है। ये तो होना ही था।’ यही नहीं मलिक ने यह भी दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर से जब धारा-370 हटायी गयी, तो उससे पहले उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं दी गयी थी। हालाँकि वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे। मलिक का कहना है कि वे व्यक्तिगत रूप से धारा-370 हटाये जाने के तो हक़ में थे; लेकिन जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा $खत्म करने के पक्ष में नहीं थे।
राहुल गाँधी पर मलिक की राय
‘‘संसदीय लोकतंत्र में उन्हें बोलने नहीं देने से ज़्यादा ग़लत कभी नहीं हुआ था। वे (सत्ताधारी) राहुल गाँधी के बारे में बहुत असहज हो गये हैं, क्योंकि वह (राहुल) पिछले कुछ समय से बहुत प्रासंगिक बातें कह रहे हैं। अडानी सही मुद्दा है, जिसे उन्होंने उठाया है। वे (मोदी) उनके (राहुल) सवालों का जवाब नहीं दे सकते। एक बेचैनी उनमें है। मैं देश को नहीं समझता; लेकिन (भारत जोड़ो) यात्रा के बाद लोग उन्हें पसन्द करने लगे हैं। वे 3,500 किलोमीटर पैदल चले और लोगों से मिले। जब वे (राहुल) श्रीनगर आये, तो पूरा श्रीनगर उन्हें देखने के लिए बाहर आ गया और उन्होंने (राहुल) बिना छाते के बर्फ़बारी में लोगों को सम्बोधित किया।’’ याद रहे सत्यपाल मलिक कह चुके हैं कि वह कोई राजनीतिक दल ज्वाइन नहीं करेंगे। न चुनाव लड़ेंगे। हालाँकि उन्होंने 2024 के चुनाव में किसान की राजनीति करने वालों के अलावा सपा, कांग्रेस और अजीत सिंह के बेटे के लिए प्रचार करने की बात ज़रूरी कही है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति से मिलने वालों की लिस्ट पीएमओ से मंज़ूर होती है।
कांग्रेस के सवाल
इसमें कोई दो-राय नहीं कि पुलवामा हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जिसमें देश के 40 वीर सैनिक शहीद हुए थे। अब चार साल बाद फिर उस पर सियासत शुरू हो गयी है। मलिक के आरोपों को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार से पाँच सवाल किये हैं :-
मोदी सरकार ने सीआरपीएफ जवानों को एयरक्राफ्ट क्यों नहीं दिये?
ख़ुफ़िया इनपुट और जैश की धमकी को अनदेखा क्यों किया?
आतंकियों को भारी मात्रा में आरडीएक्स कैसे मिला? पुलवामा हमले की जाँच कहाँ तक पहुँची?
एनएसए अजित डोवल और तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह की क्या ज़िम्मेदारी तय की गयी?
पुलवामा हमले के बाद संवैधानिक पद पर बैठे गवर्नर को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘चुप रहने’ की धमकी क्यों दी?
“पुलवामा हमले के समय सैनिकों को आवश्यक उपकरण और विमान उपलब्ध नहीं कराये गये थे, इसलिए उन्हें अपनी जान गँवानी पड़ी। जब सत्यपाल मलिक ने देश के एक बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से इस बारे में बात की, तो उन्हें इस बारे में बात नहीं करने के लिए कहा गया। देश के सैनिकों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है और अगर सरकार सैनिकों की सुरक्षा नहीं करने का स्टैंड ले रही है, तो हम सभी को यह स्टैंड लेना होगा कि सरकार को सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है।’’
शरद पवार
एनसीपी प्रमुख
“जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने इस डर के समय में बहुत साहस दिखाया है और पूरा देश उनके साथ है।’’
अरविंद केजरीवाल
मुख्यमंत्री, दिल्ली
“आपको उनसे (मलिक से) यह भी पूछना चाहिए कि उनको ये सारी बातें हमारा साथ छोडऩे के बाद ही क्यों याद आ रही हैं? उनकी अंतरात्मा उस वक़्त क्यों जागृत नहीं होती, जब लोग सत्ता में होते हैं? मलिक की विश्वसनीयता पर जनता को सोचना चाहिए। सत्यपाल मलिक की बात सही है, तो वे गवर्नर रहते हुए चुप क्यों रहे? गवर्नर रहते हुए ही इस विषय पर बोलना चाहिए था। जो उन्होंने कहा, ये सब सार्वजनिक चर्चा के विषय नहीं हैं।’’
अमित शाह
गृह मंत्री
“यह (हमला) एक धक्का था। हमले के पीछे ख़ुफ़िया विफलता के लिए एनएसए को भी उनके हिस्से का दोष मिलना चाहिए। क़ाफ़िले को ऐसे राजमार्ग से नहीं जाना चाहिए था, जो पाकिस्तान सीमा के इतने क़रीब हो। सैनिकों ने हवाई यात्रा की होती, तो जानमाल के नुक़सान को टाला जा सकता था। जिस क्षेत्र में पुलवामा आतंकी हमला हुआ था, वह हमेशा एक बहुत ही जोखिम भरा क्षेत्र रहा है। यह एक ग़लती है, जिससे सरकार अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश कर रही है। विफलता का कोई दावेदार नहीं होता है।’’
जनरल (सेवानिवृत्त)
शंकर रॉय चौधरी
पूर्व आर्मी चीफ
“प्रधानमंत्री मोदी को भ्रष्टाचार से कोई ख़ास नफ़रत नहीं है। अगस्त 2020 में मुझे गोवा से हटाकर मेघालय इसलिए भेजा गया था, क्योंकि मैंने वहाँ भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को प्रदेश सरकार की ओर से कई मामलों को नज़रअंदाज़ किये जाने वाले बातें बतायी थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कश्मीर के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं होता। प्रधानमंत्री कश्मीर को लेकर ग़फ़लत में हैं। फरवरी, 2019 में पुलवामा में जो कुछ हुआ था, उसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय की बहुत बड़ी ग़लती थी। मैंने केंद्र सरकार से सीआरपीएफ जवानों के लिए विमान माँगा था; लेकिन गृह मंत्रालय ने इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद सीआरपीएफ के जवानों को सडक़ मार्ग से भेजा गया। सडक़ की पहले जाँच पड़ताल नहीं की गयी। इसी का नतीजा है कि पुलवामा हमला हुआ। हमले के तुरन्त बाद प्रधानमंत्री मोदी से मेरी फोन पर बातचीत हुई थी और इस मामले को लेकर ज़्यादा नहीं बोलने की मुझे हिदायत दी गयी थी। अजित डोवल ने भी मुझे पुलवामा हमले पर चुप रहने को कहा था।’
सत्यपाल मलिक
पूर्व राज्यपाल
“सत्यपाल मलिक जी ने जो कहा, वह डरावना है। केंद्र सरकार ने केवल मतदाताओं के ध्रुवीकरण और नक़ली राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के लिए सीआरपीएफ जवानों की सुरक्षा की अनदेखी की। हमने 2019 में भी इस मुद्दे को उठाया था। हालाँकि आज सच्चाई सामने आ गयी है।’’
ममता बनर्जी
मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल