जो युवा आज सपा के गले की हड्डी बन गए हैं, जिनसे आज मुलायम सिंह बार-बार अनुशासित रहने की अपील कर रहे हैं कभी वे मुलायम के आह्वान पर हल्ला बोला करते थे. गोविंद पंत राजू का विश्लेषण
23 मार्च 1997 की सुबह विक्रमादित्य मार्ग स्थित लोहिया ट्रस्ट की इमारत के प्रांगण में लोहिया जयन्ती के कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं. लोहिया ट्रस्ट के पिछवाड़े वाले बरामदे में कुरता पायजामा पहने एक नौजवान हाथ में कागज लेकर उसे पढ़ते-पढ़ते याद करने की कोशिश कर रहा था. वह बार बार रूमाल से अपने माथे का पसीना भी पोंछ रहा था. तभी उसकी नजर हम पर पड़ी और वह थोड़ा शर्माते हुए सफाई देने लगा, ‘नेताजी भी रहेंगे. उनके सामने ही भाषण देना है. जरा भी गलती हो गई तो सारी मेहनत बर्बाद हो जायगी. इसीलिए ठीक से याद करने की कोशिश कर रहा हूं.’ यह नौजवान समाजवादी युवजन सभा का प्रदेश पदाधिकारी था और नेता जी के सामने लोहिया जी के बारे में ठीक से बोल सके, इसके लिए किसी बड़े नेता से लिखवाए गए भाषण को रट रहा था.
नवम्बर 2011 की एक और सुबह. समाजवादी पार्टी के कार्यालय में अखिलेश यादव के कमरे के अंदर 5-6 युवाओं की एक मंडली दो तीन कम्प्यूटर और लैपटाप पर काम करते हुए गंभीर चिन्तन में लीन थी. समाजवादी पार्टी की भावी योजनाओं पर विचार करते हुए, पहले दृश्य वाला नौजवान अब भी समाजवादी पार्टी से जुड़ा हुआ है और विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका है जबकि दूसरे दृश्य वाले नौजवान अब उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री की कोर टीम के सदस्य माने जाते हैं.
इन दो उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी के लिए नौजवानों की क्या अहमियत है. मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना के वक्त से ही युवाओं को न सिर्फ पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं दी थीं बल्कि पार्टी को आगे बढ़ाने में भी उनका खूब इस्तेमाल किया. मुलायम सिंह यादव छात्रों और युवाओं के बीच जाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद पर अपने पहले दो कार्यकालों में विश्वविद्यालयों में छात्रों के कार्यक्रमों में सबसे अधिक बार जाने वाले मुख्यमंत्री बन गए थे. मुलायम सिंह ने राममनोहर लोहिया की विचारधारा को जिन जिन क्षेत्रों में पूरी तरह अपनाया उनमें युवाओं से संबंधित विचारधारा भी एक थी. आज भी समाजवादी पार्टी के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में 25 फीसदी से अधिक ऐसे हंै जो छात्र या युवा राजनीति से किसी न किसी रूप में जुडे़ रहे हैं. अपने पिछले कार्यकाल में भी मुलायम ने युवा बेरोजगारों को 500 रुपये प्रतिमाह का बेराजगारी भत्ता देने की घोषणा कर युवाओं के प्रति अपने मोह का प्रमाण दिया था. लेकिन समाजवादी पार्टी की यही ताकत उसकी सबसे बड़ी मुसीबत भी है. पिछले कार्यकाल में इसी युवा शक्ति के कारण समाजवादी पार्टी को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था और उसे ‘गुण्डाराज’ जैसे तमगे भी मिले थे. इसी ताकत को नियंत्रित रखने के लिए मुलायम सिंह यादव अपने कार्यकाल के अंतिम छह महीने में अपने हर सार्वजनिक कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं से अनुशासन में रहने, पार्टी की छवि को सुधारने और जनता के बीच फिर से इज्जत वापस हासिल करने का प्रयास करने की भीख मांगते दिख रहे थे. लेकिन समाजवादी पार्टी की ‘ताकत’ पर इसका कोई असर नहीं हो पाया और उनका परिणाम समाजवादी पार्टी के 5 साल के निर्वासन के रूप में सामने आया.
अखिलेश यादव ने जो रणनीति बनाई थी उसमें युवाओं को बेलगाम न छोड़ने पर खास ध्यान दिया गया था. बावजूद इसके कानून का राज शत प्रतिशत स्थापित नहीं हो सका है
2011 में भी यही ‘ताकत’ एक बार फिर समाजवादी पार्टी को मजबूत करती दिखाई दी. लेकिन कहावत है कि दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है ठीक उसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी इस बार ‘ताकत’ के इस्तेमाल में कई सावधानियां रखीं. अखिलेश यादव के खेमे में चुनाव की जो रणनीति बनाई जा रही थी उसमें युवाओं को बेलगाम न छोड़ने पर खास ध्यान दिया गया. पार्टी से सक्रिय रूप से जुड़ने वाले युवा नेताओं की छवि का भी खासा ध्यान रखा गया और पूरे चुनाव अभियान में सबसे ज्यादा जोर इसी बात पर रहा कि इस बार अगर पार्टी सत्ता में आई तो शत प्रतिशत कानून का राज स्थापित किया जाएगा. अखिलेश की उदार और लचीली छवि के कारण भी युवाओं का जबर्दस्त ध्रुवीकरण पार्टी के पक्ष में हुआ. चुनाव अभियान के दौरान अखिलेश की सभाओं में युवाओं की सबसे अधिक उपस्थिति इसका प्रमाण थी. लोगों को भी लगने लगा था कि शायद इस बार सब कुछ बदल जाएगा.
लेकिन चुनावी नतीजे आने और सरकार बनने के शुरुआती दिन ही ऐसा लगने लगा कि मामला वही ‘ढाक के तीन पात’ वाला हो गया है. शपथ ग्रहण समारोह में समाजवादी पार्टी की ‘ताकत’ ने मंच पर कब्जा कर जिस तरह की उद्दण्डता दिखाई थी उसने अखिलेश जैसे ‘कूल’ मुख्यमंत्री को भी कठोर कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा. एक के बाद एक कार्यकर्ता और नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने, झंडे बैनर के इस्तेमाल के लिए कड़े नियम बनाने और समाजवादी कार्यकर्ताओं को साफ चेतावनी देने के बाद भी सब कुछ ठीक हो गया है, यह कहा नहीं जा सकता और यही बात अब समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती हो गयी है.
समाजवादी पार्टी यह बात भलीभांति जानती है कि उसकी राजनीति के लिए युवा कितने महत्वपूर्ण हैं. इसीलिए अपने घोषणा पत्र में भी उसने छात्र संघों की बहाली, बेरोजगारी के लिये भत्ता, खेलों के लिए विशेष प्रयास तथा स्कूल से कॉलेज स्तर तक वाद विवाद प्रतियोगिताओं के आयोजन आदि अनेक वायदे भी किए थे. सरकार बनते ही इनमें से कई वायदे पूरे भी कर दिए गए. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं, ‘युवा तो हमारी पार्टी का आधार हैं. नेता जी ने भी कहा है कि इस बार की जीत में युवाओं के संघर्ष का बड़ा योगदान है. समाजवादी पार्टी की संघर्षयात्रा में नौजवानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. नौजवानों के बिना समाजवादी पार्टी अधूरी है.’ मगर समाजवादी पार्टी का आधार कही जाने वाली युवा शक्ति पार्टी के लिये दुधारी तलवार की तरह है. समाज विज्ञानी डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, ‘छात्र संघों की बहाली बेशक स्वागत योग्य है लेकिन छात्रसंघों की गतिविधि कालेजों के भीतर तक ही सीमित रहे तो बेहतर होगा. यह अगर परिसर के बाहर फैल गई तो सत्ताधारी दल के लिए आफत बन सकती है.’
अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की लाल गांधी टोपी को लाल रंग की स्पोर्ट्स कैप में बदल कर पार्टी के युवा चेहरे को बाहर से बदलने का काम तो शुरू कर दिया है. मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर और समाजवादी पार्टी के लिए 2014 में दिल्ली की सत्ता का रास्ता तैयार करने वाले नायक के रूप में उनकी भूमिका की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे पार्टी की ‘ताकत’ पर कितनी लगाम रख सकते हैं और युवाओं की असीम ऊर्जा को किस हद तक सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं.