ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनने के बाद लिज़ ट्रस के सामने हैं ढेरों चुनौतियाँ
क्या ऋषि सुनक भारतीय मूल के नहीं होते, तो अपनी योग्यता के बूते ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गये होते? बहुत-से हलक़ों में यह सवाल रहे हैं कि रंगभेद ऋषि सुनक और प्रधानमंत्री की कुर्सी के बीच दीवार बन गया। सुनक या उनके समर्थकों ने अपनी हार से पहले या बाद में भले ऐसी कोई बात नहीं की; लेकिन जिस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सुनक के ख़िलाफ़ कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर अभियान चलाया, रंगभेद समर्थक नेताओं को विरोध के लिए आगे किया और सुनक की छवि बिगाडऩे की कोशिश की, उससे सुनक की हार में रंगभेद को एक कारण मानने वालों की कमी नहीं है।
भारतीय मूल के उद्यमी और कंजरवेटिव पार्टी के दानदाता लॉर्ड रामी रोजर ने तो सितंबर के शुरू में ही एक वीडियो जारी करके कहा था कि अगर ऋषि सुनक चुनाव हार जाते हैं, तो ब्रिटेन को रंगभेदी देश के रूप देखा जा सकता है। लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि यह आम चुनाव नहीं था, बल्कि सिर्फ़ कंजर्वेटिव पार्टी (ब्रिटेन की कुल आबादी का महज़ 0.25 फ़ीसदी) के भीतर का चुनाव था। आम चुनाव होते, तो शायद लिज़ पर सुनक भारी पड़ते।
वैसे लिज़ ट्रस और ऋषि सुनक के बीच मुक़ाबला कड़ा रहा। दोनों में 20,927 वोटों का अन्तर रहा। कंजर्वेटिव सांसदों की वोटिंग में सुनक शीर्ष पर बने हुए थे; लेकिन बाद में प्रतिनिधि समर्थन में वह पिछड़ गये। एक सर्वे कम्पनी यूगोव ने अपने एक सर्वे में दावा किया था कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की रेस में स्विंग वोटर्स के बीच ऋषि सुनक ज़्यादा लोकप्रिय हैं। सर्वे के मुताबिक, सुनक ऐसे मतदाताओं के बीच पसंदीदा हैं, जिन्होंने सन् 2019 के आम चुनाव में पहली बार कंजरवेटिव पार्टी को वोट दिया था।
हैरानी की बात है कि कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद लिज़ के हक़ में नहीं थे। सर्वे में हिस्सा लेने वाले ग़ैर-कंजर्वेटिव लोग कह रहे थे कि लिज़ सबसे कमज़ोर प्रधानमंत्री साबित होंगी। ऋषि पार्टी सांसदों की पहली पसन्द थे। हर सांसद उनकी क़ाबिलियत से वाक़िफ़ था। इसके बावजूद सुनक महँगाई कम करने और टैक्स रिलीफ के मुद्दों पर अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटे। यह समझदार नेता की पहचान है। इसके बावजूद लिज़ जीत गयीं। सुनक टोरी सदस्यों के बीच मतदान के दौरान प्रतिद्वंद्वी ट्रस से पिछड़ गये। मार्गरेट थैचर और टेरेसा मे के बाद लिज़ ट्रस (47) ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में बोरिस जॉनसन ने 7 जुलाई को जब इस्तीफ़ा दिया था, तो उससे पहले उनके ख़िलाफ़ इस्तीफ़ा देने वालों में पूर्व चांसलर ऋषि सुनक सबसे पहले नेता थे। जॉनसन इस बात को कभी नहीं भूले और अपने समर्थकों को लगातार सुनक के ख़िलाफ़ सक्रिय रखा।
जीत के बाद लिज़ ट्रस ने कहा- ‘कंजर्वेटिव पार्टी की नेता चुनी जाने के बाद मुझे गर्व महसूस हो रहा है। देश के नेतृत्व के लिए मुझ पर विश्वास जताने के लिए धन्यवाद। इस मुश्किल समय में देश की अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाने और पूरी क्षमता को उजागर करने के लिए मैं साहसिक क़दम उठाऊँगी।’ उधर ऋषि सुनक ने जीत पर ट्रस को बधाई दी और उनके साथ चलने का सभी कंजर्वेटिव सदस्यों का आह्वान किया। उन्होंने कहा- ‘कंजर्वेटिव पार्टी एक परिवार है। अब हम नयी प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस के पीछे एकजुट हैं; क्योंकि वह मुश्किल वक़्त में देश की कमान सँभालने जा रही हैं।’
लिज़ ट्रस को पाला बदलने में माहिर माना जाता रहा है। राजनीतिक करियर की शुरुआत में लिज़ लिबरल डेमोक्रेट थीं और बाद में मौके के अनुसार कंजर्वेटिव हो गयीं। यही नहीं, जब लिज़ कॉलेज में थीं, तो मोनार्की (राजशाही) की जबरदस्त विरोधी थीं। उनके पुराने भाषण इस बात के गवाह हैं। लेकिन बाद में पाला बदलकर लिज़ बकिंघम पैलेस और शाही खानदान की पक्षधर हो गयीं और आख़िर महारानी से ही उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। एक और उदाहरण बोरिस जॉनसन के दौर में ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने (ब्रेक्जिट) का मुद्दा है। एक समय यूरोपीय यूनियन में रहने की वकालत करने वाली लिज़ बाद में ब्रेक्जिट की समर्थन बन गयीं।
लिज़ की चुनौतियाँ
प्रधानमंत्री बनने के बाद अब लिज़ ट्रस के सामने गम्भीर क़िस्म की चुनौतियाँ हैं। उन्हें बिना देरी वादा निभाते हुए टैक्स रिलीफ और बिजली बिल में राहत देनी होगी। अर्थ-व्यवस्था को सन्तुलित करना होगा; नहीं तो ब्रिटेन को मंदी की चपेट में आने से कोई नहीं रोक पाएगा।
जीत के बाद अगर लिज़ के पहले भाषण को $गौर से सुनें, तो ज़ाहिर होता है कि व्यापार और अर्थ-व्यवस्था के मास्टर कहे जाने वाले ऋषि सुनक की अपनी सत्ता में फायरब्रांड लिज़ को कितनी ज़रूरत होगी। लिज़ ने स्वीकार किया कि उन्हें ऋषि की गहरी समझ की ज़रूरत होगी। उन्होंने पार्टी में सुनक जैसे नेता के होने को $खुशक़िस्मती करार दिया। हालाँकि चुनाव प्रचार के दौरान लिज़ ने सुनक की समझदारी पर एक से ज़्यादा बार सवाल उठाये थे। उनकी जीत के बाद ब्रिटिश मीडिया में भी अब कहा जा रहा है कि क्या लिज़ $फौरन टैक्स रिलीफ जैसा चुनावी वादा पूरा कर पाएँगी या अगला चुनाव जल्द होगा? चुनाव प्रचार के दौरान चतुर लिज़ ट्रस ने सुनक की काट बड़ी मुश्किल से खोजी। ब्रिटिश मीडिया में भी इसे लेकर खूब छपा। मशहूर अखबार ‘द गार्डियन’ ने एक रिपोर्ट में कहा कि सुनक वित्त मंत्री रहे। वह अर्थ-व्यवस्था की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने पूरे अभियान के दौरान यह साफ़ कहा कि टैक्स में कमी करने से अर्थ-व्यवस्था और लोगों के हालात बेहतर नहीं होंगे। इसके लिए दूसरे तरीक़ों से महँगाई पहले कम करनी होगी।
‘द गार्डियन’ के अनुसार, इसके विपरीत ट्रस ने लोकलुभावन वादे किये और कहा कि प्रधानमंत्री बनते ही वह सबसे पहले टैक्स रिलीफ देंगी। महँगाई और गैस की कमी जैसे मुद्दों पर बाद में भी काम किया जा सकता है। सुनक ट्रस की इस अर्थ-व्यवस्था नीति के स$ख्त विरोध में बोले और इसे अर्थ-व्यवस्था को तबाह करने का रास्ता बताया। अ$खबार के मुताबिक, सुनक बीमारी का स्थायी इलाज खोजने की बात कर रहे थे। लिज़ ने कुछ वक़्त तक इसे क़ाबू में रखने की बात कही। सवाल यही है कि क्या लिज़ $फौरन टैक्स रिलीफ का वादा पूरा कर पाएँगी?
“चुनाव कैंपेन में मुझे वोट करने के लिए हर एक का धन्यवाद। मैं अगले चुनाव में पार्टी लीडरशिप की रेस में बना रहूँगा। मैं कंजर्वेटिव पार्टी का सांसद हूँ। हमारी सरकार है। सांसद या किसी और तरी$के से ही सही, मैं अपनी सरकार की मदद करूँगा।’’
ऋषि सुनक
पराजित उम्मीदवार
महारानी का देहांत
लिज ट्रस को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के दो दिन बाद 8 सितंबर को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का 96 साल की उम्र में स्कॉटलैंड के बाल्मोरल महल में निधन हो गया। इससे पहले सिर्फ़ एक बार बलमोराल महल में सत्ता हस्तांतरण 1885 में हुआ था, जब महारानी विक्टोरिया गद्दी पर थीं। बता दें कि ब्रिटेन में नये बनने वाले प्रधानमंत्री महारानी से एक छोटे समारोह में बकिंघम पैलेस में मिलते हैं, जो सेंट्रल लंदन में है। वैसे सन् 1952 के बाद लंदन से बाहर यह आयोजन केवल एक बार हुआ, जब विंस्टन चर्चिल नयी महारानी से हीथ्रो हवाई अड्डे पर मिले थे। यह महारानी के पिता किंग जॉर्ज षष्टम् के निधन के बाद की बात है। एलिजाबेथ द्वितीय 15 प्रधानमंत्रियों के समय में ब्रिटेन की महारानी रहीं। उनके निधन के बाद प्रिंस चाल्र्स ब्रिटेन के राजा बने हैं। महारानी ने घोषणा की थी कि प्रिंस चाल्र्स जब सिंहासन पर बैठेंगे, तो उनकी पत्नी कैमिला, जो डचेस ऑफ कॉर्नवाल हैं; रानी कंसोर्ट बन जाएँगी। जब ऐसा होगा, तो कैमिला को राज माता का प्रसिद्ध कोहिनूर ताज मिलेगा। तीन बार भारत की यात्रा करने वाली एलिजाबेथ महज़ 25 साल की थीं, जब सन् 1952 में ब्रिटेन की गद्दी पर उनकी ताजपोशी हुई थी। एलिजाबेथ द्वितीय के शासन के 70 साल पूरे हो गये थे, जब उनका निधन हुआ। कुछ समय से अस्वस्थ होने के कारण महारानी कहीं आने-जाने में असमर्थ थीं। लिहाज़ा वह अपनी मुलाक़ातें लंदन के बकिंघम पैलेस की बजाय स्कॉटलैंड के बाल्मोरल कैसल में कर रही थीं। प्रधानमंत्री मोदी सहित दुनिया भर के नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताते हुए उन्हें कई मायनों में महान् करार दिया। प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा कि महारानी अपने पीछे एक महान् विरासत छोड़ गयी हैं और उन्होंने देश को स्थिरता और ताक़त भी प्रदान की है।