इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2019 का विषय था बराबरी बेहतरी के लिए, सारी दुनिया मेें औरत मर्द कीलैंगिक बराबरी रहे। आज जबकि राजनीतिक दल भारत में आम चुनाव की तैयारी के कोलाहल में उलझे हैं।‘तहलका’ ने तय किया, ‘भारत में अकेली औरत के संकटों पर आवरण कथा दी जाए। उसमें इस बात का भीजायजा लिया जाए कि महिलाओं ने काफी कुछ हासिल किया लेकिन अभी भी उनके सशक्तिकरण के लिएकाफी कुछ बाकी है।’
अभी हाल ही में केरल में जन जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी दस लाख महिलाओं ने कंधे से कंधा मिला कर 620किलोमीटर लंबी ‘महिला दीवार’ बनाई। इनकी मांग समानता और पुनर्जागरण के मूल्यों के मुद्दों पर मर्द-औरतमें बराबरी की थी। इन महिलाओं ने पूरे देश में इतिहास रचा है।
अफसोस की बात है कि व्यापार में महिलाओं के नेतृत्व निभाने की भूमिका में भारत तीसरे नंबर पर है। यहजानकारी मिली उस सर्वे में जिसे ‘ग्रांट थ्रांटन महिलाएं व्यापार में: नया परिदृश्य’ के तहत कराया गया था जोनतीजे सामने आए, वे चौंकाते हैं। भारत में सिर्फ 17 फीसद महिलाएं ही वरिष्ठ अधिकारी की भूमिका में हैं।जबकि 41 फीसद व्यापारिक प्रतिष्ठानों मेें कोई महिला नेतृत्व की भूमिका में नहीं है। भारत में वरिष्ठ प्रबंधकों कीभूमिका में भी महिलाओं का आंकड़ा सात फीसद है। इससे यह जाहिर है कि आज ज़रूरत है कि इस असमानताको दूर किया जाए। जो भी लोग फैसला लेने की स्थिति में हैं भले ही वे व्यापार, समुदाय, सरकार में हों ज़रूर इससंबंध में अपना नज़रिया बदलें।
इसी तरह मुद्दा जब राजनीतिक ताकत का होता है तो यह साफ दिखता है कि दुनिया भर नेताओं में सात फीसदसे भी कम महिलाएं हैं। 24 फीसद महिलाएं कानून बनाने (यानी जनप्रतिनिधि के रूप में) की हैसियत में होती हैं।संयुक्त राष्ट्र संघ के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार राष्ट्र प्रमुखों के रूप में चुनी गई महिलाओं का फीसद पहले 7.2फीसद था। यह अब 2017-2018 में घट कर 6.6 फीसद रह गया। इसी अवधि में सरकार में प्रमुख रही महिलाओंकी तादाद 5.7 फीसद से घट कर 5.2 फीसद ही रह गई।
अब यह बात साफ है कि जब तक भेदभाव खत्म नहीं होता तब तक विकास संभव नहीं है तब तक औरतों औरमर्दों में समानता नहीं होती। इसलिए मांग की गई कि लैंगिक न्याय और बराबरी हो। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अपने‘फिफथ सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल’ का लक्ष्य भी लैंगिक समानता रखा है। महिलाएं चाहती हैं कि उसे फैसलेलेने के विभिन्न स्तरों पर उन्हें नेतृत्व संभालने का मौका मिले साथ ही आर्थिक स्रोतों में बराबरी के अधिकार हों,उत्तराधिकार हो, जमीन पर स्वामित्व और नियंत्रण का अधिकार हो। साथ ही समाज में उसका समादर औरउसकी भूमिका के आधार पर महिलाओं का सशक्तिकरण किया जाए।
एक ऐसा समाज जहां प्रकृति और ऊर्जा के उपयोग में महिलाओं की महती भूमिका को नकार कर सर्वां विकासके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता हो। यह मां-बाप की जिम्मेदारी है कि वे बेटे और बेटियों को शिक्षित करें।जिससे वे ऐसे भाषाई प्रयोग भी न करें कि ‘यह तो महिलाओं का काम है।’ और कुछ काम को नीचा दिखाएं।आज महिलाओं के बारे में दकियानूसी उक्तियों का कोई मायना नहीं मतलब नहीं रह गया है। महिलाओं कोदुनिया पर जीत हासिल करने के लिए पुरु षों की ज़रूरत भी नहीं है।