अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी के बाद बँटवारे का दंश झेलते हुए छोटे-छोटे राज्यों, रियासतों को जोडक़र बनाया गया अखण्ड भारत आज पड़ोसी देशों के षड्यंत्रों और छिटपुट हमलों की ज़द में है। भारत इससे पहले भी अखण्ड ही था; जिसे चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे महान् शासकों ने खड़ा किया था। क्योंकि वह अनेक आक्रमणों और अंत:कलहों के चलते बार-बार टूटा भी। भारत के बारे में अक्सर कहा जाता रहा है कि भारत में वह सामथ्र्य है कि यह विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभर सकता है, बशर्ते यहाँ की राजनीति ईमानदार हो जाए और लोगों में एकता की भावना स्थापित हो जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि ये दोनों ही वस्तुस्थियाँ भारत के आंतरिक माहौल को बिगाड़े हुए हैं और यह देश आज भी विकासशील देशों में ही गिना जाता है।
पिछले छ:-सात साल में भारत में राजनीति पर धर्मवाद और सत्तावाद जिस तरह से हावी हुआ है, वह देश को और भी खोखला कर रहा है। बुद्धिजीवी और विपक्षी कई बार कह चुके हैं कि देश गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। हर आदमी सामने वाले को पहले धर्म और फिर जाति की नज़र से देखकर उसके बारे में सोचने-समझने और फैसला करने की कोशिश में लगा है। सोशल मीडिया ने इसे और बढ़ावा दिया है। आज स्थिति यह है कि ज़रा-सी सियासी हूल कहीं भी दंगे कराने में समर्थ है। यही विघटन भारत के मज़बूत होने में बड़ी बाधा है और इसका फायदा कुछ विदेशी ताकतें उठा रही हैं। आज के इस दौर में, जब भारत खुद महामारी के दौर से गुज़र रहा है; नेपाल का बार-बार भारत के क्षेत्रों को काटकर अपने नक्शे में दिखाना, चीन द्वारा भारत की गालवान घाटी पर कब्ज़ा करने की खबरें आना और 20 भारतीय सैनिकों का शहीद हो जाना कोई छोटी बात नहीं है। सरकार को ऐसे मामलों को गम्भीरता से लेना चाहिए। भारत की सीमा पर घुसपैठ की कोशिश करने वाला पाकिस्तान पहले से ही आये दिन जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ चलाकर परेशानी का सबब बना हुआ है। चिन्ता की बात यह है कि भारत का अभिन्न अंग रहे जम्मू-कश्मीर पर अपना अधिकार जताने वाले पाकिस्तान के पक्ष में भी कई देश अब आने लगे हैं।
जम्मू-कश्मीर को लेकर ओआईसी की बैठक चिन्तनीय
हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने जम्मू-कश्मीर को लेकर एक आपातकालीन बैठक आयोजित की। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर कॉन्टैक्ट ग्रुप के सदस्य देश अजरबैजान, नाइजर, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हुए। यह बैठक वीडियो कॉन्फेंसिंग के ज़रिये की गयी; जिसमें जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ बयान जारी किया गया। भारत सरकार को इस बयान पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। क्योंकि इसमें चेतावनी झलकती है। ओआईसी के सेक्रेटरी जनरल यूसुफ अल ओथाईमीन ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत द्वारा दशकों से कश्मीरियों को वैध अधिकारों से वंचित रखा गया है। मेरी अपील है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कश्मीरियों को उनके अधिकार दिलाने में तेज़ी लाए। इस्लामिक समिट की खास प्रतिबद्धताओं, विदेश मंत्रियों की परिषद् और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के शान्तिपूर्वक समाधान के लिए ओआईसी प्रतिबद्ध है। ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से भी अपील की कि संयुक्त राष्ट्र अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके भारत से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) के प्रस्तावों का पालन करवाये। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र जम्मू-कश्मीर में शान्ति बनाये रखने के लिए भारत पर बातचीत में शामिल होने के लिए दबाव डाले।
बैठक के बाद ओआईसी ने एक ट्वीट भी किया, जिसमें लिखा है कि कॉन्टैक्ट ग्रुप ने जम्मू-कश्मीर के हाल के घटनाक्रमों को लेकर इस मामले में बयान जारी किया है। इसमें पाकिस्तान और भारत के बीच तनावपूर्ण हालातों को सामान्य करने को लेकर सदस्य देशों की कोशिशें रही हैं, जो कि सराहनीय हैं। दरअसल यह बैठक कॉन्टैक्ट ग्रुप की थी। बता दें कि स्पेशली जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर सन् 1994 में ओआईसी ने कॉन्टैक्ट ग्रुप स्थापित किया था। यह संगठन मुस्लिम देशों से सम्बन्धित मुद्दों में विशेष दिलचस्पी लेता है।
आज जब भारत नेपाल, चीन और पाकिस्तान के कई प्रकार के दबावों, उनकी बर्बरताओं का सामना कर रहा है; तब ऐसे में ओआईसी द्वारा कॉन्टैक्ट ग्रुप की बैठक बुलाकर इस तरह का बयान जारी करना एक गम्भीर मुद्दा है। वैसे अगर देखा जाए, तो पाकिस्तान की असली बौखलाहट की वजह मोदी सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना है। क्योंकि इसके बाद पाकिस्तान की विशेष अपील पर कॉन्टैक्ट ग्रुप जम्मू-कश्मीर के मसले पर दो बार बैठक कर चुका है। दोनों ही बैठकों में कोशिश की गयी है कि जम्मू-कश्मीर को लोगों तक यह संदेश जाए कि ओआईसी को उनकी विशेष चिन्ता है।
पाकिस्तान का झूठ और नापाक कोशिश
बता दें कि जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ओआईसी से लगातार माँग करता रहा है कि वह भारत के खिलाफ ठोस कदम उठाये। यह इसलिए भी, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, बाल्टिस्तान और गिलगित को लेकर अपना दावा जताना शुरू कर दिया है। इसका कारण यह है कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने इसे सुरक्षा के लिहाज़ से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से समझौता करके भारत को सौंपा था, जिस पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था। हालाँकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के प्रभुत्व वाले ओआईसी ने जम्मू-कश्मीर के मसले पर अभी तक बहुत दिलचस्पी नहीं ली थी; लेकिन अचानक उसकी इस मामले में बढ़ी सक्रियता और आपातकालीन बैठक को पाकिस्तान की वैश्विक मंचों से जम्मू-कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। बता दें कि इससे पहले सऊदी अरब और यूएई इस्लामिक देशों में जम्मू-कश्मीर मामले में भारत के लिए रक्षा कवच की तरह काम करते रहे हैं।
अगर पाकिस्तान की बात करें, तो न तो जम्मू-कश्मीर को लेकर उसकी नीयत साफ है और न ही वह इस क्षेत्र को कभी शान्त रहने देना चाहता है। यही कारण है कि वर्षों से यहाँ आतंकी गतिविधियाँ कायम हैं और आये दिन आतंकी आम लोगों की हत्या करते रहते हैं। इन्हीं आतंकियों से मुठभेड़ में हमारे अनेक भारतीय सैनिक अब तक शहीद हो चुके हैं। इन आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना का भरपूर सहयोग मिलता रहा है। सीमा पर आतंक मचाने का दुस्साहस केवल आतंकवादी ही नहीं करते, बल्कि पाकिस्तानी सेना भी सीज़फायर का उल्लंघन करती रही है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान भारत के हिस्से वाले जम्मू-कश्मीर में ही आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता आ रहा है, बल्कि उसकी यह हरकत उसके कब्ज़े वाले कश्मीर में भी जारी है; जहाँ पर आतंकी गतिविधियाँ तेज़ी से जारी रहती हैं और आतंकियों को ट्रेनिंग भी दी जाती है। भारत इसी का हमेशा विरोध करता रहा है और सीमा पर शान्ति चाहता है। हैरत की बात यह है कि पाकिस्तान भारत में ही घुसपैठ करके और सीमा पर गोलीबारी करके संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराता रहा है। उसने संयुक्त राष्ट्र में यहाँ तक कहा है कि भारत उसकी सीमा में घुसकर आतंकी गतिविधियाँ चलाता है और आये दिन सीमा पर गोलीबारी करता रहता है। जब यह बात सभी देश अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों के लिए विश्व भर में जाना जाने लगा है। कितनी हैरत की बात है कि इतने पर भी कई देश पाकिस्तान के पक्ष में एकजुट होने लगे हैं; जिनमें अधिकतर इस्लामिक देश हैं। दरअसल पाकिस्तान काफी समय से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर इस्लामिक देशों का समर्थन जुटाने की कोशिश करता रहा है, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है।
चीन द्वारा भारतीय भूमि में घुसपैठ की खबरों और नेपाल द्वारा भारत की ज़मीन को अपना बताने के बाद पाकिस्तान का मनोबल और बढ़ा है।
भारत से डरते भी हैं चीन और पाकिस्तान
भारत की सैन्य शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय पहुँच के बारे में सभी पड़ोसी देश अच्छी तरह जानते हैं। नेपाल जैसे छोटे देश की आज अगर हिम्मत इतनी बढ़ी हुई है, तो इसके पीछे की बहुत-सी वजहें हैं। लेकिन अगर चीन और पाकिस्तान की बात करें, तो दोनों को ही भारत की सामरिक ताकत का अंदाज़ा है और दोनों ही देश भारत पर हमला करने की नहीं सोच सकते। क्योंकि अगर वो ऐसा करते हैं, तो विश्व युद्ध होने की प्रबल सम्भावनाएँ पैदा हो जाएँगी। वैसे इस समय भारत जिस संयम से काम ले रहा है, वह ज़रूरी है। क्योंकि अगर भारत चीन या पाकिस्तान पर हमला करता है, तो भी विश्वयुद्ध की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। हालाँकि चीन भी भारत पर जल्दी हमला नहीं करेगा; क्योंकि वह यह भी जानता है कि कोरोना वायरस फैलने के बाद से अनेक देश उसके खिलाफ हुए हैं और अगर वह भारत पर हमला करता है, तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।