एनडीए सरकार ने एक अनोखे ढंग से 2014-15 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बड़े पैमाने पर शुरू की गई ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं’ (सेव गर्ल चाइल्ड एजुकेट गर्ल) योजना के विज्ञापन और प्रचार पर आवंटित निधि का 56 फीसद से अधिक खर्च किया है। यह योजना पुरूषों और महिलाओं के बीच समानता , महिलाओं के सशक्तिकरण के अन्य मुद्दों को सुनिश्चित करने और बिगढ़ते लिंगानुपात को सही करने के लिए चलाई गई। धन का एक बड़ा हिस्सा प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिए गए विज्ञापन के भुगतान के लिए आवंटित किया गया यानी सार्वजनिक प्रचार, होर्डिंग्स सहित महिलाओं के सर्वांगीण विकास और समृद्धि के लिए जो प्रधानमंत्री को मसीहा के रूप में मनाते हैं। जबकि महिला और बाल विकास मंत्री इस तस्वीर में कहीं नहीं है जो कि भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए बुरी बात है।
भारत में कानून-आधारित लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है जिसमें नीतिगत निर्णय केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सामूहिक रूप से लिए जाते हैं। एक बार नीतिगत निर्णय लेने के बाद संबंधित मंत्री इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी लेता
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा 2014-15 में मुख्य योजना के लिए 648 करोड़ की राशि आवंटित की गई थी। इसमें से 56.27 फीसद प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ”बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ योजना के प्रचार और विज्ञापन में खर्च किया गया। केवल 24.5 फीसद, 159.18 करोड़ के बराबर इस योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वितरित किया गया था।
चालू वित्त वर्ष (2018-19) के दौरान बालिका के सर्वागीण विकास के लिए 280 करोड़ की राशि आवंटित की गई है। इसमें से 155.71 करोड़ रुपए दिसबंर 2018 तक विज्ञापन और प्रचार में खर्च किए गए। अभी सरकार ने 55.66 करोड़ लगभग 19 फीसद से अधिक जारी करना है।
इस योजना के लिए निर्धारित 200 करोड़ में से 68 फीसद के साथ पेड विज्ञापन सबसे अधिक था। जिसमें से 135.71 करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए गए थे। 2016-17 में योजना के लिए प्रदान की गई कुल राशि में से 29.79 करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए गए और शेष 2.9 करोड़ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना को लागू करने के लिए दिए गए थे।
यह अब स्पष्ट हो गया है कि लड़कियों के समग्र उत्थान के लिए बनाई गई यह योजना प्रधानमंत्री के प्रचार के विज्ञापनो की बलिवेदी पर बलि चढ़ गई हैै। यह संघ परिवार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के खोखलेपन को बयां करता है जो व्यवहार में विकास और विकास के नाम पर महिलाओं को बदनाम कर रही है।
योजना की विफलता नीति लागू करने की कमी, अप्रभावी नियंत्रण तंत्र और धन का अभाव मुख्य कारण हंै। सरकार का दावा है कि 2018-19 तक देश के सभी 640 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत कवर किया गया है परंतु यह दावा भी धराशायी हो गया है।