अडानी मामला भाजपा के लिए बन सकता है बड़ा राजनीतिक सिरदर्द
क्या न्यूयॉर्क स्थित इन्वेस्टमेंट रिसर्च फर्म हिंडनवर्ग रिसर्च एलएलसी के भारतीय व्यापारी गौतम अडानी को लेकर ख़ुलासे का देश की राजनीति पर बड़ा असर पडऩे जा रहा है और आम चुनाव से महज़ एक साल पहले यह केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के दो दिग्गजों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके गृह मंत्री अमित शाह के करिश्मे का तिलिस्म तोडऩे की राह खोल देगा? सन् 2014 के आम चुनाव से पहले मनमोहन सिंह सरकार को भाजपा ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही ढेर किया था, और रही सही कसर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की लहर ने पूरी कर दी थी, जिसे लेकर बहुत-से लोग कहते हैं कि हजारे के पीछे वास्तव में भाजपा ही थी।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया, जिस पर उनसे जवाब माँगा गया है। उधर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार ने कहा कि शेयर बाज़ार के लिए रेगुलेटरी मैकेनिज्म को मज़बूत करने को विशेषज्ञ समिति गठित करने के प्रस्ताव को लेकर उसे कोई आपत्ति नहीं है। अडानी का मुद्दा राजनीतिक दृष्टि से इसलिए भी बहुत संवेदनशील है, क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पिछले तीन-चार साल से प्रधानमंत्री मोदी और अडानी के रिश्तों को लेकर जनता के बीच सवाल उठाते रहे हैं।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट सामने आने के बाद जिस तरह अडानी के आर्थिक क़िले की दीवारें हिली हैं और उन्हें दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बनाने के लिए बैंकों के दरवाज़े खोल देने के गम्भीर आरोप लग रहे हैं, इसकी आँच केंद्र की सत्ता की तरफ़ सरकती दिख रही है। यह मुद्दा भ्रष्टाचार का मुद्दा बना तो निश्चित ही भाजपा की उल्टी गिनती शुरू होने में देर नहीं लगेगी। भाजपा को डर है कि उस पर अमीर परस्त होने का ठप्पा लग सकता है, जो राजनीति की दृष्टि से बहुत महँगा साबित होगा।
हिंडनवर्ग की रिपोर्ट को लेकर अडानी ग्रुप अपनी बात कह चुका है और उसने इसे ‘मज़बूत हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुँचाने की साज़िश’ बताया है। देश में ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो यह मानते हैं कि भारत से जलने वाले ऐसी साज़िशें करते रहते हैं। हालाँकि देश में लोगों की एक बड़ी संख्या वह भी है, जिसे लगता है कि गड़बड़ी हुई है और केंद्र में बैठी भाजपा सरकार अपने रिश्तों के कारण गुजरात के व्यापारी के साथ खड़ी है और आउट ऑफ बॉक्स उनकी मदद करती रही है। ख़ुद हिंडनवर्ग रिसर्च ने अडानी के उनके ख़ुलासे को साज़िश बताने पर कहा है कि आप अपने कथित फ्रॉड को देश भक्ति से नहीं जोडक़र नहीं बच सकते। भारत में कांग्रेस और विपक्ष के अन्य दल भी इस मसले पर केंद्र सरकार पर हमले कर रहे हैं।
ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि हिंडनवर्ग के ख़ुलासे के बाद देश की बड़ी आबादी अडानी के अमीर बनने को आशंका की दृष्टि से देखने लगी है। उन्हें बैंकों, एलआईसी आदि में जमा अपने पैसों को लेकर भी चिन्ता हुई है, भले सरकार और बैंकों ने जनता का पैसा सुरक्षित होने का भरोसा दिलाया है। बातचीत में काफ़ी लोग मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमितशाह के गुजरात में होने के कारण केंद्र सरकार की अडानी पर ख़ास कृपा रही है। अडानी को लेकर केंद्र सरकार कितनी रक्षात्मक है, यह इस बात से ज़ाहिर हो जाता है कि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के लोकसभा में अडानी और प्रधानमंत्री मोदी के कथित रिश्तों को लेकर लगाये आरोप सदन की कार्यवाही से कुछ ही घंटे के भीतर हटा दिये गये और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जवाब में इन आरोपों पर एक शब्द तक नहीं कहा।
देश ही नहीं विदेशी मीडिया में भी अडानी मुद्दा लगातार छाया हुआ है। कारण यह भी है कि अडानी दुनिया के नंबर एक अमीर व्यक्ति हुए हैं, भले हिंडनवर्ग की रिपोर्ट आने के बाद वह काफ़ी नीचे चले गये। उनके शेयरों ने बड़ा गोता लगाया और भारतीय अर्थव्यवस्था को हिला दिया। संसद में विपक्ष ने लगातार इस मुद्दे को उठाया। वॉकआउट किया। संसद परिसर में धरना दिया। लेकिन सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी और उसकी तरफ़ से कोई सफ़ाई नहीं आयी यह कहा जा सकता है कि अडानी का मुद्दा ऐसे समय में सामने आया है, जब भाजपा इस साल होने वाले विधानसभा के चुनाव जीतने के सपने देख रही थी। बहस का मुद्दा अब अचानक अडानी मामले में बदल गया है और लोग सरकार की दूसरी कमज़ोरियों को भी गिनाने लगे हैं।
दो बार सत्ता की एंटी इंकम्बेंसी भाजपा को वर्तमान राजनीतिक हालत में संकट की तरफ़ ले जा सकती है और उसका लगातार तीस साल तक सत्ता में रहने का दावा उसकी मुसीबत में बदल सकता है। पहले ही केंद्र की भाजपा सरकार पर अहंकारी होने का आरोप लग रहा है। प्रधानमंत्री मोदी मुद्दों पर नहीं बोलते, यह भी जनता को अखरने लगा है। उन्हें लगता है कि भीतर ही भीतर ही सरकार कुछ चीज़ें छिपाती है और जनता के सामने आने नहीं देती। पिछली दो बार से मोदी के साथ खड़े रहे युवा और महिलाएँ भी आशंकाओं से घिरे हुए हैं और यदि वे विपरीत दिशा में सोचने लगते हैं, तो भाजपा को एक बड़ा वोट बैंक खोना पड़ सकता है। इसका असर इसी साल के विधानसभा चुनावों में दिख सकता है।
कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्यों में भाजपा के लिए दिक़्क़ते हैं और कांग्रेस उसे विधानसभा चुनावों में मज़बूत टक्कर देने की स्थिति पहुँचती दिख रही है। राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा का दक्षिण में व्यापक असर दिख रहा है। अगले आम चुनाव से पहले कांग्रेस एक और ऐसी बड़ी यात्रा की तैयारी कर चुकी है। उत्तर भारत के राज्यों में भी भाजपा की राह उतनी आसान नहीं होगी। हाल के कुछ सर्वे संकेत दे रहे हैं कि धीरे-धीरे ही सही, कांग्रेस देश में वापसी करती दिख रही है। कांग्रेस अडानी मुद्दे को भाजपा और अडानी के बीच भ्रष्टाचार से जोडक़र जनता के बीच ले जा रही है और यदि वह इसमें सफल हुई, तो 2024 के आम चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
कारण यह है कि आज की तारीख़ में भाजपा का सारा दारोमदार मोदी-शाह की जोड़ी पर टिका है और यदि इनका तिलिस्म टूटता है, तो भाजपा को सँभलना मुश्किल होगा।
क्या हैं आरोप?
केंद्र सरकार पर आरोप लग रहा है कि उसके प्रभाव के कारण बैंकों ने अडानी के लिए अपने दरवाज़े खोल दिये। अडानी पहले भी अमीर थे; लेकिन उनकी असली ग्रोथ 2014 के बाद हुई, जब मोदी सरकार केंद्र में सत्ता में आयी। आँकड़े देखें, तो अडानी समूह को दिया गया क़र्ज़ भारतीय अर्थव्यवस्था के कम से कम एक फ़ीसदी के बराबर है। निक्केई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अडानी की सूचीबद्ध समूह कम्पनियों में से 10 की देनदारी 3.39 ट्रिलियन रुपये (41.1 बिलियन डॉलर) तक है। कम्पनियों में एसीसी, अंबुजा सीमेंट्स और नई दिल्ली टेलीविजन (एनडीटीवी) शामिल हैं, जो अडानी समूह ने 2022 में ही ख़रीदी थीं। आईएमएफ के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर के आख़िर तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद 273 ट्रिलियन रुपये था और अडानी का क़र्ज़ अर्थव्यवस्था के क़रीब 1.2 फ़ीसदी है।
अडानी समूह की 10 कम्पनियों की कुल सम्पत्ति 4.8 ट्रिलियन रुपये से अधिक है। हालाँकि निवेशकों की असली चिन्ता क़र्ज़ के बड़े आकार को लेकर है। अडानी समूह की दिक़्क़तें तब शुरू हुईं, जब 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी कर उन पर कई साल तक लेखांकन धोखाधड़ी और स्टॉक हेरफेर का आरोप लगाया। विभिन्न रिपोट्र्स के मुताबिक, अडानी समूह की 10 कम्पनियों का सामूहिक इक्विटी अनुपात 25 फ़ीसदी था, जिनमें से एक अडानी ग्रीन एनर्जी का मार्च, 2022 तक सिर्फ़ दो फ़ीसदी का इक्विटी अनुपात था। अडानी समूह के इन आरोपों के खंडन के बावजूद रिपोर्ट के बाद समूह की कम्पनियों के शेयरों की क़ीमतों में बड़ी गिरावट आयी।
अडानी ग्रुप की फ्लैगशिप कम्पनी अडानी इंटरप्राइजेज ने पहली फरवरी को अपने 200 अरब रुपये के नये शेयरों की पेशकश को रद्द करने की घोषणा की। एक वीडियो में अरबपति गौतम अडानी ने कहा कि इस क़दम का मक़सद निवेशकों को सम्भावित नुक़सान से बचाना है। अडानी ने कहा- ‘हमारी बैलेंस शीट स्वस्थ और सम्पत्ति मज़बूत है।’ समूह ने यह भी घोषणा की कि गौतम अडानी और उनका परिवार निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने के लिए समूह के शेयरों द्वारा समर्थित ऋणों में 1.1 बिलियन डॉलर का भुगतान कर रहे हैं।
हालाँकि इन सबके बावजूद जनता में अपने पैसे को लेकर चिन्ता है। एक बयान में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र लचीला और स्थिर बना हुआ है। इसके बाद 10 फरवरी को आरबीआई ने मुद्रास्फीति को देखते हुए बेंचमार्क रेपो दर को 0.25 अंक बढ़ाकर 6.5 फ़ीसदी कर दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अडानी समूह की उथल-पुथल के प्रभाव को कम करके आँकते हुए कहा कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली की ताक़त, आकार और लचीलापन अब बहुत वृहद और अधिक मज़बूत है। एक व्यक्तिगत घटना या इस तरह के मामले से यह प्रभावित नहीं होती।
इसके बावजूद जनता का भरोसा बहाल होने और उसे अडानी में फिर निवेश करने की हिम्मत जुटाने में समय लगेगा, ज़्यादातर आर्थिक विशेषज्ञों की यही राय है। अडानी का मुद्दा आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक मुद्दा भी है। यही सरकार की सबसे बड़ी परेशानी है, क्योंकि मोदी सरकार पर अडानी को प्रश्रय देने का आरोप है। लिहाज़ा यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय का इसका कितना राजनीतिक असर बनता है और सरकार विपक्ष से कैसे निपटती है? भाजपा जानती है कि जितना यह मुद्दा राजनीतिक रूप लेता है, उसकी मुसीबत बढ़ेगी। इसका सबसे बड़ा कारण अडानी का प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से होना है। वैसे भी 2014 के बाद बैंकों का लाखों करोड़ डकारकर डेढ़ दर्ज़न से ज़्यादा जो लोग विदेश भाग गये हैं, उनमें 95 फ़ीसदी गुजरात से हैं। इनमें से कई को लेकर विपक्ष का आरोप है कि वे शीर्ष भाजपा नेताओं के क़रीबी रहे हैं।
अडानी ग्रुप के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत में भी दस्तक दे चुका है। फरवरी के दूसरे हफ़्ते सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की जाँच कराने की माँग वाली याचिका पर अदालत ने केंद्र से जवाब तलब किया। हालाँकि याचिकाकर्ता को भी कड़ी हिदायत दी है। अडानी ग्रुप के ख़िलाफ़ आयी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की जाँच कराने की माँग वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि आप कैसे भारतीय निवेशक के हितों को बचाएँगे। सर्वोच्च न्यायालय ने मौज़ूदा नियामक ढाँचे पर वित्त मंत्रालय और सेबी से भी जानकारी माँगी। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को कड़ी हिदायत देते हुए कहा कि आप जो भी तर्क दे रहे हैं, सोच-समझकर दें; क्योंकि इसका सीधा असर शेयर बाज़ार पर पड़ता है।
किसानों की अनदेखी
अडानी पर आरोपों के बीच ही केंद्रीय बजट आया। इसमें कई मदों में पैसा घटा दिया गया है, जिसमें कृषि और मनरेगा भी शामिल हैं। किसान पहले ही मोदी सरकार से नाराज़ हैं, ऐसे में बजट घटाने ने आग में घी का काम किया है और किसान फिर से आन्दोलन करने की तैयारी करते दिख रहे हैं। यदि 2024 के चुनाव से पहले किसान बड़ा आन्दोलन शुरू करते हैं, तो अडानी मुद्दे से पहले ही त्रस्त भाजपा के लिए नयी मुसीबत पैदा हो जाएगी। फरवरी के दूसरे हफ़्ते मुज़फ़्फ़रनगर के जीआईसी मैदान में भारतीय किसान यूनियन की महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान उमड़े जिससे ज़ाहिर होता है कि वो मोदी सरकार से नाराज़ हैं। भाजपा को यह नाराज़गी महँगी पड़ सक्ती है।
‘तहलका’ ने भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत से बातचीत की, जिन्होंने बताया कि केंद्र और राज्य (योगी) सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने गन्ने के भाव को लेकर तीखे तेवर दिखाये। टिकैत ने कहा- ‘नागपुर पॉलिसी चल रही है। बड़ी कम्पनियों को बिजली बेची जा रही है। ग़रीबों का शोषण किया जा रहा है। यह कम्पनियों की सरकार है। अगले साल 26 जनवरी को पूरे देश में ट्रैक्टर परेड होगी। किसानों की ज़मीन छीनने की तैयारी है, ग़लत तरीक़े से भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है। हमारे आन्दोलन का अगला पड़ाव फिर दिल्ली होगा और 20 मार्च से संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दिल्ली में आन्दोलन किया जाएगा। किसान 20 साल तक की लड़ाई के लिए तैयार हैं।’
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने भाषणों में खेती और किसानों की बार करते हैं; लेकिन इस बार के बजट में खेती पर आधारित गाँवों की क़रीब 65 फ़ीसदी आबादी को बजट का महज़ 3.20 फ़ीसदी पैसा ही आवंटित गया किया है। हैरानी यह है कि 2022 के बजट के मुक़ाबले यह कम है, क्योंकि तब यह 3.84 फ़ीसदी था। ग्रामीण विकास के लिए बजट 5.81 फ़ीसदी से घटाकर 5.29 फ़ीसदी कर दिया गया है। देखा जाए, तो भारत में एक किसान परिवार की आय 27 रुपये प्रतिदिन है, जो आज की बढ़ती महँगाई में एक परिवार के एक ही समय के भोजन के लिए भी पर्याप्त नहीं है।
केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया था। इसके लिए किसानों को डीजल, बिजली, खाद, बीज, कीटनाशक के दामों में 50 फ़ीसदी की कमी कर सब्सिडी की व्यवस्था करने या समर्थन मूल्य दोगुना कर बजट में इसके लिए राशि का प्रावधान करने की ज़रूरत थी; लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश के अमृत-काल में बिजनेसमैन गौतम अडानी 1,600 करोड़ रुपये प्रतिदिन कमाते हैं। लेकिन मनरेगा में मज़दूर की दिहाड़ी 200 रुपये है और प्रधानमंत्री मोदी इसी देश के किसानों को किसान सम्मान निधि के नाम पर साल भर में महज़ 6,000 रुपये देते हैं, जिससे ज़ाहिर होता है कि किसानों की आज क्या स्थिति है?
इस बार पीएम किसान सम्मान निधि के लिए पैसा भी कम कर दिया गया है। पिछले साल यह 68,000 करोड़ था, जिसे अब घटाकर 60,000 करोड़ कर दिया गया है। बजट सत्र में एक सवाल के जवाब में सरकार ने ही बताया है कि 15 करोड़ किसान परिवारों में से सम्मान निधि की सभी क़िस्तें यानी 4 साल के 24,000 रुपये केवल तीन करोड़ किसान परिवारों को ही आवंटित किये गये हैं। यही नहीं, खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी जो 2022 में 2,25,000 करोड़ थी; घटाकर 1,75,000 करोड़ कर दी गयी है।
पिछले तीन साल से सरकार ने एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की एक लाख करोड़ रुपये की घोषणा की है; लेकिन इसका वास्तव में केवल 10 फ़ीसदी ही ख़र्च किया गया। किसान सभी कृषि उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (सी 2 +50 फ़ीसदी) पर ख़रीद की माँग कर रहे है। लेकिन सरकार जिन 23 फ़सलों के समर्थन मूल्य पर ख़रीद की घोषणा करती है, उन फ़सलों की समर्थन मूल्य पर ख़रीद तक के लिए बजट में राशि आवंटित नहीं की गयी है। केंद्र सरकार फ़सल बीमा के लिए 2022 में आवंटित 15, 500 करोड़ को भी इस बार घटाकर 13,625 करोड़ कर दिया गया है।
इसके अलावा पीएम किसान सम्मान निधि के लिए अभी भी 60,000 करोड़ रुपये बजट तय किया गया है, जो पिछले साल के रिवाइज्ड बजट में भी इतना ही था। पीएम ग्राम सडक़ योजना का बजट भी 19,000 करोड़ रुपये ही है। सरकार ने यूरिया सब्सिडी पर बजट कम करके 1,31,100 करोड़ कर दिया है, जो पिछले साल 1,54,098 करोड़ रुपये था। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर बजट को कम करके 1,37,207 करोड़ कर दिया है, जो पिछले साल 2,14,696 करोड़ था।
सरकार का दावा है कि बजट में सरकार का फोकस कृषि के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने, कृषि में तकनीक को बढ़ावा देने और प्राकृतिक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ाने पर रहा है। हालाँकि बजट में न्यूनतम सर्मथन मूल्य (एमएसपी) को लेकर कुछ नहीं कहा गया है, जो किसानों की सबसे बड़ी माँग रही है। सरकार का कहना है कि अगले तीन साल में देश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाये जाएँगे।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि देश में 10,000 बायो इनपुट रिसर्च सेंटर स्थापित होंगे। माइक्रो फर्टिलाइजर की उपलब्धता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा और रासायनिक खाद के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री-प्रणाम योजना की शुरुआत होगी, जबकि गोबर धन स्कीम के तहत 10,000 करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे। सरकार ने किसानों को आर्थिक लाभ की जगह ज़्यादा क़र्ज़ देने की बात कही है, जिससे किसानों में नाराज़गी है। सरकार का दावा है कि कृषि क्षेत्र के लिए क़र्ज़ के लक्ष्य को बढ़ाकर 20 लाख करोड़ रुपये किया जाएगा। सरकार ने बजट में कृषि का डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा बनाने की घोषणा की है।
हालाँकि किसान नाराज़ हैं। भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि किसान सरकार के एजेंडे में हैं ही नहीं। बजट में किसान की आय पर कोई चर्चा नहीं हुई। सरकार ने छ: साल पहले आय दोगुनी करने की बात कही थी, लेकिन आय घट गयी। सरकार ने 2047 तक का झुनझुना दिया है और विश्व गुरु बनाने की बात कर रहे हैं। सरकार सरकारी सम्पत्तियों को बेच रही हैं और खेती पर निवेश कम कर रही है। सरकार एमएसपी नहीं, क़र्ज़ा देने की बात कर रही है। खेती के लोन अडानी के माध्यम से दिये जाएँगे। उन्होंने कहा- ‘अगर सरकार 85 करोड़ को मु$फ्त राशन दे रही है, तो समझ लो देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसी 20 मार्च को पूरे देश का किसान एक साथ दिल्ली कूच करेगा।’
तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ साल भर आन्दोलन करने वाले किसानों ने मोदी सरकार के भरोसे के बाद अपना आन्दोलन स्थगित किया था; लेकिन उनकी माँगों की लम्बी फ़ेहरिस्त अधूरी ही रही। उनकी पीएम किसान योजना के तहत 6,000 रुपये सालाना को बढ़ाकर 8,000 रुपये करने की उम्मीद टूट गयी; उल्टे ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिकी के आधार मनरेगा का बजट ही कम कर दिया गया।
सर्वे और चुनाव
हाल के वर्षों में आमतौर पर देखा गया है कि चुनावों से पहले जो सर्वे आते हैं, उनमें ज़्यादातर में प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता और भाजपा की जीत को ख़ूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। इससे निश्चित ही चुनावों में मतदाता की सोच पर असर पड़ता है। हालाँकि इस साल जनवरी के आख़िर से जो सर्वे आने शुरू हुए हैं, उनमें कुछ अलग तस्वीर सामने आ रही है।
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हाल में सी वोटर का एक सर्वे सामने आया, जो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की बेचैनी बढ़ाने वाला लगता है। इसमें मोदी-शाह का जादू फीका होने के संकेत मिलते हैं। भाजपा नेता अगले आम चुनाव में अकेले 350 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं; लेकिन सर्वे बताता है कि भले 52 फ़ीसदी वोटों के साथ प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा चुनाव से एक साल पहले सबसे प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं। भाजपा की सीटें सन् 2019 के मुक़ाबले 303 से कम होकर 284 पर पहुँचती दिख रही हैं।
सहयोगियों की सम्भावित 14 सीटें मिलकर एनडीए का आँकड़ा 298 पर पहुँच रहा है। सन् 2019 में एनडीए ने 353 सीटें जीती थीं। इसके विपरीत कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की जो सीटें 2019 में 91 थीं, वो 153 पर पहुँच रही हैं। सर्वे ने यूपीए को 30 फ़ीसदी वोट मिलते दिखाये हैं, जो निश्चित ही भाजपा के लिए चिन्ता की बात हो सकती है। और भी दिलचस्प बात यह है कि सर्वे में अनुच्छेद-370 और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर जनता से जो सवाल पूछे गये उन पर महज़ 14 और 12 फ़ीसदी लोगों ने ही मोदी सरकार का समर्थन किया।
इसका मतलब यह हुआ कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को पसन्द करने वाले 52 फ़ीसदी लोगों में इन दो मुद्दों, जो हिंदुत्व से जुड़े मुद्दे हैं, पर इतने कम लोगों का ही समर्थन है। ऐसे में हिंदुत्व को अगले चुनाव में बड़ा एजेंडा बनाने की सोच रही भाजपा की चिन्ता बढ़ेगी। एक और दिलचस्प बात सर्वे में सामने आयी वह यह है कि भाजपा का हार्डकोर वोटर उतना ही है, जितना राहुल गाँधी को पसन्द करने वाला वोटर। इसके मायने यह हुए कि भाजपा के पास स्मार्टन के रूप में मतदाता का ऐसा बड़ा वर्ग है, जो स्थायी रूप से भाजपा के साथ नहीं है। यदि यह मतदाता भाजपा से फिसलता है,तो ज़ाहिर है कांग्रेस या विपक्ष के किसी अन्य दल के साथ जाएगा। यही वह वर्ग है, जिसने पिछले दो का समर्थन किया था। यदि वह सत्ता परिवर्तन का मन बनाता है, तो भाजपा कमज़ोर होगी। ज़ाहिर है विपक्ष मेहनत करता है, तो इस वर्ग का वोट अपनी तरफ़ खींच सकता है। मूड ऑफ द नेशन के नाम से अलग से आये इंडिया टुडे-सी वोटर के जनवरी के सर्वे में बताया गया है कि आज चुनाव हों, तो भाजपा 284 और कांग्रेस 191 सीटें जीत सकती है। इसमें महँगाई और बेरोज़गारी को मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता बताया गया है। सर्वे के मुताबिक, कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए बिहार में 47 फ़ीसदी तक वोट हासिल कर सकता है। अगस्त 2022 में यह आँकड़ा यूपीए के लिए सिर्फ़ 5 फ़ीसदी था।
फरवरी में आये इस सर्वे के मुताबिक, यूपीए को कर्नाटक में 43 फ़ीसदी और महाराष्ट्र में 48 फ़ीसदी वोट हासिल करने का अनुमान है। सर्वे के मुताबिक, आज चुनाव होने पर कांग्रेस-यूपीए को कर्नाटक में सीधे 15 सीटों (कुल 17 सीटें) का फ़ायदा हो सकता है, जहाँ कुल लोकसभा सीटें 28 हैं। साल 2019 में उसे वहाँ दो ही सीटें मिली थीं।
महाराष्ट्र में यूपीए गठबंधन को 28 सीटों का फ़ायदा हो सकता है। सर्वे के कांग्रेस गठबंधन को 34 सीटें मिल सकती हैं, जो साल 2019 में सिर्फ़ 6 थीं। बिहार में यूपीए गठबंधन को 25 सीटें दिखायी गयी हैं, जो सन् 2019 में महज़ एक थी। इस लिहाज़ से देखें, तो कर्नाटक में इस साल होने वाले विधानसभा के चुनाव कांग्रेस की लाटरी निकाल सकते हैं। राहुल गाँधी की दिसंबर में जब भारत जोड़ो यात्रा वहाँ से निकली थी, तो बड़ी संख्या में लोग उसमें जुटे थे। सर्वे के मुताबिक, चार साल कर्नाटक के वोटर का मिज़ाज पूरी तरह बदला दिख रहा है।
भाजपा के लिए सर्वे में यह राहत ज़रूर है कि अन्य दलों के वोट शेयर में पिछले 1.5 साल से गिरावट देखी जा रही है। डेढ़ साल के बीच हुए तीन सर्वे में अन्य दलों का आँकड़ा 43 फ़ीसदी से गिरकर 39 फ़ीसदी पहुँच गया है, जबकि भाजपा का वोट शेयर 2 फ़ीसदी बढक़र 37 से 39 पहुँच गया है। हालाँकि कांग्रेस अब फिर भाजपा की सिर दर्द बढ़ाती दिख रही है, जिसके वोट शेयर में तीन सर्वे के बीच दो फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। जनवरी 2022 में कांग्रेस का वोट शेयर 20 फ़ीसदी था; जो अगस्त, 2022 में 21 और जनवरी, 2023 में 22 फ़ीसदी पहुँच गया है।
याद रहे भाजपा को सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में 18.8 फ़ीसदी, सन् 2014 में 31.34 फ़ीसदी, जबकि सन् 2019 में 37.76 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे। उधर कांग्रेस को सन् 2009 में 28.55 फ़ीसदी, सन् 2014 में 19.52 फ़ीसदी और सन् 2019 में 19.70 फ़ीसदी वोट मिले थे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि यदि यह मत फ़ीसदी इसी तरह घटा, तो 2024 तक भाजपा के लिए मुश्किल स्थिति भी आ सकती है।
अडानी पर हिंडनवर्ग के आरोप
अडानी ग्रुप ने शेयरों को क़ीमत मैनिपुलेट कर बढ़ाया।
धनशोधन और अकाउंटिंग फ्रॉड किया और आठ साल में 5 सीएफओ बदले।
ग्रुप की 7 कम्पनियों के शेयर की क़ीमत 85 फ़ीसदी तक ज़्यादा अर्थात् स्काई रॉकेट वैल्यूएशन।
अडानी ग्रुप पर 2.20 लाख करोड़ का क़र्ज़, जो उसकी कम्पनियों की हैसियत से कहीं ज़्यादा है।
मॉरीशस और दूसरे देशों की जिन कम्पनियों में पैसा भेजा गया, उन्होंने अडानी के शेयर ख़रीदे।
“जो अहंकार में डूबे रहते हैं, उनको लगता है कि मोदी को गाली देकर और ग़लत आरोप लगाकर ही आगे बढ़ पाएँगे। मोदी पर देश का ये भरोसा अख़बार की सुख़ियों और टीवी पर चमकते चेहरों से नहीं हुआ है। जीवन खपा दिया है, पल-पल खपा दिया है मैंने देश के लिए। मोदी देश के एक-एक परिवार के लिए जी रहा है। वे (राहुल) झूठ से मेरे प्रति देश के 140 करोड़ लोगों के इस कवच को भेद नहीं सकते हैं।’’
“मैं संतुष्ट नहीं हूँ। प्रधानमंत्री के बयान से सच्चाई का पता चलता है। अगर (अदानी) मित्र नहीं हैं, तो (प्रधानमंत्री) कहते कि ठीक है। इन्क्वायरी करवा देता हूँ। लेकिन इन्क्वायरी की बात तक नहीं हुई। इससे क्लियर है कि प्रधानमंत्री उनकी (अडानी की) रक्षा कर रहे हैं। उन्हें प्रमोट कर रहे हैं।’’