बृज खंडेलवाल द्वारा
ऐतिहासिक इमारतों के अलावा, आगरा क्षेत्र अपने कुशल कारीगरों के हुनर के लिए मशहूर है। आयरन फाउंड्री उद्योग, ग्लास वेयर, लैदर शूज, पेठा दालमोट, मार्बल इनले वर्क, हैंडीक्राफ्ट्स, से आगरा की पहचान पूरे विश्व में है।
आगरा ने चमड़ा जूता उद्योग की वजह से मुग़ल काल से ही बेहतरीन क्वालिटी के जूते और चमड़े का सामान बनाने में नाम कमाया। लेकिन आज यही उद्योग, जो कभी शहर की शान और आर्थिक रीढ़ था, संकट से गुज़र रहा है। छोटी-छोटी दुकानों और कारखानों में चल रहा यह कारोबार अब बदहाली, सुरक्षा के अभाव और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है।
आगरा का चमड़ा उद्योग सदियों पुराना है। मुग़ल बादशाहों के ज़माने में यहाँ बने जूते और चमड़े के सामान की देश-विदेश में डिमांड थी। हींग की मंडी से शुरू हुआ ये कारोबार, आज शहर भर में फैला है और आगरा की इकॉनमी का आधार है। अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने भी ‘आइन-ए-अकबरी’ में आगरा के मोचियों और चर्मकारों का ज़िक्र किया है। ब्रिटिश काल में भी यह उद्योग फलता-फूलता रहा और आगरा के जूते यूरोप तक निर्यात किए जाते थे। आज़ादी के बाद, छोटे कारीगरों और कुटीर उद्योगों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, लेकिन बदलते वक्त और सरकारी उपेक्षा ने इस उद्योग को पीछे धकेल दिया।
आज आगरा के जूता उद्योग की हालत बेहद दयनीय है। जीवनी मंडी, मंटोला, बिजलीघर, चक्की पाट, जगदीश पूरा, लोहा मंडी, नई मंडी जैसे इलाकों में सैकड़ों छोटी-छोटी फैक्ट्रियाँ और वर्कशॉप्स चल रही हैं, जहाँ मजदूरों को अंधेरी, तंग और गंदी गलियों में काम करना पड़ता है। इन जगहों पर न तो हवा का ठीक से बंदोबस्त है, न ही सुरक्षा के कोई इंतज़ामात। नतीजा यह कि आए दिन आग लगने और केमिकल विस्फोट की घटनाएं होती रहती हैं।
जीवनी मंडी एरिया की श्रीजी इंडस्ट्रीज में लगी भीषण आग ने कई मजदूरों की जान ले ली थी और अनेकों परिवारों को तबाह कर दिया था। इस तरह की घटनाएं इस उद्योग की लापरवाही और सरकारी निगरानी के अभाव की ओर इशारा करती हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, आगरा के जूता उद्योग में काम करने वाले 60% से ज़्यादा मजदूर टीबी, सांस की बीमारियों और त्वचा रोगों से पीड़ित हैं। चमड़े को प्रोसेस करने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स, जैसे क्रोमियम और गोंद (एडहेसिव), मजदूरों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। महिलाएं, जो घरों में जूते सिलने का काम करती हैं, उन्हें भी कम मज़दूरी और अस्वस्थ हालात का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा, नशे की लत, मजदूरों की सेहत को और बर्बाद कर रही है। मजबूरी में काम करने वाले ये लोग अक्सर थकान और तनाव से बचने के लिए नशे का सहारा लेते हैं, जो उनकी मुसीबतों को और बढ़ा देता है।
आगरा की टैनरियों से निकलने वाला कचरा और ज़हरीले पदार्थ नालियों और यमुना नदी को प्रदूषित करते हैं। चमड़ा प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स पानी में मिलकर लोगों की सेहत के लिए खतरा बन रहे हैं। सरकारी नियमों की अनदेखी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लापरवाही ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।
हालांकि, अब इस उद्योग को बचाने के लिए कुछ पहल हो रही हैं। जेवर हवाई अड्डे के पास 100 एकड़ में बनने वाला मेगा फुटवियर पार्क एक बड़ा कदम है। यह प्रोजेक्ट 3000 करोड़ रुपये के निवेश से बनाया जा रहा है और इसमें मॉडर्न फैक्ट्रियाँ, वर्कशॉप्स और सुरक्षित वातावरण होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या छोटे कारीगरों और मजदूरों तक इसका फायदा पहुँच पाएगा?
इसके अलावा, अछनेरा में प्रस्तावित लेदर पार्क भी एक बड़ी उम्मीद थी, हालांकि यह प्रोजेक्ट सालों से अटका हुआ है। अगर इसे जल्दी पूरा किया जाए, तो आगरा के जूता उद्योग को नया जीवन मिल सकता है।
औद्योगिक क्षेत्रों का विकास: छोटी वर्कशॉप्स को संगठित औद्योगिक क्षेत्रों में शिफ्ट किया जाए। सुरक्षा मानकों का पालन हो: फैक्ट्रियों में आग सुरक्षा और वेंटिलेशन का ठीक बंदोबस्त हो। मजदूरों के स्वास्थ्य की देखभाल की जाए: नियमित मेडिकल कैंप और बीमा योजनाएं लागू की जाएँ। प्रदूषण नियंत्रण: टैनरियों के कचरे का सही तरीके से निपटान किया जाए। सरकारी और प्राइवेट सहयोग से इस उद्योग को मॉडर्नाइज किया जाए। साथ ही आगरा विश्व विद्यालय इस इंडस्ट्री पर रिसर्च कराकर नवाचार प्रोत्साहित करे।
आगरा का जूता उद्योग सिर्फ एक कारोबार नहीं, बल्कि शहर की पहचान और हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी है। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह उद्योग खत्म हो जाएगा। सरकार, उद्योगपतियों और समाज को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा, ताकि आगरा के जूते फिर से दुनिया भर में अपनी धाक जमा सकें।