इन दिनों उत्तर प्रदेश में सियासतदानों की गर्मी और चर्बी दोनों ही बढ़ी हुई नज़र आ रही हैं। इतनी बढ़ी हुई नज़र आ रही हैं कि वे दूसरे दल के सियासतदानों को गर्मी उतारने, बुल्डोजर चलाने, देख लेने जैसी धमिकयाँ देने के अलावा हिन्दू-मुस्लिम करते और एक-दूसरे की बुराई करते नज़र आ रहे हैं। मगर जनता ख़ामोशी से सारा तमाशा देख रही है और सोच रही है कि जहाँ इतने साल सह लिया, वहाँ एक महीना और सही, फिर गर्मी उतारेंगे इन सियासतदानों की। चुनावी माहौल में इन सियासतदानों के बिगड़े बोल जनता अभी ध्यान से सुन रही है और उनकी करनी और कथनी का अन्तर देख रही है। सियासतदानों के बिगड़े बोलों की अगर बात करें, तो इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुज़फ़्फ़रनगर की एक जनसभा में गर्मी उतारने की गली के बिगड़ैलों जैसी भाषा से की। इसके बाद तो मानों सियासी पारा चढऩे लगा और एक के बाद एक कई सियासी लोग इसी तरह की निम्न स्तर की भाषा पर उतर आये।
सभी सियासी अपनी तारीफ़ों के पुल बाँधने और दूसरी पार्टी के सियासतदानों पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की कोशिश इस हद तक करने में लगे हैं कि अपनी मर्यादा भूल रहे हैं। आचार संहिता का नियम कहता है कि किसी भी दल को किसी भी तरह की भाषा, रैली, धमकी, हथियार प्रयोग अथवा बल पूर्वक अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है। मगर उत्तर प्रदेश में जब भी चुनाव होते हैं, सियासी लोग इससे बाज़ नहीं आते। मगर ताज़्ज़ुब तब होता है, जब चुनाव आयोग इस पर चुप्पी साधे रहता है।
चुनाव में साम्प्रदायिक रंग
विवादित और अभद्र टिप्पणी करने की जिस कोशिश में लगे हैं, उसमें उबाल आते-आते बात एक बार फिर हिन्दू-मुस्लिम पर अटकाने की कोशिशें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तरफ़ से हो रही हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पर फायरिंग के ज़रिये इसे उकसाने की कोशिश पहले ही की जा चुकी है। इसके बाद असदुद्दीन ओवैसी को जेड प्लस सुरक्षा देकर मुस्लिमों का दिल जीतने की जो कोशिश हुई, वह किसी से नहीं छुपी है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई खोदने की कोशिश में सियासतदानों के द्वारा जो कुछ बोला-बका जा रहा है, उसमें अब छोटे-छोटे सियासी भी बरसाती मेंढक की तरह टर्र-टर्र करने में जुट गये हैं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि अपनी ग़लतियाँ छुपाने और हार की धडक़नें बढऩे के चलते सियासतदानों की गर्मी बढ़ गयी है, जो वो दूसरी पार्टी के सियासतदानों पर निकालने में लगे हैं। हालाँकि सपा भी इस दलदल में धँसती नज़र आ रही है। भाजपा के गर्मी उतारने, लाल टोपी, चर्बी कम करने जैसे विवादित बयान देने के बाद सपा की तरफ़ से हिन्दूगर्दी से शुरू हुई विवादित बयानबाज़ी के बाद सियासी लोग कबूतर उड़ाने जैसे सियासी बयान दिये जा रहे हैं। हालाँकि इसकी शुरुआत जिन्ना से हुई थी, जिसका दोष भाजपा और सपा एक-दूसरे पर मढ़ रही हैं।
नज़रिया नहीं, झूठ और वादे हैं
हैरत इस बात की है कि सभी सियासी अपने-अपने इलाक़ों में रूठे मतदाताओं को मनाने की कोशिशों में दूसरी पार्टी के सियासतदानों पर छींटाकसी करने, अभद्र टिप्पणियाँ करने में तो लगे हैं। मगर कोई भी विकास और लोगों के हित की बात करता नज़र नहीं आ रहा है। सियासी जानकार कहते हैं कि भाजापा ने पिछले पाँच साल में प्रदेश का कोई विकास नहीं किया है, इसलिए उसके पास विकास का कोई नज़रिया (विजन) नहीं है। हाल के पाँच-सात महीने में उसने शिलान्यास का जो खेल खेला है, वह उसी को विकास बताकर जनता को एक बार फिर ठगना चाहती है। हालाँकि भाजपा ने इस बार के अपने घोषणा-पत्र में पिछली बार की तरह ही वादों की झड़ी लगायी है। सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी के सियासतदानों के पास भी लोगों को यह बताने के लिए कुछ नहीं है कि उन्होंने सभी प्रदेशवासियों की उन्नति के लिए क्या एजेंडा तैयार किया है? सभी के पास कोरे वादों की पोटली है। सच भी यही है कि इन सियासतदानों के पास वादों की झड़ी लगाने के सिवाय और कुछ है भी नहीं। यही कारण है कि वो विकास के मुद्दे से हटकर जनता को मनाने के चक्कर में कभी किसी पर कीचड़ उछालते हैं, तो कभी किसी की बेइज़्ज़ती कर देते हैं।
तारीफ़ों के पुल
अगर अपनी तारीफ़ में लगे सियासतदानों की बात करें, तो वे झूठे आँकड़े पेश करने में पीछे नहीं दिख रहे। सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी का यही हाल है; मगर सत्ता पक्ष इस मामले में कुछ ज़्यादा ही आगे है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके लिए प्रचार में उतरे उनकी पार्टी के बड़े-बड़े सियासी लोग अपनी तारीफ़ में तरह-तरह के कई कोरे झूठ बोले जा हैं। अगर मुख्यमंत्री योगी की बात करें, तो उन्होंने हाल में कहा कि उनके शासनकाल में प्रदेश में कोई दंगा नहीं हुआ। मगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़े बताते हैं कि सन् 2017 में भाजपा की सत्ता आने के बाद प्रदेश में 195 साम्प्रदायिक दंगों की घटनाएँ हुई हैं। सन् 2019 से सन् 2020 के बीच साम्प्रदायिक दंगों में 7.2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। अगर सभी तरह के दंगों की घटनाओं की बात करें, तो एनसीआरबी के आँकड़े बताते हैं कि सन् 2017 में 8,900 घटनाएँ, सन् 2018 में 8,908 घटनाएँ और सन् 2020 में 6,126 घटनाएँ दंगों की दर्ज की गयी थीं। इससे पहले योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि उनके शासनकाल में अपराध नहीं हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी योगी राज में अपराध कम होने का दावा किया। मगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आँकड़े बताते हैं कि सन् 2017 के बाद प्रदेश में अपराध ख़ूब हुए हैं। इन अपराधों में महिलाओं और दबे-कुचले वर्ग के लोगों पर अत्याचार के आँकड़े चरम पर रहे।
आँकड़े बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में महिलाओं पर अपराध अखिलेश यादव की सरकार से भी 43 फ़ीसदी ज़्यादा हुए। राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट बताती है कि सन् 2021 में देश में महिलाओं पर अत्याचार की कुल 31,000 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से अकेले उत्तर प्रदेश से आधी शिकायतें मिलीं।
हत्याओं की सबसे क्रूरतम स्थिति की अगर बात करें, तो हत्याएँ होने का इससे बड़ा सुबूत और क्या होगा कि योगी आदित्यनाथ सरकार में पुलिस तक हत्याओं में लिप्त रही।
जनता को समझना होगा मिलीभगत का खेल
उत्तर प्रदेश में इस समय सोशल मीडिया पर एक वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में क्या है, यह बताने से पहले यहाँ यह बताना ज़्यादा ज़रूरी है कि इसमें हैं कौन-कौन? दरअसल इस वीडियो में भाजपा के पक्के सहयोगी रहे और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हैं।
बता दें, राजभर स्यवं को पिछड़े समाज का नेतृत्व करते हैं और भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। हाल-फ़िलहाल सपा के साथ गठबन्धन में हैं। इनके बारे में सियासी जानकार कहते हैं कि इन्हें भाजपा ने ही सपा में भेजा है, ताकि अगर भाजपा को चुनाव में बहुमत न मिले, तो यह सपा को एक बड़ा झटका देकर फिर से भाजपा की सरकार बनवा सकें।
वायरल वीडियो में जो दूसरे कद्दावर नेता हैं, वो हैं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, जिनके बारे में सियासी जानकार कहते हैं कि उन्हें सपा और कांग्रेस का मुस्लिम वोट काटने के लिए ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश चुनाव में उतारा है। हमेशा भाषणों में भाजपा के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने वाले असदुद्दीन ओवैसी का इस दोहरे चेहरे का उपयोग भाजपा पहली बार उत्तर प्रदेश में ही नहीं कर रही है, बल्कि इससे पहले वह इस कट्टर चेहरे का उपयोग बिहार और बंगाल के विधानसभा चुनावों में भी कर चुकी है। वायरल वीडियो में तीसरा बड़ा चेहरा जो दिख रहा है, वो है आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ का। दलितों का मसीहा बनने की कोशिश में लगे रावण का दोहरा चरित्र इस वीडियो में खुलकर सामने आया है।
अब इस वीडियो में इन तीनों स्टफनियों की वार्तालाप क्या हुई? यह बताते हैं। इस वायरल वीडियो में चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ असदुद्दीन ओवैसी से हँसकर कहते दिख रहे हैं कि आपने मुझे तो गालियाँ खिलवायीं, (ओमप्रकाश राजभर की ओर इशारा करते हुए) इन्हें क्या दिलवा रहे हो? चंद्रशेखर आज़ाद रावण की इस बात पर असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर हँसते हैं। इसके बाद सब बैठ जाते हैं और असदुद्दीन ओवैसी ओमप्रकाश राजभर के पास बैठे हैं और ओमप्रकाश राजभर असदुद्दीन ओवैसी से कह रहे हैं कि क्या हो रहा है? किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
इस वायरल वीडियो की पूरी गतिविधियों के अलावा चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ और ओमप्रकाश राजभर की बातों पर जनता को ध्यान देने और यह समझने की महती आवश्यकता है कि उसके साथ क्या खेल हो रहा है? एक बार फिर इस वीडियो को लोग गौर से देखें और असदुद्दीन ओवैसी पर हुए हमले के बाद उन्हें मिली जेट प्लस सुरक्षा के बीच जुड़े तारों का मंथन करें, तो सम्भव है कि एक बड़ी पार्टी का सियासी खेल समझ में आ जाए।