लादेन के बाद जवाहिरी की मौत से इस ख़ूँख़ार आतंकी संगठन को लगा बड़ा झटका
आज से 11 साल पहले ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी सील कमांडो के हाथों मारे जाने के बाद अब अल-क़ायदा में उसके उत्तराधिकारी आयमान अल जवाहिरी का भी अमेरिका ने काबुल में ख़ात्मा कर दिया। यह माना जाता है कि लादेन के समय अल-क़ायदा जितना मज़बूत था, उतना जवाहिरी के समय नहीं रहा। वो कुछ देशों में गुटों में भी बँटा है। सैफ-अल-अदेल अल-क़ायदा का नया सरगना हो सकता है, जो कभी लादेन का सुरक्षा प्रमुख रहा है। लेकिन अमेरिका को अल-क़ायदा के इन दो दुर्दांत आतंकियों को ख़त्म करने में 20 साल लग गये। अल-क़ायदा को ख़त्म करने के लिए ही अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान गया और उसने नाटो सेनाओं को युद्ध में झोंका। एक अनुमान के मुताबिक, उसे इन सालों में क़रीब 180 लाख करोड़ रुपये फूँकने पड़े। हजारों सैनिकों और नागरिकों की जान गयी वो अलग। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या लादेन और जवाहिरी जैसे योजनाकारों के अभाव में अल-क़ायदा ख़त्म हो जाएगा? इसका जवाब मुश्किल है। लेकिन यह सच है कि अल-क़ायदा समय के साथ कमज़ोर हो रहा है और उस पर दबाव जारी रहता है, तो उसके बिखरने की सम्भावना है। भले इस दौरान वह अपने मज़बूत होने का सन्देश देने के लिए इक्का-दुक्का बड़े हमले कर दुनिया को थर्राने की कोशिश करे।
अल-क़ायदा भारत को निशाने पर लेने की बहुत कोशिश करता रहा है। कश्मीर में उसने हाल के दशकों में अपने पैर जमाने की बड़ी कोशिश की लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। जवाहिरी ने एक समय कश्मीर की स्थिति की तुलना फ़िलस्तीन से की थी। जवाहिरी भारत में कश्मीर मुद्दे को लेकर जेहाद की भी बात करता था। हाल ही में उसने कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद पर भी बयान देकर उसका समर्थन किया था।
उसने भारत के समर्थन के लिए सऊदी अरब जैसे देशों की आलोचना भी की थी। जवाहिरी के अफ़ग़ानिस्तान में मारे जाने से यह तो पता चल गया है कि अल-क़ायदा तालिबान की सत्ता वाले इस देश को फ़िलहाल अपने लिए सुरक्षित ठिकाना मान रहा है और वह भारत सहित एशिया क्षेत्र के देशों के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियाँ वहाँ से चला रहा है। हाल में भारत ने तालिबान नेतृत्व के साथ सम्पर्क साधा है और अपना दूतावास भी काबुल में सक्रिय किया है। भारत का मक़सद अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को अल-क़ायदा जैसे गुटों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना ही है।
पूर्वोत्तर राज्य असम में 29 जुलाई को अल-क़ायदा से जुड़े एक्यूआईएस और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) के 11 लोगों को हिरासत में लिया गया था। मोरीगाँव, बारपेटा, गुवाहाटी और गोलपारा ज़िलों से इन लोगों के पकड़े जाने से ज़ाहिर होता है कि अल-क़ायदा भारत में पैर जमाने की कोशिश में है। लेकिन इसके बावजूद भारतीय एजंसियों की सक्रियता के चलते उसे उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है।
टूट रहा है अल-क़ायदा
अल जवाहिरी के अमेरिका के हाथों मारे जाने से निश्चित ही अल-क़ायदा को बड़ा झटका लगा है। सन् 2019 में फ्लोरिडा में तीन अमेरिकी नौ सैनिकों की हत्या में जवाहिरी की भूमिका रही। हालाँकि छिटपुट आतंकी घटनाओं को छोड़ जवाहिरी के मुखिया रहते अल-क़ायदा कमज़ोर हुआ है। अटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जवाहिरी ने इस बीच आईएसआईएस जैसी इस्लामिक स्टेट बनने के सपने से दूर सीरिया, यमन, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सहयोगी संगठनों के ज़रिये विस्तार किया। उसने अल-क़ायदा को आतंकी संगठनों का सांकेतिक नेतृत्व के लायक बनाये रखा। हालाँकि जवाहिरी की मौत के बाद अल-क़ायदा मिटने की कगार पर आ खड़ा हुआ है, ऐसा बहुत से रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं। सीरिया में उसकी एक शाखा को इसी साल जून में एक प्रतिद्वंद्वी गुट ने ही ख़त्म कर दिया। यमन में उसे अपने नेता के अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के कुछ ही समय बाद विद्रोहियों के हाथों हारना पड़ा। इसी साल माली में फ्रांस के एक हमले में उसके नेता की मौत के बाद अभी तक उसका उत्तराधिकारी तक अल-क़ायदा नहीं चुन पाया है। भले ही अफ्रीकी देशों सोमालिया और माली में अल-क़ायदा की शाखाएँ अब भी मज़बूत हैं। अल-क़ायदा का सबसे ताक़तवर और ख़तरनाक गुट अल-शबाब है। सोमालिया के मध्य और दक्षिणी हिस्से के अधिकतर ग्रामीण इलाक़े आज भी अल-शबाब के क़ब्ज़े में हैं, जहाँ उनकी सत्ता चलती है। सीरिया में अल-क़ायदा की नुमाइंदगी उसका अघोषित गुट हुर्रास अल-दीन करता है; लेकिन वह अपनी पैठ बनाने में नाकाम रहा है। कारण अमेरिका का लगातार दबाव और आपसी अनबन है। सीरिया के लोग अल-क़ायदा को एक ख़तरा मानते हैं। हुर्रास अल-दीन को उनका ही एक प्रभावशाली विरोधी गुट चुनौती दे रहा है।
उधर यमन में इसकी शाखा अल-क़ायदा इन अरेबियन पेनिनसुला (एक्यूएपी) एक जमाने में अल-क़ायदा का बहुत ख़ूँख़ार गुट था। आज वह अल-क़ायदा के सबसे कम सक्रिय गुटों में शामिल है। जनवरी में एक्यूएपी के प्रमुख को अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में मार गिराया था। यही नहीं, हाल ही में बाक़ायदा सूबे में हूथी विद्रोहियों ने एक्यूएपी का एक मज़बूत गढ़ उससे छीन लिया। यह माना जाता है कि एक्यूएपी में जासूसों की सेंध ने उसकी बड़ी तबाही की है।
अल-क़ायदा के कमज़ोर होने की एक बड़ी बजह सामान्य मुस्लिमों में पहुँच बना पाने में उसकी नाकामी है। अल जवाहिरी के समय में भी इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। वह ख़ुद को आधुनिक बनाने में भी नाकाम रहा है। इसका कारण यह है कि वह ख़ुद की कट्टर जिहादी संगठन की छवि नहीं बदलना चाहता। उसका नेतृत्व महसूस करता है कि रास्ता बदलने से उसके अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है। हालाँकि अपनी उपस्थिति बनाये रखने के लिए अल-क़ायदा ने हाल के वर्षों में कई हमले भी किये हैं।
अमेरिका ने ही पाला था अल-क़ायदा को!
आज भले अमेरिका अल-क़ायदा का दुश्मन हो; लेकिन एक ज़माने में अमेरिका ने ही उसे पाला-पोसा। आज जो तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में शासक है, उसके अल-क़ायदा से पुराने रिश्ते हैं। याद करें, तो पता चलता है कि 80 के दशक में जब तत्कालीन सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े की जंग लड़ी उस समय सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकालने के लिए जो संगठन बने उनमें अल-क़ायदा एक था। ओसामा बिन लादेन ने इसका गठन किया था। उसे सोवियत संघ के ख़िलाफ़ लड़ रहे मुजाहिदीनों का भी समर्थन था। लेकिन हैरानी यह है कि अल-क़ायदा को अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए का भरपूर समर्थन था। समय के साथ अल-क़ायदा अमेरिका के लिए ही साँप बनकर आ खड़ा हुआ और नौवत यह आ गयी कि इसी अमेरिका ने इस आतंकी संगठन के दो प्रमुखों को मारने का काम किया।
जवाहिरी का उत्तराधिकारी कौन?
अल जवाहिरी की मौत के बाद सैफ़-अल-आदेल अल-क़ायदा का मुखिया बन सकता है, जो मिस्र में सेना अधिकारी रहा है। अल-क़ायदा के संस्थापक सदस्यों में से एक आदेल साल 80 के दशक में आतंकवादी संगठन मक़तब अल-ख़िदमत में शामिल हुआ था और इसी दौरान वह लादेन और जवाहिरी से मिला। आदेल अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में है और उसने आदेल पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम घोषित किया हुआ है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर काउंटर टेररिज्म की रिपोर्ट के अनुसार, जवाहिरी के बाद अल-क़ायदा की कमान के आदेल के अलावा कई और भी दावेदार हैं। इनमें अल-क़ायदा की मीडिया कमेटी के प्रमुख और अल जवाहिरी के दामाद अब्द-अल-रहमान-अल मघरेबी का नाम भी शामिल है। ओसामा बिन लादेन का बेटा उसमा लादेन उसका बहुत क़रीबी था। उनके अलावा ऑपरेशन कमांडर अबु-अल-मसारी और ओसामा बिन लादेन का सिक्योरिटी कमांडर रहे अमीन मुहम्मद-उल-हक़ साम ख़ान को भी अल-क़ायदा की कमान सौंपी जा सकती है।