किसानों, कृषि उपज का कारोबार करने वाले और कृषि और कृषि पर आधरित उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले अधिकतर लोगों के परिवार लाचारी और बेबसी का जीवन जीने को विवश हैं। यह उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि देश खाद्यन्न के मामले में पूरी तरह आत्म निर्भर है।
खेती देश में रोजगार देने वाला सबसे बड़ा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें 56 फीसदी लोग रोजगार में जुटे हैं। यदि हम इसमें कृषि उपज उद्योगों और सड़क, रेल, वायुमार्ग और जल मार्ग से कृषि उपज और कृषि उपज से बने सामान की ढुलाई करने के काम में लगे सभी तरह के तबके को जोड़ दे तो न केवल रोजग़ार की दृष्टि से कृषि सबसे बडा जरीया है बल्कि सकल घरेलू उत्पादन में उक्त सभी क्षेत्रों के योगदान को जोड़ा जाये तो जीडीपी में भी खेती का सर्वाधिक योगदान ही दिखेगा।
एक तरफ देश में कृषि उपज व कृषि उपज से बने सामान का कारोबार करने वाले, कृषि उपज पर निर्भर उद्योग चलाने वाले और सड़क, रेल, वायुमार्ग व जल मार्ग से कृषि उपज और कृषि उपज से बने सामान की ढुलाई का काम करने धनवान होते जा रहे हैं। यही नहीं, खेती के काम में जुटे तबके के वोटों से बनने वाले सांसद और विधायक भी धनवान होते जा रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ खेती में जुटा बड़ा तबका लाचार और बेबस होकर निजी सूदखोरों और बैंकों से कजऱ् लेकर न केवल कजऱ्दार बन जाते हैं बल्कि कर्ज के बोझ तले दबकर कुछ लोग आत्महत्या तक कर बैठते हंै। भारतीय किसान मजदूर संयुक्त यूनियन का साफ मानना है ऐसी व्यवस्था हमको मंजूर नहीं है। खेती के काम में जुटे तबके की मेहनत और देश के विकास में उसके योगदान को देखते हुए यूनियन वर्षों से खेती में लगे इस तबके को सरकारी कर्मचारी के वेतन के बराबर आमदनी की गारंटी की मांग करती आ रही है।
2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि केन्द्र में उनकी सरकार बनने पर सबके खाते में 15-15 लाख रुपये आएंगे, हर सल दो करोड़ युवाओं को रोजगार मिलेगो, किसानों को लागत का डेढ गुना दाम देंगे, सबके अच्छे दिन और गंगा को पवित्र करने का वादा किया था। पिछले पांच वर्षों के दौरान मोदी सरकार ने इनमें से किसी भी वादे को पूरा नहीं किया।
जबकि वादों के विपरीत सुप्रीम कोर्ट में किसानों को लाभ देने के मामले में सुनवाई के वक्त मोदी सरकार ने शपथ-पत्र देते हुए कहा कि उसके लिए किसानों को डेढ गुना लाभ दे पाना संभव नहीं है और दूसरे, देश की आजादी के 66 वर्ष बाद भूमि अधिग्रहण के लिए बने कानून ”उचित मुआवजे का अधिकार,
पुनस्र्थापन, पुनर्वास और भूमि पारदर्शिता अधिनियम 2013’’ को अध्यादेश जारी कर तीन बार कमज़ोर करने का प्रयास किया। जिससे कि वह देश के किसान-आदिवासियों की ज़मीन छीनकर अपनी चहेती कंपनियों को दे सकें। यही नहीं मोदी सरकार एक तरफ फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए किसानों की फसलों की बीमा राशि से बीमा कंपनियों की तिजोरियां भरती जा रही हैं और दूसरी तरफ आवारा पशु गोवंश देशभर में हमारे किसानों की फसलें चौपट कर रहे हैं और बीमा कंपनियां आवारा गोवंशों से हो रहे फसलों के नुकसान के मुआवजे की एक रुपये की भी भरपाई नहीं करती हैं।
यही नहीं छह जून 2017 को मंदसौर, मध्यप्रदेश में किसान आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी के वादे के मुताबिक लागत मूल्य में 50 फीसदी लाभ के समर्थन मुल्य की मांग को लेकर सड़क पर उतरे थे तो उन किसानों में शामिल 6 किसान तत्कालीन शिवराज सिंह चैहान की अगुवाई वाली भाजपा सरकार के राज में पुलिस फायरिंग में मारे गए। जिसके कारण न केवल देशभर के किसान संगठन लामबंद हुए बल्कि किसानों के बीच भी मोदी की कथनी और करनी में जो अंतर वह भी बेनकाव हुआ। देशभर में किसान आंदोलनों के कारण किसान संगठित और सोशल मीडिया के कारण जागरूक हो चुका है। इसलिए अब किसानों को अन्नदाता कहकर उनकी उपज और मतदाता कहकर झूठे वादे कर खेती के काम में जुटे तबके के वोट ठगना सरल नहीं रहा।
चुनाव के मौसम में रंग चुके देश में खेती कर लाचारी और विवशता में जीवन जीने वाला तबका भी अब आदमी आदमी नहीं रहा वह वोटर हो चुका है। वोटर होते-होते वह कुछ चतुर-चालाक भी हो गया है। पहले वह गीता-कुरान उठाकर इस या उस दल को अपना वोट देने के लिए बंध जाता था। फिर वादा एक से और वोट दूसरे को देने लगा। वह वोट के जरिए उम्मीदवारों को हराने-जिताने और सत्ता में बैठे दल की सत्ता छीनने-सत्ता हासिल करने वाले दल को सत्ता दिलाने की अपनी ताकत को पहचान चुका है।
राजनीति दल भी अब खेती के काम में जुटे तबके की ताकत को जान चुके हैं और मान चुके है कि उनके एक-एक उम्मीदवार का भाग्य इस तबके की मु_ी में कैद है यही नहीं राजनेता यह भी जान चुके हैं कि केन्द्र में सरकार भी इस तबके के वोट और समर्थन के बगैर बना पाना असंभव है।
2014 के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी द्वारा किये गए वादों में एक भी वायदे को 5 वर्षों के दौरान पूरा न करना, सुप्रीम कोर्ट में किसानों को लाभ देने के मामले में सुनवाई के वक्त मोदी सरकार का किसानों को डेढ गुना लाभ दे पाने में असमर्थता व्यक्त करना, देश की आजादी के 66 वर्ष बाद भूमि अधिग्रहण के लिए बने कानून ”उचित मुआवजे का अधिकार, पुनस्र्थापन, पुनर्वास एवं भूमि पारदर्शिता अधिनियम 2013’’ को अध्यादेश जारी कर तीन बार कमजोर करने का प्रयास करना और मंदसौर में लाभकारी मुल्य की मांग करने वाले 6 किसानों को पुलिस फायरिंग में मरवाने, फसल बीमा कंपनियां आवारा गोवंशों से हो रही किसानों की फसलों के नुकसान के मुआवजे की एक रुपये की भी भरपाई नहीं करती हैं।
किसान सरकार से नाराज़ हैं। मोदी सरकार किसानों की नाराजगी कितना कम कर पाएगी यह तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता लग सकता है लेकिन एक बात साफ है 17 रूपये रोजाना की मदद से न तो किसान सक्षम हो सकते हैं, न उन किसानों की फसलों के नुकसान की भरपाई हो सकती है जिनकी फसलों को आवारा गोवंश नष्ट कर देते हैं, न उन किसानों का भला होने वाला है जिनके बच्चे बेरोजग़ार घूम रहे हैं। इस तरह की योजना को नोट फॉर वोट जरूर कहा जा सकता है। भारतीय किसान मजदूर संयुक्त यूनियन का मानना है कि मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार किसानों को 17 रूपये प्रति दिन देकर चुनाव में सफलता हासिल करके उन्हें पक्का भिखारी बनाने के लिए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को कमजोर कर किसान-आदिवासियों की जमीन छीनकर अपने चहेते उद्योगपतियों को देने का ख्वाब देख रहीे है। यूनियन मोदी सरकार के इस ख्वाब को किसी भी दशा में पूरा नहीं होने देगी।
मोदी सरकार के विपरीत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुआई में यूपीए गठबंधन है, जो देश के 20 फीसदी गरीबों को न्याय योजना 6 हजार रूपये मासिक देने का वादा कर चुका 6000रूपये मासिक मदद से न केवल गरीब किसान-मजदूरों के परिवारों को न्याय मिलेगा बल्कि राहुल गांधी की उक्त न्याय योजना से बाबा साहब के सामाजिक न्याय, आखिरी पायदान पर बैठे व्यक्ति को न्याय देने के महात्मा गांधी के सिद्धांत को अमली जामा पहनाने और गंणतंत्र दिवस की सार्थकता को धरातल पर उतारने का लोकतांत्रिक निर्णय भी है।
लेखक: भूपेन्द्र सिंह रावत
भारतीय किसान मजदूर संयुक्त
यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता