प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई, 2014 में पद सँभालने के तत्काल बाद ऐलान किया था कि वर्ष 2022 तक भारत की कच्चे तेल पर आयात की निर्भरता को 10 फीसदी कम किया जाएगा। अब छ: साल से अधिक का समय बीत चुका है और इसके लिए तय किये गये लक्ष्य के लिए महज़ दो साल बाकी हैं। कच्चे तेल के आयात में 10 फीसदी की कमी के वादे पर पिछले छ: वर्षों में कितना अमल किया गया है? इसके जवाब में कहने के लिए फिलहाल कुछ भी नहीं है।
कच्चे तेल के आयात में कोई भी कमी करने से पहले दो शर्तें ज़रूरी हैं। पहली, घरेलू उत्पादन में जितनी कमी की जाए, उतनी ही वृद्धि हो। दूसरी, देश में इसकी खपत में पर्याप्त गिरावट दर्ज की जाए। दुर्भाग्य से न तो खपत में कमी आयी है और न ही घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत 2014-15 में भारत का कच्चे तेल का उत्पादन 37.46 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) था, जो अगले वर्ष में घटकर 36.95 एमएमटी रह गया। इसके बाद प्रत्येक वर्ष उत्पादन में गिरावट जारी रही। 2019-20 में कच्चे तेल का उत्पादन छ: फीसदी घटकर 32.17 एमएमटी हो गया, जो पिछले 18 वर्षों में उत्पादन का सबसे निचला स्तर रहा। इस गिरावट में निजी क्षेत्रों द्वारा संचालित कम्पनियों की हिस्सेदारी 15.5 फीसदी से अधिक थी; जबकि ऑयल इंडिया में उत्पादन में छ: फीसदी की गिरावट आयी। इस दौरान ओएनजीसी के क्रूड उत्पादन में महज़ दो फीसदी की कमी आयी।
उत्पादन में गिरावट के पीछे कई कारण रहे। इनमें से स्थानीय मुद्दों को लेकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में अशान्त स्थिति और आन्दोलन रहा, जिससे असम में ओएनजीसी और ऑयल इंडिया दोनों के तेल उत्पादन पर विपरीत असर देखने को मिला। केयर्न ऑयल और गैस उत्पादन में माँग और बाज़ार की वजह से भी प्रभावित हुआ। यहाँ तक कि मौज़ूदा वित्त वर्ष में भी खास सम्भावनाएँ नज़र नहीं आ रही हैं; क्योंकि तेल उत्पादकों की खास दिलचस्पी न होने के कारण वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें कम ही हैं, जिससे इनके उत्पादन स्तर में बढ़ोतरी हुई है।
सरकार अब भी आशावादी
कच्चे तेल के उत्पादन में लगातार गिरावट के बावजूद सरकार अब भी क्रूड ऑयल के आयात में कटौती के अपने लक्ष्य को लेकर आशावादी बनी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब छ: महीने पहले दोहराया था कि सरकार ने अपने आयात में 10 फीसदी की कमी लाने की दिशा में कुछ निर्णायक कदम उठाये हैं। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी कई बार कह चुके हैं कि सरकार कच्चे तेल पर निर्भरता कम करने के 10 फीसदी कटौती के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नयी रणनीति और पहल पर काम कर रही है। निर्धारित लक्ष्य हासिल करने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय की नयी रणनीति और पहल क्या थी? पहली, एक नयी हाइड्रोकार्बन अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति शुरू की गयी। दूसरी, छोटे-छोट क्षेत्रों की खोज करके मुद्रीकरण के लिए भण्डार को अनुबन्ध पर दिया गया। तीसरी, 28 जून 2017 को हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय द्वारा एक राष्ट्रीय डेटा भण्डार की स्थापना की गयी थी। कुछ अन्य पहलें भी की गयीं, जैसे कि अप्रकाशित क्षेत्रों के 2 डी भूकम्पीय सर्वेक्षण। हालाँकि परिणाम क्या मिला? यह मायने रखता है। इसलिए यह पता लगाने की आवश्यकता है कि इन सभी पहलों से वर्ष 2022 तक कच्चे तेल के आयात को 10 फीसदी कम करने के मुख्य कार्य में कितनी मदद की है?
क्या घरेलू उत्पादन का विस्तार सम्भव है?
वर्तमान में देश में दो प्रमुख सरकारी स्वामित्व वाली ईएंडपी कम्पनियाँ ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड हैं; बाकी कुछ निजी और संयुक्त उपक्रम भी हैं। वर्ष 2018-19 में 34.2 एमएमटी के कुल उत्पादन में से ओएनजीसी का हिस्सा अकेले 21.04 एमएमटी था। ऑयल इंडिया ने 3.29 एमएमटी का योगदान दिया और शेष 9.87 एमएमटी निजी और संयुक्त उद्यम संस्थाओं का रहा। इस प्रकार यह आवश्यक है कि ओएनजीसी के अपतटीय और तटवर्ती दोनों क्षेत्रों से उत्पादन 20 फीसदी या इससे भी ज़्यादा बढ़ाया जाए। हालाँकि ऐसा करना उतना आसान नहीं है, जितना कि कह देना। अपने अपतटीय और तटवर्ती क्षेत्रों से इसका वार्षिक उत्पादन लगभग 2013-14 के बाद से 22.25 एमएमटी पर स्थिर बना हुआ है। भले ही ओएनजीसी के अधिकांश तटवर्ती क्षेत्र उत्पादन में गिरावट हुई हो, पर यह 50 साल से अधिक पुराना है; साथ ही इसको श्रेय इसलिए दिया जाता है, क्योंकि इसने न केवल अपने उत्पादन को बरकरार रखा है, बल्कि उत्पादन के लिए आईओआर और ईओआर जैसी नवीनतम तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन को बढ़ाया भी है।
भारत हमेशा से क्रूड का आयातक रहा है
कभी-कभी यह बात बताने की ज़रूरत पड़ती है कि भारत हमेशा से कच्चे तेल का आयातक रहा है। 1947 में पेट्रोलियम उत्पादों की घरेलू माँग लगभग 2.2 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) थी, जबकि उत्पादन असम से लगभग 0.25 एमएमटी था। 1960-61 में कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन केवल 0.45 मिलियन मीट्रिक टन था। 1980-81 तक, इसका उत्पादन 10.51 एमएमटी तक बढ़ गया। सात साल बाद 2018-19 में घरेलू उत्पादन मुश्किल से 34.20 एमएमटी था; जबकि आयात 229 एमएमटी तक पहुँच गया था। यानी करीब 86 फीसदी की कमी। आसान शब्दों में कहें, तो घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन भारत की कुल खपत का महज़ 14 फीसदी है।
क्या कच्चे तेल के आयात में 10 फीसदी की कमी लाने की प्रशंसनीय पहल वास्तविकता बन पायेगी या यह सिर्फ एक सपना साबित होगा? क्योंकि भारत में न तो कोई जादू की छड़ी है और न ही समृद्ध तेल के भण्डार हैं- महज़ कुछ जंगली हाथी वाले क्षेत्रों को छोडक़र। हमारी सालाना खपत के जो विकल्प अपनाये भी जा रहे हैं, उसके बावजूद इसमें बढ़ोतरी जारी रहेगी। इसलिए ज़रूरी है कि सच्चाई को समझें और अपने आपको ही धोखा न दें। कड़ुवा सच यही है कि आयातित कच्चे तेल पर हमारी निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ती जाएगी। भारत अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, इंडोनेशिया, मलेशिया, इज़राइल जैसे प्रमुख तेल आयातकों की सूची में शामिल है। इसके बारे में शर्म महसूस करने का कोई कारण नहीं है।
(राज कँवर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। उपरोक्त विचार लेखक के निजी हैं।)