7 फरवरी 2021 को उत्तराखण्ड में ऋषिगंगा नदी पहाड़ से उफनती हुई हज़ारों टन गाद व भारी भरकम पत्थर धकेलते हुए बढ़ी तथा मार्ग में सब कुछ तहस-नहस करती गयी। तपोवन परियोजना में ऋषिगंगा का पानी जल प्रलय करते हुए धौली गंगा में जा मिला, जिससे और तबाही मची। ऋषिगंगा के इस प्रकोप से तपोवन परियोजना के अतिरिक्त न जाने कितने ही लोग तबाह हो गये। तपोवन परियोजना में काम कर रहे लोगों का अभी तक कोई अता पता नहीं है।
अब जोशीमठ तबाह होने की हालत में है। प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या तपोवन परियोजना की सुरंग में घुसा ऋषिगंगा का पानी ही रिस रिसाकर जोशीमठ में निकल रहा है। यह प्रश्न भू-वैज्ञानिकों के लिए पहेली बन चुका है। जोशीमठ में भूस्खलन व पहाड़ दरकने की आँखों देखी घटनाओं के कई वृतांत इन दिनों हवा में तैर रहे हैं। समझदार लोग इसे प्रकृति का प्रकोप बता रहे हैं और पहाड़ों पर तीव्रता से हो रहे मानव अतिक्रमण की दुहाई दे रहे हैं। जोशीमठ व उसके आसपास बसे स्थानीय लोग घबराये हुए हैं। लोगों की रातों की नींद व दिन का चैन उड़ा हुआ है। कई मकानों के दरकने के समाचार प्रकाशित हो रहे हैं, मगर समाधान किसी के पास नहीं है। जानकार बता रहे हैं कि जोशीमठ में निकल रहे पानी में मिट्टी का रंग बाँध निर्माण के समय की मिट्टी की तरह है। पुष्टि किसी भी बात की नहीं हो रही है। चिन्तित सरकार भी है, मगर उसके पास भी इस आपदा को रोकने के उपाय नहीं हैं। कहा जा रहा है कि धौली गंगा के पानी में रसायन की जाँच नहीं होती है।
जोशीमठ में बचे हुए स्थानीय लोग सहमे हुए हैं तथा भगवान से जीवनदान की प्रार्थना कर रहे हैं। जोशीमठ क्षेत्र में बने घर फट रहे हैं। घरों के अतिरिक्त खेतों, सडक़ों एवं पहाड़ों में दरारें पड़ भी रही हैं तथा बढ़ भी रही हैं। ऐसा लगता है कि कुछ अनर्थ घटने को है। कुछ लोग आशंका कर रहे हैं कि कहीं जोशीमठ पूरी तरह पाताल में न समा जाए। जोशीमठ के नीचे खिसकने की आशंका भी लोग व्यक्त कर रहे हैं। अगर यह पहाड़ नीचे खिसका, तो दूसरे कई पहाड़ भी निश्चित ही खिसकेंगे तथा नीचे बसे लोगों के लिए भी मुसीबत बनेंगे। पिछले कई महीनों से जोशीमठ में बन रही इस तबाही की स्थिति को लेकर सरकार असहाय साबित हो रही है। चिन्ता की बात यह है कि जोशीमठ के साथ-साथ उत्तराखण्ड के क़रीब 600 गाँवों की भूमि भी दरकने लगी है।
टिप्पणीकार कह रहे हैं कि 7 फरवरी, 2021 को ऋषिगंगा में आयी बाढ़ के बाद ही पूरे क्षेत्र की जाँच सरकार को करनी चाहिए थी, मगर उसने इस घटना को प्रकृति का प्रकोप तथा भगवान का विधान मानकर आँखें मूँद लीं। अब जब दरारें पड़ती तथा बढ़ती जा रही हैं, तब सरकार तथा सरकारी विभागों की तंद्रा टूटी है। प्रदेश सरकार किसी भी हाल में तबाही से बचने के उपायों की खोज में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस संकट से चिन्तित हैं तथा उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए बैठक भी की है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जोशीमठ क्षेत्र की सुरक्षा का प्रयास में लगे हैं। सरकार के निर्देश पर जोशीमठ निवासियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया है।
प्रश्न यह है कि क्या जोशीमठ क्षेत्र को किसी भी तरह दरकने से बचाया जा सकेगा? कहावत है कि फूँस के घर में एक चिंगारी पूरा घर जला देती है तथा रेत के घर को हल्की-सी आहट गिरा देती है। प्रकृति के लिए भी सब कुछ तहस-नहस करना इसी प्रकार सरल है। प्रकृति की एक करवट से सैकड़ों जीवन तथा करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। उत्तराखण्ड सरकार अच्छी तरह जानती थी कि तपोवन परियोजना के कार्य के दौरान ऋषिगंगा में आयी बाढ़ के बाद इस क्षेत्र में $खतरे की आशंका बढ़ गयी है। यही नहीं जोशीमठ क्षेत्र में 7 फरवरी, 2021 के बाद से ही दरारें पडऩे लगी थीं, मगर उसने कोई ठोस उपाय इससे निपटने के लिए नहीं किये। हर साल हज़ारों की संख्या में आने वाले सैलानियों के अतिरिक्त जोशीमठ क्षेत्र में स्थानीय लोगों का घनत्व लगातार बढ़ रहा था। सन् 2011 में जोशीमठ की आबादी 16,709 थी, जो अब बढक़र लगभग 22,000 से अधिक हो चुकी है। भारत-चीन सीमा के निकट स्थित जोशीमठ से सडक़ नीती घाटी की ओर जाती है, जो चीन का सीमावर्ती क्षेत्र है। भारत का बाड़ाहोती क्षेत्र भी यहीं है, जिसे चीन अपना बताता रहता है। इस क्षेत्र में चीनी सैनिक घुसपैठ का प्रयास करते रहते हैं, जिसके चलते भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच तनाव बना रहता है। सामरिक रूप से अहम जोशीमठ के ऊपर ही पृथ्वी समतल से 4,000 मीटर ऊँचाई पर विख्यात पर्यटन स्थल औली है। अगर किसी भी तरह जोशीमठ भूमिगत हुआ, तो चीन बाड़ाहौती से लेकर औली क्षेत्र तक को हड़पने का दबाव बढ़ाने का प्रयास करेगा। जोशीमठ पहाड़ी ढलान पर बसा हुआ है। इसके सामने ही हाथी पर्वत है तथा इसके सामने से घाटियों से ही जाने वाले दो-तीन रास्ते बद्रीनाथ, फूलों की घाटी तथा हेमकुंड पहुँचाते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की प्रारम्भिक रिपोर्ट से पता चलता है कि पूरा जोशीमठ शहर डूब सकता है। एक भू वैज्ञानिक की सन् 1939 की रिपोर्ट कहती है कि जोशीमठ एक भूस्खलन के बाद बने पहाड़ पर बसा हुआ है, जो भूकम्प, भूस्खलन के हिसाब से बहुत संवेदनशील तथा अस्थिर है। 7वीं शताब्दी में उत्तराखण्ड के कत्यूरी राजवंश की राजधानी जोशीमठ को बनाया। तभी से यहाँ लोग बसने लगे तथा बढ़ते गये। अब यहाँ हज़ारों घर तथा बहुमंज़िला इमारतें हैं। अब जब तबाही की स्थिति है, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यहाँ बने घर पारम्पिक शैली से नहीं बने हैं। वैसे भू-वैज्ञानिक कई बार स्थानीय लोगों को चेता चुके थे, मगर सरकार तथा जनता किसी ने भी उनकी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। जनसंख्या घनत्व बढऩे के साथ ही पहाड़ को काट-काटकर समतल किया गया, सडक़ें बनायी गयी। भूमि तथा वृक्षों का कटान किया गया। नदियों में मलबा डाला जाता रहा। पहले जोशीमठ से केवल एक ही सडक़ बद्रीनाथ, फूलों की घाटी तथा हेमकुंड जाती थी, मगर अब जोशीमठ को बायपास करके नीचे से एक अन्य सडक़ भी बन रही है, जिसके लिए पहाड़ के तलहटी को विस्फोट करके निरंतर काटा जा रहा है। भू-वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ की भूमि के अंदर पहले ही एक बहुत बड़ी प्राकृतिक दरार है, जो हेलंग से तपोवन तक है। यह दरार जोशीमठ के ठीक नीचे तथा औली के पीछे से निकलती है। इसके अतिरिक्त वैक्रता थ्रस्ट तथा पिंडारी थ्रस्ट नाम की दो अन्य प्राकृतिक दरारें भी जोशीमठ के नीचे से निकलती हैं। प्रश्न यह है कि इतना सब पता होने के उपरांत भी उत्तराखण्ड की सरकार तथा जोशीमठ का प्रशासन चैन की नींद कैसे सोते रहे?
हालाँकि जोशीमठ में दरारें पडऩे तथा भूस्खलन के ठोस कारणों का अभी भी पता नहीं लगा है। इस जानकारी की खोज के लिए भू वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों के कई दल लगे हुए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह कि बीते 47 वर्षों में सामने आयी रिपोर्ट पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया?
कई बार जोशीमठ की संवेदनशीलता की जाँच भी हुई, भू-वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दी, मगर उसका लाभ क्या हुआ? कई जाँच समितियों ने नगर बन चुके जोशीमठ क्षेत्र पर मँडराते संकट के प्रति अब तक की प्रदेश सरकारों को लगातार सचेत किया था, मगर किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सन् 2013 के जल प्रलय के बाद भी वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी। 2022 में भी विशेषज्ञों ने जोशीमठ पर मँडराते संकट के प्रति सरकार को आगाह किया था, मगर इसका भी कोई लाभ नहीं हुआ। सन् 1976 से 2022 तक चार बार इस क्षेत्र की जाँच हुई, मगर सरकार तथा प्रशासन की नींद नहीं खुली। अब जब सब कुछ तबाह हो रहा है, तो हड़बड़ी मची हुई है। फिर एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न कि क्या भविष्य में जोशीमठ भारत के नक्शे पर बचा रह सकेगा?
इधर, बा$गपत के ठाकुरद्वारा मोहल्ले में लगभग दो दर्ज़न मकानों में दरार आने से इस क्षेत्र में भी हडक़ंप मच गया है। अलीगढ़ में भी लगभग एक दर्ज़न मकान फट चुके हैं। दोनों ही स्थानों पर लोगों में डर व्याप्त है। लोगों में तरह-तरह के शंकाएँ कानाफूसी के माध्यम से तैर रही हैं। कुछ लोग इसे जोशीमठ से जोड़ रहे हैं, तो कुछ एक अलग आपदा से। मगर मकानों में दरारें पडऩे का सही कारण नहीं पता चला है।