जहां कांशीराम ने मायावती को झुग्गी-झोपड़ियों में देखा था, तो वहीं अरविंद केजरीवाल भी सुंदर नगरी से आए थे, जो दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित एक झुग्गी-झोपड़ी है, जहां उन्होंने अपने एनजीओ ‘परिवर्तन’ के जरिए खुद को एक सिविल सर्वेंट से बदलकर पारदर्शिता कार्यकर्ता के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। लेकिन इन दो दशकों की यात्रा के दौरान वे 2025 में शीश महल में पहुंच गए, जिसने उनकी पार्टी को दिल्ली में पतन की राह पर ला खड़ा किया। यह एक क्लासिक केस स्टडी है क्योंकि लोगों के जीवन और समय में परिवर्तन लाने के बजाय लोगों ने एक परिवर्तित आदमी को देखा। इसके कारण दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की हार हुई जो विनाशकारी थी। यह दिल तोड़ने वाला है क्योंकि लाखों लोग उम्मीद कर रहे हैं कि कभी न कभी तो देश की राजनीति बदलेगी। केजरीवाल ने जो किया वह भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देश देखने के सपने की मौत के समान है और आप के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। अगर आप अजेय थी, 2020 में लगातार दूसरी बार जीत हासिल की और कांग्रेस के जबड़े से पंजाब को छीन लिया और अकालियों को खत्म कर दिया, तो इसका पतन भी उतनी ही तेजी से हो रहा है और गौरव फीका पड़ रहा है। केजरीवाल शायद आत्ममंथन करने के लिए हाइबरनेशन में चले गए हैं कि उन्होंने क्या-क्या गलतियां कर दीं। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है क्योंकि वह उस शानदार जीवनशैली से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं जिसके वह अब आदी हो चुके हैं। वह बड़े काफिले के साथ यात्रा करते हैं और एक साधारण अपार्टमेंट में रहने से इनकार करते हैं तथा आप के लिए जगह बनाने को तैयार नहीं हैं। पार्टी में दरारें दिखाई दे रही हैं और केजरीवाल ने दिल्ली में हार के बाद पंजाब को अपना ‘पहला घर’ बनाकर एक और गलती कर दी है। इसने पार्टी के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं।