हिमाचल प्रदेश में भाजपा का संकट खत्म नहीं हो रहा। बहुत विवादित तरीके से वरिष्ठ नेता राजीव बिंदल की प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से विदाई के बाद अब नये अध्यक्ष की तलाश की जा रही है। लेकिन जो भी नाम सामने आ रहे हैं, उन पर कोई-न-कोई गुट विरोध जता रहा है। यदि भाजपा जल्दी ही नया अध्यक्ष नहीं चुनती है, तो निश्चित ही भाजपा की भीतरी लड़ाई बढ़ती जाएगी।
हाल में कुछ नाम सामने आये हैं; लेकिन उन पर सहमति नहीं बन पा रही है। प्रदेश में भाजपा की सरकार अपना आधा कार्यकाल पूरा कर चुकी है और विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को सक्रिय करने के लिए उसे अध्यक्ष और नयी टीम की सख्त ज़रूरत है। बिंदल की अध्यक्ष पद से विदाई जिन हालात में हुई, उससे प्रदेश में भाजपा को झटका लगा है। अभी तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए जो नाम सामने आये हैं, उनमें दो-तीन ही हैं जिनके लिए सम्भावनाएँ दिख रही हैं। इन में केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर, हाल में राज्य सभा के लिए चुनी गयीं इन्दु गोस्वामी और वरिष्ठ नेता रणधीर शर्मा शामिल हैं। चूँकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राजपूत वर्ग से हैं, लिहाज़ा माना जा रहा है कि किसी ब्राह्मण को अध्यक्ष का ज़िम्मा मिलने की अधिक सम्भावना है। भाजपा के जानकारों की मानें, तो राज्यसभा सदस्य इन्दु गोस्वामी हिमाचल प्रदेश भाजपा की नयी अध्यक्ष बनायी जा सकती हैं। उनके चयन की सम्भावना के तीन मज़बूत कारण हैं। पहला, वह महिला हैं। आज तक प्रदेश भाजपा में कभी कोई महिला प्रदेश अध्यक्ष पद पर नहीं रही है। उनका पुराना रिकॉर्ड बहुत साफ-सुथरा रहा है। उनके किसी गुटबाज़ी में फँसने की भी कभी कोई ज़्यादा चर्चा नहीं रही, भले उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के करीब माना जाता रहा है।
इन्दु के पक्ष में दूसरा सबसे बड़ा और बहुत मज़बूत कारण यह है कि वह काँगड़ा ज़िले से हैं, जो हिमाचल प्रदेश में सबसे बड़ा ज़िला है और विधानसभा की सबसे ज़्यादा सीटें इसी ज़िले में हैं। कभी पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार का ज़िले में खासा प्रभाव था; लेकिन समय के साथ शान्ता अपना प्रभाव खो चुके हैं। दूसरा पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट न मिलने के बाद उनकी उतनी प्रासांगिकता अब उतनी नहीं रह गयी। भाजपा को वैसे भी काँगड़ा ज़िले में एक मज़बूत नेता की ज़रूरत रही है। खासकर शान्ता की सक्रिय राजनीति से विदाई के बाद ऐसे में इन्दु भाजपा के लिए सशक्त चेहरा हो सकती हैं। उन्होंने भाजपा के कमोवेश सभी संगठनों से अभी तक का रास्ता नापा है, जिससे उनकी संगठन पर पकड़ भी अच्छी है। भाजपा में यह आम धारणा है कि प्रधानमंत्री मोदी जब हिमाचल भाजपा के अध्यक्ष थे, उस समय भी वह इन्दु के संगठन के प्रति समर्पण और मेहनत से काफी प्रभावित थे। हालाँकि इन्दु उस समय भाजयुमो और फिर महिला मोर्चा जैसे संगठनों से जुड़ी थीं। आज भी वह मोदी की करीबी मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि काँगड़ा की राजनीती में पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार इन्दु गोस्वामी के सबसे बड़े विरोधी रहे हैं; जबकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का उन्हें मज़बूत समर्थन रहा है। ऐसे में यदि इन्दु के पक्ष को देखा जाए, तो वो मज़बूत लगता है। धूमल और केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर के अलावा प्रधानमंत्री जयराम ठाकुर भी इन्दु के हक में रहेंगे, भले जयराम अपने किसी समर्थक को यह पद दिलवाने की कोशिश में रहे हैं। चूँकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी हिमाचल से ही हैं, उनकी राय भी बहुत महत्त्व रखती है। राजीव बिंदल, जिन्हें दो महीने पहले पीपीई किट खरीद में रिश्वत-कांड मामले में उँगलियाँ उठने के बाद प्रदेशाध्यक्ष पद छोडऩा पड़ा था; नड्डा की ही पसन्द थे। यह भी खबरें रही हैं कि बिंदल को ही दोबारा अध्यक्ष बना दिया जाए। लेकिन पार्टी की छवि को इससे नुकसान हो सकता है; ऐसा भाजपा के ही कई नेता मानते हैं। चर्चा है कि उन्हें पीपीई किट के लिए रिश्वत-कांड में क्लीट चिट दे दी गयी है। लेकिन अगर आम राय की बात आएगी, तो इन्दु गोस्वामी के लिए रास्ता शायद आसान रहेगा।
उनका तीसरा मज़बूत पक्ष उनका ब्राह्मण होना है। मुख्यमंत्री जयराम राजपूत समुदाय से हैं; लिहाज़ा माना जा रहा है भाजपा किसी ब्राह्मण या ओबीसी (पिछड़े वर्ग) नेता को अध्यक्ष पद से सकती है। वैसे जेपी नड्डा भी भी ब्राह्मण हैं; लेकिन प्रदेश की राजनीति का संतुलन साधने के लिए इन्दु भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकती हैं। अभी तक की खबरों के मुताबिक, भाजपा आलाकमान उनके नाम पर सहमत है। हालाँकि चर्चा के सभी रास्ते खुले रखे गये हैं। इन्दु के नाम को हाल ही में तब हवा मिली थी, जब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक ट्वीट करके उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ दे दी थीं। हिमाचल प्रदेश भाजपा ने जब इसे लेकर अनभिज्ञता जतायी, तो विजयवर्गीय ने फिर ट्वीट करके इसे अपनी टीम की चूक का नतीजा बताया और कहा अभी ऐसी कोई नियुक्ति नहीं हुई है। इस ट्वीट में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर को भी टैग किया था। लेकिन राष्ट्रीय महासचिव के ट्वीट के बाद इन्दु की नियुक्ति को पक्का माना जा रहा है। इन्दु यह चर्चा सामने आने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से राज्य सचिवालय में मिल चुकी हैं। काँगड़ा ज़िले के पालमपुर हलके के विकास को लेकर इन्दु काफी सक्रिय रहती हैं। उन्हें 2017 में भाजपा ने विधानसभा का टिकट दिया था; लेकिन उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा था। आरोप लगाया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने उनकी हार में कथित तौर पर मुख्य भूमिका निभायी थी।
इन्दु गोस्वामी का करियर देखें, तो करीब 30 साल से वह सक्रिय राजनीति में हैं। भाजपा युवा मोर्चा से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाली इन्दु 1999 में पहली बार प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में बनी भाजपा-हिविकां सरकार में हिमाचल प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकी हैं। पार्टी में और भी कई वरिष्ठ पदों के बाद 2016 में भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष बनीं। गोस्वामी विधानसभा चुनावों में महिलाओं को अधिक-से-अधिक टिकट दिये जाने की पैरवी करती रही हैं। इसकी नतीजा था कि भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में 10 फीसदी टिकट महिलाओं को दिये थे। जहाँ तक रणधीर शर्मा की बात है, प्रदेश भाजपा की राजनीति में उन्हें एक तेज़-तर्रार नेता माना जाता है। संगठन के प्रति समर्पित रहे रणधीर शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के करीबी रहे हैं। दो बार विधायक रहे रणधीर शर्मा का नाम इस साल के शुरू में तब भी सामने आया था, जब सतपाल सत्ती लम्बे समय तक अध्यक्ष रहकर बाहर जाने वाले थे। लेकिन राजीव बिंदल को उन पर तरजीह दी गयी थी। भाजपा के भीतर युवा तुर्क कहे जाने वाले अनुराग ठाकुर केंद्र में राज्य मंत्री हैं; लिहाज़ा उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की सम्भावना कम ही लगती है। मंत्री के रूप में उनका काम संतोषजनक रहा है। इसके अलावा अनुराग प्रदेश भाजपा की राजनीति में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं। चौथी बार सांसद चुने गये अनुराग का नाम कई बार प्रदेश के भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में भी लिया जाता है। इनके अलावा त्रिलोक जम्बाल का नाम भी चर्चा में रहा है।
आंतरिक लड़ाई
देश में भाजपा का ज़िम्मा सँभाल रहे जे.पी. नड्डा को अपने गृह प्रदेश हिमाचल में ही पिछले लम्बे समय से आंतरिक लड़ाई देखनी पड़ी है। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनाये वरिष्ठ नेता राजीव बिंदल को एक बेहद विवादित मामले के बाद जून में इस्तीफा देना पड़ा और लगातार बड़े नेताओं की लड़ाई की घटनाएँ खुलेआम हो रही हैं। बिंदल के इस्तीफे से प्रदेश में भाजपा को शर्मनाक स्थिति से दो-चार होना पड़ा। इससे नड्डा को भी असहज स्थिति का सामना करना पड़ा।
हिमाचल भाजपा में जंग कोई नयी चीज़ नहीं है। कई दशक से यहाँ भाजपा गुटों में बँटी रही है। शान्ता कुमार-जगदेव चन्द, शान्ता कुमार-प्रेम कुमार धूमल जैसे बड़े नेताओं की लड़ाई के अलावा अन्य नेताओं में भी जमकर कलह होता रहा है। हिमाचल भाजपा के लिए यह भी एक सम्मान की बात रही है कि आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब तीन साल तक प्रदेश भाजपा के प्रभारी रहे हैं। भाजपा की राजनीति 2017 में तब बदली, जब वरिष्ठ नेता और उस साल हुए विधानसभा के चुनाव में भाजपा की नैया पार लगाने वाले प्रेम कुमार धूमल खुद अपनी सीट से हार गये। आरोप लगा कि उनकी हार के पीछे भाजपा के भीतर के ही कुछ कारण हैं। धूमल मुख्यमंत्री बनने की देहरी पर ठिठक गये और मौका मिल गया अपेक्षाकृत युवा जयराम ठाकुर के। यह माना जाता है कि उसके बाद प्रदेश भाजपा की राजनीति में काफी बदलाव आया है। हिमाचल के ही जेपी नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो गये हैं। शान्ता कुमार चुनावी राजनीती से तो बाहर हो गये। लेकिन भाजपा की प्रदेश की राजनीति में दाँवपेच खेलते रहते हैं। शान्ता कुमार को लेकर कहा जाता है कि वह धूमल को पसन्द नहीं करते; क्योंकि 1989 में पार्टी ने उनकी जगह धूमल को मुख्यमंत्री पद के लिए तरजीह दी। तब मोदी ही प्रदेश भाजपा के प्रभारी थे। जयराम 2017 में मुख्यमंत्री तो बन गये, लेकिन उनका अपना कोई मज़बूत गुट कभी नहीं बन पाया। इसका कारण यह नहीं कि जयराम ऐसा नहीं चाहते थे। वह तो चाहते थे, लेकिन प्रदेश भाजपा में वे एक नेता के नाते ऐसी छवि ही नहीं बना पाये, जो उन्हें एक निर्विवाद नेता की हैसियत में ला दे। उनके साथ आज जो भी नेता या पार्टी के लोग हैं, वे सिर्फ इसलिए हैं कि वह मुख्यमंत्री हैं। हाँ, उनके कुछ कट्टर समर्थक पहले से ज़रूर उनके साथ हैं। जयराम ने 2019 में कोशिश की थी कि उनकी मर्ज़ी का कोई प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बन जाए। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाये। उनसे पहले प्रेम कुमार धूमल का कद इतना बड़ा था कि वह आलाकमान से अपनी बात मनवा लेते थे। जैसे उन्होंने सतपाल सत्ती को प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर किया था। सत्ती धूमल के कट्टर समर्थक हैं; लेकिन वह संगठन में भी माहिर हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा 2017 में सत्ता में आयी और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने चारों सीटें बड़े अन्तर से जीतीं। सत्ती के कार्यकाल के बाद बाद जब इस साल के शुरू में प्रदेश का नया भाजपा अध्यक्ष चुनने की बारी आयी तो जयराम अपने व्यक्ति को नहीं बैठा पाए। ताकतवर नड्डा राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे और वह चाहते थे कि उनकी ही पसन्द का प्रदेश अध्यक्ष उनके गृह राज्य में हो। उन्होंने राजीव बिंदल को चुना, जो धूमल का साथ छोड़कर उनके साथ आ चुके थे। उस समय बिंदल विधानसभा अध्यक्ष थे और 2007 में वह धूमल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि बिंदल तेज़तर्रार हैं; लेकिन सच यह भी है कि बिंदल यदा-कदा विवादों में घिरते रहे हैं। वह नड्डा के आशीर्वाद से प्रदेश अध्यक्ष तो बन गये, लेकिन कुर्सी ज़्यादा दिन तक नहीं सँभाल पाये और मई में एक विवाद में उलझने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफा देते हुए बिंदल ने कहा कि वह नैतिकता के नाते इस्तीफा दे रहे हैं और जल्दी ही खुद को निर्दोष साबित कर देंगे। लेकिन उनके कहने के 24 घंटे के भीतर ही नड्डा ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
बिंदल का विवाद
स्वास्थ्य महकमे में पीपीई किट खरीद के विवाद के बाद बिंदल के इस्तीफे से भाजपा और राज्य की राजनीति में खासा बवाल उठ चुका है। कांग्रेस भाजपा पर हमले पर हमला कर रही थी। बिंदल ने 27 मई को त्याग-पत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास भेजा, जिसे तत्काल ही स्वीकार कर लिया गया। दरअसल हिमाचल के स्वास्थ्य विभाग के निदेशक अजय गुप्ता की एक व्यक्ति के साथ ऑडियो रिकॉॄडग वायरल हो गयी थी, जिसमें पाँच लाख रुपये के लेन-देन की बात थी।
मामले ने इतना तूल पकड़ा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को तत्काल विजिलेंस जाँच के आदेश देने पड़े। उन दोनों व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जो बातचीत में कथित रूप से शामिल थे। बातचीत में स्वास्थ्य विभाग में कथित खरीद को लेकर किसी काम की एवज में लेनदेन और किसी बड़े नेता की बात थी। ऑडियो सामने आते ही हंगामा मचना स्वाभाविक था और विपक्षी कांग्रेस ने इसके पीछे बड़े नेता के इस्तीफे की माँग उठा दी।
बड़े नेता के रुप में इस्तीफे की माँग का इशारा दरअसल अपरोक्ष रूप से बिंदल की तरफ था। बिंदल के खिलाफ इस कथित मामले में फिलहाल न तो कोई सीधा आरोप है, न कोई सबूत। लेकिन नैतिकता के आधार पर उनके इस्तीफे देते ही कई सवाल ज़रूर खड़े हो गये। फिलहाल मामले की जाँच चल रही है; लेकिन यह सवाल ज़रूर उठ रहा कि यदि आपका मामले से कुछ लेना-देना ही नहीं था, तो इस्तीफा क्यों दिया? और फिर आलाकमान ने इसे मंज़ूर करने में इतनी जल्दी क्यों दिखायी? बिंदल के इस्तीफे से हिमाचल भाजपा में बवाल मच गया। विपक्षी कांग्रेस ने मामला हाथोंहाथ लपका और भाजपा पर एक साथ कई हमले कर दिये। हिमचाल विधानसभा में विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने भाजपा सरकार और भाजपा पर ज़ोरदार हमला बोला। अग्निहोत्री ने कहा कि इसकी पूरी जाँच किसी सिटिंग जज से करवानी चाहिए। कोरोना वायरस से फैली माहमारी के बीच प्रदेश भाजपा सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार कड़ी निंदा का विषय है। इस संकट की घड़ी में रिश्वत लेने के आरोप में स्वास्थ्य निदेशक की गिरफ्तारी से साफ है कि इसके तार सीधे भाजपा के बड़े नेताओं से जुड़े हैं।
अग्निहोत्री ने यह भी कि बिंदल का इस्तीफा भाजपा की अंतर्कलह का नतीजा है। मामले से लोगों का ध्यान हटाने के लिए यह असफल कोशिश की गयी है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग में कोरोना किट्स, वेंटिलेटर, मास्क, सेनेटाइजर और पीपीई जैसे आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति को लेकर रिश्वत और प्रदेश सचिवालय में सेनेटाइजर की आपूर्ति घोटाले ने भाजपा की कथित ईमानदारी की पूरी पोल खोल दी है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी कहा कि उनके 60 साल के राजनीतिक करियर में उन्होंने कभी कोई ऐसा दौर नहीं देखा, जब ऐसी विपदा के समय कोई राजनीतिक दल संगीन भ्रष्टाचार के आरोप में संलिप्त पाया जाए। प्रदेश सरकार चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह असफल साबित हो रही है। इस प्रकरण के बाद प्रदेश भाजपा और सरकार में विभिन्न धड़ों में खेमेबाजी सामने आ गयी है। बिंदल भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही बाद विधानसभा अध्यक्ष थे। उन्हें जब प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया, तो वरिष्ठ विधायक और कैबिनेट मंत्री (स्वास्थ्य मंत्री) विपिन परमार को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। उनके खाली किये स्वास्थ्य मंत्रालय का ज़िम्मा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास आ गया और जब ऑडियो-कांड सामने आया, जयराम के पास ही स्वास्थ्य महकमा था।
मई में ऑडियो क्लिप वायरल हुई और निदेशक और बातचीत करने वाले पर मामला दर्ज कर लिया गया। दिलचस्प बात तब हुई, जब निदेशक की पत्नी ने आरोप लगा दिया कि उनके पति को मोहरा बनाया गया है और अन्य अधिकारियों पर मामला नहीं बनाया गया। इस सारे मामले के बीच बिंदल ने इस्तीफा दे दिया। आरोप है कि ऑडियों में जिस अधिकारी (निदेशक) की दूसरे व्यक्ति से बातचीत है, वह कथित तौर पर भाजपा के बड़े नेता के रिश्तेदारों के सम्पर्क में था। बिंदल का इस्तीफा होते ही प्रदेश भाजपा की जंग खुले में आ गयी। काँगड़ा में पार्टी नेताओं की एक बैठक हुई, जिसके बाद हंगामा खड़ा हो गया।
इस बैठक में सांसद किशन कपूर भी शामिल थे। कुछ विधायकों ने इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की माँगकर दी। यह जंग अभी जारी है। फिलहाल नये भाजपा अध्यक्ष पद के लिए पार्टी नेताओं में जंग जारी है। जयराम फिर सक्रिय हैं और चाहते हैं कि उनकी पसन्द पर आलाकामन मुहर लगा दे। मंत्रिमंडल में खाली पद भी भरे जाने हैं। बोर्डों-निगमों पर भी हारे-जीते नेताओं की नज़र है। विभिन्न धड़े अपना-अपना ज़ोर लगा रहे हैं। काँगड़ा में महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष इन्दु गोस्वामी भी राज्य सभा के लिए चुने जाने के बाद ताकतवर हो गयी हैं।
अब चर्चा यह भी है कि राजीव बिंदल को क्लीन चिट देने की तैयारी कर ली गयी है। ऐसा होता है तो उन्हें मंत्री पद भी दिया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में उन्हें उनके समर्थक दोबारा ज़रूर बता रहे हैं; लेकिन शायद भाजपा ऐसा न करे।
सख्त नाराज़ हैं रमेश धवाला
वरिष्ठ नेता, चार बार के विधायक और तीन बार कैबिनेट मंत्री रहे रमेश धवाला हिमाचल भाजपा की जंग में नये केंद्र बन गये हैं। भाजपा के काँगड़ा ज़िले के विधायकों में उठा घमासान मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की बातचीत के बाद ठण्डा ज़रूर दिख रहा है; लेकिन भीतर नहीं भीतर कहीं चिंगारी भड़क रही है। मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ओकओवर में रमेश धवाला के साथ प्रधानमंत्री की मंत्रणा हुई थी और सारे विवाद पर चर्चा हुई थी। दरअसल अपने हलके में हस्तक्षेप से धवाला सख्त नाराज़ हैं। विधायक धवाला ने पार्टी महामंत्री पवन राणा के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। उनका आरोप है कि उनके ही नहीं, बल्कि काँगड़ा के मामलों में उनका हस्तक्षेप कुछ ज़्यादा ही है। विधायक की स्थिति इससे कमज़ोर हो रही है, जिससे उन्हें अगले चुनावों में मुश्किल आ सकती है। धवाला की मुख्यमंत्री के साथ बैठक में सभी माँगों और शिकायतों को सुना गया। मुख्यमंत्री को धवाला की शिकायतें सुनने के बाद उन्हें भरोसा देना पड़ा कि भविष्य में उनके हलके के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं होने दिया जाएगा और खुद मुख्यमंत्री उनके हलके के कामों की निगरानी करेंगे। बैठक के दौरान ही राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से भी बात की गयी। उन्होंने भी धवाला को भरोसा दिया और कहा कि पार्टी के भीतर की बातों को आलाकामन या मुख्यमंत्री के समक्ष ही रखा जाए। इसे किसी भी रूप में सार्वजनिक मंच पर न लाया जाए। कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार के साथ भी इस मसले पर चर्चा हुई, जो कभी धवाला के मेंटर रहे हैं। धवाला की ज्वाला के बाद भले केंद्रीय दबाव में काँगड़ा के भाजपा विधायकों ने बोली बदल ली हो, पार्टी के भीतर चिंगारी सुलग रही है। अपने बूते नेता बने धवाला ओबीसी नेता हैं। लेकिन पिछले कुछ समय में उन्हें राजनीतिक स्तर पर दिक्कतें झेलनी पड़ी हैं। वह 2017 में भाजपा के सरकार बनने के बाद मंत्री बनना चाहते थे; लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। सरकार के अब ढाई साल ही बचे हैं; लिहाज़ा धवाला का धैर्य जवाब देता जा रहा है। ऊपर से विरोधी उनके नाक में दम किये हुए हैं। विपक्षी कांग्रेस मौके का फायदा उठाकर धवाला की ङ्क्षचगारी को हवा दे रही है। विधायक और युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने धवाला का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार में उनकी अनदेखी की जा रही है। एक विधायक की इस तरह अनदेखी करना उचित नहीं है। भाजपा सरकार में चुने लोगों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और लोगों के बीच न रहने वालों को तवज्जो दी जा रही है। इसका नुकसान काँगड़ा की जनता को झेलना पड़ रहा है। उधर भाजपा के वरिष्ठ विधायक नूरपुर के राकेश पठानिया संगठन और सरकार में तकरार की खबरों को गलत बताते हैं। पठानिया का कहना है कि काँगड़ा भाजपा में सब कुछ ठीकठाक है, वहाँ कोई सियासी विस्फोट नहीं हो रहा। संगठन मंत्री पवन राणा हमारे सम्मानीय नेता हैं। हालाँकि मामला इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं दिखता। ज्वालामुखी मंडल भाजपा के अध्यक्ष मानचंद राणा की अध्यक्षता में पार्टी पदाधिकारियों ने विधायक रमेश धवाला के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी करने वालों के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करवा दिया। कहा जाता है कि धवाला से आलाकामन ने एक खेद पत्र लिखवाया है, जिसमें धवाला ने भावुकता में कही बातों के लिए माफी माँगी है। हालाँकि सच यह है कि यदि ऐसा हुआ, तो धवाला इससे और क्रोधित हुए होंगे। उनके समर्थक महसूस कर रहे हैं कि इस ओबीसी नेता को किनारे लगाने की कोशिश हो रही है और पार्टी को यह चीज़ महँगी पड़ेगी।