बिहार के बोधगया में महोबोधि मंदिर परिसर में नौ बम धमाकों के बाद अंदेशा जताया जा रहा है कि इसके पीछे इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) का हाथ है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इस मामले में 12 आतंकवादियों की तस्वीरें जारी की हैं. इनमें आईएम संस्थापकों में से एक यासीन भटकल भी है. यासीन उन लोगों में से है जिनके पीछे कुछ सालों से खुफिया एजेंसियां लगी हुई हैं लेकिन आज भी वह उनके लिए एक गुत्थी बना हुआ है.
12 राज्यों की आतंक निरोधक एजेंसियों द्वारा यासीन के खिलाफ दायर आरोप पत्रों के मुताबिक वह 2008 से हुए कम से कम 10 बम धमाकों में प्रमुख सूत्रधार रहा है. ये बम धमाके अहमदाबाद (2008), सूरत (2008), जयपुर (2008), नई दिल्ली (2008), बनारस के दशाश्वमेध घाट (2010), बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम (2010), पुणे के जर्मन बेकरी (2011), मुंबई (2011), हैदराबाद (2013) और बेंगलुरु (2013) में हुए थे.
आखिर यासीन भटकल कौन है और लगातार इतनी घटनाओं में सीधी भूमिका होने के बावजूद वह सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर कैसे है? 1973 में जन्मा यासीन मूल रूप से कर्नाटक के एक तटीय गांव भटकल का रहने वाला है. उसकी शुरुआती शिक्षा अंजुमन हमी ए मुसलीमीन नाम के मदरसे में हुई थी. 1980 के दशक की शुरुआत में वह पुणे आ गया था. बाद में यासीन शाहबंदरी भाइयों के नाम से कुख्यात- रियाज और इकबाल भटकल (इनसे यासीन का कोई पारिवारिक नाता नहीं है) के संपर्क में आया. इन्होंने ही इंडियन मुजाहिदीन की नींव रखी थी. माना जाता है कि इस समय दोनों भाई देश छोड़ चुके हैं.
यासीन के बारे में बात करते हुए खुफिया एजेंसियों के अधिकारी कहते हैं कि उसकी गतिविधियों पर नजर रख पाना बहुत मुश्किल है. एक अधिकारी के मुताबिक यासीन को तकनीक का प्रयोग करना पंसद नहीं है. इसके बजाय वह परंपरागत तरीकों जैसे भेष बदलने आदि में माहिर है. वे कहते हैं, ‘ एक ऐसा आदमी जो ईमेल नहीं करता, हर पखवाड़े ठिकाना बदलता हो, ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता हो और मोबाइल फोन को कुछ ही सेकंड तक इस्तेमाल करके सिमकार्ड तुरंत नष्ट कर दे, उस पर आप नजर कैसे रखेंगे.’ महाराष्ट्र एटीएस के एक अधिकारी कहते हैं, ‘यहां तक कि उसके करीबी लोग भी उसकी असली पहचान नहीं जानते. उसके ससुर को भी यही पता था कि उसका नाम इमरान है.’
यह भी दिलचस्प है कि एक बार यासीन पुलिस गिरफ्त में आ चुका है. 2008 की बात है जब कोलकाता पुलिस ने उसे फर्जी नोटों के एक मामले में हिरासत में लिया था. लेकिन एक माह जेल में रहने के बाद उसे जमानत मिल गई. पुलिस उस समय पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि यह आदमी कौन है. यासीन ने खुद के बारे में जानकारी दी थी कि वह बिहार के दरभंगा में रहने वाला मोहम्मद अशरफ है.
इसी तरह नवंबर, 2011 में वह चेन्नई में खुफिया अधिकारियों को चकमा देकर बच निकला था. दिल्ली और चेन्नई में तैनात खुफिया अधिकारी एक सूचना के आधार पर जब उसके ठिकाने पर पहुंचे उसके कुछ घंटे पहले ही यासीन वहां से निकल चुका था. उसके ससुर इरशाद खान ने पुलिस को बताया था कि वह बाजार गया है. लेकिन यासीन वापस अपने ठिकाने पर कभी नहीं लौटा.
यासीन का इस तरह बार-बार पुलिस से बच निकलना कोई संयोग है या फिर साजिश. इस बारे में एक अफवाह यह है और जिसे उसकी पत्नी जाहिदा भी मानती हैं कि वह पिछली बार इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) की मिलीभगत से भागने में कामयाब हुआ था. अब यदि ऐसा नहीं है तो क्या यह खुफिया विभाग की नाकामी है? तहलका ने यह सवाल आईबी के पूर्व निदेशक अजीत डोवाल से पूछा तो उनका जवाब था, ‘क्या हम यह नहीं जानते कि दाउद इब्राहीम कहां है? हमें पता है. ठीक है न? लेकिन सब कुछ आईबी अधिकारियों के हाथ में नहीं होता. बाकी पक्षों में भी कार्रवाई करने की पूरी मंशा होनी चाहिए.’
यासीन के पकड़ में न आने पर दिल्ली, मुंबई और दूसरे राज्यों की खुफिया एजेंसियों के आरोप-प्रत्यारोप पिछले दिनों काफी चर्चा में रहे हैं. आईबी के एक अधिकारी बताते हैं, ‘एक बार यासीन पुणे की एक साइकिल दुकान में गया था. वहां से पुलिस को उसकी फुटेज मिल गई लेकिन उन्होंने उसे मुंबई पुलिस से साझा करना जरूरी नहीं समझा.’ जनवरी, 2012 में भी एक ऐसा उदाहरण देखने को मिला था. महाराष्ट्र एटीएस ने नकी अहमद नाम के एक व्यक्ति को मुंबई में हिरासत में लिया था. दिल्ली पुलिस की मानें तो अहमद उनका मुखबिर था और यासीन को फंसाने की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई थी. लेकिन महाराष्ट्र एटीएस को इसकी सूचना नहीं थी और उसकी कार्रवाई ने पूरी योजना पर पानी फेर दिया. इसके बाद उठे विवाद को हल करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह को मध्यस्थता करनी पड़ी.
खुफिया एजेंसियों की क्षमता पर एक सवाल इस वजह से भी उठाया जा सकता है कि यासीन की कोई हालिया तस्वीर उनके पास उपलब्ध नहीं है. एक पुरानी तस्वीर के आधार पर ही वे पहचान की कोशिश करते हैं. हाल ही में इंडियन मुजाहिदीन के पकड़े गए एक आतंकवादी के मुताबिक अब उसका चेहरा मोहरा इतना बदल गया है कि इस तस्वीर से उसका मिलान आसान नहीं है.
हो सकता है बिहार में बम धमाकों की पूरी जांच के बाद सुरक्षा एजेंसियों को यासीन के बारे में कुछ और जानकारियां मिलें. तब इस व्यक्ति से जुड़ी गुत्थी कुछ हद तक सुलझ जाएगी. यदि ऐसा नहीं होता तो सुरक्षा एजेंसियों को आने वाले समय में और बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.