इन दिनों समाचार पत्रों को अपने पाठक सूचकांक को बनाये रखने के लिए एक कठिन दौर का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि कोरोना वायरस के भय से भारत में 21 दिन का लॉकडाउन ने समाचार पत्रों (अखबारों) के पाठकों की संख्या घटायी है। क्योंकि यह अफवाह थी कि अखबार का कागज़ भी कोरोना वायरस को आप तक पहुँचा सकता है। कई प्रकाशकों को इस स्थिति ने अपने अखबार का प्रसार कम करने को मजबूर कर दिया। हॉकर भी डरे, फुटपाथ या दुकानों में पत्र-पत्रिका बेचने वालों को घर बैठना पड़ा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में अखबार पहुँचने की समस्या आने लगी है। हालाँकि सभी पत्रकारिता संस्थान खुल रहे हैं, पर प्रकाशन का काम काफी कम हुआ है। क्योंकि खपत ही कम हो गयी।
ममता बनर्जी ने दिखायी अक्लमंदी
अखबारों से कोरोना वायरस फैलने की अफवाह को समझते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अक्लमंदी दिखाते हुए इस व्यवसाय को उभारे रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जब उन्हें यह पता चला कि हॉकर्स यूनियन अखबारों को नहीं उठा रही, तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिये लोगों से कहा- ‘मुझे जानकारी मिली है कि कई हॉकर अखबार नहीं उठा रहे हैं। मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि इस आपातकालीन स्थिति में समाचार पत्रों को छूट दी गयी है।’ अगले दिन मुख्यमंत्री ने फिर कहा कि आप सभी सही खबरों के लिए अखबार पढ़ें। उनका संदेश मीडिया के लिए संजीवनी जैसा था। जब यह संदेश हॉकरों और आम लोगों तक पहुँचा, तो हॉकर भी अपने काम पर वापस आने लगे और पाठक भी अखबार से फिर जुडऩे लगे, जिससे अखबारों का नियमित प्रकाशन जारी रहा। अब अखबार को लेकर वहाँ स्थिति लगभग सामान्य है, अन्यथा एक स्थिति तो यह आयी थी कि कुछ छोटे अखबारों ने प्रकाशन बन्द कर दिया था। एक बड़े अखबार ने भी दो दिन तक प्रकाशन नहीं किया था।
समाचार पत्र सुरक्षित : डब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दावा किया है कि अखबार अभी भी किसी के स्पर्श करने के लिहाज़ से सुरक्षित हैं। प्रिंट मीडिया आउटलेट में उपयोग किये जाने वाले कागज़ात अत्यधिक स्वचालित मिलों में उत्पादित किये जाते हैं और इस प्रक्रिया को शायद ही मानव हाथों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, किसी संक्रमित व्यक्ति के वाणिज्यिक वस्तुओं को दूषित करने की सम्भावना कम है। फिर भी शुरुआत में फैली एक अफवाह के बाद प्रिंट संस्करणों के प्रकाशन के निलंबन की खबरें पूरी दुनिया से आनी शुरू हो गयी थीं। भारत जैसे देश में यह स्थिति बहुत दुरूह थी, क्योंकि दुनिया के इस सबसे बड़ा लोकतंत्र में करीब 82,000 से अधिक अखबार पंजीकृत हैं और लाखों लोगों का रोज़गार इससे चलता है।