कोविड-19 ने दी ऑनलाइन क्लास को गति

चॉकबोर्ड से लेकर गूगल मीट और सिस्को वेबएक्स से मिला क्लासरूम पढ़ाई को नया अवसर

यह ऑनलाइन पढ़ाई का समय है, जो हर समय व परिस्थितियों में हिट रहने वाला है। ऑनलाइन शिक्षण और शैक्षिक प्रौद्योगिकी सबसे बड़ी परीक्षा का सामना कर रही है साथ ही इसके अस्तित्त्व के लिए यह सबसे बड़ा अवसर है। लॉकडाउन में जब घर पर रहना है, तो ऐसी चुनौती युवा और अनुभवियों के लिए एक नया अवसर खोलती है। प्री-स्कूल से लेकर पीएचडी करने वालों के लिए भी कोरोना वायरस महामारी ने अचानक सभी को घरों पर रहने को मजबूर कर दिया है। महामारी ने किंडर गार्डन से लेकर 12वीं कक्षा के स्कूलों और विश्वविद्यालयों तक को बन्द कर दिया गया है और छात्रों को घर में रहकर पढऩे का निर्देश दिया है।

16 मार्च, 2020 को केंद्र सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया था। 18 मार्च को सीबीएसई ने परीक्षा केंद्रों के लिए संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये। 19 मार्च को सीबीएसई और जेईई की मुख्य परीक्षाएँ 31 मार्च, 2020 तक के लिए स्थगित कर दी गयीं। 20 मार्च को महाराष्ट्र सरकार ने परीक्षाएँ रद्द कर दीं। जबकि मध्य प्रदेश बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ने बोर्ड परीक्षाओं को स्थगित कर दिया। केरल सरकार ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को स्थगित कर दिया। असम सरकार ने 31 मार्च तक सभी परीक्षाएँ रद्द कर दीं। संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा, 2019 के लिए साक्षात्कार को भी स्थगित कर दिया। तमिलनाडु और पांडिचेरी (अब पुडुचेरी) में एसएससी परीक्षा भी स्थगित कर दी गयी। इसका शिक्षा पर बहुत ज़्यादा प्रभावित किया है।

वैश्विक स्तर पर 1.2 अरब से अधिक बच्चे कक्षाओं से महरूम हैं। जबकि दुनिया भर में अलग-अलग देशों में कोविड-19 संक्रमण दर के बिन्दु भिन्न हैं। महामारी के कारण वर्तमान में स्कूल बन्द होने की वजह से 186 देशों में 1.2 अरब से अधिक बच्चे प्रभावित हैं। डेनमार्क में, 11 वर्ष तक के बच्चे 12 मार्च से बन्द किये जाने के बाद अब नर्सरी और स्कूलों में लौट रहे हैं; लेकिन दक्षिण कोरिया में छात्र अपने शिक्षकों से ऑनलाइन कक्षाएँ ले रहे हैं। भारत में जल्दबाज़ी में तौर-तरीकों और सम्भावित समस्याओं पर चर्चा किये बिना विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को इस लॉकडाउन के दौरान एमएचआरडी व यूजीसी द्वारा ऑनलाइन कक्षाएँ शुरू करने के लिए कहा गया था। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने कहा कि छात्रों और शिक्षकों को ऑनलाइन लॄनग के ज़रिये समय का सदुपयोग करना चाहिए।

कोविड-19 महामारी के चलते लॉकडाउन ने एक नये जीवन की शुरुआत की और कक्षाओं के लिए हज़ारों छात्र कम्प्यूटर, लैपटॉप और स्मार्ट फोन स्क्रीन के ज़रिये सीख रहे हैं। महामारी ने छात्रों और शिक्षकों के लिए घर से काम करने के लिए ऑनलाइन क्लास की योजना और प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए मजबूर किया है। तकनीक ने क्लासरूम में सीखने की परम्परा का खात्मा कर दिया है, जहाँ पर छात्र बेहतर तरीके से जवाब देते थे; साथ ही अभिभावक भी संतुष्ट होते थे।

मान लेते हैं कि अभी मिड-सेमेस्टर (वर्षाद्र्ध) चल रहा था और पाठ्यक्रम का एक हिस्सा पूरा किया जाना बाकी था। ऑनलाइन कक्षाओं के ज़रिये संकाय पाठ्यक्रम को पूरा कराने का प्रयास कर रहे हैं। इससे छात्रों को भी मदद मिलेगी। एक बार शिक्षण संस्थान फिर से खुलने पर छात्रों के लिए पढ़ाई के प्रवाह के लिए बनाये रखते हुए परीक्षाएँ आयोजित करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा छात्र अध्ययन, असाइनमेंट व अन्य परियोजनाओं में भी लगे हुए हैं। अधिकांश संकाय सदस्यों को लगता है कि ज्ञान में कोई कमी नहीं आ सकती।

जूम, गूगल मीट और वेबएक्स जैसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग ऑनलाइन पढ़ाई के रूप में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। दरअसल, कोविड-19 ने शिक्षकों और छात्रों के लिए जो चुनौती दी है, उसे तकनीक और प्रौद्योगिकी के ज़रिये मात दी जा रही है। लेक्चर और वेबिनार के माध्यम से लाइव ऑनलाइन कक्षाओं के स्क्रीनशॉट को इंटरनेट की तकनीक के माध्यम से जोड़ा गया है, जिसके परिणामस्वरूप ऑफलाइन से ऑनलाइन कक्षाओं में सहज पहुँच बन जाती है, जो कि समय की ज़रूरत बन गया है। यूट्यूब और फेसबुक लाइव के माध्यम से लेक्चर को अपलोड किया जाना अब फैशन हो गया है। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने भी परिस्थितियों को देखते हुए टीवी चैनलों के ज़रिये छात्रों तक पहुँच बनायी है। इसके अलावा प्रोक्टोरियो एक गूगल क्रोम एक्सटेंशन एक सॉफ्टवेयर है, जो छात्रों की ऑनलाइन परीक्षा लेने में सक्षम है। छात्र और संकाय दोनों आपने काम में व्यस्त रहते हैं। छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं के समय और विषय के बारे में ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से पहले ही सूचित किया जाता है।

यह एक तथ्य है कि अधिकांश शिक्षण संस्थान छात्रों से जुडऩे और ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करने की सुविधा की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी वर्तमान स्थिति को देखते हुए कई शैक्षणिक संस्थानों ने ऑनलाइन कक्षाओं को चलाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं वाले मीटिंग प्लेटफॉर्म और एप्लिकेशन का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि इससे ऑनलाइन शिक्षण के विचार को बढ़ावा मिला है और पहले से ही देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है। हालाँकि यह तंत्र बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है और समाज के समृद्ध वर्गों के लिए सीमित संस्थानों तक पहुँच है।

लेकिन क्या ग्रामीण भारत के छात्रों तक इस तकनीक की पहुँच है? डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में एमएचआरडी, यूजीसी और इसके अंतॢवश्वविद्यालय केंद्र (आईयूसी), सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क (इंफलाइबनेट) और कंसोॢटयम फॉर एजुकेशनल कम्युनिकेशन (सीईसी) ने कई आईसीटी पहल की हैं। इन डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिये शिक्षक, छात्र और शोधार्थी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से ज्ञान हासिल कर सकते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने हाल ही में तीन पहलें- स्वयंवर, स्वयं प्रभा, और नेशनल अकेडमिक डिपॉजिटरी शुरू की हैं; जिनका मकसद भारत में ई-लॄनग क्षेत्र का विस्तार करना है। स्वयं और स्वयं प्रभा डिजिटल कक्षाओं की एक प्रस्तुति है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को इंटरनेट या डायरेक्ट-टू-होम सेवा के माध्यम से कनेक्ट करने और शैक्षिक सामग्री तक पहुँचने में सक्षम बनाते हैं। स्वयं प्रभा का उद्देश्य डायरेक्ट-टू-होम (डीटीएच) सेवा के सम्भावित उपयोग पर टैप करना है और पहले से ही एक डिश एंटीना स्थापित करने की योजना है, जो छात्रों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संचालित शैक्षिक चैनलों तक पहुँच प्रदान करेगा। इसके बावजूद  ग्रामीण भारत में अधिक बढ़ावा और निवेश की आवश्यकता है।

अड़चनें और संघर्ष

ऑनलाइन कक्षाएँ आयोजित करने के लिए शिक्षक के साथ-साथ भाग लेने वाले छात्रों को अपने घरों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की आवश्यकता होती है। जूम, गूगल मीट, व्हाट्स एप और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के मामले में ब्रॉडबैंड, वाई-फाई के संदर्भ में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए बेहतर नटवर्क महत्त्वपूर्ण है। छात्रों के अपने गाँवों में लौटने के साथ उनमें से कई के पास हाई बैंडविड््थ या बेहतर नेटवर्क का इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, जो ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा ऑनलाइन शिक्षण में समस्या पैदा करने वाले शिक्षकों और छात्रों के स्थानों में सर्वर प्रणाली और ट्रांसमिशन टॉवरों में गम्भीर क्षति के कारण इंटरनेट की गति लम्बे समय से रुकावट है। जो लोग शहर या शहर के बाहर फँसे हुए हैं, वे कक्षा में सभी छात्र शामिल नहीं हो पा रहे हैं और सभी शिक्षक अपने स्थानों के कारण ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करने में भी सक्षम नहीं हैं। जबकि कुछ शिक्षक इस तरह होने वाली पढ़ाई के बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं।

ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुँच के लिए शिक्षकों और छात्रों दोनों के पास लैपटॉप/डेस्कटॉप, स्मार्ट फोन या टैबलेट जैसे उपकरण होने चाहिए। ऐसे उपकरण विशेष रूप से उन बच्चों के पास होते हैं, जिनके परिवार की आॢथक स्थिति अच्छी होती है और इसलिए ऑनलाइन कक्षाओं में बाधा सामने आती है।

ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करने वाले शिक्षकों को भी प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है, क्योंकि यह क्लासरूम में पढ़ाने से बिल्कुल अलग होता है। कक्षा में शिक्षक के पास सभी छात्रों के दिखने के साथ पहुँच होती है और उनकी शारीरिक भाषा के माध्यम से उनकी एकाग्रता और समझ के स्तर का आकलन किया जा सकता है, जो पढ़ाने के दौरान पाठ्यक्रम सुधार को सक्षम बनाता है। ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन करते समय ऐसी दृश्यता नहीं होती है। हालाँकि इस अवधारणा को अपनाना मुश्किल लगता है। यह पारस्परिक कौशल से जुदा होता है, जिसमें छात्रों को अपनी शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी ज्ञान हासिल करने की आवश्यकता होती है। विज्ञान के छात्रों के लिए यह वहाँ मददगार नहीं हो सकता, जहाँ प्रयोगशाला परीक्षण की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

हालाँकि तमाम बाधाओं के बीच कोविड-19 ने हमारे लिए ऑनलाइन पढ़ाई के लिए एक रोमांचक यात्रा की शुरुआत कर दी है। कोई भी इस तथ्य को नकार नहीं सकता है कि इसे भविष्य के बड़े अवसरों के लिए दरवाज़े खोल दिये हैं। जबकि कुछ का मानना है कि ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बिना किसी पूर्व योजना के जल्दबाज़ी में उठाये गये कदम से गरीब बच्चा प्रभावित होगा। दूसरों का मानना है कि शिक्षा का एक नया हाइब्रिड मॉडल महत्त्वपूर्ण लाभ के साथ उभरेगा। मेरा मानना है कि शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में अकस्मात तेज़ी आयेगी और आने वाले दिनों में ऑनलाइन शिक्षा अंतत: भारत में पढ़ाई का एक अभिन्न अंग बन जाएगी।

(लेखिका नेशनल यूनिवॢसटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ की एसोसिएट प्रोफेसर और डीन ऑफ फैकल्टी हैं।)