कोरोना महामारी के दौरान सीटी मशीन और ऑक्सीमीटर का माँग जमकर बढ़ी है। क्योंकि अब ज़्यादातर मरीज़ों को सीटी स्कैन कराने के लिए कहा जा रहा है, जो कि काफी महँगी है। कोरोना महामारी में मरीज़ों, अस्पतालों और विशेषज्ञों से तहलका संवाददाता ने पड़ताल की तो पता चला कि ज़्यादातर सरकारी अस्पतालों में पहले तो सीटी स्कैन की मशीनें हैं ही नहीं! और जहाँ हैं, वहाँ पर मरीज़ों की संख्या के हिसाब से काफी कम है। ऐसे में मरीज़ों को जाँच के लिए कई महीने आगे की तारीखें मिल रही हैं। प्राइवेट अस्पतालों में तो पहले से ही सीटी स्कैन की मशीनें हैं। पर कोरोना महामारी में मरीज़ों की बढ़ती तादाद को देखते हुए, अब कॉर्पोरेट अस्पतालों के साथ-साथ मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों ने भी जमकर सीटी की मशीनें खरीदी जा रही हैं।
बताते चलें कि चिकित्सक अपने अनुभवों के आधार पर कोरोना वायरस का सीटी स्कैन के ज़रिये इलाज कर रहे हैं। दरअसल लोग कोरोना वायरस के नाम पर इस कदर डरे हुए हैं कि जो सम्पन्न हैं, वे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं।
तहलका संवाददाता को चिकित्सकों ने बताया कि कोरोना महामारी ज़रूर किसी के लिए काल बनकर आयी हो, पर कइयों के लिए तो उत्सव और अवसर के तौर पर आयी है। जैसे सीटी मशीन बेचने वाली कम्पनियों के लिए। सीटी मशीन के ऑडर लेने वाले एजेंटों का अस्पतालों में ताँता लगा रहता है। जैसा एक समय मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) का लगा रहता था।
दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) के उपाध्यक्ष डॉ. अनिल गोयल बताते हैं कि कंप्यूटरीकृत टोमेग्राफी स्कैन (सीटी या कैट स्कैन) मशीन कोरोना महामारी में ज़रूरी है। क्योंकि एक दौर था, जब अल्ट्रासाउण्ड और एक्स-रे से काम चलाया जाता था। तब बीमारी को पकडऩे में दिक्कत होती थी और समय भी लगता था। लेकिन अब कोरोना जैसी बीमारी और निमोनिया के बीच अन्तर को जाँचने के लिए सीटी स्कैन की ज़रूरत होती है। अब डॉक्टर कोरोना के मरीज़ों की शुरुआती जाँचों में सीटी स्कैन का ही सहारा ले रहे हैं; क्योंकि कोरोना में मरीज़ साँस लेने में परेशानी की शिकायत लेकर ही अस्पताल आते हैं। तो ऐसे में सीटी स्कैन से ही मर्ज़ की सही जानकारी हासिल की जाती है और इसी के आधार पर डॉक्टर तय करते हैं कि मरीज़ को किस तरह का इलाज दिया जाए।
आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना एक नयी बीमारी है, इसके इलाज के लिए दवा और वैक्सीन के लिए शोध अभी चल रहा है। तो ऐसे में डॉक्टर अपने अनुभव के आधार पर कोरोना मरीज़ का इलाज कर रहे हैं। जैसे मरीज़ को साँस लेने में दिक्कत है, तो ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन देते हैं, जिससे बाज़ारों में ऑक्सीमीटर की माँग बढ़ी है। उनका कहना है कि कोरोना नामक महामारी को लम्बे समय तक चलने वाला रोग समझकर कई कम्पनियों ने ऑक्सीमीटर बनाने का काम शुरू तक कर दिया है।
डॉ. बंसल का कहना है कि सीटी स्कैन की कमी तो सरकारी अस्पतालों में पहले से ही है, जिसके कारण गरीबों को सीटी स्कैन कराने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है भारत देश की आबादी के अनुसार सरकारी अस्पतालों की सुविधाएँ बहुत कम है। सरकार की स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनदेखी के कारण हमारे देश की जीडीपी का एक फीसदी ही हिस्सा स्वास्थ्य बजट में जाता है; जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि विकसित देशों के लिए जीडीपी का 10 फीसदी बजट का होना ज़रूरी है।
बजट के अभाव में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ लचर हैं। लोगों को पता है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज में दिक्कत होगी, सुनवाई नहीं होगी। इससे लोग प्राइवेट अस्पतालों में जाकर इलाज करा रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में सीटी जाँच तुरन्त होती है। कोरोना में निमोनिया की जाँच में ज़रूर होती है। जो सीटी सकैन से ही सम्भव है।
डॉ. बंसल का कहना है अभी कोरोना को लेकर कोई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है, इसलिए डॉक्टर कोरोना के मरीज़ के लक्षण के हिसाब से मरीज़ का इलाज किया जाता है। जैसे किसी मरीज़ को साँस लेने में दिक्कत है, तो ऑक्सीमीटर की सहायता से इलाज किया जाता है। अगर किसी को बुखार है, तो पैरासीटामॉल दवा देकर इलाज किया जाता है। अगर किसी को खाँसी-जुकाम है, तो उसका एंटी एलर्जिक दवा के ज़रिये इलाज किया जाता है। उनका कहना है किसी वायरस मरीज़ को एंटीबायोटिक दवा नहीं दी जाती है।
हेल्थ सेक्टर में काम करने वाले संजीव कुमार का कहना है कि जब भी कोई महामारी आती है, तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थापित लोगों की चाँदी हो जाती है। उनके एजेंट सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों सेटिंग करके रोग का भय देखते हुए अपने उपकरणों बेचने लग जाते हैं। इस खेल में डॉक्टरों का भी एक दल अहम भूमिका निभाता है; जो पूरे देश में एक संगठित दल के रूप में काम कर रहा है। जैसा कि आजकल सीटी मशीन को लेकर बड़ा खेल खेला जा रहा है। इसलिए सीटी मशीन बिक्री की माँग बढ़ी है; जिसका खामियाज़ा मरीज़ों को अपने इलाज के नाम पर जेब ढीली करके भुगतना पड़ रहा है।
दिल्ली के भागीरथ पैलेस में दवा व्यापारियों ने बताया कि कोरोना महामारी को लेकर जब देश में मार्च से मई मेंं सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा था, तब दवा का कारोबार काफी कम हुआ था। इसकी वजह लोगों का घर से न निकलना, परहेज़ करना और महामारी के डर से सामान्य हालत में उसका और अन्य रोगों का इलाज नहीं करवाना थी। क्योंकि लोग डर से अस्पताल जाना नहीं चाह रहे थे, जिससे दवाओं की बिक्री बहुत कम हुई। जून से दवा बिक्री ने गति पकड़ी है।
दरियागंज में मेडिकल उपकरण बेचने वाले अमित चावला बताते हैं कि पहले सीटी स्कैन और एमआरआई की मशीनों को बेचने वाली कुछ प्रतिष्ठित कम्पनियाँ ही अस्पतालों में इन्हें लगाती थीं; लेकिन कोरोना-काल में जो नयी-नयी कम्पनियाँ सामने आ रही हैं, उससे तो लगता है जैसे ये नयी कम्पनियों वाले किसी रोग या कोरोना के इंतज़ार में थे कि कब कोई महामारी दस्तक दे और वे अपनी मशीनों को बेचें।
दिल्ली के सफदरजंग और लोकनायक अस्पताल में कोरोना के इलाज करा रहे मरीज़ों के परिजनों ने बताया कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं को हाल वे हाल है। अब स्वास्थ्य सेवाएँ लडख़ड़ा रही हैं। मरीज़ों को सरकारी अस्पताल में इलाज कराने में दिक्कत हो रही है। दिल्ली के एक दैनिक अखबार के पत्रकार ने तहलका को बताया कि वह कोरोना महामारी को कवरेज करते हुए कोरोना की चपेट में आ गये थे, मई के महीने में उन्होंने शुरुआती दिनों में लोकनायक अस्पताल में भर्ती होकर इलाज करवाया था। लेकिन सरकारी सिस्टम में लापरवाही को देखते हुए अपनी जान बचाने की खातिर वे दिल्ली के नामी-गिरामी अस्पताल में इलाज कराने को मजबूर हुए। उन्होंने बताया कि सरकारी अस्पताल में तो सीटी की जाँच तो बड़ी जाँच इसलिए मानी जाती है कि वहाँ पर कम ही मरीज़ों को सीटी की सेवा उपलब्ध हो पाती है। पर प्राइवेट में इलाज शुरू होने का मतलब है कि सीटी की जाँच, जो हज़ारों रुपये में होती है। ऐसे में गरीबों का हाल बुरा हाल होता है।
दिल्ली के बड़े नामी-गिरामी अस्पतालों के साथ-साथ अब लैबों में सीटी मशीनें लगी हैं। वहीं सरकारी अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा के अभाव में गरीब मरीज़ मर-खप रहे हैंै। लैब टेक्नीशियन महेश कुमार का कहना है कि कोरोना-काल में अगर कोई सेक्टर मज़बूती से उभरा है, तो वो प्राइवेट अस्पताल हैं। क्योंकि पहले कैंसर मरीज़ या अन्य गम्भीर मरीज़ का ही सीटी स्कैन होता था, अब कोरोना-काल में ज़्यादातर डॉक्टर यह जाँच लिख रहे हैं और मरीज़ करवा भी रहे हैं, जिससे अस्पताल वालों की चाँदी हो रही है।
महेश का कहना है कि मेडिकल नैक्सिस तेज़ी से पैर पसार रहा है। अगर समय रहते कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया और सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन मशीनों की सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी, तो गरीब मरीज़ों को अपना इलाज कराना मुश्किल होगा। क्योंकि लाखों रुपये की लागत से लगायी जा रही इन मशीनों का पैसा मोटी फीस के रूप में मरीज़ों से वसूला जा रहा है। इसलिए एक सुनियोजित तरीके से डॉक्टर आज मरीज़ों को कोरोना की सम्भावना या साँस लेने में दिक्कत को देखते हुए सीटी की जाँच कराने को कह रहे हैं।
बताते चलें कि कोरोना वायरस अभी भी देश में प्रचंड रूप में है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि कोरोना वायरस कब तक कम होगा या कब तक इसकी दवा या वैक्सीन आयेगी? इसलिए फिलहाल कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीज़ों को सीटी स्कैन और ऑक्सीमीटर के सहारे ही इलाज कराने को मजबूर होना पड़ेगा, जिसमें उनका खर्चा बढ़ जाएगा।