ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के डॉक्टरों ने अप्रैल के पहले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने पीपीई, मास्क और कोरोना से निबटने के अन्य संसाधनों की कमी का ज़िक्र किया। देश की 130 करोड़ की आबादी है और कोरोना के इस शोर के बीच यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि भारत के अस्पतालों में एक लाख व्यक्तियों के लिए सिर्फ 3.69 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। सबसे चौंकाने वाला सच यह है कि यह रिपोर्ट फाइल किये जाने तक भारत में कोरोना की जाँच के लिए महज़ 10 फीसदी संदिग्धों के ही टेस्ट हो पाये हैं। भारत में चिन्ता की बात यह है कि यहाँ सक्रमितों की बड़ी संख्या अब सामने आने लगी है।
इन सब तथ्यों के बीच बहुत-से विशेषज्ञ इस चिन्ता में हैं कि आने वाले 20-25 दिन में भारत में कोरोना के पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़ सकती है। स्टेज तीन की स्थिति से बचने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन का जो फैसला किया, उसका आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के स्तर तक तो नतीजा अच्छा रहा, लेकिन देश में 10 अप्रैल तक टेस्ट/स्क्रीनिंग का औसत बहुत कम था, जो संकेत करता है कि जैसे-जैसे टेस्ट सुविधाएँ उपलब्ध होंगी और टेस्ट की संख्या बढ़ेगी, कोरोना पॉजिटिव के ज़्यादा मामले सामने आते दिखेंगे।
वेंटिलेटर भले बहुत आपात स्थिति (आईसीयू) में ही ज़रूरत में आते हैं, लेकिन दुनिया ने देखा कि अमेरिका जैसे विकसित दश में भी जब कोरोना के मामले अचानक आसमान छूने लगे, उसकी स्वास्थ्य सुविधा चरमराती दिखी। उसके पास वेंटिलेटर की संख्या भले भारत के मुकाबले कहीं बेहतर (एक लाख व्यक्ति के लिए औसतन 48 वेंटिलेटर) स्थिति में थी, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं थी। ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि भारत को कितने सुधार की ज़रूरत है।
यह साफ है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई अभी और लम्बी चलनी है। एकदम स्थितियाँ बेहतर हो जाएँगी, इसकी सम्भावना ज़्यादा नहीं दिखती। ऐसे में सरकार कोरोना के हॉट स्पॉट क्षेत्रों में लॉकडाउन को आगे बढ़ायेगी ही। ऐसा क्षेत्र विस्तृत हो सकता है।
जानकार कह रहे हैं कि भारत में कम-से-कम अप्रैल अन्त या मई मध्य या और आगे तक बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत रहेगी और लॉकडाउन अभी लम्बे समय तक चल सकता है। कुछ देशों में कोरोना का दबाव घटने के बाद उसका दूसरा अटैक देखने को मिला है। भारत में तो अभी हज़ारों-हज़ार लोगों का टेस्ट ही नहीं हुआ है और यह भी मालूम नहीं है कि इनमें से संक्रमित लोगों ने और कितने लोगों को संक्रमित कर दिया है। इनमें से बहुत से कोरोना से माइल्ड प्रभावित हो सकते हैं और दो हफ्ते में खुद ही स्वस्थ हो सकते हैं, लेकिन जिनका वायरल लोड ज़्यादा है, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की ज़रूरत रहेगी। भारत में एक अनुमान के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट्स बन्द होने (15 मार्च) से पहले हज़ारों की संख्या में एनआरआई, विदेशी और अन्य जन भारत आये हैं। इनमें से ज़्यादातर का कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है।
आशंका है कि इनमें से जो कोरोना से पीडि़त थे, उन्होंने बड़ी संख्या में अन्य को भी संक्रमित किया है। भारत में घरेलू उड़ानें भी 24 मार्च को जाकर बन्द हुई थीं और इस दौरान बड़ी संख्या में लोग देश के दूसरे हिस्सों में गये। उस समय तक एयरपोट्र्स पर स्क्रीनिंग बुखार चेक करने तक ही सीमित थी। विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश से आने वालों में बहुत में भारत पहुँच जाने के कुछ दिन बाद कोरोना के लक्षण दिखे।
इस पर सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़ों के सर्जन अरविंद कुमार कहते हैं कि भारत कोरोना वायरस संक्रमण प्रसार के तीसरे चरण में है, जिसमें संक्रमण समुदाय के स्तर पर फैलता है। अरविंद कहते हैं- ‘अब हम तीसरे चरण में हैं, जो बहुत बड़ा है। सिर्फ सैकड़ों-हज़ारों लोगों का संक्रमित होना ही समुदाय के स्तर पर संक्रमण नहीं है। कई ऐसे लोगों के संक्रमित होने के मामले भी आये हैं, जिन्होंने न तो देश-विदेश यात्रा की, न किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आये हैं। लिहाज़ा बहुत सावधानी की बहुत ज़रूरत है।’
भारत के कमोवेश सभी विशेषज्ञों का मानना है कि भारत पर से खतरा अभी नहीं टला है। उनके मुताबिक मामले की सम्पूर्णता की जानकारी के लिए बड़े पैमाने पर जाँच करने की ज़रूरत है। सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) के निदेशक और फेलो रमणन लक्ष्मीनारायण कहते हैं कि यदि हम चाहते हैं कि सही तस्वीर दिखे, तो हमें तेज़ी से जाँच का दायरा बढ़ाना होगा।
यहाँ यह गौर करने लायक बात है कि भारत में संक्रमितों की संख्या घट नहीं रही, बल्कि मामले बढ़ रहे हैं। इसका सबसे कारण यह है कि देश में अब संदिधों के टेस्ट में तेज़ी लायी जा रही है। टेस्ट किट भी बेहतर उपलब्ध होनी शुरू हुई हैं, जो कुछ घंटे में ही रिपोर्ट दे देती हैं। जैसे-जैसे इन तत्काल नतीजे वाली किट की उपलब्धता बढ़ेगी, कोरोना पीडि़तों की संख्या में भी इज़ाफा होगा।
यह देखा गया है कि मार्च के आिखर के बाद कोरोना से देश में मौतों में बहुत इज़ाफा हुआ है। यदि तुलना की जाये, तो दुनिया के कुछ ज़्यादा कोरोना प्रभावित देशों में संक्रमित लोगों की संख्या और हुई मौतों के औसत में भारत में औसत ज़्यादा है। ऐसे में खतरे को समझने की ज़रूरत है।
दक्षिण कोरिया से हमें सबक लेना होगा। वहाँ मामले सामने आते ही लोगों को आइसोलेट करने का काम शुरू हो गया। बहुत काम लोगों को पता होगा कि वहाँ शुरू में ही हर रोज़ करीब 15,000 लोगों के टेस्ट किये जाने लगे। एक महीने से काम समय में ही यह संख्या साढ़े चार लाख के पार पहुँच गयी। इसका लाभ यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोगों को मरने से बचा लिया गया। इसके विपरीत अमेरिका और ब्रिटेन में ऐसा नहीं हुआ, जहाँ मरने वालों की संख्या हम सबके सामने है।
भारत को लेकर भी यही चिन्ता जतायी जा रही है। ज़्यादातर विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि भारत में दूध, सब्ज़ी और फलों का जो वितरण रेहडिय़ों आदि में भारत के कई सूबों में होता है, उससे भी लापरवाही होने पर संक्रमण फैलने का खतरा है। लिहाज़ा विशेषज्ञ लगातार लोगों को सलाह दे रहे हैं कि दूध के पैकेट, सब्ज़ियों और फलों के साथ-साथ हाथों को अच्छी तरह धोना बहुत ज़रूरी है और यह सामान खरीदते हुए हाथों में ग्लब्स पहनना और चेहरे पर मास्क लगाकर रखना भी आवश्यक है। साथ ही खरीदारी के दौरान एक-दूसरे से डिस्टेंस बनाकर रखना भी ज़रूरी है। हाथ साबुन से धोना ही बेहतर बताया गया है।
सर्जन अरविंद कुमार कहते हैं कि हम दूसरे देशों में मरने वालों की भारत के साथ तुलना तो नहीं कर सकते, लेकिन यह सच है कि भारत में मामले और मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। उनके मुताबिक, अभी हमारे यहाँ संख्या बढ़ रही है, वह भी लॉकडाउन के दौरान। हमें बहुत ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है। बहुत से जानकार भारत में लॉकडाउन को खत्म करने के पक्ष में कतई नहीं हैं। उनका कहना है कि इससे पिछले एक महीने में जो हासिल किया है, वह बर्बाद हो सकता है। उनके मुताबिक, घरों में रहना कोरोना के फैलने से बचने और इससे संक्रमित होने से बचने का सबसे बेहतर उपाय है। जानकार कह रहे हैं कि भारत में लॉकडाउन में भी भारतीयों ने कुछ स्तर तक लापरबाही बरती है। लेकिन लॉकडाउन के नतीजे अच्छे रहे हैं। ज़्यादा अनुपात में लोग घरों में रहे हैं।
इसका एक दूसरा फायदा यह भी है कि चूँकि देश में अभी अस्पतालों की संख्या कोरोना के मरीजों का बड़ा बोझ सहने की स्थिति में नहीं है, घर पर रहकर लोग बड़ा योगदान दे सकते हैं। इनमें से बहुत ऐसे होंगे जो कोरोना से हलके (माइल्ड) प्रभावित होंगे और खुद ही स्वस्थ हो जाएँगे। हाँ, ज़्यादा आशंका होने पर लोगों को तुरन्त सम्बन्धित नम्बरों पर जानकारी देने की सलाह दी जा रही है। अब ज़्यादातर विशेषज्ञ कोरोना जाँच में तेज़ी लाने पर ज़ोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा नहीं होने पर भीतर ही भीतर कोरोना संक्रमितों की बड़ी संख्या बन जाएगी, जो बाद में एक विस्फोट के रूप में भारत में सामने आने का खतरा पैदा हो जाएगा। डॉक्टर डांग लैब के संस्थापक निदेशक डॉक्टर नवीन डांग का इस मसले पर कहना है कि अगर जाँच में तेज़ी नहीं लायी गयी, तो लॉकडाउन का पूरा उद्देश्य ही बर्बाद हो जाएगा।
विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि भारत में अब लॉकडाउन या अन्य प्रतिबन्धों को हटाया जाता है, तो यह भयंकर भूल हो सकती है। इसका कारण यह है कि मामले अभी बढ़ रहे हैं, ऐसे में अगर लॉकडाउन हटता है तो संक्रमित लोगों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
हिमाचल के कांगड़ा के पालमपुर सिविल अस्पताल में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (बीएमओ) डॉ. केएल कपूर कहते हैं कि कोविड-19 महामारी के मामले में हमने देश में संक्रमितों की संख्या को लॉकडाउन के दूसरे हिस्से में बढ़ते देखा है। इसका भले कोई कारण हो, इस समय लॉकडाउन को तोडऩा नुकसानदेह हो सकता है। यह तभी हटना चाहिए, जब संक्रमित लोगों की संख्या में कमी आनी शुरू हो जाए; जो कि अभी फिलहाल नहीं है। उनके मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन की घोषणा से संक्रमण फैलने से रोकने में बहुत मदद मिली है; और यदि इसे हटाया जाता है, तो इससे जो हासिल हुआ है, वो हम खो देंगे। गौरतलब है कि हिमाचल में कोरोना से मौत का पहला मामला कांगड़ा ज़िले में ही आया था।
भारत में वेंटिलेटर की संख्या की स्थिति निश्चित ही बेहद चिन्ताजनक है। सरकार भी इससे वािकफ दिखती है। लिहाज़ा वो वेंटिलेटर की अपनी क्षमता बढ़ाने की कोशिश कर रही है। रेलवे के स्वामित्व वाली इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) ने मशीनों को रिवर्स इंजीनियर करने का प्रयास किया है और निजी क्षेत्र के कार निर्माता भी अनुभव न होने के बावजूद वेंटिलेटर बनाने में जुट गये हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार ने समुदाय स्तर तक कोरोना के फैलने की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। भारत में महिंद्रा, मारुति, रिलायंस जैसी कम्पनियाँ वेंटिलेटर का उत्पादन शुरू कर चुकी हैं, ताकि आपात स्थिति में कमी को किसी हद तक पूरा किया जा सके। जानकारों के मुताबिक, कार कम्पनियों के पास उत्पादन के लिए ज़रूरी कई संसाधन पर्याप्त मात्रा में हैं। इन कार कम्पनियों ने उन कम्पनियों से समझौता किया है, जो पहले से वेंटिलेटर का निर्माण कर रही थीं।
हालाँकि, वेंटिलेटर को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और हृदय रोग विशेषज्ञ के.के. अग्रवाल कहते हैं कि अभी तक के भारत के रिकॉर्ड के मुताबिक, कोरोना के सिर्फ 20 फीसदी मरीज़ ही गम्भीर अवस्था में पहुँचे हैं। इनमें बुजुर्ग ज़्यादा हैं या अन्य कारणों से कमज़ोर लोग रोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। इन 20 फीसदी में भी सिर्फ 3 से 5 फीसदी को ही वेंटीलेटर की ज़रूरत पड़ती है। हालाँकि वे कहते हैं कि अगर कोरोना का संक्रमण भारत में कम्युनिटी स्तर तक फैलता है, तो मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ सकती है और तब ज़्यादा वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ेगी। लेडी हाॄडग कॉलेज और हॉस्पिटल के निदेशक एन.एन. माथुर का कहना है कि इटली और स्पेन के मुकाबले भारत में आईसीयू में भर्ती या वेंटिलेटर पर रखे गये मरीज़ों की संख्या फिलहाल तो न के बराबर है। भारत में महामारी अभी सामुदायिक संक्रमण स्तर पर नहीं है और देश में तमाम तरह के वायरस का लम्बा इतिहास होने के कारण सम्भवत: हमारा शरीर इससे लडऩे में ज़्यादा मज़बूत है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए निजी सुरक्षा उपकरण अभी की तादाद के हिसाब से तो पर्याप्त हैं, लेकिन आँकड़ों में तेज़ी से इज़ाफा होगा तो संकट पैदा हो सकता है।
चीन की पीपीई किट
खतरे के बढ़ते दायरे के बीच भारत भी तैयारी कर रहा है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक भारत के पास कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज में स्वास्थ्यकर्मियों के इस्तेमाल में आने वाले निजी सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की संख्या 387473 हो गयी थी। इससे टेस्ट का दायर बढ़ेगा और संक्रमित लोगों के सामने आने और उनके इलाज सम्भावना बढ़ गयी है। अप्रैल के पहले हफ्ते भारत को चीन से 1.7 लाख पीपीई किट मिलीं। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि देश में भी निर्मित 20 हज़ार पीपीई की आपूर्ति के बाद इन्हें राज्यों को भेजने का काम शुरू हो चुका है। देश में 10 अप्रैल तक इन पीपीई की उपलब्धता 387473 थी। मंत्रालय के मुताबिक, देश में ही बने दो लाख एन95 मास्क भी अस्पतालों को मुहैया कराये गये हैं और उपलब्धता के बाद इनकी संख्या बढ़ायी जा रही है। अन्य स्रोतों से मिले इस श्रेणी के 20 लाख मास्क पहले ही अस्पतालों को भेजे जा चुके हैं।
भारत निश्चित ही वेंटिलेटर की उपलब्धता के मामले में बहुत पीछे है। एक लाख आबादी पर अमेरिका में 48 जनों, जर्मनी में 34, इटली में 12.5, फ्रांस में 12, स्पेन में 9, ब्रिटेन में 7 जबकि भारत में महज 3.69 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। संख्या की बात करें तो भारत में मार्च की आिखर तक 48 हज़ार, जर्मनी में 25 हज़ार, अमेरिका में 1.60 लाख, ब्रिटेन में सिर्फ 9 हज़ार, फ्रांस में 5 हज़ार वेंटिलेटर उपलब्ध थे। इस समय यूरोप और अमेरिका में 9.60 लाख वेंटिलेटर की माँग है। भारत में फिलहाल कुछ निजी कम्पनियाँ वेंटिलेटर बनाने में जुट गयी हैं। सामान्य वेंटिलेटर की कीमत भारत डेढ़ लाख रुपये बैठती है।
चिन्ता की बात
भारत में सबसे बड़ी चिन्ता डॉक्टरों का बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित होना है। यह रिपोर्ट फाइल किये जाने के समय तक देश भर में करीब 90 डॉक्टर कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो कैंसर अस्पतालों में काम कर रहे हैं। इनके अलावा नर्सिंग और पैरा मेडिकल के भी संक्रमण की चपेट में आने के काफी मामले सामने आये हैं। लिहाज़ा यह ज़रूरी हो गया है चिकित्सा जगत के इन हीरो को उचित उपकरण और रक्षा कवच उपलब्ध करवाये जाएं।
शव का अंतिम संस्कार
भारत में कोरोना से पीडि़त की मौत के बाद दाह संस्कार के मामले में भी बहुत खराब स्थितियाँ देखने को मिली हैं। कई गाँवों से यह खबरें आयी हैं कि वहाँ ग्रामीणों ने कोरोना मरीज़ का दाह संस्कार वहाँ के समशान घाट पर करने देने की इजाज़त नहीं दी। इसमें कोइ दो राय नहीं कि कोरोना संक्रमित की मौत के बाद उसके दाह संस्कार में बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है। अस्पताल में भी जब डॉक्टर कोरोना संक्रमित की जाँच करते हैं तो उनके पास पूरे संसाधन होते हैं। ऐसे में सुझाव है कि बहुत सावधानी से अंतिम संस्कार किया जाये। बहुत लोग वहाँ न जुटें। और जो शव दाह के लिए गये हैं वे हाथ, मुँह आदि को कवर रखें। हाँ, स्थानीय लोगों को इसमें सहयोग करना चाहिए, विरोध नहीं, क्योंकि शव का अंतिम संस्कार तो किया ही जाना है।