अभी कोरोना टीका पूरी तरह से तैयार होकर और उसके असर पर बात भी नहीं बनी है, कि इस बीच इसके हलाल होने या न होने को लेकर बहस छिड़ गई है। अभी अमेरिका और ब्रिटेन में आपातकालीन टीके को मंजूरी दी गई है। अपने देश में अभी आपात स्थिति में भी किसी टीके को मंजूरी नही मिली है। कोरोना टीके तैयार कर रहीं कंपनियों और संस्थानों जैसे फाइजर, मॉडर्ना, ऑक्सफोर्ड, एस्ट्राजेनेका आदि लाख कहती रहें कि इनमें सुअर का मांस उपयोग नहीं हुआ है, फिर भी इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों हों इनके रखरखाव पर सवाल उठाए हैं। उन्हाेंने आशंका जताई कि टीकों के भंडारण व ढुलाई के समय पोर्क से बने सरेस जैसे उत्पाद का उपयोग शरीयत के अनुसार यह जायज नहीं हैं।
इंडोनेशिया में इसे लेकर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया देखने को मिली है। यहां के संगठनों कहना है कि कुछ कंपनियों ने सुअर के मांस के टीकों के निर्माण व रखरखाव के दौरान उपयोग को लेकर स्थिति नहीं की गई है। कोविड-19 से पहले भी कई फार्मा कंपनियां इस मांस के बिना टीका विकसित करने पर काम कर चुकी हैं। मैनिंजाइटिस सहित कई बीमारियों के लिए ऐसे टीके बने हैं।
ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव सलमान वकार ने न्यूज़ एजेंसी से कहा, रूढ़िवादी यहूदियों और मुसलमानों में टीके के इस्तेमाल को लेकर शंकाएं जताई जा रही हैं। सिडनी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. हरनूर राशिद कहते हैं कि टीके में सरेस के उपयोग पर इस्लामी नियमों के अनुसार सहमति नहीं बनने से शंकाएं पैदा हो रही हैं। वे कहते हैं कि अगर टीकों का उपयोग नहीं किया गया तो यह सभी के लिए बेहद नुकसानदेह होगा।
वहीं, इस्राइल के रेबाई संगठन अध्यक्ष रेबाई डेविड स्टेव ने दावा किया कि यहूदी नियमों में सुअर का मांस बेहद जरूरी होने पर बीमारी में उपयोग किया जा सकता है। कोरोना टीके को लेकर आपत्ति नहीं की जानी चाहिए।