कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों के बीच सियासी गलियारों में यह चर्चा आम होती जा रही है कि संभावित फरवरी-मार्च में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव फिलहाल टाले जा सकते है। सत्ता और विपक्ष के नेताओं का कहना है कि जिस तरीके से देश में कोरोना के मामलें बढ़ रहे है और कई राज्य सरकारें कोरोना को देखते हुये पाबंदियां लगा रही है। ऐसे में अगर चुनाव होते है और रैलियां होगी साथ ही सियासतदाँनों का आवा-जाही होगी तो, कोरोना का संक्रमण बढ़ सकता है।
सूत्रों का कहना है कि चुनाव को आगे बढ़ाये जाने को लेकर जल्द ही सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकती है। क्योंकि मार्च-मई 2021 में पश्चिम बंगाल में हुये चुनाव के दौरान कोरोना ने भारी तबाही मचाई थी। लाखों लोग बीमार हुये थे और लाखों लोगों की मौत भी हुई थी। जिसके कारण राजनीतिक दलों की बड़ी किरकिरी भी हुई थी। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल नहीं चाहता है कि चुनाव के कारण देश बीमार पड़े।
मौजूदा समय में चुनाव का जो माहौल बनाया जा रहा है उसमें राजनीतिक तो बढ़चढ़ कर हिस्सा लें रहे है। लेकिन जनमानस डरा हुआ है। कि कहीं वो कोरोना की चपेट में न आ जाये। उत्तर प्रदेश की राजनीति के जानकार लोकेन्द्र सिंह का कहना है कि चुनावी माहौल तो मीडिया में ही दिख रहा है। लेकिन जमीनी स्तर पर चुनावी माहौल न के बराबर है। क्योंकि लोगों के पास रोजगार नहीं है।
कोरोना महामारी में जिन्होंने अपनों को खोया है उनके परिजनों और परिचितों में डर-भय एक साथ है। क्योंकि वो मानते है कि अगर पश्चिम बंगाल में चुनाव न होते तो, शायद कोरोना अप्रैल–मई माह में कोहराम न मचाता। ऐसे में लोगों का मानना है कि अगर चुनाव होते है। तो जनता की भागीदारी कम ही होगी। जनता के इसी अनुमान पर राजनीतिक दल चुनाव टाले जाने पर मंथन कर रहे है।