देश में कोरोना के मामले हर रोज रिकार्ड बना रहे है। तीन लाख से ज्यादा कोरोना के मामले आने लगे है। देश का स्वास्थ्य सिस्टम हांफने लगा है। लेकिन मरीजों को सुध लेने वाला कोई नहीं है। ये बात तो कम से कम सामने आयी है। कि कोई आपदा या महामारी में हम वहीं खड़े है। जहां पर सदियों पहले खड़े थे।
बताते चलें इससे बड़ेदुख की बात क्या होगी जब देश के लोग कोरोना जैसी बीमारी से जूझते हुये अपनी जान बचाने के लिये अंतिम आस लेकर अस्पताल आते है। तो वहां पर आँक्सीजन और डाक्टरों की कमी होने की बात सुनकर मरीज और उनके परिजन सहम उठते है, कांपने लगते है।
तहलका संवाददाता ने कई अस्पतालों में दो दिनों में आँक्सीजन को लेकर अस्पतालों में जो हाहाकार देखा है। उससे तो ये साफ है। कि हमारा हेल्थ सिस्टम सामान्य बीमारियों के उपचार तक ही सीमित है। जरा सी मरीजों की संख्या कोरोना की बढ़ी नहीं की अफरा-तफरी सा माहौल सामने देखने को मिला ।
एम्स के डाक्टरों का कहना है कि सरकार द्वारा जो एप बनाये जा रहे है कि किस आस्पताल में कितने बैड खाली है और कितने भरे है। ये सब दिखावा वाली बातें है। धरातल पर एप का कोई वास्ता नहीं है। अगर कोई मरीज एप को देखकर अस्पताल चला गया कि फलां-फलां अस्पताल में बैड खाली तो उसे परेशानी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।
सामाजिक कार्यकर्ता एस कुमार ने बताया कि दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के लिये जो सुविधा मिल रही है। वो ठीक है या नहीं। पर नोएडा का हेल्थ सिस्टम तो ऊपर वाले के भरोसे ही। मरीज आधा-अधूरा इलाज करवा रहा है। यहां के अस्पतालों में डाँक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारी कोरोना के इलाज करने से बचते है। ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है। कि सरकार और डाँक्टर किस हद तक मरीजों के स्वास्थ्य के साथ न्याय कर रहे है।