देश में कोरोना वायरस के मामलों में हर रोज़ आ रही गिरावट को लेकर राहत के बीच इस महामारी के नये वायरस ओमिक्रॉन ने दस्तक दे दी है।
देश में ओमिक्रॉन के मामले कर्नाटक, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में ओमिक्रॉन के कई मामले आ चुके हैं; लेकिन अच्छा यह है कि ओमिक्रॉन के मरीज इलाज के बाद निगेटिव (ठीक) भी हो रहे हैं। ओमिक्रॉन वायरस हमें सावधान करता है कि अगर ज़रा-सी लापरवाही की गयी, तो फिर से कहर का सामना करना होगा। कोरोना के दूसरी लहर ने 2021 अप्रैल-मई में जो कहर बरपाया था, उससे से भी अधिक ओमिक्रॉन के कहर से तीसरी लहर आने की सम्भावनाएँ जतायी जा रही हैं।
‘तहलका’ संवाददाता ने ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों को लेकर देश के डॉक्टरों और डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों से बात की। उन्होंने बताया कि कोई भी महामारी हो अगर लापरवाही बरती जाए, तो घातक परिणाम सामने आते हैं। फिर यह तो ओमिक्रॉन है, जो कोरोना के नये स्वरूप में आया है। दुनिया के 60 से अधिक देश इसकी ज़द में है। दिल्ली सरकार के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर (एनसीसीएचएच) डॉक्टर भरत सागर का कहना है कि भले ही भारत में ओमिक्रॉन के मामले बहुत कम सामने आये हैं। लेकिन हमें सतर्क रहना होगा। क्योंकि जिस गति से पूरी दुनिया में ओमिक्रॉन का प्रसार हो रहा है, वो वाक़र्इ चिन्ता की बात है। नये ओमिक्रॉन का जो कहर यूरोप और अमेरिका हर रोज़ जो देखने को मिल रहा है, वो ज़रूर तीसरी लहर की आशंका को बल देता है। उन्होंने बताया कि ओमिक्रॉन के बारे में जो अध्ययन देश-दुनिया में किया गया है, उससे आशंका है कि जनवरी-फरवरी माह में तीसरी लहर आ सकती है। तीसरी लहर को रोकने के लिए हमें उन कारकों पर रोक लगानी होगी, जो ओमिक्रॉन को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार हैं। अगर समय रहते पाबन्दी नहीं लगायी गयी, तो आने वाले दिनों में भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं।
कोरोना के नये स्वरूप के बारे में डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी ने कहा कि कोरोना वायरस जब भारत देश में 2020 में आया था, तब हम और हमारी चिकित्सा प्रणाली नये वायरस को लेकर काफ़ी हद तक अनभिज्ञ थे। लेकिन अब कोरोना वायरस हो या ओमिक्रॉन हो, हम काफ़ी हद तक इसका उपचार करने में सफल हुए हैं। टीकाकरण भी हुआ है, जिससे राहत मिली है। इसलिए जितनी जल्दी हो सके, सभी का टीकाकरण होना चाहिए। जिन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम है, उनको बूस्टर की ख़ुराक लगनी चाहिए। साथ-ही-साथ 12 से 18 साल के बच्चों का टीकाकरण होना चाहिए। डॉक्टर दिव्यांग का कहना है कि कोरोना वायरस का कहर जब 2020 में आया था, हम सबने मिलकर सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) अपनाकर, मास्क लगाकर और सेनेटाइजर का उपयोग करके उसका मुक़ाबला किया। अब यही सब हमें फिर से करना है; क्योंकि सावधानी में ही बचाव है। केवल घबराने से काम नहीं चलेगा।
डब्ल्यूएचओ इंडिया की अधिकारी डॉक्टर पूनम खेत्रपाल ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने सचेत किया है कि कोरोना के नया स्वरूप ओमिक्रॉन डेल्टा के नये वॉरिएंट से अधिक गति से फैलता है। इसकी शुरुआत अफ्रीका से हुई और अब यह दुनिया के 60 से अधिक देश में फैल चुका है। डॉक्टर पूनम खेत्रपाल का कहना है कि समय रहते अगर अभी से सख़्ती की जाए तो जनवरी-फरवरी में तीसरी लहर की सम्भावनाओं को टाला जा सकता है।
आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि जिस गति से कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण हुआ है, उसी गति से जल्द-से-जल्द बच्चों के लिए टीकाकरण पर फ़ैसला होना चाहिए। क्योंकि जो आशंका बच्चों को लेकर व्यक्त की जा रही है, वो हमें जल्द-से-जल्द उनकी हिफ़ाज़त में क़दम उठाने के लिए सचेत करती है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि ये तो स्पष्ट है कि कोरोना अभी हमारे बीच से गया नहीं है। ऐसे में सरकार महानगरों से साथ-साथ गाँव-गाँव तक में कोरोना से बचाव के लिए जो भी हो सके, स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करे, ताकि कोई भी मरीज़ इलाज व चिकित्सा संसाधनों के अभाव में दम न तोड़े। क्योंकि गत अप्रैल-मई माह में कोरोना के चलते तबाही का जो मंज़र देखा है, वो आज भी अन्दर से हिला देता है। देश में आज भी इलाज के अभाव में बहुत लोगों की मौत हो रही है, जो कि चिन्ता का विषय है।
डॉक्टर बंसल का कहना है कि कोरोना हो या ओमिक्रॉन, बचाब और बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं से ही इनसे निपटना सम्भव है। आज देश में मधुमेह, हृदय, अस्थमा और अन्य कई बीमारियों के मरीज़ों की भरमार है, उनका भी इलाज ज़रूरी है। कोरोना संक्रमण के साथ अन्य संक्रमणों से ख़ुद का बचाव लोगों को भी करना होगा। लोगों को डरने की बजाय बचाव और पौष्टिक भोजन पर बल देना चाहिए, ताकि रोग-प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एसोसिएट प्रो. डॉक्टर युद्धवीर सिंह ने बताया कि जिस तरह कोरोना वायरस से बचाव के लिए सावधानी बरती गयी है, उतनी ही सावधानी ओमिक्रॉन को लेकर नहीं बरती जा रही है। लोगों को चाहिए कि जब तक कोरोना पूरी तरह से समाप्त न हो जाए, मास्क लगाकर घर से निकलें, भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में न जाएँ। जिन लोगों ने टीका नहीं लगवाया है, वे जल्द-से-जल्द टीकाकरण करवाएँ। डॉक्टर युद्धवीर सिंह का कहना है कि ओमिक्रॉन को लेकर यह न सोचें कि यह वायरस कम प्रभावी है या अधिक प्रभावी; बल्कि इस बात पर बल दें कि कोरोना संक्रमण किसी पास न भटकने पाये। ओमिक्रॉन के लक्षण बच्चों और वयस्कों में अलग-अलग हैं, यह कह पाना कठिन है। ऐसे में अगर बच्चे और बुज़ुर्ग को खाँसी, जुकाम और बुख़ार हो, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें; डॉक्टर से परामर्श लें और उपचार करवाएँ।
गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर प्रवीण भाटिया का कहना है कि कोरोना का यू-टर्न जो ओमिक्रॉन के रूप में आया है, वो सचेत करता है कि कोरोना हमारे बीच में है। लेकिन कोरोना के अटैक से डरना नहीं है, उसका समय रहता इलाज करवाना है। मौज़ूदा समय में ओमिक्रॉन से बचने के लिए जिन देशों में ओमिक्रॉन के मामले अधिक हैं, उन देशों की यात्रा करने से बचना चाहिए।
कोरोना के यू-टर्न को लेकर पूरी दुनिया में फिर वही डर और महामारी का वातावरण बनने लगा है, जो कोरोना के आने के बाद 2020 में बना था। तब भी डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर को कोरोना को लेकर सावधानी बरतने को कहा था। इस बार यह बात भी सामने आ रही है कि कोरोना के नये स्वरूप को लेकर ज़्यादातर लोगों में डर और भय का माहौल नहीं है। देश के जाने-माने चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना को लेकर जो बातें तमाम अध्ययन डब्ल्यूएचओ के द्वारा किये जा रहे हैं, उससे देश का एक बड़ा चिकित्सा समुदाय इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता है। ऐसे में लोग स्वयं भी कोरोना से बचाब के दिशा-निर्देशों का पालन करें और टीकाकरण कराएँ। डर का जो माहौल बनाया जा रहा है, वो ग़लत है। आँकड़ों की हेरा-फेरी है। देश में आँकड़ों की बाज़ीगरी करके लोगों के मन में यह बैठाया जा रहा है कि कोरोना महामारी से ज़्यादा ख़तरनाक ओमिक्रॉन है।
दिल्ली के दवा व्यापारी रोमेश कुमार का कहना है कि कोरोना को हमेशा के लिए ख़त्म करना मुश्किल इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसके पीछे मुनाफ़े का बड़ा बाज़ार है। कोरोना को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है, ताकि लोगों में डर बना रहे और कोरोना के नाम पर बाज़ार चलता रहे हैं। जिस अंदाज़ में इस बार ओमिक्रॉन को बच्चों का दुश्मन बताया गया है, उससे ऐसा लगता है जैसे कि किसी वैज्ञानिक को पता हो कि ओमिक्रॉन सिर्फ़-ब-सिर्फ़ बच्चों के लिए है। दुनिया में अभी ओमिक्रॉन के कुछ ही मामले सामने आ रहे हैं। फिर यह कैसे कहा जा रहा है कि ओमिक्रॉन वायरस सीधे बच्चों पर ही अटैक कर रहा है और करेगा? गत वर्ष अप्रैल-मई माह में जिस तरह कोरोना वायरस की जाँच के नाम पर सीटी स्कैन करवाने के लिए मरीज़ों पर दबाव डाला गया था, उससे देश का ग़रीब तबक़ा काफ़ी परेशान रहा है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सीटी स्कैन करवाना मुश्किल होता है और वहाँ मरीज़ों को सिफ़ारिश का सहारा लेना होता है; या फिर कई-कई महीनों बाद की तारीख़ मिलती है। ऐसे में मरीज़ों को निजी अस्पतालों में जाकर सीटी स्कैन करवाना पड़ा।
इस बारे में आयुर्वेदिक डॉक्टर सुधीर कुमार का कहना है कि जबसे ओमिक्रॉन को लेकर चिन्ता व्यक्त की गयी है, तबसे निजी अस्पतालों में वो सारी व्यवस्था की जा रही है, जो कोरोना-काल में मरीज़ों के लिए की थी। क्योंकि निजी अस्पतालों में मरीज़ों का इलाज पैसा देकर होता है। सरकारी अस्पतालों मुफ़्त में इलाज भले ही होता है; इनमें सुविधाएँ भी होती हैं; लेकिन मरीज़ का दाख़िला आसानी से नहीं होता है।