कोरोना का कहर अब शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी इस कदर फैलता जा रहा है कि अब उसको काबू करने के प्रयास में जो भी सरकारी अमला लगा है, वह दिखावे के तौर पर साबित हो रहा है। क्योंकि लोगों को जागरूक करने के दौरान जो भी प्रयास किये जा रहे हैं, उनमें से ज़्यादातर वे लोग खुद सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं; जो इसके लिए रखे गये हैं। बिडम्वना यह है कि सरकारें आँकड़ेबाज़ी में जनता को इस कदर उलझा रही हैं कि खुद भी उलझ गयी हैं। यह सब समझ से परे है; क्योंकि अब रोज़ाना कोरोना वायरस के संक्रमण के हज़ारों मामले आ रहे हैं और सैकड़ों लोगों की कोरोना वायरस से मौत हो रही है। ऐसे में आम जन भयभीत है।
वहीं राज्य सरकारों ने कोरोना की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए अपने-अपने तरीके से अल्पावधि के लॉकडाउन और बाज़ारों, दुकानों को खोलने की जो रोस्टर प्रणाली लागू की है, उसकी समीक्षा के लिए कोई मापदण्ड तय नहीं किये गये हैं। रोस्टर प्रणाली की जो रूपरेखा तय की गयी है, उसमें हमारे सिस्टम में भेदभाव वाली प्रणाली काफी परेशानी वाली साबित हो रही है। मसलन जिनकी पुलिस, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से साठ-गाँठ है, वे लोग धड़ल्ले से दुकानें खोलकर दैनिक कार्य को अंजाम दे रहे हैं, जिससे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन बेमानी साबित हो रहा है। जानकारों व चिकित्सकों का कहना है कि कोरोना की लड़ाई में अगर राज्य सरकारें अपने स्तर पर लगी रहीं, तो कोई बड़ा लाभ नहीं होगा। ऐसे में राष्ट्रव्यापी योजना के तहत ही कोई ऐसे योजना बनानी होगी, जो देश में एक सामान लागू हो। अन्यथा कोरोना वायरस का थमना हाल-फिलहाल मुश्किल होगा।
अब बात करते हैं कि किन राज्यों में कोरोना वायरस का कहर थम रहा है और किन राज्यों में फैल रहा है? इस मामले में तहलका संवाददाता ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और हरियाणा में जानकारों व डॉक्टरों से बात की। वहीं दिल्ली तथा महाराष्ट्र में कोरोना के थमते मामलों के बारे में जाना, तो वहाँ के लोगों ने बताया कि डर की वजह से लोग सामाजिक मेल-मिलाप से दूर रह रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने भले ही सप्ताह के आखरी दो दिन शनिवार और रविवार को पूर्णत: लॉकडाउन को लागू किया है। उसके बावजूद यहाँ पर हर रोज़ 2000 से ज़्यादा मामले सामने आ रहे। बिहार में अप्रैल-मई में कोरोना के मामले कम आ रहे थे, लेकिन जून-जुलाई में कोरोना का कहर तेज़ी से फैला है। यहाँ के लोगों का कहना है कि एक तो बारिश का संक्रमित मौसम है, उस पर अभी दिल्ली-मुम्बई से बड़ी संख्या में लोगों का आना जारी है; जो कोरोना के बढऩे का एक कारण है।
वहीं लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते मरीज़ों का इलाज न के बराबर हो पा रहा है। बिहार निवासी प्रियरंजन का कहना है कि इस राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का टोटा कोरोना के पहले से है, अब तो कोरोना वायरस फैला है, जिसके लिए स्वस्थ्य सेवाओं का होना बहुत ज़रूरी है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है; क्योंकि यहाँ पर इसी साल अक्टूबर-नवंबर में (सम्भावित) बिहार विधान सभा के चुनाव हैं। इसलिए कोरोना के राजनीतिकरण की सम्भावना है। मध्य प्रदेश में कोरोना वायरस का ताण्डव इंदौर और उज्जैन में अप्रैल महीने से शुरू हो गया था, जो धीरे-धीरे पूरे राज्य में कहर बरपा रहा है। इसके चलते यहाँ की स्थिति यह है कि कब कौन-से ज़िले में मामले बढ़ जाएँ और ज़िलास्तरीय लॉकडाउन लग जाए? कहा नहीं जा सकता। टीकमगढ़ के रहने वाले राजेश शर्मा का कहना है कि कोरोना-काल में अब नये-नये प्रयोग देखने को मिल रहे हैं। जैसे ही कोरोना के मामले बढऩे की पुष्टि हुई कि अचानक ज़िले में लॉकडाउन का आदेश आ गया, जिसके कारण लोग किसी अन्य प्रदेश या ज़िले में तो दूर अपने ही ज़िले में आने-जाने कतरा रहे हैं कि लॉकडाउन के कारण कहीं फँस न जाएँ। फिलहाल मध्य प्रदेश की स्थित चिन्ताजनक है। हरियाणा के लोगों का कहना है कि माना कोरोना वायरस का कहर सारी दुनिया में है, पर हरियाणा में इसके मामले सही मायने में दिल्ली के रास्ते बढ़े हैं। क्योंकि दिल्ली से लोगों का आना-जाना और आपसी सम्पर्क जारी रहा है। किसी प्रकार की कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हुआ, जिसके कारण कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता गया।
महाराष्ट्र और दिल्ली में जहाँ पर कोरोना संक्रमित मामलों में दिन-ब-दिन गिरावट दर्ज की जा रही है, उसकी वजह सरकारी सूझ-बूझ और सही मायने में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है। मुम्बई के धारावी में अब कोरोना के मामले काफी कम आ रहे हैं। दिल्ली में सुधार की वजह स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े पैमाने में सुधार है। वहीं लोगों ने अपनी समझ से खुद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है। वैसे भी दिल्ली अन्य राज्यों की तुलना में स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर है।
कोरोना वायरस के कहर से राहत देने वाली बात यह है कि रिकवरी की दर लगभग 50 फीसदी के आस-पास आ गयी है। वहीं मृत्यु-दर अब भी 2.5 के आस-पास ही है। ऐसे में स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि समय-समय पर कारगर कदम उठाये जाने की वजह से काफी सफलता मिल रही है। देश में पाँच राज्यों में कोरोना वायरस से मृत्यु दर शून्य और 14 राज्यों में एक फीसदी से कम है। इसकी वजह अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों और डॉक्टरों का बेहतर प्रबन्धन है। मैक्स अस्पताल की कैथ लैब के डायरेक्टर डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना काल में इलाज के साथ लोगों को स्वयं में सतर्क रहने की ज़रूरत है, क्योंकि मौज़ूदा दौर में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है और दोबारा संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि देश में अभी संक्रमण का सामुदायिक फैलाव नहीं हुआ है। हालाँकि देश के महानगरों के कुछ जगहों पर स्थानीय स्तर हर संक्रमण बढ़ा है। डॉक्टर गुलेरिया का कहना है कि अगर दक्षिणी राज्यों में संक्रमण की स्थिति को देखे और अमेरिका, इटली और ब्राजील से तुलना करें, तो भारत में संक्रमण कम प्रभावी दिखेगा। मध्यम वर्गीय शहरों और गाँवों में कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल कहते हैं कि कंटेनमेंट जोन में ढील और लापरवाही की वजह से हालात अनियंत्रित हुए हैं। क्योंकि कोरोना वायरस को लेकर लोगों का मानना है कि लम्बे समय तक यह मामला चलने वाला है। कब तक घरों में रहेंगे? यही वजह है कि लोगों ने कंटेनमेंट जोन में रहकर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ायीहैं, जिसकी वजह से देश को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
बात भरोसे की
तामाम देशों ने कोरोना वायरस को मात देने के वैक्सीन को लाने के लिए जो दावे किये हैं, उनको दरकिनार कर देश को एम्स पर भरोसा है कि एम्स ही परीक्षण करके कोरोना को मात देने में ज़रूर सफल होगा।
देश-दुनिया में वैक्सीन को लेकर ऊहापोह की स्थिति में एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि वैक्सीन पर मानव परीक्षण के लिए लोगों की पंजीयन प्रक्रिया शुरू हो गयी है। परीक्षण की प्रक्रिया तीन चरणों में होगी। पहले चरण में वालंटियर्स का पंजीकरण हो रहा है, जिनमें 18 से 55 वर्ष के लोग शामिल होंगे। इन लोगों की जाँच की जा रही है, ताकि हर किसी को महामारी से मुक्ति मिल सके। महिलाओं में गर्भ की जाँच की जा रही है। पहले चरण में वैक्सीन की सुरक्षा को जाँचा जाएगा। फिर 28 दिन तक उन लोगों को विशेष निगरानी में रखा जाएगा, जिनको वैक्सीन की तीन माइक्रोग्राम की दवा दी गयी है। फिर दूसरे चरण में डोज दोगुनी दी जाएगी; यानी की छ: माइक्रोग्राम। इसमें देखा जाएगा कि शरीर में क्या लाभ हो रहा है? या क्या हानि? यानी शरीर में एंटीबॉडी (प्रतिरोधक) अधिक-से-अधिक बन रहे हैं कि नहीं। इस चरण में 12 से 65 वर्षीय लोगों को शामिल किया जाएगा। तीसरे चरण के परीक्षण में घनी और अधिक जनसंख्या वाली आबादी को वैक्सीन देने के बाद यह देखा जाएगा कि वैक्सीन का क्या असर हुआ है? वहाँ के लोग कोरोना के चपेट में आ रहे हैं कि नहीं। इस दौरान चिकित्सक मरीज़ों बड़ी बारीकी से नज़र रखेंगे।
कोरोना की रोकथाम को लेकर लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस को लेकर जो सियासी खेल खेला जा रहा है, जिस तरह आँकड़ों को लेकर लुका-छिपी हो रही है, वह घातक है। क्योंकि डॉक्टरों व जानकारों का कहना है आँकड़ों को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है।