कोरोना काल में पूरी दुनिया में लगे लॉकडाउन ने बहुतों के रोज़गार छीन लिए, रोज़ी-रोटी की समस्या पैदा कर दी, कितनों का जीने का हौसला छीन लिया। लेकिन कहते हैं कि परिस्थितियों का मुकाबला करके जीने का नाम ही ज़िन्दगी है। यानी इंसान वही है, जो हर परिस्थिति में जीने का रास्ता निकाल ले। इस बात को शायद ही सदियों तक भुलाया जा सके कि दुनिया भर के 92 फीसदी लोगों पर कोरोना वायरस के संक्रमण का बेहद खराब असर पड़ा है। 92 फीसदी इसलिए, क्योंकि दुनिया के 8 फीसदी लोग, जो सबसे ज़्यादा ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीते हैं, उन्हें इस महामारी से कोई नुकसान नहीं हुआ है। यह वो अमीर लोग हैं, जो अथाह सम्पत्तियों के मालिक हैं। कोरोना वायरस की महामारी ने जिन 92 फीसदी को प्रभावित किया, उनमें करोड़ों लोग धन हानि से जूझ गये। लाखों लोगों की मौत हो गयी और लाखों लोग अभी भी रोज़ी-रोटी की िकल्लत से जूझ रहे हैं। अगर तरह की कम्पनियाँ बन्द हो गयीं, जिससे लोगों के रोज़गार तो गये ही, लाखों लोगों की नौकरी भी चली गयी। इसके अलावा कई काम-धन्धों पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी गयी, उदाहरण के तौर पर रेस्टोरेंट और बहुत-से होटल तक बन्द कर दिये गये। लेकिन वहीं कुछ लोगों ने इस परेशानी वाले दौर में भी कुछ रोज़गार करने शुरू कर दिये हैं। इन रोज़गारों में मास्क बनाना, सैनेटाइज बनाना और घर से खाना बनाकर ऑनलाइन सप्लाई करना आदि शामिल हैं।
लॉकडाउन में स्वरोज़गार करने वाले कुछ लोगों से हमने बात की, तो पता चला कि इन लोगों ने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए कम सही, लेकिन पैसा कमाया और अपना घर चलाते रहे। दिल्ली में रहने वाली चेतना कपूर ने बताया कि वह इस कोरोना महामारी में मास्क बनाती हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि वह अकेले की रोज़ी-रोटी के लिए ही यह काम नहीं करतीं, बल्कि एक दर्ज़न से अधिक महिलाओं को भी उन्होंने इस काम से जोड़ा है। इसके लिए उन्होंने उन्हें ट्रेनिंग देकर रोज़गार का रास्ता तैयार किया है। चेतना कपूर ने बताया कि आज इस लॉकडाउन और बेरोज़गारी के दौर में भी, जो महिलाएँ घर में बैठी रहती थीं, वे इस खाली समय में पाँच से छ: हज़ार रुपये तक महीने में कमा रही है। चेतना कपूर ने बताया कि वह खुद इस काम से 15-20 हज़ार रुपये महीने कमा लेती हैं। इसके अलावा वह प्रीमिक्स बनाना सिखाती हैं। चेतना कपूर के अनुसार, यह एक हेल्दी और पाँच से 10 मिनट में आसानी से बन जाता है। प्रीमिक्स कई तरह का होता है। लॉकडाउन में जब बाहर के खाने के शौकीनों को घर में तुरन्त बाहर के स्वाद जैसा खाना चाहिए, तो वह प्रीमिक्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। चेतना कपूर के अनुसार, कोरोना-काल में प्रीमिक्स की बिक्री में काफी उछाल आया है। खाने के प्रोडक्ट को कैसे बेचें, इस सवाल के जवाब में चेतना कपूर कहती हैं कि ऑनलाइन खाना बेचने वाली कम्पनियों के ज़रिये अपने घर में बनाकर खाने की सप्लाई की जा सकती है।
चेतना कपूर का कहना है कि लॉकडाउन में उन्होंने न केवल अपना घर चलाने के लिए पैसे कमाये, बल्कि घरों में बेकार बैठी अनेक महिलाओं के लिए भी रोज़गार का ज़रिया तैयार किया। यह पूछने पर कि क्या मास्क के साथ-साथ घर में सैनेटाइजर भी बना सकते हैं? उन्होंने कहा कि बना सकते हैं, लेकिन उसके लिए लाइसेंस लेना बहुत ज़रूरी है।
इस बारे में गली-गली सब्ज़ी बेचने वाले ब्रजपाल उर्फ राजा ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले उनका बेल्डिंग का काम था। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन लगा, उनका काम एकदम चौपट हो गया। घर चलाने की समस्या ने उन्हें दूसरा काम करने पर मजबूर किया। लेकिन उनके आगे दो समस्याएँ थीं, एक यह कि वह क्या करें? जिससे घर का खर्च चलता रहे और दूसरा यह कि उस काम के लिए उनकी जेब में बजट है या नहीं? तब उनके दिमाग में सब्ज़ी बेचने का विचार आया और उन्होंने 1200 रुपये का एक पुराना ठेला खरीदा तथा उस पर मण्डी से 600 रुपये की सब्ज़ी लाकर गली-गली बेचने लगे। शुरू में उन्हें थोड़ी झिझक भी हुई और आमदनी भी कम हुई; पर बाद में उनका यह काम भी खूब चलने लगा। आज वह इस काम से ठीकठाक कमा रहे हैं।
ब्रजपाल उर्फ राजा के काम बदलने में प्रधानमंत्री के महामारी में अवसर ढूँढने की बात काफी फिट बैठती है। अवसर का मतलब बहुत-से लोगों ने भले ही जो निकाला हो, पर अवसर का मतलब यह भी होता है कि चाहे जैसी परिस्थिति हो, इंसान को जीना सीखना चाहिए।
रोज़गार बढऩे से उबरेगी अर्थ-व्यवस्था
आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि देश की अर्थ-व्यवस्था को सुधारने के लिए उद्योगों को फिर से शुरू करना होगा, जिन्हें चलाने के लिए पूँजी के साथ-साथ लॉकडाउन में अपने-अपने घरों को लौट चुके श्रमिकों को वापस बुलाना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए दिल्ली मॉडल की तरह रोज़गार मुहैया कराने होंगे। पिछले दिनों दिल्ली सरकार की पहल पर लाखों लोगों को नौकरियाँ मिली हैं। ऐसी ही पहल देश के हर राज्य में की जानी चाहिए, ताकि लोगों के पास पैसे की आवक हो और लोग उसे खर्च करें और बाज़ारों खरीदारी बढ़े। क्योंकि खरीदारी होने पर ही माँग बढ़ेगी और उत्पादक नये उत्पादन के लिए अग्रसर होंगे।
अपनानी होंगी नयी व्यवस्थाएँ
विशेषज्ञों की राय है कि आज जब लाखों लोग बेरोज़गार हो रहे हैं, ऐसे में नये रोज़गारों की तलाश करनी होगी। उनका कहना है कि इस समय उद्योग-धन्धों की पूरी संरचना और उसमें काम करने के लिए निमंत्रित रोज़गार को नये सिरे से तैयार करने की ज़रूरत है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन ने कहा है कि कोविड-19 जैसी महामारी के असर और चौथी औद्योगिक क्रान्ति के चलते हो रहे बदलावों से लगभग 50 फीसदी लोगों की आजीविका पर प्रभाव पड़ा है। यानी बहुत बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार हुए हैं। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस समय देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती नये तरीके से पूरे व्यावसायिक ढाँचे को खड़ा करना है। इसके लिए कारोबारियों को नयी व्यवस्थाएँ अपनाने के लिए तैयार रहना होगा और सरकार को उनकी मदद करनी होगी। हालाँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर बनने का आह्वान पर शहरों और गाँवों में बहुत लोगों ने इस पहल को सकारात्मक तरीके से लिया है और नये रोज़गार की खोज भी की है; जिसका उदाहरण शहरों में चेतना कपूर और ब्रजपाल उर्फ राजा जैसे लोग हैं, तो वहीं गाँवों में मास्क आदि बनाकर रोज़ी-रोटी चलाने वाली महिलाएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत समूह बनाकर स्वरोज़गार कर रही हैं। गुरु नानक स्वयं सहायता समूह की मदद से भी अनेक महिलाएँ आज रोज़गार पा रही हैं। इस मामले में खादी ग्रामोद्योग भी काफी समय से पहल कर रहा है; लोग उसकी मदद से भी स्वरोज़गार कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि स्वरोज़गार की ट्रेनिंग मिलती है और उसके बाद स्वरोज़गार करने के लिए लोन भी मिल जाता है। ऐसे कई समूह और ट्रेनिंग सेंटर देश में काफी समय से चल रहे हैं, जिनको प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। ऐसे समूहों और ट्रेनिंग सेंटरों को अगर सरकार प्रोत्साहित करेगी, तो देश में स्वरोज़गार करने वालों की संख्या में काफी वृद्धि होगी, जिससे लोगों को काफी राहत मिलेगी और अर्थ-व्यवस्था मज़बूत होगी।
श्रमिकों के मन से निकालना होगा डर
आज हालात ये हैं कि हर कोई कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह डरा हुआ है। ऐसे में सरकार को लॉकडाउन के समय शहरों से अपने-अपने घरों को लौट चुके श्रमिकों के मन से डर निकालना होगा। साथ ही उन्हें आश्वासन देना होगा कि अब उन्हें लॉकडाउन के दौरान की तरह परेशानी नहीं उठानी होगी और न ही उनके साथ किसी तरह का दुव्र्यवहार होगा। जैसा कि विदित है कि लॉकडाउन के दौरान रोज़गार छिन जाने पर घर लौट रहे श्रमिकों पर अनेक जगह पुलिस वालों ने दुव्र्यवहार किया था। इसके अलावा लोगों को आश्वस्त करना होगा कि उन्हें शहर लौटने पर रोज़गार मिलेगा। हालाँकि यह करना आसान और पूरी तरह सुरक्षित नहीं है; लेकिन इसका बेहतर तरीका यह हो सकता है कि किसी संस्थान को जितने लोग चाहिए, वह उतने ही लोगों को अपने भरोसे और सुरक्षा के पूर्ण आश्वासन के साथ बुलाये तथा उन्हें रोज़गार दे। ऐसे करने से न केवल श्रमिकों का दोबारा भरोसा कायम होगा, बल्कि उनके मन का डर भी निकलेगा और धीरे-धीरे अर्थ-व्यवस्था पटरी पर लौटने लगेगी।