पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट की यह उक्ति आज भी प्रासंगिक है कि ‘सही क्या है? यह जानने से कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क का इल्हाम तो तब होता है, जब सही कदम उठाया जाता है।’ राजस्थान के कोटा में विकास की दहलीज़ पर ‘चंबल रिवर फ्रंट’ ऐसी ही सही कदम की मानक इबारत है। तरक्की की इस दुर्लभ दास्तान को सियासी हठयोग के आईने में देखें, तो यह मायावी योजना नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल को एतिहासिक मोड़ पर ले आयी है, जहाँ वे एक बड़े परिवर्तन के सूत्रधार बनने की डगर पर चल पड़े हैं।
चंबल रिवर फ्रंट की कहानी को अलग-अलग अध्यायों में देखें, तो इसने इस अवधारणा को खत्म कर दिया है कि केंद्र और राज्यों की परियोजनाओं की सीरत में बड़ा फर्क होता है। अगर ऐसा होता, तो चंबल रिवर फ्रंट के समर्थन में इतना जबरदस्त भावनात्मक ज्वार क्यों उमड़ता? इस भव्य विचार की कशीदाकारी इतिहास को संरक्षित करने और भविष्य को इसकी झलक दिखाने की लयकारी में गुँथी हुई है। इस परियोजना के निर्माण को लेकर बेइंतहा दीवानगी भी है, तो इसकी बड़ी वजह है- आत्मप्रतिष्ठा का सन्देश; जैसे यह अहम घटक भी फ्रंट की संरचना में शामिल है। इस परियोजना में विकास की प्रचलित परम्परा में अपना मौलिक नज़रिया जोडऩे की बेताबी साफ नज़र आती है। धारीवाल कहते भी है कि इस पूरी परियोजना की प्राणवायु में पर्यटन की मुश्क रची-बसी है। पर्यटन को अपना सफर पूरा करने के लिए अतीत को सहेजना पड़ता है। इसलिए प्रदेश की अद्भुत विरासत और परम्पराओं को सहेजना और उन पर नज़रें टिकाये रखना हमारे लिए नितांत स्वाभाविक है।
धारीवाल कोटा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से युक्त पर्यटन नगरी बनाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं। कोटा को दुनिया भर के सैलानियों की अव्वल मंज़िल के तौर पर प्रचारित करने के लिए शक्ति और भक्ति के नायकों के साथ साहित्यिक मनीषियों के स्मारकों को भी धरोहर के तौर पर सूचीबद्ध किया है।
चंबल रिवर फ्रंट के साहित्य घाट पर उत्कीर्ण की जाने वाली महाकवि तुलसी दास, कथा शिल्पी प्रेमचंद और गालिब की चर्चित रचनाएँ और अभिलेख सैलानियों को बरबस बाँध लेेंगे। कोटा मॉडल का अहम तत्त्व प्रदेश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पोराणिक प्रसंगों को विश्वसनीयता के साथ रेखांकित करना है। कृष्ण चरित्र के महत्त्वपूर्ण आख्यान गीता के श्लोकों की प्रतीकात्मक प्रस्तुति मुग्ध कर देगी। धारीवाल जिस तरह एक विराट अफसाने को हकीकत में बदलने के लिए एकाग्रता से आगे बढ़ रहे हैं। उसकी परिणिति ‘दिव्य’ और ‘भव्य’ शब्दों से जुड़ती जा रही है। पर्यटन की उड़ान भरती इस कहानी में दो लफ्ज़ों की हवा बह रही है- ‘न भूतो, न भविष्यति’। यानी राजस्थान में विकास की ऐसी पटकथा न पहले कभी लिखी गयी, न ही आगे लिखी जाएगी। विकास की कहानी में अद्भुत और अकल्पनीय अध्याय लिखने में धारीवाल ने जितनी मशक्कत की उसनेे पूरे प्रदेश का दिल जीत लिया है।
चंबल रिवर फ्रंट को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की दीवानगी भी चौंकाने वाली है। सूत्रों का कहना है कि अयोध्या को वेदिक नगर के तौर पर विकसित करने की तैयारियों के चलते गुप्तार घाट से रामजन्म भूमि तक रिवर फ्रंट बनाये जाने के लिए योगी सरकार द्वारा चंबल रिवर फ्रंट का अध्ययन किया जा रहा है। इसकी भौगोलिक वजह भी है कि कोटा में बहने वाली चंबल और अयोध्या की सरयू नदी में कोई समानता है, तो सरयू नदी भी चंबल की तरह उत्तरवाहिनी है। दोनों ही नदियाँ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। योगी सरकार के अधिकारी यह जानने को उत्सुक हैं कि ‘कोटा प्लान’ (कोटा योजना) में इस परिघटना को कैसे भुनाया जा रहा है? हालाँकि योगी सरकार गोमती रिवर फ्रंट में भी कोटा प्लान की तर्ज पर सुधार करना चाहती है; लेकिन गोमती में रीत (घट) रहे पानी सरकार के मंसूबों पर पानी फेर रहा है। चंबल के पोराणिक महत्त्व को देखते हुए चंबल रिवर फ्रंट से कोटा के पर्यटन में जबरदस्त उछाल आयेगा। अभी पर्यटकों की निगाहें सिर्फ बूंदी और गागरोन िकले के गिर्द घूम-फिरकर लौट आती हैं। अब इस दायरे में पर्यटकों की नज़रें पहले चंबल रिवर फ्रंट पर टिकेंगी और कोटा पूरी तरह पर्यटन परिपथ (सर्किट) बन जाएगा।
आधुनिक स्थापत्य और वास्तुकला के विभिन्न आयामों के बीच से गुज़रते हुए नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल चंबल रिवर फ्रंट के ज़रिये उस यथार्थ के चितेरे बनकर उभरे हैं, जो राजनीति के फलक पर कम ही दिखायी देता है। विराट जटिलताओं के साथ एक ग्लोबल शहर गढऩा आसान नहीं हो सकता। इसे राजनीतिक संस्कृति गढऩे की संज्ञा भी दे सकते हैं। बड़ी बात यह है कि आने वाली पीढिय़ाँ इसमें विरासतों की तस्वीरें देख सकेंगी और गौरव से निहाल होती नज़र आएँगी कि हमारे पास चंबल रिवर फ्रंट जैसी अद्भुत धरोहर का खजाना है।
संस्कृतिविज्ञ मोहित महात्रे की मानें, तो राजस्थान विविधताओं का प्रदेश है; जहाँ तरह-तरह के आकर्षण मौज़ूद हैं। धारीवाल चंबल रिवर फ्रंट के उन्हीं आकर्षणों को सामने ला रहे हैं। धारीवाल कहते हैं- ‘मैंने एक ख्वाब देखा था और अब उसकी तामीर कर रहा हूँ।’ दार्शनिकों का कहना है कि विचार तो आते-जाते हैं, लेकिन विकास की कहानियाँ ही टिकाऊ होती हैं। राजनीति में एक कहावत है कि ‘आप तभी तक अच्छे हैं, जब तक आपका प्रदर्शन अच्छा है। इससे पहले आपने क्या किया? इसकी कोई चिन्ता नहीं करता।’ फ्रंट का निर्माण केवल इतिहास की रचना भर नहीं है। विभिन्न घाटों के निर्माण और उन पर शक्ति, भक्ति और साहित्य के पुरोधाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व के चित्रण से लोगों को बीती सदियों का इतिहास देखने-समझने का अनूठा अवसर मिलेगा।
चंबल रिवर फ्रंट को अतुल्य योजना का रुतवा देते हुए यह कहा जाए कि ‘यह फ्रंट पर्यटन निवेश को आकर्षित करने और रिवर फ्रंट की पाँत (पंक्ति) में अव्वल बने हुए साबरमती के रिवर फ्रंट को भी पीछे छोड़ देगा’, तो गलत नहीं होगा। सूत्रों का कहना है कि साबरमती बारहमासी नहीं है। साबरमती पानी के लिए नर्मदा की नहरों पर निर्भर है; जबकि चंबल तो अथाह जलराशि का भण्डार है। नर्मदा की धारा तो दिनोंदिन सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में साबरमती का भविष्य क्या होगा? समझा जा सकता है। लेकिन चंबल कोटा की जीवन रेखा है; जो शहर के बीच में से निकलती है। जबकि साबरमती नदी शहर से दूर है, जिसे देखने के लिए सुदूरवर्ती सफर करना पड़ता है।
कोटा की ज़मीन रेतीली और उपजाऊ है; जबकि साबरमती की जमीन पथरीली है। इसलिए बगीचा (गार्डनिंग) की योजना कोटा में जितनी कामयाब होगी, साबरमती में उसका नितांत अभाव है। चंबल रिवर फ्रंट की मूल भावना समझें, तो ढेरों आकर्षण और खूबियों को आत्मसात् करते हुए राजस्थान को विकास की पंक्ति में अलग खड़ा कर देना है। और अब यह मंज़िल ज़्यादा दूर नहीं है।
मुम्बई की तरह महानगर में तब्दील होगा कोटा
‘सेवन वंडर्स’ की सौगात देकर गुम होती कोटा की शाम को नयी पहचान दे चुके नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल अब कोटा को महानगर बनाने जा रहे हैं। एरोड्राम सर्किल पर एलीवेटेड रोड और अंडर पास समेत 28 परियोजनाओं के समन्वय से कोटा महानगरीय संस्कृति का अटूट हिस्सा बनकर इंदोर-मुम्बई की पंक्ति में शामिल हो जाएगा। नगर के प्रवेशद्वार विवेकानंद सर्किल, सैलानियों को सौन्दर्य का बेहद करीबी नज़ारा (एक्सट्रीम क्लोजअप) लगेगा। चौराहे पर लगी बीती सदी के सर्वाधिक विख्यात संन्यासी स्वामी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा शिल्प के हुनर की दाद देने को अवश्य प्रेरित करेगी। यातायात के भारी दबाव को देखते हुए एरोड्राम सर्किल पर एलीवेटेड रोड और अंडरपास का निर्माण शहर के इस मुख्य चौराहे की सूरत ही बदल देगा। घंटाघर चौराहे पर अंडरपास का निर्माण शहर के निर्बाध आवागमन का महत्ती विकल्प सिद्ध होगा। बहरहाल तीन चरणों में पूरी होने लक्ष्य लेकर चंबल रिवर फ्रंट परियोजना पूरी रफ्तार से दौड़ रही है।
‘ऐसे ही नहीं बन जाती स्मार्ट सिटी’
बात ज़्यादा पुरानी नहीं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सवाई मानसिंह अस्पताल में हार्ट ट्रांसप्लांट सहित कई अन्य सुविधाओं का लोकार्पण कर रहे थे। इस मौके पर चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा, नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल और चिकित्सा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग भी मौज़ूद थे। समारोह में नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल का कहना था कि ‘मुझे नहीं मालूम इस समारोह में मुझे क्यों बुलाया गया है? लेकिन जब बुलाया गया है, तो कुछ बातें मेरी भी सुननी पड़ेंगी। स्मार्ट सिटी ऐसे ही नहीं बन जाती।’ इसके साथ ही उन्होंने समस्याओं का पिटारा खोलना शुरू किया, तो लोगों में कुलबुलाहट मचे बिना नहीं रही। धारीवाल की हर बात सेहत महकमे को तर्कसंगत सुधारों की तात्कालिक ज़रूरत की तरफ धकेल रही थी। उन्होंने प्रशासनिक दक्षता को कटघरे में खड़ा करते हुए बड़ी बेबाकी से कहा- ‘न्यूरोसर्जरी का आधा इलाज सड़क के एक तरफ होता है, आधा दूसरी तरफ। सवाई मानसिंह उत्तर भारत का सबसे बड़ा अस्पताल है। लेकिन आपातकालीन मरीज़ों के लिए केवल 22 आईसीयू पलंग हैं।’ उनका प्रतिप्रश्न था कि क्या तीन हज़ार पलंग वाले अस्पताल में 200 आईसीयू पलंग नहीं होने चाहिए? ओपीडी के मरीज़ों को एक्स-रे के लिए 500 मीटर दूर जाना पड़ता है। ऐसा क्यों? विश्लेषकों का कहना है कि धारीवाल ने अप्रत्यक्ष रूप से कहने में कसर नहीं छोड़ी कि व्यवस्था के तलवे में अधूरेपन का कांटा चुभा है, जो अस्पताल को लंगड़ाकर चलने को मजबूर कर रहा है। धारीवाल ने असंगतियों पर तंज कसा, तो सुधारों का खाका खींचने में भी कंजूसी नहीं बरती। उन्होंने कहा कि हर विभाग का अलग ब्लॉक होना चाहिए, जहाँ एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएँ मिल सकें। उन्होंने अनगढ़ स्थितियों से उबरने की राह भी सुझायी कि बांगड़ का पूरा परिसर कार्डियोलॉजी का होना चाहिए। लेकिन इसमें न्यूरोलॉजी को भी डाल दिया गया है। उन्होंने इसे असंगतियों का शानदार नमूना बताते हुए कहा कि इमरजेंसी कहीं है, कार्डियक कहीं! इस बदइंतज़ामी के चलते एक दु:खद घटना का ज़िक्र करने से भी धारीवाल पीछे नहीं रहे। उन्होंने बताया कि पूर्व गृह सचिव थानवी की तो इसी बदइंतज़ामी के चलते मौत तक हो गयी थी। विश्लेषकों का कहना है कि निश्चित रूप से व्यवस्थागत असंगतियों के कारण ही शिक्षा और स्वास्थ्य सरीखे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र विवादों, घाटों और घोटालों के पुलिंदा बन गये हैं। इस मौके पर गहलोत ने धारीवाल की प्रशासनिक निगाहबीनी की तारीफ करते हुए कहा- ‘आप तभी तक अच्छे हैं, जब आपका प्रदर्शन अच्छा है। अच्छा मंत्री भी वही होता है, जो अपने महकमे के अलावा दूसरे महकमों पर भी नज़र रखे।’ हालाँकि गहलोत चुटकी लेने से भी नहीं चूके कि धारीवाल के सुझाव देखते हुए खयाल आये बिना नहीं रहता कि क्यों न अगले रिशफल (अगली बार) में उन्हें चिकित्सा मंत्री बना दिया जाए? लेकिन इसके पहले कि लोग हैरान होते, गहलोत ने ठहाकों के बीच कहते देर नहीं लगायी- ‘आप निश्चिंत रहिए, नगरीय विकास पर उनकी पकड़ ज़्यादा गहरी है।’ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो धारीवाल की कार्यशैली का यही अंदाज़ है। काम अपने महकमे का हो या दूसरे का, वह नज़र और निगरानी हर महकमे पर रखते हैं और यही एक अच्छे राजनेता की पहचान होती है।