जुमलों का जुलाब पिलाकर 2014 में सत्ता में आए नरेन्द्र मोदी इस बार आजमाए गए तुक्कों पर नई कलई के साथ शासनतंत्र में लौटने की और है। मोदी के रथ के सारथी अमित शाह पार्टी कार्यकर्ताओं, संघ कार्यकर्ताओं और मध्यम दर्जे के नेताओं के सामने एक भयानक भविष्य का खाका उकेर रहे हैं कि,’यदि भाजपा को आम चुनावों में हटा दिया जाता है और मोदी की सत्ता में वापसी नहीं होगी तो उन्हें अगली सरकार का जबरदस्त सितम झेलना पड़ सकता है।
अल्पसंख्यकों को भविष्यहीनता की खंदक में धकेल चुकी भाजपा के सिपहसालार अमित शाह मुस्लिमों को रिझाने की जुगत में है। शाह की रणनीति का मुख्य हिस्सा है असदउद्दीन ओवेसी के आल इंडिया इत्तहादुल मुस्लिममीन को अपने पाले में खींचना ताकि नाराज दलित नेताओं से गठजोड़ किया जा सके। वरिष्ठ पत्रकार श्री नंद झा एक वरिष्ठ भाजपा नेता के हवाले से बताते हैं कि, पार्टी को ‘मुस्लिम और दलित’ मतों की तत्काल दरकार है। क्योंकि अगर ये एकजुट नहीं हुए तो पार्टी पराजय की खाई में गिर सकती है। गुजरात और मध्यप्रदेश के अलावा अन्य भाजपा शासित राज्यों में मोदी सरकार अपने कार्यकाल में विज्ञापित की गई उज्जवला योजना समेत सभी सात कल्याणकारी योजनाओं को बड़े पैमाने पर प्रचारित करेगी?
गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं और 2014 के चुनावों में भाजपा सभी सीटों पर काबिज हुई थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में 63.6 प्रतिशत मतदान हुआ था और भाजपा का वोट शेयर 60.1 फीसद तथा कांग्रेस का वोट शेयर 33.5 प्रतिशत रहा था। विश्लेषकों का कहना है कि,’गुजरात में भाजपा के ही लोग दो खानों में बंटे हुए हैं, एक वो जो भय की राजनीति के खिलाफ है। दूसरे जो पार्टी और सरकार के ठेकेदार बने हुए हैं। वरिष्ठ पत्रकार दौलत सिंह चौहान कहते हैं कि, ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी बनने के बाद के हालात जनता की परेशानियों को बढ़ा रहे हैं। विधानसभा चुनावेां में बाल-बाल बची भाजपा क्या आगामी लोकसभा चुनावों में राज्य की सभी 26 सीटों पर फिर जीतने का कारनामा कर दिखाएंगी? इस बात पर तो भाजपा के पार्टीजनों केा ही भरोसा नहीं है। पार्टी द्वारा हाल ही में किया गया अंदरूनी सर्वे को मानें तो इस बार भाजपा की 14 सीटें खतरे में है। भले ही हजार अंदेशों से भाजपा घबराई हुई लेकिन सतर्क होने का दिखावा भी कर रही है। कार्यकताओं को कह दिया गया है कि,’यह चुनाव करो या मरो का है। चौहान कहते हैं कि,’शाह ने इस बार की जंग को पानीपत की लड़ाई की संज्ञा दी है।’’ विश्लेषक भी मानते हैं कि,’गुजरात की जंग भाजपा के लिए नाक की लड़ाई बनी हुई है। पार्टी नेतृत्व के तेवर इस बात की तो तस्दीक करते हैं कि,’करो या मरो के इस घमासान में भाजपा कोई कोरकसर नहीं छोड़ेगी।’ विश्लेषक कहते हैं कि,’भले ही सभी सीटों पर काबिज नहीं हुआ जा सके लेकिन कांग्रेस से डेढ़ गुणा सीटों पर तो कब्जा करना ही करना है। एक सर्वेक्षण का हवाला दें तेा,’लोकसभा की आठ शहरी सीटों पर तो भाजपा पूरी दबंगई के साथ मजबूत है। लेकिन बची 18 सीटों में से सौराष्ट्र की कुल 8 में से 6 सीटों राजकोट, सुरेन्द्र नगर, पोरबंदर, जूनागढ़, जामनगर और अमरेली में भाजपा को जीत मुश्किल ही नजर आती है। वरिष्ठ पत्रकार चौहान कहते हैं कि,”उत्तरी गुजरात की पांच में से तीन सीटों मेहसाणा,पाटण और साबरकांठा में भी भाजपा की राह आसान नहीं लगती। जबकि मध्य गुजरात में 9 में से पांच आणंद, भरूच, छोटा उदयपुर,पंचमहल और दाहोद सीटों की भी कमोबेश यही स्थिति है। अलबत्ता दक्षिण गुजरात जरूर भाजपा का अभेद्य गढ़ बना हुआ है, जहंा सूरत, नवसारी और वलसाड़ में भाजपा की सीटें तो पुख्ता हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि,’गुजरात में भले ही भाजपा लंगड़ा रही है, लेकिन इस मनमाफिक फिजां का फायदा उठाने की बजाय गुजरात में कांग्रेस के नेताओं को परस्पर कालर खिंचाई से ही फुरसत नहीं है। इस स्थिति में कांग्रेस लोगों की नाराजगी भुनाने में कैसे कामयाब हो पाएगी? गजब है कि जीत दहलीज पर दस्तक दे रही है और कांग्रेस दीवारों से सिर टकराने में मशगूल हैं।
गुजरात प्रदेश कांग्रेस में मौजूदा अध्यक्ष अमित चावड़ा, नेता प्रतिपक्ष परेश दानाणी, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलेंकी, विधायक शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोड़वाडिय़ा और सिद्धार्थ पटेल अपने-अपने गुट की राजनीति करते हैं। एक दूसरे को बर्दाश्त करना इन्हें कबूल नहीं है। विधानसभा में कांग्रेस पूरे दबदबे के साथ मौजूद हैं, लेकिन प्रदेश की विजय रूपाणी सरकार के खिलाफ मुश्किलें खड़ी करने का माद्दा ही उनमें नहीं है। कांग्रेस नेताओं का यह अनमनापन लोगों के विश्वास को डिगा रहा है कि, क्या वे हाथ आया मौका भुना सकेंगे? स्थिति को देखते हुए अंदेशों की परत गाढ़ी हो रही है कि या तो कांग्रेस नेता लालच में लिथड़े हुए हैं या फिर सरकार के पास उनकी नब्ज दबाने के नुस्खे तैयार है। गुजरात कांग्रेेस में अवसर तो है लेकिन भुनाने की मंशा पर मुर्दनी छाई हुई है। विश्लेषक कहते है कि,’व्यापारी बेशक भाजपा से बुरी तरह खफा है, लेकिन बोले कौन? जनता की जवाबदेही है’छापा पड़वाना है क्या? जोखिम कौन ले? जोर-शोर से उभरे नेता अल्पेश ठाकुर भी बेपेंदे के हो रहे हैं….क्या पता कब भाजपा में खिसक लें….।’’
मध्य प्रदेश: हमारे तो कमलनाथ
मध्यप्रदेश में भाजपा केे सत्ता से बेदखल होने की सबसे बड़ी वजह किसानों की नाराजगी को माना गया था। लेकिन अभी ताजा सर्वे के उलट नतीजे आए हैं कि, पूर्व सरकार को सबसे अच्छे नंबर खेती सुधार पर ही मिले हैं। सरकार का श्रेष्ठ प्रदर्शन बीज और खाद की सब्सिडी देने में रहा। जाहिर है कि लोगों का असंतोष भड़का तो इस पर कि उपज का मुनासिब दाम नहीं मिला। चुनाव के बाद हुए सत्ता परिवर्तन को लेकर अब उन मुद्दों और समीकरणों की पड़ताल हो रही है, जिनका चुनाव पर बड़ा असर पड़ा। कांग्रेस लोकसभा चुनावों में इन्हीं मुद्दों को भुनाने की पेशबंदी में है। सर्वे इन तकाजों को भी मोहरबंद करता है कि,’शहरी क्षेत्र में 70 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 59 फीसदी समस्या रोजगार को लेकर है। अब जब कांग्रेस सरकार इन्हीं मुद्दों के साथ आम चुनावों में तीरंदाजी करेगी तो लोगों ने भी ‘रहने दो महाराज हमारे तो शिवराज’ को दरकिनार कर ‘रहने दो शिवराज, हमारे तो कमलनाथ का नारा अपना लिया है। वरिष्ठ पत्रकार दौलत सिंह चौहान कहते हैं कि,’अब गेंद कांग्रेस और कमलनाथ के पाले में है। कर्ज माफी समेत बेरेाजगारी जैसे जनता से किए वादे कमलनाथ और कांग्रेस कितना पूरा कर पाते हैं? जनता इसी को उडीक रही है। चौहान कहते हैं कि,’सरकार का भविष्य और लोकसभा चुनाव के दांव पेच इस बात पर निर्भर है कि कांग्रेस आलाकमान गुटों में बंटी पार्टी को कितना एक रख पाते हैं? और कमलनाथ की उनकी पार्टी में ही उनके शुभचिंतक कितनी ‘कार सेवा’ कर पाते हैं। इसी गुगली के नतीजे लोकसभा चुनावों में नजर आने हैं? कांग्रेस में नंबर दो ज्योतिरादित्य सिंधिया के ग्वालियर इलाके में पिछली बार की तुलना में कांग्रेस के रुतबे में गिरावट आई है। पिछली बार ढाई लाख से ज्यादा वोटों से जीतने वाले सिंधिया के इलाके में हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा के कुल वोट सिंधिया के कुल वोटों से 16 हजार ज्य़ादा रहे? इसका सीधा अर्थ है कि फिलहाल इस सीट पर भाजपा का रूझान है।
चौहान कहते हैं कि,’प्रदेश में विकास की बात करें तो राज्य में भाजपा के 26 सांसदों में ऐसा एक भी सांसद नहीं गिना जा सकता, जिसने अपने इलाके में बहुत ज्यादा सक्रिय रह कर विकास का कोई बड़ा काम कराया हो? यहां तक कि लोकसभा में भी विकास के मुद्दे को लेकर सांसद चुप्पी साधे रहे। चौहान कहते हैं कि, इस स्थिति में अगर भाजपा लोकसभा चुनावों में भाजपा सांसदों के काम-काज को लेकर जंग लड़ेगी तो शिकस्त तय है। भाजपा से जुड़े सूत्र कहते हैं कि सांसदों के व्यक्तिगत रिपोर्ट कार्ड की बजाय पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र की अपनी सरकार और काम-काज को अच्छा बताकर मध्य प्रदेश में वोट लेने की कोशिश करे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, छिंदवाड़ा से कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद वे लोकसभा से इस्तीफा दे चुके हैं कांग्रेस अपने सांसदों को मजबूत और भाजपा के सांसदों के रिपोर्ट कार्ड को कमजोर बताने के साथ केन्द्रीय स्तर के मुद्दों को भी प्रदेश की जनता के सामने उठाएगी। दम किस की बात में है? फैसला तो जनता करेगी।
सपनों से आती है शामत: गडकरी
महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम के दौरान केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। अपने बयानों के कारण इन दिनों सुर्खियों में आए केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को महाराष्ट्र में एक और बड़ा बयान दिया। एक कार्यक्रम के दौरान नितिन गडकरी ने चुनाव में किए गए वादों का जि़क्र करते हुए कहा कि ‘सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है, इसलिए सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकते हैं, मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं जो भी बोलता हूं वह डंके की चोट पर बोलता हूं। इस कार्यक्रम के दौरान ही नितिन गडकरी ने फिल्म एक्टे्रस ईशा कोप्पिकर को बीजेपी में शामिल कराया है। नितिन गडकरी ने कहा कि गोवा में माण्डवी नदी पर 850 करोड़ की लागत से 5.1 कमी लम्बे नवनिर्मित फोर-लेन, केबल स्टे ब्रिज का निर्माण किया गया है। यह नार्थ और साऊथ गोवा से आने-जाने वाले यातायात में सुधार लाएगा। पणजी को बंगलुरू से पोंडा मार्ग और पुराने गोवा,मुंबई से आने वाले यातायात को सुविधा प्रदान करेगा। मुझे खुशी है कि इसका निर्माण 27 जुलाई 2014 को शुरू हुआ और दिसम्बर 2018 में पूरा किया गया। इससे पहले नितिन गडकरी ने भाजपा के अच्छे दिन के स्लोगन पर भी सवाल उठाया था। आज तक के ही एक कार्यक्रम में गडकरी ने कहा था कि अच्छे दिन होते ही नहीं है, यह तो मानने वाले पर निर्भर करते हैं। वहीं शनिवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम नितिन गडकरी ने कहा था कि 10 लाख करोड़ से ज्य़ादा का काम मैंने कराया। लेकिन कोई एक रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकता है। उन्होंने कहा था कि मैं घोषणा हवा में नहीं करता बोलता हूं डंके की चोट पर करके दिखाता हूं।