भारत का घरेलू विमानन क्षेत्र गंभीर उथल-पुथल से गुजर रहा है, और इसकी कीमत सिर्फ यात्री ही नहीं चुका रहे हैं। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो में हालिया अव्यवस्था ने संचालन योजना, नियामकीय निगरानी और बाजार संरचना में मौजूद गहरी खामियों को उजागर कर दिया है।
हर दिन सैकड़ों उड़ानें रद्द की जा रही हैं, जिससे हजारों यात्री फंस गए हैं। लोग री-बुकिंग के लिए भटक रहे हैं और उनकी छुट्टियां, कारोबारी यात्राएं, यहां तक कि मेडिकल इमरजेंसी तक प्रभावित हो रही हैं। असर सिर्फ उड़ानों तक सीमित नहीं है।होटल बुकिंग छूटना, घंटों का नुकसान और बिगड़ी हुई योजनाएं पूरे सिस्टम की विफलता की तस्वीर पेश करती हैं।
एयरलाइन का यह कहना कि हालात “गलत आकलन और योजना की कमी” के कारण बने, पर्याप्त नहीं है। असली वजह इंडिगो की रणनीतिक चूक और नियामक की ढुलमुल प्रतिक्रिया का मेल है।
फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) नियम, जिन्हें जुलाई से चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया और 1 नवंबर 2025 से पूरी तरह प्रभावी किया गया, पायलटों की थकान कम करने के उद्देश्य से बनाए गए थे। इनमें साप्ताहिक विश्राम अवधि बढ़ाना, रात के समय लैंडिंग की सीमा तय करना और नाइट फ्लाइंग आवर्स पर रोक शामिल है। घने घरेलू नेटवर्क और बड़ी संख्या में नाइट व रेड-आई उड़ानें संचालित करने वाली एयरलाइन के लिए इन बदलावों के असर का पूर्वानुमान लगाना कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता थी।
हकीकत यह है कि इंडिगो के पास आवश्यक संख्या में क्रू उपलब्ध नहीं था। DGCA के सामने पेश आंकड़ों के मुताबिक, स्थिर संचालन के लिए एयरलाइन को 2,422 कैप्टन और 2,153 फर्स्ट ऑफिसर की जरूरत थी, जबकि उपलब्धता सिर्फ 2,357 कैप्टन और 2,194 फर्स्ट ऑफिसर की थी। हाई-फ्रीक्वेंसी नेटवर्क में ऐसे छोटे अंतर भी डोमिनो इफेक्ट की तरह कई रूट्स पर उड़ानें रद्द होने का कारण बन जाते हैं। स्पष्ट संकेतों के बावजूद इंडिगो की तैयारी नाकाफी रही, नतीजतन हालात बेकाबू हो गए।
नियामक की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। बढ़ते जनदबाव के बीच DGCA ने FDTL नियमों में अस्थायी ढील दे दी। भले ही इसका उद्देश्य परिचालन बहाल करना रहा हो, लेकिन यह फैसला उन्हीं सुरक्षा मानकों को कमजोर करता है जिनके लिए ये नियम बनाए गए थे। पायलट संगठनों ने इसे क्रू वेलफेयर और उड़ान सुरक्षा से समझौता बताते हुए कड़ा विरोध किया है। यह स्थिति दिखाती है कि परिचालन निरंतरता और सुरक्षा अनुपालन के बीच संतुलन बनाए रखना नियामक के लिए कितना नाजुक कार्य है।
इस अव्यवस्था की मानवीय कीमत बेहद भारी रही है।त्योहारी मौसम में फंसे परिवार, यात्रा में जूझते बुजुर्ग, तबादले के बीच देरी झेलते रक्षा कर्मी और बाधित कारोबारी प्रतिबद्धताएं। विडंबना यह है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानें—जो कुल रद्दीकरण का छोटा हिस्सा थीं।काफी हद तक अप्रभावित रहीं, क्योंकि वहां राजस्व अधिक है और मुआवजे के नियम सख्त हैं। यह घरेलू यात्रियों की तुलना में मुनाफे को प्राथमिकता दिए जाने की ओर इशारा करता है।
सबक साफ हैं। इंडिगो को अपनी कुप्रबंधन की जिम्मेदारी लेनी होगी और DGCA को सुरक्षा मानकों की कीमत पर जनदबाव या कॉरपोरेट दबाव के आगे झुकना नहीं चाहिए। भारतीय हवाई यात्रियों को मजबूत मुआवजा अधिकार, पारदर्शी संवाद और बिना किसी पक्षपात के नियम लागू करने वाला नियामक चाहिए। परिचालन दक्षता, सुरक्षा और भरोसे की कीमत पर नहीं आ सकती। हालिया अव्यवस्था एक कड़ा संदेश है।विमानन में, और जीवन में भी, योजना और निगरानी में की गई शॉर्टकट्स के असर रनवे से बहुत आगे तक जाते हैं।
जहां तहलका की कवर स्टोरी यह उजागर करती है कि इंडिगो संकट ने भारत की टूटी-फूटी विमानन शासन व्यवस्था को कैसे बेनकाब किया, वहीं हमारी जांच रिपोर्ट चुनाव सुधारों से जुड़े स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रक्रियागत बाधाओं पर से भी परदा उठाती है।




