केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों को संकट में डालने के बाद अब लग रहा है कि नियंत्रकमहालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्टों से छत्तीसगढ़ सरकार की जान सांसत में फंसने वाली है. कैग की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि सूरजपुर जिले में भटगांव स्थित दो कोल ब्लॉकों के ठेके पर राज्य को भविष्य में 1052.20 करोड़ रुपये की हानि होगी. छत्तीसगढ़ में इन ब्लॉकों की नीलामी से हुए नुकसान पर जितना बवाल मच रहा है उससे ज्यादा सरकार इस वजह से संकट में है कि यह ठेका एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव को मिले हैं. नागपुर की इन दोनों कंपनियों के संयुक्त उपक्रम में से एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर के मालिक अजय संचेती हैं. महाराष्ट्र विधानसभा से राज्यसभा सांसद संचेती भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के व्यापारिक मित्र और भाजपा के करीबी माने जाते हैं. राज्य की भाजपा सरकार के सामने एक और बड़ी दिक्कत यह है कि खुद पार्टी के एक मजबूत धड़े ने रमन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
हाल ही में इस मसले ने राजनीतिक स्तर पर इतना तूल पकड़ा कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को भी सफाई देनी पड़ी है. पार्टी के बचाव में पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद का तर्क था कि जब कोयला खनन के लिए टेंडर निकाला गया था तब न तो नितिन गडकरी अध्यक्ष थे और न ही अजय संचेती सांसद बने थे.
हालांकि तहलका के पास उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि संचेती की कंपनी को ठेके मिलने की प्रक्रिया में ऐसे कई अनुत्तरित सवाल हैं जो भाजपा सरकार के खुद को पाकसाफ बताने के दावों की पोल खोलते हैं.
25 जुलाई, 2007 को भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपपमेंट कॉर्पोरेशन को अनुशंसा की थी कि इन कोल ब्लॉकों के दोहन और विपणन के लिए किसी सरकारी अथवा कोल मांइस एेक्ट 1973 के तहत काम करने वाली कंपनी को खनन का काम सौंपा जाए या उसे इस काम में भागीदार बनाया जाए. इसके तहत कॉर्पोरेशन ने तीन जुलाई, 2008 को निविदाएं आमंत्रित कीं. दोनों कोल ब्लॉकों को हासिल करने के लिए कुल 34 कंपनियों द्वारा तीन करोड़ दस लाख के कुल 62 निविदा प्रपत्र खरीदे गए. कॉर्पोरेशन ने जब 25 जुलाई, 2008 को निविदा खोली तो भटगांव-दो के लिए नागपुर की कंपनी एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव तथा रायपुर के जिंदल स्टील पावर लिमिटेड के प्रस्ताव को विचार योग्य पाया. चूंकि जिंदल ने 540 एवं एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव ने 552 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर से खनन का प्रस्ताव दिया था सो भटगांव दो में खनन का ठेका एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्टर-सोलार को सौंप दिया गया.
भटगांव दो (एक्सटेंशन) को हासिल करने के लिए यूं तो 14 कंपनियों ने प्रपत्र खरीदा था लेकिन कॉर्पोरेशन ने इस ब्लॉक के लिए सिर्फ दो कंपनियों एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव और मुंबई की एसीसी को इस प्रस्ताव के योग्य पाया. इसके बाद एसीसी को यह कहकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया कि उसके पास भूमिगत खनन का अनुभव शून्य है. इस तरह कॉर्पोरेशन के प्रस्ताव के लिए सिर्फ एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार बची और उसे 129.60 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर पर खनन का ठेका दे दिया गया. कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसी बात पर आपत्ति जताई है कि एक कोल ब्लॉक 552 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर पर आवंटित कर दिया गया जबकि दूसरा 129.60 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर पर. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों कोल ब्लॉक आसपास ही हैं और जब भटगांव दो (एक्सटेंशन) के प्रस्ताव के लिए सिर्फ एक कंपनी अंतिम चरण में थी तो स्वच्छ और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के लिए नए सिरे से टेंडर क्यों नहीं बुलाए गए.
जब महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार में नितिन गडकरी लोकनिर्माण मंत्री थे तब अजय संचेती की कंपनियों ने उनकी कई सरकारी परियोजनाओें में मदद की थी
तहलका के पास कॉर्पोरेशन की मीटिंगों के कुछ मिनट्स भी हैं. इनमें जिक्र है कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के आधार पर कार्पोरेशन ने माना था कि भटगांव दो एक्सटेंशन के 12.43 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 366.82 लाख टन के उच्च श्रेणी का कोयला मौजूद है. कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में यह माना है कि भटगांव दो एक्सटेंशन में ‘अ’ से ‘स’ श्रेणी का ऐसा कोयला मौजूद है जो बेहद कम, लेकिन दुर्लभ और उच्च मूल्य का है. हालांकि कॉर्पोरेशन यह भी मानता है कि खनन योग्य रिजर्व कोल 249.1 लाख टन ही है.
इस मामले का एक दिलचस्प पहलू और है. जब छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने एसएमएस इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव से कोल खनन का एग्रीमेंट किया तो उसने पर्यावरण विभाग की मंजूरी लेने के लिए साल 2009 में यह दावा किया था कि भटगांव दो और भटगांव दो एक्सटेंशन का 57 फीसदी आरक्षित कोयला उच्च गुणवत्ता का है. कॉर्पोरेशन ने यह भी माना था कि 90 से 95 फीसदी कोयला ऐसी जगह है जिसे कम खर्चीली पद्धति के जरिए निकाला जा सकता है, लेकिन अप्रैल, 2011 में एक निजी कोयला सलाहकार एनपी भाटी जो नागपुर के रहने वाले हैं, के हवाले से यह बात सामने आई कि खदान में ‘डी’ श्रेणी का ऐसा कोयला मौजूद है जिसे निकालने का खर्चा ज्यादा हो सकता है. कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल कोयला सलाहकार की बातों पर मुहर लगाते हुए कहते हैं, ‘भटगांव दो कोल ब्लॉक ‘महान नदी’ से दूर है जबकि भटगांव दो (एक्सटेंशन) नदी के पास है इसलिए जब कभी भी भटगांव दो की एक्सटेंशन योजना पर काम प्रारंभ होगा तो नदी और कोल ब्लॉक को संरक्षित करना होगा. यह संरक्षण खर्च बढ़ाने वाला साबित होगा लेकिन अभी ऐसा कुछ नहीं है.’ गौरीशंकर अपनी बातों में यह भी इशारा करते हैं कि अभी जब खनन शुरू ही नहीं हुआ तो हानि कैसी? लेकिन इसी बात का दूसरा अर्थ यह भी है कि जब कोयले का खनन प्रारंभ होगा तब नुकसान तय है. यही बात कैग ने मानी है कि 32 साल के लिए खनन योग्य रिजर्व कोयले (249.1 लाख मीट्रिक टन) और कंपनियों के द्वारा किए जाने वाले दोहन से निगम को 1052.20 करोड़ की राजस्व हानि संभावित है.
इस पूरे प्रकरण से जुड़ा एक पेंच यह भी है कि कोयला खदान आवंटन को कॉर्पोरेशन ‘आवंटन‘ नहीं मानता. कॉर्पोरेशन में मांइस शाखा के महाप्रबंधक पीएस यादव कहते हैं, ‘हमने इन्फ्रास्ट्रक्चर-सोलार एक्सप्लोसिव को महज भागीदार बनाया है. जब कभी भी खनन से लाभ होगा तो कॉर्पोरेशन को 51 फीसदी हिस्सा मिलेगा जबकि कंपनियों को 49 फीसदी.’ जबकि कैग के मुताबिक इन कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया है.
इस पूरे प्रकरण से अचानक चर्चा में आए संचेती के लिए यह पहला मौका नहीं है जब वे विवादों में आए हों. इसके पहले उनकी कंपनी ने वर्ष 1999 से 2003 के मध्य बिल्ड, ओन, ऑपरेट एंेड ट्रांसफर (बूट) पद्धति से दुर्ग- राजनांदगांव जिले के बीच एक बायपास का निर्माण किया था. बायपास बनने के बाद जब कंपनी ने सरकार को टैक्स नहीं चुकाया तो प्रदेश के वाणिज्यिक कर विभाग ने 17 करोड़ 35 लाख रुपये की वसूली के लिए संपत्ति को कुर्क करने का आदेश जारी कर दिया. विभाग ने कार्रवाई भी की लेकिन 15 सितंबर, 2011 को कुर्क की गई सारी संपत्ति जिसमें विभिन्न बैंकों के 21 खाते थे, लौटा दी गई. कुछ दिनों बाद इस रहस्य से पर्दा उठा कि वाणिज्यिक कर महकमे ने जिस कंपनी की संपत्ति कुर्क की थी उसने कागजों में अपने नाम में हेरफेर करके खुद को नई कंपनी बता दिया और सारी संपत्ति वापस पा ली.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रमुख प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी आरोप लगाते हुए कहते हैं,‘संचेती बंधुओं पर सरकार लगातार मेहरबान रही है. संचेती ग्रुप का छत्तीसगढ़ में न तो कोई कारखाना है और न ही निकट भविष्य में कारखाना स्थापित होने की संभावना है. इसके बावजूद उन्हें केवल नितिन गडकरी का करीबी होने के कारण औने-पौने दर पर कोल ब्लॉक दे देना सवाल तो खड़े करता ही है.’ दूसरी ओर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल कैग की रिपोर्ट को ही काल्पनिक कहकर खारिज करते हैं. वे कहते हैं, ‘लाभ या हानि की गणना कोल ब्लॉक में काम की शुरूआत होने के बाद ही की जा सकती है. कैग का आकलन केवल कल्पना है.’ इधर गौरीशंकर के इस तर्क को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी एवं पूर्व भाजपा सांसद करूणा शुक्ला नकारते हुए कहती हैं, ‘ यह कहना ठीक नहीं है कि कैग की रिपोर्ट काल्पनिक है क्योंकि कैग अपनी आपत्तियों से सरकार को चार-छह महीने पहले अवगत कराता है.’ कुछ इसी तरह की बात पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा सांसद रमेश बैस भी करते हैं. वे कहते हैं, ‘ एक संवैधानिक संस्था की रिपोर्ट को अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता.’ बैस ने कुछ दिन पहले ही निजी चैनलों को दिए गए अपने बयान में भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी और संचेती बंधुओं को आड़े हाथों लिया था लेकिन उसके बाद वे अपने बयान से मुकर गए.
भाजपा की संचेती से निकटता और उन्हें पक्षपाती तरीके से कारोबारी सहयोग मिलने की बात इससे भी जाहिर होती है कि महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के दौरान जब गड़करी लोकनिर्माण मंत्री थे तब उनके विभाग ने 55 फ्लाईओवर और मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे बनाया था. उनके इस काम में सबसे ज्यादा मदद संचेती की कंपनी ने ही की थी. वर्ष 1998 में जब गडकरी राष्ट्रीय राजमार्ग कमेटी के चेयरमैन थे तब भी संचेती की कंपनी ने कई प्रोजेक्ट हासिल किए थे.
हो सकता है छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले दिनों में नियम कानूनों की पेचीदगी का हवाला देकर संचेती प्रकरण को भ्रष्टाचार न मानने के तर्क दे. लेकिन ‘विश्वसनीय छत्तीसगढ़’ का नारा देने वाली भाजपा सरकार की कैग रिपोर्ट के आने बाद पहली बार हिलती हुई जरूर दिख रही है.