दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत से भले ही पार्टी के नेता व कार्यकर्ता गद्गद् हों, पर पार्टी के अदर कहीं खुशी और कहीं गम वाला माहौल है। वजह साफ है कि पुराने मंत्रियों को फिर से उन्हीं मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, जो उनके पास थे। दरअसल पहली बार और कुछ दूसरी बार निर्वाचित होकर आये विधायकों को काफी उम्मीद थी कि उनको इस बार दिल्ली सरकार में मंत्री ज़रूर बनाया जाएगा। पर ऐसा नहीं हो सका। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लॉबिंग से बचने और विरोधियों को मौका न देने के लिए पार्टी आलाकमान ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया है। पार्टी के संघर्ष के दिनों के साथी और पार्टी की बात बेवाकी से रखने वाले दिलीप पांडे को मंत्री न बनाये जाने पर उनके शुभचिंतक और समर्थक नाराज़ हैं। बता दें पांडे 2019 में लोकसभा चुनाव भी लड़े थे और हार गये; पार्टी में बड़ा कद है और इस बार पहली बार विधायक बने हैं। इसी तरह आतिशी और राघव चड्ढा भी पार्टी में अग्रणी िकरदारों में शामिल हैं, ये भी 2019 में लोकसभा चुनाव लड़े थे और हार गये। दोनों केजरीवाल के करीबी भी हैं। लेकिन दोनों को ही िफलहाल कोई मंत्रालय में जगह नहीं मिली है। पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि नये युवा विधायकों को मौका न देने का मतलब पार्टी को पुराने ढर्रे पर चलाना है। पार्टी के कई सक्रिय कार्यकर्ताओं ने कहा कि शपथ ग्रहण में उन्हें मायूसी होना पड़ा। उन्हें उम्मीद थी कि नये चेहरों को मंत्रालय मिलेंगे। इसी प्रकार दूसरी बार निर्वाचित होकर आये विधायकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केजरीवाल को नये चेहरों को मंत्री बनाना चाहिए था। पुराने लोगों ने कहा कि जनता के बीच अन्य पाॢटयों की तरह मैसेज जाएगा कि जो मुखिया के करीब हैं, वे ही मंत्री बनने का हकदार हैं। पार्टी के एक सीनियर विधायक ने कहा कि पार्टी को फिर से शीघ्र ही फेरबदल करना चाहिए, ताकि नये चेहरों को अवसर मिल सके।
विदित हो कि अरविन्द केजरीवाल ने तीसरी बार रामलीला मैदान से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में अपने 20 मिनट के सम्बोधन में उन्होंने एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह एक साथ कई बातों का ज़िक्र किया। उन्होंने विरोधी दलों का नाम लिए बिना साफ संदेश दिया कि अब काम की राजनीति को पसंद किया जाएगा। जोड़-तोड़ और धर्म-जाति की राजनीति को कोई महत्त्व नहीं मिलने वाला। केजरीवाल ने ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गाना गाया, जिसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस गाने का यह मतलब भी है कि वे एक दिन देश की राजनीति में ज़रूर सफल होंगे। वहीं, उन्होंने कहा कि दिल्ली वाले अपने घर गाँव में माँ- बाप से कहें कि उनका बेटा तीसरी बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गया है। इसका भी साफ मतलब यह है कि जो लोग देश भर के कई प्रान्तों से आकर दिल्ली में रहते हैं, वे अपने गाँवों घरों और परिवारों में बताएँं कि दिल्ली में बुनियादी सुविधाएँ नागरिकों को फ्री की दी जा रही हैं। बिजली-पानी के साथ महिलाओं के लिए बसों में यात्रा फ्री है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा फ्री है और काफी सुधार किये गये हैं। सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पतालों में दुर्घटना में घायल हुए लोगों का इलाज फ्री किया जा रहा है। ऐसे में अब वह दिन दूर नहीं जब देश के कई प्रान्तों में भी ऐसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं। रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ-साथ छ: कैबिनेट मंत्रियों- मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन, इमरान हुसैन, राजेन्द्र पाल गौतम, कैलाश गहलोत, गोपाल राय को भी दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने शपथ दिलायी।
मुख्यमंत्री केजरीवाल रामलीला मैदान में उमड़े जनसैलाब को देखकर गद्गद् दिखे। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आशीर्वाद माँगा है। बता दें कि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण समारोह के लिए आंमत्रित किया था; मगर प्रधानमंत्री किसी कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण नहीं आ सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे केंद्र सरकार के साथ मिलकर दिल्ली का विकास करेंगे, ताकि लोगों को ज़्यादा-से-ज़्यादा सुविधाएँ दी जा सकें। केजरीवाल ने साफ कहा कि वे किसी प्रकार का टकराव राजनीतिक दलों से नहीं चाहते हैं। चुनाव के दौरान हर प्रकार की आरोपबाज़ी विरोधी दलों द्वारा की गयी, पर वे सभी को माफ करते हैं।
बता दें कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उस तबके को भी साधा है, जिसकी वजह से वे तीसरी बार दिल्ली की सत्ता में आये हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली को नेता नहीं चलाते, बल्कि टीचर्स, डॉक्टर्स, रेहड़ी वाले, बस कंडक्टर, डाइवर और छात्र सब मिलकर चलाते हैं।
बताते चलें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर 2013 में जब अरविन्द केजरीवाल ने शपथ ली थी, तबके और अब 2020 के मुख्यमंत्री में काफी अन्तर देखने को मिला। पहले केजरीवाल काफी उग्र और तेज़तर्रार छवि वाले, आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न झाड़ू और मैं आम आदमी हूँ वाली टोपी पहने रहते थे। उन दिनों वे राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने वाली जोशीली आन्दोलनकारी बातें करते थे, जिसमें विपक्षियों पर हमला भी करते थे। अब वे काम की बात करते हैं। इस बार उन्होंने टोपी भी नहीं पहनी। एक मँझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह भाषण दिया। तिलक लगाकर तिलकधारियों को इशारों-इशारों में यह भी बता दिया कि वे भी हिन्दू नेता हैं और अपने धर्म में पूरी आस्था रखते हैं। विदित हो कि 2013 में केजरीवाल लोगों से कहा करते थे कि कोई भी पुुलिस वाला या अधिकारी अगर काम करने के एवज़ में पैसा माँगे, तो उसका वीडियो बना लो, हम तुरन्त कार्रवाई करेंगे। उस समय 49 दिन के कार्यकाल में उन्होंने एक िफल्मी नायक की तरह काम करके लोगों को साफ संदेश दिया था कि केजरीवाल ही देश की साफ-सुथरी राजनीति का एक विकल्प बनेंगे। हालाँकि उसके बाद उनका केंद्र से काफी तनाव बढ़ गया था, जिसे पिछली बार से सामान्य करने की उन्होंने कोशिश की है।
तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने राजनीतिज्ञों को संदेश दिया है कि अब दिल्ली दूर नहीं। इसके लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल को देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर सोशल मीडिया में पेश करना शुरू कर दिया। हालाँकि दिल्ली अभी बहुत दूर है। लेकिन यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी अब दूसरे राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँवों में जाकर देश की राजनीति में पकड़ बनाने के लिए काम करेंगे। हो सकता है कि इसके लिए केजरीवाल निकाय चुनावों में पार्टी के प्रत्याशियों को मैदान में उतारें। इसके लिए पार्टी ज़िला स्तर पर टीमें बनाएगी। क्योंकि केजरीवाल जानते हैं कि मौज़ूदा दौर में जिस प्रकार की सियासत देश में हो रही है, उसमें धुव्रीकरण की राजनीति को हवा दी जा रही है। ऐसे में धुव्रीकरण से बचते हुए धुव्रीकरण का दाँव कैसे चला जाए, उसको केजरीवाल बखूबी जानते हैं। केजरीवाल के धुव्रीकरण के दाँव से दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह से पराजित हुई हैं और दोनों दलों ने माना है कि केजरीवाल एक आन्दोलनकारी के साथ-साथ मँझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी है।
शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल ने उन लोगों को विशेष तौर आमंत्रित किया था, जिन्होंने समाज और शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देकर बदलाव किया है। जैसे, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मनु गोलाटी, किसान दलबीर सिंह, आईआईटी के छात्र विजय कुमार, आर.के. पुरम के टीचर मुरारी झा, अपनी सूझबूझ से छ: साल के बच्चे को अगवा होने से बचाने वाले बस मार्शल अरुण कुमार, मेट्रो पायलट निधि गुप्ता, अपनी पुरानी स्टाइल में पब्लिसिटी बटोर रहे नन्हें केजरीवाल और अन्य कई हस्तियों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया। इधर, भाजपा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में इस चुनाव में हार का मलाल साफ देखने को मिला; क्योंकि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के साथ-साथ दिल्ली के सातों भाजपा सांसदों और आठों विधायकों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में औपचारिकता निभाने के लिए भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता के अलावा कोई नहीं आया। पर गुप्ता समारोह को भी आम आदमी पार्टी की राजनीतिक रैली बताने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि न तो उनके बैठने के लिए कोई कुर्सी थी और न कार पार्किंग के लिए ‘पास’ था। यही हाल कांग्रेस पार्टी का था। कांग्रेस पार्टी की तरफ से न तो कोई राज्य स्तरीय और न ही राष्ट्र स्तरीय नेता था। इस बात पर आप नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि चुनाव में जीत-हार का मतलब यह नहीं, कि कोई बुलाने में पर न आये। उन्होंने कहा कि जो आये उनका स्वागत, जो नहीं आये उनका भी स्वागत।