आप पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और न्यूज चैनलों/मीडिया के बीच जंग दिन पर दिन तीखी और तेज होती जा रही है. कभी खुली और कभी छिपी इस जंग के ताजा राउंड का गोला केजरीवाल ने दागा है. नागपुर में धन संग्रह के लिए आयोजित एक डिनर कार्यक्रम के दौरान केजरीवाल ने मीडिया पर बिका होने (पेड मीडिया) और मोदी का भोंपू बनने का आरोप लगाते हुए जांच कराने और दोषियों को जेल भेजने की बात क्या कही, ऐसा लगा जैसे किसी मधुमक्खी का छत्ता छेड़ दिया हो. आरोपों से बौखलाए चैनल केजरीवाल पर टूट पड़े.
न्यूज मीडिया खासकर चैनलों की आक्रामकता देखने लायक थी. चैनलों में एक सुर से केजरीवाल को तानाशाह, उनके बयान को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला और लोकतंत्र विरोधी साबित करने से लेकर सुर्खियों में बने रहने के लिए सस्ते स्टंट करनेवाला और प्रचार का भूखा नेता साबित करने की होड़ सी लग गई. चैनलों ने केजरीवाल के आरोपों को खारिज करते हुए जिस तरह से उनकी चौतरफा पिटाई शुरू कर दी, उससे ऐसा लग रहा था जैसे न्यूज मीडिया में कुछ भी गड़बड़ नहीं है और सब कुछ अच्छा चल रहा है.
नतीजा, ‘सूप तो सूप, चलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद’ की तर्ज वे चैनल कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए जिनपर पेड न्यूज और पूर्वाग्रहपूर्ण रिपोर्टिंग करने के आरोप लगते रहे हैं. कोयला घोटाले में फंसे एक बड़े औद्योगिक समूह से ‘खबर’ फिक्स करने के बदले में पैसे मांगने के आरोपी एक संपादक और उनके चैनल ने केजरीवाल की ‘पोल खोल’ अभियान को दुगुने जोश के साथ दिखाना शुरू कर दिया. यहां तक कि एक टैब्लायड चैनल के मालिक-संपादक बुखार और खराब गले के बावजूद ‘पत्रकारिता के महान धर्म’ का पालन करने के ‘पवित्र उद्देश्य’ के साथ केजरीवाल के ‘झूठ और धोखे’ का पर्दाफाश करने के लिए मैदान में कूद पड़े. यही नहीं, एडिटर्स गिल्ड ने केजरीवाल के बयान की भर्त्सना की और न्यूज चैनलों के संगठन- न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोशियेशन (एनबीए) ने तो धमकी देते हुए कहा कि अगर केजरीवाल ने न्यूज मीडिया खासकर चैनलों पर अनर्गल आरोप लगाने बंद नहीं किये तो उनकी कवरेज बंद कर दी जाएगी.
इसमें शक नहीं कि मीडिया के बारे में केजरीवाल के बयान के लहजे, भाषा और भाव में बहुत कुछ आपत्तिजनक था. यह भी सच है कि केजरीवाल में अपनी आलोचना सुनने को लेकर अत्यधिक असहिष्णुता है और उसपर उनकी प्रतिक्रिया अक्सर असंयत और तिरस्कार से भरी होती है.
लेकिन क्या केजरीवाल के बयान पर चैनलों की प्रतिक्रिया भी अतिरेकपूर्ण, असंतुलित और जरूरत से ज्यादा आक्रामक नहीं थी? दूसरे, क्या केजरीवाल के आरोपों में कोई तथ्य नहीं है? यह किसी से छुपा नहीं है कि यह न्यूज मीडिया का पेड न्यूज और नीरा राडिया काल है. यह भी कि न्यूज मीडिया में बड़ी कारपोरेट पूंजी की घुसपैठ एक तथ्य है और उसका एक एजेंडा भी है. लेकिन इस हंगामे में इसे ‘पोल खोलने’ और उसपर चर्चा-बहस करने लायक नहीं समझा गया बल्कि अगर किसी ने उसे उठाने की कोशिश की तो उसे चुप करा दिया गया.
इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि केजरीवाल के बयान पर चैनलों की अतिरेक भरी और आक्रामक प्रतिक्रिया कहीं न्यूज मीडिया के अपने अंडरवर्ल्ड पर पर्दा डालने की कोशिश तो नहीं थी? न्यूज मीडिया इन सवालों से जितना मुंह चुराने और परोक्ष रूप से अपनी काली बिल्लियों को बचाने की कोशिश करेगा, उतनी ही शिद्दत के साथ वे उसका पीछा करेंगे. केजरीवाल को न्यूज मीडिया की यह कमजोर नस मालूम है और उसे भुनाने के लिए वे गाहे-बगाहे मीडिया पर हमले करते रहेंगे. आखिर केजरीवाल का मकसद भी न्यूज मीडिया की गड़बड़ियों को दूर करना नहीं बल्कि उससे अधिक से अधिक प्रचार हासिल करना और सुर्खियों में बने रहना भर है.