केंद्र सरकार पर बरसे मनमोहन सिंह

देश में चुनाव का मौसम था। लेकिन जनता के मुद्दे ग़ायब रहे। पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अचानक ख़ामोशी तोड़ते हुए फरवरी के दूसरे पखवाड़े में केंद्र सरकार को जनता के मुद्दे याद दिला दिये। बुरे हाल में जा चुकी अर्थ-व्यवस्था से लेकर बेरोज़गारी, महँगाई, चीन, विदेश नीति आदि सबकी एक-एक कर गिनती की। यह भी याद दिलाया कि जवाहरलाल नेहरू का मज़ाक़ उड़ाने से या उन्हें कोसने से वर्तमान मसले हल नहीं होंगे। लेकिन सरकार और सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं ने मनमोहन सिंह को ख़ूब खरी-खोटी सुना दी और चुनाव प्रचार में भाजपा के तमाम स्टार प्रचारक, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी शामिल हैं; साइकिल, बम्ब, लाल टोपी वाले, जिन्ना, गर्मी निकालने, चर्बी उतारने तक सिमटे रहे। अब यह तो चुनाव नतीजे ही बताएँगे कि जनता ने असली मुद्दे किन्हें माना?

मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार की आर्थिक नीति पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार नाकाम है और उसकी नीति फेल है। मनमोहन सिंह, जिन्हें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तक ने ‘दुनिया का आर्थिक गुरु’ कहा था; ने यहाँ तक कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार को आर्थिक नीतियों की समझ ही नहीं है। हाल में केंद्रीय बजट, आर्थिक सर्वेक्षण, आरबीआई की बैठक और एजेंसियों के आँकड़े जिस तरह से जीडीपी को लेकर अलग-अलग थे, उससे ज़ाहिर होता है कि मनमोहन सिंह की चोट सही जगह थी।

हालाँकि मनमोहन सिंह के हमले से परेशान मोदी सरकार की तरफ़ से सफ़ार्इ भी आयी, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उन्हें (मनमोहन सिंह को) भारत को सबसे कमज़ोर बनाने और देश में भीषण महँगाई के लिए याद किया जाता है। सीतारमण ने कहा कि सत्ता में रहते हुए सिंह को लम्बे समय तक पता भी नहीं था कि चीज़ें कैसे चल रही हैं। ख़ुद को सही साबित करने के लिए सीतारमण ने मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आँकड़ों की तुलना की।

कई आर्थिक जानकार कह रहे हैं कि सरकार के अर्थ-व्यवस्था को लेकर आँकड़े भ्रमित करने वाले हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने भी इसी तरह की बातें कही हैं। मनमोहन सिंह ने केंद्र सरकार की इस बात के लिए भी खिंचाई की कि महँगाई, बेरोज़गारी से लेकर आर्थिक और विदेश नीति तक केंद्र सरकार नाकाम रही है, पर इन तमाम समस्‍याओं को सुलझाने की जगह मोदी सरकार पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू को क़ुसूरवार ठहराने में ज़्यादा दिलचस्‍पी ले रही है।

सिंह ने मोदी सरकार पर हमले में कहा कि बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, विदेश नीति और आर्थिक नीति पर सरकार फेल है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन हमारी सरहदों पर बैठा है। सरकार तथ्‍य दबाने में जुटी है। भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को आर्थिक नीतियों की समझ नहीं है। यह मसला सिर्फ़ देश तक सीमित नहीं है। यह सरकार विदेश नीति में भी फेल साबित हुई है। किसान आन्दोलन का मुद्दा भी मनमोहन सिंह ने उठाया और देश में धर्म के आधार पर बँटवारे को लेकर भी सरकार को घेरा। सिंह ने कहा कि किसान आन्दोलन पर सरकार की प्रतिक्रिया ख़राब रही। कांग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिए कभी देश को नहीं बाँटा। न ही सच छिपाने का काम किया। एक तरफ़ लोग बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं, दूसरी तरफ़ सरकार अब भी तमाम समस्याओं के लिए पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दोषी ठहरा रही है। मोदी सरकार पिछले साढ़े सात साल से सत्ता में है। वह ग़लतियों को मानने और उन्हें दुरुस्त करने के बजाय पुरानी बातों का राग अलाप रही है।

ज़मीनी हक़ीक़त

हाल में आयी ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फेमिन रिलीफ (ऑक्सफैम) की रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि साल 2021 में देश के 84 फ़ीसदी परिवारों की आय में गिरावट आयी है। लेकिन भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढक़र 142 हो गयी। रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये से बढक़र 53.16 लाख करोड़ रुपये हो गयी। वैसे देखा जाए, तो वैश्विक स्तर पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के ठीक बाद भारत अरबपतियों की संख्या के मामले में तीसरे नंबर पर है।

इस रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि साल 2021 में भारत में अरबपतियों की संख्या में 39 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक भारतीयों के अत्यधिक ग़रीब होने का अनुमान है, जो संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार नये वैश्विक ग़रीबों का लगभग आधा हिस्सा है। इसके अलावा 2020 में राष्ट्रीय सम्पत्ति में नीचे की 50 फ़ीसदी आबादी का हिस्सा मात्र छ: फ़ीसदी था। भारत में बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ रही है। देखा जाए तो नोटबंदी के बाद से देश में अर्थ-व्यवस्था का हाल ख़राब ही चल रहा है। नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार के शुरुआती दावों के विपरीत अनौपचारिक क्षेत्र को इसने अस्त-व्यस्त करके अर्थ-व्यवस्था का भट्ठा बैठा दिया। इसके बाद 2020 में कोरोना महामारी ने अर्थ-व्यवस्था का सत्यानाश कर दिया। हालाँकि उससे पहले ही 31 मार्च, 2020 तक देश की जीडीपी दर में दो फ़ीसदी की गिरावट आ चुकी थी। सरकार आज की तारीख़ में नोटबंदी का नाम लेने से भी कतराती है।

अनौपचारिक क्षेत्र अर्थ-व्यवस्था का क़रीब 90 फ़ीसदी रोज़गार देता है। अब यह क्षेत्र सिकुड़ रहा है। औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र के कमज़ोर होने के कारण पैदा हुई बेरोज़गारी को खपा नहीं पा रहा। यही कारण है कि अमीर और ग़रीब की खाई बढ़ गयी है। सीएमआईई के आँकड़े बताते हैं कि दिसंबर, 2021 तक बेरोज़गारी आठ फ़ीसदी थी।

महामारी ने आर्थिक स्थिति पर व्यापक असर डाला है। उत्पादन प्रक्रिया में गिरावट से रोज़गार में कमी आयी है और लोगों की आमदनी घटी है। बेशक धीरे-धीरे उद्योगों और कारोबारों में सुधार हो रहा है और रोज़गार की स्थिति पहले से बेहतर होती दिख रही है; लेकिन करोड़ों लोग जो महामारी के पहले चरण में गाँव लौट गये थे, उनमें से बहुत अभी भी रोज़गार हासिल नहीं कर पाये हैं। आमदनी भी कोरोना से पहले के स्तर तक नहीं पहुँच सकी है।

सरकारी आँकड़ों की ही मानें, तो महामारी से पहले देश की औसत प्रति व्यक्ति आय क़रीब 94.6 हज़ार रुपये थी, जो चालू माली साल में घटकर 93.9 हज़ार रुपये हो चुकी है। दिसंबर, 2021 में बेरोज़गारी दर 7.9 फ़ीसदी आँकी गयी थी और क़रीब 3.5 करोड़ लोग बेरोज़गारी की कतार में खड़े थे। ज़रूरी चीज़ें की क़ीमतों में बढ़ोतरी आज भी जनता की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। ज़रूरी उपभोक्ता वस्तुओं की क़ीमतों में 20 से 40 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो काफ़ी ज़्यादा है। पेट्रोल और डीजल ही 100 रुपये प्रति लीटर के आसपास हैं।

औसत ख़ुदरा मूल्यों में क़रीब 10 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। महामारी से पहले के साढ़े पाँच साल में यह आठ फ़ीसदी रही थी। उस समय आमदनी और रोज़गार में भी कमी का ऐसा संकट नहीं था। अच्छी संख्या में रोज़गार के अवसर सृजित नहीं हो रहे। आर्थिक जानकारों का मानना है कि अर्थ-व्यवस्था का बैंड बजने और अधिक कर, बढ़ता वित्तीय घाटा, रिजर्व बैंक की आसान मौद्रिक नीति और आपूर्ति शृंखला की समस्या मुद्रास्फीति का सबसे कारण है।

 

“आज भी लोगों को हमारी सरकार के अच्‍छे काम याद हैं। आज देश की हालत ऐसी है कि अमीर लोग और अमीर होते जा रहे हैं, जबकि ग़रीब लोग और $गरीबी में जा रहे हैं। प्रधानमंत्री के पद की गरिमा होती है। मैं भी 10 साल प्रधानमंत्री रहा हूँ। लेकिन कभी मैंने इस पद की मर्यादा कम नहीं होने दी। बतौर प्रधानमंत्री मैंने ज़्यादा बोलने की जगह काम को तरजीह दी। हमने सियासी लाभ के लिए देश को नहीं बाँटा। कभी सच पर पर्दा डालने की कोशिश नहीं की। एक साल से चीन की फ़ौज भारत की ज़मीन पर बैठी है। यह सरकार संवैधानिक संस्थाओं को लगातार कमज़ोर कर रही है। विदेश नीति के मोर्चे पर भी वह फेल हुई है। आज देश की स्थिति चिन्ताजनक है। $गलत नीतियों से अर्थ-व्यवस्था गिरी है और महँगाई तथा बेरोज़गारी से जनता परेशान है। ग़लत नीतियों से देश आर्थिक मंदी की जकड़ में है। किसान, व्यापारी, विद्यार्थी और महिलाएँ परेशान हैं। अन्नदाता दाने-दाने का मोहताज हैं। सामाजिक असमानता बढ़ गयी है।’’

मनमोहन सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री

 

“मनमोहन सिंह को भारत को सबसे कमज़ोर बनाने और देश में भीषण महँगाई के लिए याद किया जाता है। वह राजनीतिक कारणों से भारत को पीछे खींचने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि कोरोना महामारी के बावजूद भारत सबसे तेज़ी से विकास कर रही बड़ी अर्थ-व्यवस्था है और अगले साल भी ऐसा ही रहने की सम्भावना है। मैं आपका (मनमोहन का) बहुत सम्मान करती हूँ। मुझे आपसे यह आशा नहीं थी। मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आँकड़ों की भी तुलना करें, तो मनमोहन सिंह को ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है, जिनके कार्यकाल में लगातार 22 महीनों तक मुद्रा स्फीति (महँगाई) दहाई में थी और पूँजी देश से बाहर जा रही थी। महँगाई को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधने वाले भ्रम पैदा कर रहे हैं। सत्ता में रहते हुए सिंह को लम्बे समय तक पता भी नहीं था कि चीज़ें कैसे चल रही हैं?’’

निर्मला सीतारमण

केंद्रीय वित्त मंत्री