केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर उर्जित पटेल को कारण बताओ नोटिस भेजा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आरबीआई द्वारा विलफुल डिफॉल्टरों की सूची का खुलासा न करने पर यह भेजा गया था। सीआईसी ने जबाव देने के लिए 17 नवंबर तक का वक्त दिया है।
इसके अलावा सीआईसी ने प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के भूतपूर्व गर्वनर रघुराम राजन के बुरे कजऱ् पर लिखे पत्र को सार्वजनिक करने के लिए कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 50 करोड़ और उससे अधिक कजऱ् रिजर्व बैंक से लेने वाले विलफुल डिफाल्टरों के नामों का खुलासा करने का आदेश दिया था। इसका रिजर्व बैंक ने पालन नहीं किया। सीआईसी ने उर्जित पटेल से यह भी पूछा कि क्यों न उन पर अधिकतम जुर्माना लगाया जाए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सूचना आयुक्त शलैष गांधी के आदेश को बरकरार रखा था और आरबीआई ने इस आदेश का सम्मान नहीं किया था।
सीआईसी ने बताया कि 20 सितंबर को केंद्रीय सतर्कता आयोग में बोलते हुए पटेल ने कहा था कि सीवीसी द्वारा सतर्कता पर जारी दिशा निर्देश का उद्देश्य अधिक पारदर्शिता हासिल करना, ईमानदारी की संस्कृति को बढ़ावा देना और जीवन में सत्यता को बढ़ावा देना और संगठनों में अपने अधिकार के भीतर समग्र सतर्कता प्रशासन में सुधार करना था।
उन्होंने आगे कहा, ”हमें लगता है कि आरबीआई गर्वनर और डिप्टी गर्वनर जो कहते हंै उसमें और उनकी वेबसाइट आरटीआई पॉलिसी के बारे में जो कहती हैं उसमें कोई समानता नहीं है। सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युल ने कहा, ”जंयतीलाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सतर्कता आयुक्त के निर्देशों को कायम रखा था। इससे सतर्कता और जांच रिर्पोटों में काफी गोपनीयता रखी जाती है। अंत में उन्होंने कहा कि इस विवाद के लिए केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को दंडित नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने शीर्ष अधिकारियों के निर्देशों के तहत काम किया था।
यदि पिछले दिनों की कुछ घटनाओं पर नजऱ डालें तो पाएंगे कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑॅॅॅफ इंडिया के बीच एक टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने तो यहां तक कह दिया कि 2010 और 2014 के बीच आरबीआई ने अंधाधुंध बैंक कर्जों के वितरण पर कोई नियंत्रण नही रखा। स्थिति उस समय और खराब हो गई जब वित्तमंत्री ने भारत-अमेरिका सामरिक सांझेदारी फोरम में सेंट्रल बैंक पर यह टिप्पणी कर दी कि वह सोया हुआ है। इससे इन दोनों के बीच फैली कड़वाहट का पता चलता है।
वित्तमंत्री ने कहा कि सेंट्रल बंैक ने इस बात पर अपनी आंखे मंूद रखी थी जब उसकी कजऱ् की सीमा 31 फीसद पार कर गई जबकि यह 14 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए थी। मुझे नहीं पता सेंट्रल बंैक क्या कर रहा था। यह एक नियंत्रक था। उसने सच्चाई को छुपाने की कोशिश की।
आरबीआई के उप गर्वनर डाक्टर विरल वी आचार्य ने 26 अक्तूबर 2018 को मुंबई में एक व्याख्यान के दौरान अर्जेंटीना के विश्लेषक अल्बर्टो रामोस का हवाला देते हुए कहा सरकारी कर्जे़ उतारने के लिए बैंक की संचित राशि का इस्तेमाल कोई सकारात्मक बात नहीं है इसलिए इस मुद्दे पर खुले रूप से बहस हो सकती है। इससे बैंक की बैलेंसशीट कमज़ोर हुई है।
उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए एक स्वतंत्र सेंट्रल बैंक का होना ज़रूरी है। यह बैंक सरकार की दखलांदजी से परे होना चाहिए। मैं यह भी बताना चाहता हूं कि सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता को कमज़ोर करना किस प्रकार विनाशपूर्ण हो सकता हे। इससे ‘कैपिटल मार्केटसÓ में निराशा फैल सकती है जो आत्मघाती साबित होगी।